Read this article in Hindi to learn about the sixteen instruments used for diagnosing diseases of Central Nervous System (CNS).
Instrument # 1. माइलोग्राफी:
स्पाइनलकार्ड की जांच सबएरेकनोयड स्पेस में कान्ट्रास्ट डालकर की जाने वाली एक्स-रे जांच है (चित्र 11.20 क व ख) । कान्ट्रास्ट या तो लम्बर पन्कचर द्वारा या स्पाइनल सिस्टरनल रास्ते से डालते हैं । यह स्पाइनल कार्ड में स्थिति खराबियों की स्थिति व फैलाव जैसे ट्यूमर और इन्टरवर्टिबल डिस्क हर्नियेशन के बारे में बताता है ।
इसके लिए ओपेक माध्यम जैसे मायोडिल, मेट्रिजामाइड या गैस का प्रयोग किया जा सकता है । तैलीय माधयम अब प्रयोग नहीं किये जाते हैं । आजकल पानी में धुलनशील माध्यम जैसे मेट्रिजामाइड व आयोहेक्साल प्रयोग किये जाते हैं ।
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विधि:
स्पाइनल पन्कचर तथा कान्ट्रास्ट डालने का कार्य एक्स-रे विभाग में एक्स-रे विशेषज्ञ द्वारा फ्लोरोस्कोपी में देखते हुये किया जाता है । रोगी को जांच के दौरान टेबल की स्थिति में होने वाले परिर्वतनों के बारे में सावधान कर देना चाहिए ।
थोड़ा-सा सेरेब्रोस्पाइनल द्रव निकालने के बाद कान्ट्रास्ट सबअरेस्नायड स्पेस में डाल देना चाहिए तथा सुई निकाल लेनी चाहिए । उसके बाद कान्ट्रास्ट के बहाव को फ्लोरोस्कोपी में देखते रहते हैं तथा इसका नियंत्रण टेबल को ज्यादा या कम करके कर सकते हैं । कान्ट्रास्ट कालम में अवरोध पर इसकी आउट लाइन में कोई अनियमितता होने पर स्पाट फिल्मों लेते हैं ।
सेन्ट्रल रे को ऊर्ध्वाधर या होरिजोन्टल रखकर एक्स-रे ले लिये जाते हैं । क्रास टेबल प्रोजेक्सन में स्टेशनरी ग्रिड का प्रयोग कर सकते हैं । रोगी के सिर की स्थिति पूरी जांच के दौरान एक्सटेनशन में होनी चाहिए जिससे कान्ट्रास्ट मस्तिष्क के सेरेब्रोस्पाइनल स्पेस में न पहुंच सके ।
Instrument # 2. डायग्नोसिटक बिसरल एंव पेरीफेरल एन्जियोग्राफी:
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एन्जियोग्राफी आयोडीनयुक्त कान्ट्रास्ट का प्रयोग कर कार्डियोवेसकुलर तन्त्र की एक्स-रे जांच है । इसका प्रयोग रक्त नलिकाओं की रचना तथा गड़बड़ियों का पता करने में किया जाता है । कार्डियक एन्जियोग्राफी का प्रयोग हृदय व वालों की आन्तरिक रचना का पता करने में किया जाता है ।
कुछ स्थितियों में इसका प्रयोग ट्यूमर का पता लगाने में भी किया जाता है । अधिकतर एन्जियोग्रामो को अर्टिरियोग्राम तथा वीनोग्राम में बांटा जा सकता है । एन्जियोग्राफी के अंतर्गत अन्य नलियों की जांच भी आती है । जैसे: लिम्फैन्जियोग्राफी जहां लिम्फ नलियां तथा ग्रन्थियां दिखायी जाती हैं ।
