Read this article to learn about the various instruments used for diagnosing human diseases in Hindi language.
Instrument # 1. ओरल कोलीसिस्टोग्राम:
इस जांच की जगह आजकल अल्ट्रासाउन्ड ने ले ली है ।
जांच विधि:
रोगी को टेलीपेक या सोलूविलाप्टिन की छह गोलियां मुंह से खाने को, जांच वाले दिन के पूर्व वाली राशि में देते हैं तथा उसके बाद उसे कुछ और नहीं खाने देते हैं । गोलियां देने के लगभग 12-15 घन्टे बाद सबसे पहले प्रोन ओबलीक, दांया भाग लगभग 20 डिग्री उठाकर फिल्म लेते हैं ।
ADVERTISEMENTS:
फिल्म में 11 तथा 12 वीं पसली तथा स्पाइन के दांयी ओर का भाग आना चाहिए । आरम्मिक फिल्म के बाद मरीज को सुपाइन लिटाकर पिलाशय को उपयुक्त स्पाट फिल्म लेते हैं । इन फिल्मों को देखने के पश्चात रोगी की वसायुक्त भोजन खाने को देते हैं, तथा 30-40 मिनट बाद एक पित्ताशय की फिल्म लेते हैं, यह देखने के लिए कि पित्ताशय सिकुड़ा है या नहीं तथा उसमें छोटे पत्थरों की वजह से फिलिंग डिफेक्टों को देखने के लिए करते हें । इस फिल्म में सिस्टिक तथा कामन वाइल डक्ट भी दिख जाती है । यदि पित्ताशय न दिखे तो डबलडोज ओरल कोलीसिस्टोग्राफी पुन: छह गोलियां देकर (कुल 12 गोलियां) अगले दिन फिल्म लेते हैं ।
Instrument # 2. इन्ट्रावीनस कोलीडोकोग्राफी:
जब ओरल कोलीसिस्टोग्राफी सफल नहीं हो पाती है तो बाईल उक्टो में स्थित कैलकुलस को देखने के लिए यह जांच की जाती है । कान्ट्रास्ट (विलिग्राफिन) धीमे-धीमे इन्द्रावीनस या 30-60 मिनट में इन्फ्यूजन के रूप में देते हैं ।
इन्जेक्शन धीमे-धीमे इसलिए देते हैं जिससे कान्दास्ट अल्युमिन से जुड़ कर यकृत में पहुंच सके । अन्यथा उसे गुदी द्वारा उत्सर्जित कर दिया जाता है । विलियरी डक्ट 45-90 मिनट के पश्चात सबसे अच्छी दिखती है, पर इसे लगभग चार घण्टे तक देखना चाहिए ।
Instrument # 3. एण्डोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलीडोकोपैनिघक्रयाटोग्राफी (ERCP):
इस जांच में फाइबर आप्टिक एन्डोस्कोप की सहायता से पैपिला आफ वेटर से होते हुए एक ट्यूब डालकर कान्ट्रास्ट द्वारा पैन्क्रियाटिक व विलियरी तन्त्र को देखते हैं । इसे आसट्रक्टिव पीलिया, पेन्क्रियास के रोगों के निदान में, विलियरी और पेन्क्रियाज के जांच में करते हैं ।
ADVERTISEMENTS:
फिर भी इसे आस्ट्रेलिया एण्टीजेन के लिए पाजीटिव रोगियों, कान्दास्ट से सेन्सिटिव, एक्यूट पैन्क्रियेटाइटिस के रोगियों में तथा जहां पाइलोरिक स्टीनोसिस की वजह से एन्डोस्कोप न डाल सकें, में नहीं करते हैं । यह इमेज इन्टेसीफायर या फ्तोरोस्कोपी में देखते हुए की जाती है । इसमें कोनरे 280 या यूरोग्राफिन 60 प्रतिशत का प्रयोग कान्दास्ट के रूप में करते हैं । (चित्र 11.14)