उपकरण:
ज्यादातर एलियोग्राम रक्त में घुले हुये कान्ट्रास्ट के बहाव को रैपिड फिल्म चेन्जर या सिनेफ्लोरोग्राफी पर रिकार्ड करते हैं । कई प्रकार के रेपिड फिल्म चेन्नर होते हैं जो एक सेकेण्ड में कई फिल्म में तेजी से कर सकते है । कुछ में कटी हुई फिल्म प्रयोग होती है । जबकि कुछ में लम्बी रील का । रेपिड फिल्म चेन्जर अकेले या दो-एक साथ एक दूसरे से 90 डिग्री पर रक्त नलिकाओं की फिल्में ले सकते हैं । इसे वाप्लेन रैपिड फिल्म चेन्जर कहा जाता है ।
Instrument # 3. सिने फ्लोरोग्राफी:
ADVERTISEMENTS:
इसमें एक मूवी कैमरा होता है जो इमेज इन्टेन्सीफायर द्वारा बनी इमेज की फिल्में लेता है । सिने कैमरा 60 फिल्में प्रति सैकेण्ड ले सकता है जो वास्तविक मोशन पिक्चर रेडियोग्राफी होती है । इसमें रोल फिल्म का प्रयोग होता है ।
यद्यपि इसका रिजोल्यूशन सामान्य फिल्मों की अपेक्षा कम होता है, पर हमें फ्लोरोस्कोपी में देखने तथा उसकी फिल्में लेने की छूट देता है । एन्जियोग्राफी मशीनों के लिए उच्च क्षमता के जेनरेटर तथा उच्च मि.ली. एम्पियर आउटपुट की आवश्यकता होती है ।
कान्ट्रास्ट लगाने की विधि:
कान्ट्रास्ट हाथ से या आटोमैटिक इन्जेक्टर द्वारा दिया जा सकता है । आटोमैटिक इन्जेक्टर द्वारा निश्चित कान्ट्रास्ट को अपने निश्चित किये समय पर दिया जा सकता है । इसका प्रयोग सभी धमनियों व उच्च दाब जांचों के लिए आवश्यक है । जहां कान्ट्रास्ट जल्दी डालने की आवश्यकता होती है । क्योंकि यह जल्दी से बाहर निकल जाता है ।
Instrument # 4. एक्स-रे ट्यूब | X-ray Tube:
प्राय: एन्जियोग्राफी के लिए दो ऊपरी एक्स-रे ट्यूब तथा एक फ्लोरोस्कोपी ट्यूब होती है । एक्स-रे ट्यूब एक लोहे की छड़ जिसे ”सी” आर्म कहते हैं, द्वारा इमेज इन्टेंसीफायर व फिल्म चेन्जर से जुड़ी होती है जिसे रोगी के चारों ओर घुमाया जा सकता है जो आराम से एक ही स्थिति में लेटा रह सकता है । पर इसमें फोकस फिल्म डिस्टेन्स निश्चित रहती है तथा रेडियोलोजिस्ट को अधिक विकिरण मिलता हे ।
एन्जियोग्राफिक ट्यूब का एनोड एनिगल छोटा होता है जिससे मैग्नीफिकेशन हो सके । इनका एनोड बहुत तेजी से (लगभग 10,000 आर॰ पी॰ एम॰) घूमता है जिससे पैदा होने वाली गर्मी कम की जा सके । इससे एनोड पर एक ही स्थान पर कम गर्मी पैदा होती है ।
जब कई एक्सपोजर लगातार किये जाते हैं । छ: से कम प्रति सेकेण्ड । जेनरेटर का चुनाव कम से कम 500 मि॰ली॰ एम्पीयर की रेटिंग तथा उच्च परफामेंन्स वाला होना चाहिए । एन्जियोग्राफी के लिए 700-2000 मि॰ली॰ एम्पीयर रेटिंग का जेनरेटर उपयुक्त होता है । जेनरेटर मल्टीफेसिक होना चाहिए ।
उन विभागों में जहां कार्डियोवेसकुलर कार्य होता है, जेनरेटर निश्चित पोटेन्शियल वाला जिसकी ट्यूब रेटिंग 3000 मि॰ली॰ एम्पियर तथा एक्योजर समय 0.042 सेकेण्ड तक होता है । इन जेनरेटरों की आवश्यता मोनोक्रोमेटिक या होमोजिनस एक्स रेडियेशन के लिए होती है ।
इससे रोगी को कम विकिरण मिलता है तथा एक्सपोजर जल्दी-जल्दी हो सकता है । बहुत कम कार्डियोवैसकुलर कार्य के लिए कम से कम 500 मि॰ली॰ एम्पियर की यूनिट तथा 1000 मि॰ली॰ एम्पियर की मशीन थोड़े अधिक कार्य के लिए आवश्यक है ।
आर्टीरियल कैथेटेराइजेसन उपकरण:
प्राय: 18 गेज की नीडल (सुई) तथा कैनुला प्रयोग किये जाते हें जो 8 से॰मी॰ लम्बे तथा सिरा नुकीला होता है । कैनुला की बाहरी टेफलानशीय होती है । 18 गेज के कैनुला में 0.89 मि॰मी॰ तथा 0.97 मि॰मी॰ के गाइडवायर प्रयोग हो सकते हैं ।
Instrument # 5. गाइड वायर:
इनका कार्य कैथेटर को त्वचा, साफ टिश्यू तथा धमनी की दीवार को भेदकर धमनी के छिद्र में दिशा देना है । गाइड वायर 100 से 150 से॰मी॰ लम्बे तथा 0.89 मि॰मी॰ या 0.97 मि॰मी॰ ब्यास के होते हैं, तथा टेफलान कोटेड होते हैं ।
कैथेटर पतली दीवार वाले पालीथीन या पालीपेरेयोन की ट्यूब होती है जिनका अगला सिरा पतला होता है । अधिकतर कैथेटर 5-7 फ्रेन्च गेज वाले होते हैं, तथा 60-100 से॰मी॰ लम्बे होते हैं । इनके छेद में 0.97 तथा 0.89 मि॰मी॰ का गाइडवायर डाला जा सकता है । अधिकतम बहाव दर कैथेटर के आन्तरिक छेद, दीवार में स्थित साइडछिद्रों की संख्या पर निर्भर करती है ।
कान्ट्रास्ट माध्यम:
अधिक रेडियोग्राफिक डेन्सिटी, कम विस्कोसिटी, कम आसमोलेरिटी तथा तीव्रता से विसर्जित होनी चाहिए । ओर्थोग्राफी व सेलेक्टिव एन्जियोग्रफि 350-370 मि॰ ग्राम व 300 मि॰ ग्राम क्रमश: आयोडीन / मि॰लि॰ वाले कान्ट्रास्ट से करनी चाहिए । कान्ट्रास्ट को शरीर के तापमान तक गरम कर डालना चाहिए जिससे इनकी विसकासिटी कम हो जाये । कुल आयतन 4-5 मि॰ली॰ 7 किग्रा के हिसाब से प्रयोग करते हैं ।
रोगी की तैयारी:
रोगी को जांच के एक दिन पूर्व भर्ती करना चहिए । रोग के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करनी चाहिए । जांच के तीन दिन पहले से मुंह से पिये जाने वाले एन्टीकोगुलेन्ट दवायें बन्द कर देनी चाहिए । परिधीयपल्स की जांच करनी चाहिए तथा रक्तचाप मापा जाना चाहिए ।
इसके अतिरिक्त होमोग्लोबिन, प्लेटलेट काउन्ट, रक्त यूरिया और इलेक्ट्रोलाइट की जांच करवानी चाहिए । हीमोग्लोबिन कम से कम 10 ग्राम / 100 मि॰ली॰ प्लेटलेट एक लाख प्रति 100 मि॰ली॰ से अधिक तथा पोथेम्बिन टाइम 18 सेकेण्ड से कम (कन्ट्रोल का 14 सेकेण्ड) चाहिए ।