रोगी फ्लोरोस्कोपी टेबल पर बांयी करवट लेट जाता है तथा उपयुक्त निर्देशों के बाद शल्य चिकित्सक या रेडियोलोजिस्ट एन्डोस्कोप ग्रास नली व आमाशय से होता हुआ डियोडिनम में डालता है । एण्डोस्कोप द्वारा डियोडिनम के द्वितीय भाग में स्थित पैपिला आफ वेटर को देखकर उसमें एक पतला कैनुला डाल देते हैं । अब रोगी प्रोन स्थिति में लिटाकर 2-4 मि.ली. कान्ट्रास्ट डालकर फ्लोरोस्कोपी में देखते हैं ।
प्राय: पैन्क्रियार्टिक डक्ट पहले भरती है । फिर भी कभी-कभी दोनों वाइल डक्ट तथा पैन्क्रियाटिक साथ-साथ भरती हैं । उपयुक्त फिल्में प्रोन व पोस्टीरियर ओबलीक स्थिति में ले ली जाती हैं । अब कैनुला को कामन वाइल डक्ट में स्थिर कर पुन: कान्दास्ट डालकर फिल्में लेते हैं ।
Instrument # 4. परक्यूटेनियस ट्रान्सहिपेटिक कोलेन्जियोग्राफी (P.T.C.):
इस जांच को चीबा नीडल की मदद से इन्द्राहिपेटिक वाइल डक्ट में यकृत के ऊपर स्थित त्वचा से डालकर उनमें कान्ट्रास्ट डालकर करते हैं । यह जांच फ्लोरोस्कोपी में देखते हुये ओब्सट्रक्टिव पीलिया और इन्ट्राहिपेटिक ओब्सट्रक्शन में की जाती है । इसे रक्त स्त्राव की संभावना वाले रोगियों में, कान्ट्रास्ट से सेन्सिटिव रोगियों में, इन्केक्शन क्ईा स्थिति और सीरोलाजिकल टैस्ट पाजिटिव होने पर नहीं किया जाता है ।
ADVERTISEMENTS:
20-60 मि.ली. कानरे 280 या 60 प्रतिशत यूरोग्राफिन का प्रयोग कान्ट्रास्ट के रूप में किया जाता है । आरम्भिक फिल्म 10 ”x 12” पर सुपाइन स्थिति में लेते हैं । रेडियोलॉजिस्ट चीबा नीडल सांस रुकवाकर यकृत में डालता है । स्टाइलेट निकालकर कान्ट्रास्ट युक्त सिरिंज से जोड़ देता है ।
फ्लोरोस्कोपी में देखते हुये नीडल को धीमे-धीमे पीछे खींचता है तथा धीरे-धीरे कान्ट्रास्ट डालता है, जब तक कोई वाइलडक्ट मिल नहीं जाती । अब उपयुक्त कान्ट्रास्ट डालकर सुई निकाल लेते हैं तथा सुपाइन, ओवलीक, लैदल और इरेक्ट स्थितियों में फिल्में ले लेते हैं । कभी-कभी इक्सद्राहीपेटिक विलियरी ओब्सट्रक्सन की संभावना होने पर कुछ देर की (डिलेड) फिल्में भी लेते हैं ।
Instrument # 5. प्री आपरेटिव कोलीडोकोग्राफी:
यह जांच कीलीसिस्टेक्टमी शल्यक्रिया के दौरान विलियरी डक्टों में कैलकुलस की उपस्थिति देखने के लिए करते हैं । विलियरीदी में कान्ट्रास्ट शल्य चिकित्सक द्वारा डाला जाता है तथा रोगी से सांस रुकवाकर फिल्ममें ली जाती हैं ।