दोनों ग्रोइन तथा जननांगों के आसपास के बाल साफ किये जाने चाहिए । रोगी की जांच के छ: घण्टे पहले तक खाने को तथा दो घण्टे पहले तक द्रव पीने को दिये जा सकते हैं । मधुमेह के रोगियों को सुबह दी जाने वाली इनसुलिन या गोली नहीं लेनी चाहिए । लिखित जांच की अनुमति रोगी से ले लेनी चाहिए ।
विधि:
जांच के पूर्व त्वचा की सफाई सेवलान (पांच प्रतिशत), टिन्चर आयोडीन (2.5 प्रतिशत) तथा स्प्रिट (70 प्रतिशत) से करनी चाहिए ।
धमनी तन्त्र के लिए दो विधियां अपनाते हैं:
1. इच्छित धमनी में सीधे छेद कर सकते हैं, जैसे कैरोटिड धमनी गर्दन में सेरेब्रल एन्जियोग्राफी हेतु या सीधे महाधमनी ट्रान्सलम्वर पन्चर एओराटोग्राफी हेतु ।
2. कैथेटर वहां पर डाला जा सकता है जहां धमनी त्वचा के ठीक नीचे होती हैं । मुख्य रूप से दांया ट्रान्सफीमोरल तरीका अधिक प्रयोग होता है । अन्दर डालने के लिए सेलडिन्गर नीडल प्रयोग होती है, जिसमें ट्रोकार तथा कैनुला होता है ।
इससे फीमोरल धमनी की अगली दीवार छेद कर कैनुला को अपने स्थान पर रखते हुये ट्रोकर निकाल लेते हें तथा एक लम्बा गाइड वायर कुछ दूरी तक डाल देते हैं । अब कैनुला को गाइडवायर पर सरका कर बाहर निकाल लेते हैं तथा कैथेटर का स्वतंत्र सिरा (पिगटेल कैथेटर) गाइडवायर पर डालते हुए फीमोरल धमनी में पहुंचा देते हैं ।
फिर वहां से महाधमनी में । फ्लस एओराटोग्राम करने के बाद इस कैथेटर को गाइडवायर पर से निकालकर सेलेक्टिव कैथेटर प्रयोग कर सकते हैं जो इच्छित नलिका को हुक करने में समर्थ होती हे । कैथेटर की स्थिति इमेज इन्टैन्सीफायर द्वारा देखी जाती है । एन्जियोग्राफी के लिए पूर्ण एसेप्सिस होनी चाहिए तथा ट्राली के सभी सामान आटोक्तेव किये जाने चाहिए ।
रोगी की जांच के बाद देखभाल:
रोगी के 12-24 घण्टे पूर्ण आराम की सलाह दी जाती है । इस दौरान पन्चर स्थान पर किसी रक्तस्राव या थक्के (हिमेटोमा) के लिए देखते हैं । नाड़ी तथा रक्तचाप हर 15 मिनट पर चार घण्टे तक लेते रहना चाहिए तथा 24 घण्टे तक हर चार घण्टे पर । रोगी को 24 घण्टे पैर न मोड़ने को कहते हें । कैथेटर निकालने के बाद बीस मिनट तक उस स्थान को दबाये रखना चाहिए । रक्तस्राव बन्द होने के बाद घाव को टिन्चर वेन्जोइन से बंद कर दाब देकर पट्टी बांध देते हैं ।
निम्न लक्षण पर तुरन्त डाक्टरी सहायता की आवश्यकता होती है:
1 रक्त चाप गिरने पर ।
2. नाड़ी की गति का बढ़ना ।
3 पैर में दर्द तथा फीमोरल पन्चर के बाद परिधीय नाड़ियों की अनुपस्थिति ।
4. व्रेकियल पन्चर के बाद हाथ में दर्द तथा रेडियल पल्स की अनुपस्थिति ।
5. सेरेब्रल एन्जियोग्राफी के बाद, दो घण्टे तक हर पन्द्रह मिनट पर न्यूरोलाजिकल जांच आवश्यक है ।
पेल्विक एन्जियोग्राफी के रोगी को दो-तीन घण्टे के बाद चलाया जा सकता है । जिससे शिराओं में थ्रोम्बस न बने ।
Instrument # 6. पैरों की अटीर्रियोग्राफी लम्बर एओरटोग्राफी:
एक पिगटेल कैथेटर का सिरा (पांच फेंच गेज) निचले उदरस्थ या लम्बर महाधमनी में तृतीय लम्बर तक डालकर कान्ट्रास्ट 50-60 मि॰लि॰ 8-12 मि॰लि॰ 8-12 मि॰लि॰ / से॰ दर से डालते हैं । फिल्में दो सेकेण्ड बाद से छह सेकेण्ड तक एक फिल्म प्रति सेकण्ड की दर से लेते हैं तथा दो प्रति सेकण्ड अगले 12 से 24 सेकेण्ड तक ।
Instrument # 7. आर्च एओरटोग्राफी:
पांच फ्रेन्च गेज पिगटेल कैथेटर एसेन्डिंग एओरटा में इन्नोमिनेट आर्टरी के निकलने के स्थान से पांच से॰मी॰ पहले तक डाल देते हैं । रोगी को 45-60 अंश दांये पोस्टीरियर ओबलीक स्थिति में रखते हैं । पुन: 30-45 डिग्री बांयी पोस्टीरियर ओबलीक स्थिति में फिल्में ले लेते हैं । लगभग 50 मि॰लि॰ कान्ट्रास्ट 20-25 भि॰ लि॰/सेकेण्ड डालकर 0.5 सेकण्ड से शुरू कर तीन फिल्में प्रति सेकण्ड की दर से तीन सेकेण्ड तक लेते हैं । तत्पश्चात एक फिल्म प्रति सेकेण्ड की दर से तीन सेकेण्ड तक लेते हैं ।
Instrument # 8. अर्टीरियोग्राफी:
पांच फ्रेंच गेज हेडहन्टर कैथेटर को सबकलेवियन या इन्नोमिनेट धमनी में दो से पांच से॰मी॰ अन्दर डालकर रोगी को 15-30 डिग्री एण्टीरियर ओबलीक स्थिति में रखते हैं । 15-20 मि॰लि॰ कान्ट्रास्ट 6-8 मि॰लि॰ / सेकेण्ड की दर से डालते हैं । एक सेकेण्ड के बाद से एक फिल्म प्रति सेकेण्ड की दर से आठ सेकेण्ड तक फिल्में लेते हैं ।
Instrument # 9. उदरस्थ महाधमनी की आर्टीरियोग्राफी:
पांच फ्रेंच गेज पिगटेल कैथेटर सीलियक एक्सिस के निकलने के स्थान (D 12-L1) से पांच से॰मी॰ डालकर लगभग 50 मि॰लि॰ प्रति सेकेण्ड की दर से डालकर 2 फिल्में प्रति सेकेण्ड की दर से 3 सेकेण्ड तक, तत्पश्चात एक फिल्म प्रति सेकेण्ड की दर से छ: सेकेण्ड तक करते हैं ।
Instrument # 10. मेजेन्टरिक आर्टिरियोग्राफी:
सीलियक तथा सुपीरियर मेजेन्टेरिक ऐन्जियोग्राफी के लिए 50-70 मि॰लि॰ तक कान्ट्रास्ट तत्पश्चात एक फिल्म प्रति सेकेण्ड की दर से तीन सेकेण्ड तक और एक फिल्म प्रति दो सेकेण्ड की दर से 18-28 सेकेण्ड तक । इन्फीरियर मेजेन्टरिक एन्जियोग्राफी के लिए 15-25 मि. लि. कान्ट्रास्ट 3-5 मि॰ लि॰ / सेकेण्ड की दर से डालकर 0.5 सेकेण्ड बाद से फिल्म लेना शुरू करते हैं । फिल्में तीन फिल्म प्रति सेकेण्ड की दर से तीन सेकेण्ड तक, एक फिल्म प्रति सेकेण्ड की दर से तीन सेकेण्ड तक तथा एक फिल्म हर दो सेकेण्ड में अगले छ: सेकेण्ड तक ।
Instrument # 11. रीनल एन्जियोग्राफी (चित्र 11.21):
रीनल एन्जियोग्राफी के लिये 10-15 मि. ली तक काट्रास्ट माध्यम डालकर 0.5 सेकेण्ड के बाद फिल्म 2 फिल्में प्रति सेकेण्ड की दर से तीन सेकेण्ड पर एक सेकेण्ड से 3 सेकेण्ड तक व एक प्रति दूसरे सेकेण्ड से 6 सेकेण्ड तक लेना चाहिए ।
Instrument # 12. पेल्विक एन्जियोग्राफी:
लम्बर एओरटोग्राफी प्राय: फीमोरल रास्ते से करते हैं । लगभग 30-40 मी॰ली॰ कान्ट्रास्ट 10-15 मिली॰/सेकेण्ड की दर से डालती हैं । फिल्में दो फिल्में प्रति सेकेण्ड की दर से दो सेकेण्ड और एक फिल्म प्रति सेकेण्ड की दर से 4 सेकेण्ड तक लेते हैं ।
Instrument # 13. कैरोटिड एन्जियोग्राफी:
इसका प्रयोग मस्तिष्क के अग्र एवं मध्य भाग में होने वाली रक्त नलिकाओं में होने वाले विस्थापन का पता करने में किया जाता है । यह कान्ट्रास्ट सीधे कैरोटिड धमनी में डालकर या कैथेटर विधि द्वारा फीमोरल धमनी पन्चर करके कर सकते हैं ।
मैनुअल फिल्म चेन्जर जो 3-5 फिल्में प्रति सेकेण्ड ले सकता हो, का प्रयोग किया जा सकता है । वेसकुलर पैटर्न के लिए सब्सट्रैक्शन विधि उपयोगी होती है ।
रोगी की तैयारी:
1. सीने तथा कपाल की आरम्भिक फिल्म ।
2. जांच के पांच घण्टे पहले से मुंह से कुछ खाने को नहीं देते हैं ।
3. सारे आर्टिफेक्ट जैसे डेन्चर और हेयरपिन निकाल देना चाहिए ।
कान्ट्रास्ट माध्यम एवं मात्रा:
कानरे या एन्जियोग्राफिन-10 मि॰लि॰ प्रति इन्जेक्शन ।
आरम्भिक फिल्म:
रोगी को सुपाइन लिटा कर ठोड़ी ऊपर कर देते हैं । दोनों कन्धों तथा गर्दन के नीचे फोम पैड लगा देते हैं । एक्स-रे ट्यूब को होरिजोन्टल रखते हुये इन्टर्नल आर्डिटरी मीटस से एक सेमी ऊपर सेन्टर कर देते हैं ।
विधि:
कान्ट्रास्ट हाथ से डालते हुये फिल्में धमनी, कैपलरी तथा वीनस फेज को दिखाने के लिए लेते हैं । पहला एक्सपोजर सिरिंज में जब दो मि॰लि॰ कान्ट्रास्ट रह जाता है, तब लेते हैं तथा अगला 1-2 सेकेण्ड बाद तथा तीसरा दो सेकेण्ड बाद लेते हैं ।
एन्टीरोपोस्टीरियर एक्स-रे के लिए कन्धों के नीचे स्थित पैड निकाल देते हैं । एक तिकोना पैड सिर के नीचे लगा देते हैं । फिर टेबल को धीरे-धीरे उठाकर 5-10 डिग्री टेढी कर देते हैं, फिर ट्यूब को 90 डिग्री घुमाकर 25 डिग्री पैरों की तरफ कोण देकर ग्लैबेला से दो इंच ऊपर सेन्टर कर देते हैं । ओबलीक बिव सिर को 30 डिग्री जांच वाली तरफ से दूसरे ओर घुमा देते है । ट्यूब को सुपीरियर आर्विटल मार्जिन के मध्य बिन्दु से पांच से॰मी॰ ऊपर सेन्टर करते हैं ।
दुष्प्रभाव:
1. कान्ट्रास्ट माध्यम से रियेक्सन-हाइपरसेन्सिटिविटी (जो कान्ट्रास्ट की मात्रा पर निर्भर नहीं करती है) तथा (टाक्सिक रियेक्सन) मात्रा पर निर्भर) कान्ट्रास्ट माध्यम से हो सकती है । ये निर्जल वाले रोगियों में अधिक होती है ।
हाइपर सेन्सिटिविटी रियेक्सनों में त्वचा के चकते या आर्टिकेरिया, वायुनली का स्पाज्म, कण्ठनाल की सूजन, एक्यूट एनाफाइलेक्सिस तथा कार्डियोवैस्कुलर कोलैप्स । टाकिसक रियेक्शन, गर्मी महसूस होना, हृदय की एरिद्मिया, फेफड़ों में सूजन तथा कार्डियक अरेस्ट के रूप में हो सकती है ।
2. पनक्चर वाले स्थान पर:
हीमेटोमा बनना, रक्तस्राव, आर्टीरियल स्पाज्य, थ्रोम्बोसिस, सबइन्टीमल डिसेक्सन, पेरी वेसकुलर कान्ट्रास्ट माध्यम का एक्सट्राबेसेसन, ए-वी फिस्टुला, एन्यूरिज्म का निर्माण, तथा नर्व ट्रामा आदि हो सकते हैं ।
3. पनक्चर स्थान से दूर:
सबइन्टीमल डिसेक्शन और थ्रोम्बोसिस मुख्य हैं इसके अतिरिक्त इम्वोलिज्म, कैथेटर की गांठ, गाइडवायर का टूटना, वैक्टीरियल एनडोकार्डाइटिस तथा सेप्टीसीमिया आदि भी हो सकते हें ।
हृदय तथा फेफड़ों का रक्त संचार:
एन्जियोकाडियोग्राफी:
यह कान्ट्रास्ट माध्यम द्वारा हृदय के चैम्बरों व बड़ी नलिकाओं की एक्स-रे जांच है ।
1. कान्ट्रास्ट माध्यम:
कानरे 420 या कार्डियो कानरे अधिकतम प्रयोग होने वाला आयतन 50 मि॰लि॰
2. एक्स-रे ट्यूब एवं जेनरेटर:
उच्च क्षमता वाली तथा ”सी” आर्म वाली होनी चाहिए जो धूम सकने की क्षमता के अलावा क्रेनियल व काडल एन्गुलेशन भी ले सके । जन्म जात हृदय रोगों के निदान के लिए बाइप्लेन फ्लोरोस्कोपी की भी आवश्यकता होती है ।
3. एक्स-रे इमेजिंग व रिर्काडिंग विधि:
उच्च क्षमता वाला इमेज इन्टेन्सीफायर और टेलीविजन की आवश्यकता होती है ।
4. वीडियो टेप रिर्काडिंग:
साइन अध्ययन के लिए इस क्षमता का होना आवश्यक है ।
5. साइन फ्लोरोग्राफी:
इसके लिए प्राय: 35 मि॰मी॰ का साइन कैमरा जो 150 फिल्म प्रति सेकेण्ड ले सके, प्रयोग करते है ।
6. फोटो फ्लोरोग्राफी:
ये फिल्म प्राय: 100 या 105 मि॰मी॰ आकार की होती हैं तथा आठ फिल्मों/सेकेण्ड की दर से ली जा सकती हैं ।
7. रेडियोग्राफ:
पल्मोनरी एन्जियोग्राफी के लिए कभी-कभी पूरे आकार की फिल्में ली जाती हैं ।
रोगी की तैयारी:
द्रव तथा भोजन चार घन्टे पहले से रोगी को देना बन्द कर देते हैं । अपरिपक्व बच्चों तथा नवजात शिशुओं को ताप तथा अम्लक्षार का निर्धारण बड़ी सावधानी से करना अति आवश्यक है । बहुत नर्वस और परेशान रोगी के लिए जनरल निश्चेतना की आवश्यकता पड़ सकती है । वयस्क रोगी को जांच के पूर्व 10-15 मि॰ग्रा॰ मारफीन सबक्यूटेनियस रास्ते से एक घण्टे पहले दी जा सकती है ।
Instrument # 14. दांये आर्ट्रियम व बेन्ट्रीकिल की एन्जियोर्काडियोग्राफी:
दांये आर्ट्रियम की एन्जियोग्राफी:
इसे फीमोरल वेन पन्क्चर द्वारा किया जाता है । कैथेटर उपयुक्त स्थिति में पहुंचा कर रोगी से सांस रोकने को कहते हैं तथा प्रेसर इन्जेक्टर में 50 मि॰लि॰ कान्ट्रास्ट भरकर 25 मि॰लि॰/सेकेण्ड की दर से डालते हुए फिल्म ले लेते हैं । साइन फिल्म पर कान्ट्रास्ट के दांये आर्ट्रियम, बांये वेर्निट्रकिल तथा पल्मोनरी धमनी तथा शिरा से गुजरते हुये रिकार्ड कर सकते हैं ।
Instrument # 15. दायें वेंट्रिकल की एन्जियोग्राफी:
कैथेटर को दांये आट्रियम से दांये वेन्ट्रीकिल में पहुंचा देते हैं तथा 50 मि॰लि॰ कान्ट्रास्ट इन्जेक्टर में लेकर 30 मि॰लि॰/सेकेण्ड से डालते हुए एण्टीरीपोस्टीरियर तथा लैंट्रल फिल्में पल्मोनरी धमनी, शिरा, बांये आट्रियम व वेन्ट्रीकल में जाते समय ले लेते हैं ।
Instrument # 16. इन्फीरियर बीनाकेवाग्राफी:
इसे या तो परक्यूटेनियस वाइफीमोरल शिरा पन्क्चर द्वारा तथा दोनों तरफ एक साथ कान्ट्रास्ट डालते हुये या पिगटेल कैथेटर जिसमें साइड छिद्र होते हैं, को सेल्डिंगर विधि से डालकर उपयुक्त स्थान तक निचली महाशिरा में पहुंचा कर, कर सकते हें ।
बाइफीमोरल वेन पन्कचर विधि में 40 मि॰लि॰ कान्ट्रास्ट दोनों तरफ 15 मिलि॰/सेकेण्ड की दर से डालते हुये करते हैं। फिल्में, दो फिल्में प्रति/सेकेण्ड की दर से तीन सेकेण्ड तक तथा एक फिल्म/सेकेण्ड की दर से अगले चार सेकेण्ड तक लेते हें । कान्ट्रास्ट इन्जेक्ट करना शुरू करने के 0.5 सेकेण्ड के बाद से फिल्में लेना शुरू करते हैं । फिल्म एण्टीरोपोस्टीरियर तथा लैट्रल पोजीशन में लेते हैं ।
परक्यूटेनियस स्प्लीनोपोर्टोग्राफी:
रोगी की तैयारी:
रोगी को जांच के बारे में पूरी तरह बता देना चाहिए । प्लीहा के आकार के बारे में पलपेट कर पता करना चाहिए । छोटे बच्चों में जनरल निश्चेतना की आवश्यकता होती है, जबकि दस साल से अधिक उम्र के रोगियों को लोकल निश्चेतना देनी चाहिए । जांच के पूर्व 10 मि॰ ग्रा॰ इनट्राविनस इन्जेक्शन डायाजीपाम दिया जा सकता है ।
विधि:
सर्वप्रथम बायें हाइपोकान्ड्रीयम की आरम्भिक फिल्म करने के पश्चात फ्लोरोस्कोपी करते हैं । सीने पर एक मार्कर दिख रही स्प्लीन के मध्य लगा देते हैं । त्वचा तथा सबक्यूटेनियस टिश्यू में निश्चेतक लगा देते हैं । रोगी से सांस रुकवाकर निश्चेतक स्प्लीनिक कैप्सुल तक लगा देते हैं ।
रोगी को पूरी जांच के दौरान धीरे-धीरे सांस लेने के लिए कहते हैं । त्वचा पर ब्लेड से छोटा सा चीरा देते हैं फिर 9 से॰मी॰ लम्बा 6 फ्रेन्च गेज के कैनुला को 4-6 से॰मी॰ पूरी तरह सांस रुकवाकर डाल देते हैं । इसकी दिशा 10-15 डिग्री सिर की तरफ तथा हल्का सा पीछे की और स्प्लीन के हाइलम की तरफ होनी चाहिए । (चित्र 11.22)