पहली फिल्में आधा या 173 कान्ट्रास्ट डालने के बाद तथा बाद की फिल्में कुल कान्ट्रास्ट डालने के बाद ली जाती हैं । ध्यान यह रखा जाता है कि कोई फिलिंग डिफेक्ट कई फिल्मों में लगातार रहता है, या नहीं । फिल्में एण्टीरोपोस्टीरियर पोजीशन में दायें ऊपरी क्वाड्रेन्ट में सेन्टर कर कम से कम एक्सपोजर समय (जिससे निषचेतना विशेषज्ञ थोड़े समय के लिए रोगी की सांस रोक सके) की जाती है ।
Instrument # 6. पोस्टआपरेटिव कोलीडोकोग्राफी या टी ट्यूब कोलेन्जियोग्राफी:
यह जांच शल्य क्रिया से 10-14 दिन पश्चात टी ट्यूब निकालने के पूर्व की जाती है । जांच के उद्देश्य विलियरी तन्त्र में उपस्थित बचे हुये कैलकुलस तथा कामन डक्ट की किसी रुकावट को देखना है । इस जांच को भी फ्तोरोस्कोपी या इमेज इन्टेन्सीफायर में देखते हुये एक्स-रे विशेषज्ञ द्वारा की जाती है ।
कानरे 280 या यूरोकफिन ब्ध प्रतिशत का प्रयोग सेलाइन से कम गाढ़ा कर आसानी पूर्वक इस जांच में किया जा सकता हे । ड्रेनेजट्यूब को आर्टरी फोरसेप से बन्द कर कान्ट्रास्ट सीधे ट्यूब में डालते हैं । हवा के बुलबुले नहीं जाने चाहिए, क्योंकि वे पथरी की तरह दिख सकते हैं । फ्लोरोस्कोपी में देखकर पूरा विलियरी ट्री भरने के उपरान्त उपयुक्त फिल्में विभिन्न पोजीशनों में विशेषकर (कामन बाइल डक्ट) की ले लेते हैं (चित्र 1.16) । जांच समाप्त होने पर क्लैम्प निकाल देते हैं ।
Instrument # 7. डैक्रोसिस्टोग्राफी (D.C.G.):
यह अश्रु तन्त्र की कान्ट्रास्ट डालकर की गयी एक्स रे जांच विधि है यह आब्सट्रक्टिव इपीफोरा के रोगियों में अवरोध का कारण पता लगाने दे लिए की जाती है । रोगी को किसी तैयारी की आवश्यकता नहीं होती है । आरम्भिक फिल्में आक्सीपिटोमेन्टल तथा लैट्रल पोजीशन में कान्द्रास डालने से पहले ले लेते हैं । कानरे 280 की 2-5 मि.ली. मात्रा काफी है ।
विधि:
निचली पलक को नीचे कर निचला पन्कटम दूंढते हैं जो मिडीयल सिरे पर स्थित होता है । अब कोई लोकल निश्चेतक जैसे आप्यीन का प्रयोग सुन्न करने में कर सकते हैं । निचले पन्कटम को डाइलेट कर उसमें कैनुला या कैथेटर डाल देते हैं ।
कान्ट्रास्ट धीरे-धीरे डालते हुये या डालने के तुरंत बाद फिल्में ले लेते हैं फिल्में उन्हीं लैदल तथा आक्सीपिटोमेन्टल पोजीशन में लेते हैं । फिल्मों को जीयोमेट्रिकली बड़ा 0.3 मि.मि. फोकल स्पाट की ट्यूब प्रयोग कर किया जा सकता है । जिसे मैक्रोडेक्रोसिस्टोग्राफी कहते हैं ।
Instrument # 8. आर्बिटल बीनोग्राफी:
इस जांच द्वारा आंख की गड़बड़ियों का पता सुपीरियर आप्थेल्मिक शिरा में कान्ट्रास्ट डालकर लगाया जा सकता है । इसे बिना निश्चेतक के लिया जा सकता है । कान्ट्रास्ट डालने के पहले माथे पर एक रबर बैंड लगा दिया जाता है, जिससे कान्ट्रास्ट सिर में न जाये तथा अन्य शिरायें भी दब जाती हैं । इससे सिर्फ थोड़ा दर्द तथा कभी-कभी कान्दास्ट त्वचा में एक्सट्रावेसेट कर सकता है ।
Instrument # 9. साइलोग्राफी:
यह लार ग्रथियों तथा नलियों की एक्स-रे जांच है (चित्र 11.17 क) जो कान्ट्रास्ट डालकर की जाती है । केवल पेरोटिड (चित्र 1.17 ख) व सबमैण्डीबुलर ग्रन्थियों का कान्ट्रास्ट अध्ययन किया जा सकता है । एक समय एक तरफ या दोनों तरफ यह जांच की जा सकती है ।
कान्ट्रास्ट माध्यम:
कानरे 280 का दो मि.ली. या यूरोग्राफिन 60 प्रतिशत ।
उपकरण:
पन्कटम डाइलेटर, लैक्राइमल कैनुला या सिरिंज, नीबू या साइट्रिक अम्ल ।
तैयारी:
रोगी से सारे रेडियोओपेक चीजें जैसे -नकली दांत, कान की बालियां, बालों में लगाने वाली पिनें उतार देने को कहते हैं ।
आरम्भिक फिल्में:
1. पेरोटिड ग्रंथि के लिए:
i. एण्टीरोपोस्टीरियर, सिरे के जांच के दूसरी तरफ पांच डिग्री उठाकर सेन्टर निचले होठ पर ।
ii. लैट्रल ।
iii. लैट्रलओबलीक ट्यूब 20 डिग्री किफेलोयड झुकाव के साथ सेन्टरिंग मैण्डिबुल के कोण पर ।
2. सबमैन्डीवुलर ग्रन्यि के लिए:
i. इन्फीरोसुपीरियर ओकलूजल फिल्म का प्रयोग कर ।
ii. मुंह की फ्लोर को स्पेक्चुला से दबाकर लैदल फिल्म ।
iii. लैट्रल ओवलीक, पेरोटिड की तरह, पर सेन्टर 1 से.मी. एंगिल आफ मैण्डिवुल से आगे ।
विधि:
i. स्टेन्शन डक्ट (पेराटिड) का निकास छिद्र ऊपरी द्वितीय मोलर दांत के विपरीत दिशा में तथा वार्टन डक्ट (सबमैडिवुलर) का जीभ के फ्रेनुलम के बगल में होता है ।
ii. इन छिद्रों को डाइलेटर से फैला देते हैं फिर एक कैनुला कैथेटर डाल देते हैं, तथा उसे सिरिंज से जोड़ देते हैं ।
iii. लगभग 2 मि.ली. कान्ट्रास्ट डालते हुये फिल्में ले लेते हैं ।
iv. कैथेटर निकालकर रोगी को कुछ नीबू की बूंदें देते हैं । पांच मिनट पश्चात यही फिल्में पुन: लेते हैं ।
परेशानियां:
दर्द, सूजन व इन्फेक्शन की संभावना ।
Instrument # 10. नेजोफेरेन्गोग्राफी:
यह नेजोफैरेन्कस में कान्ट्रास्ट डालकर कैंसर व लिष्फोसारकोमा जैसे रोगों का पता लगाने के लिए की जाने वाली एक्स-रे जांच है ।
प्री-मेडीकेशन:
जांच के आधे घन्टे पहले इचेक्शन एट्रोपीन 0.6 मि.ग्रा. देते हैं ।
रोगी की तैयारी:
रेडियोओपेक आर्टिफेक्ट उतारने के लिए कहते हैं ।
आरंभिक फिल्म:
1. सबमेन्टोवर्टिकल ।
2. लैट्रल-सेन्टरिंग जाइगोमा की निचली सतह पर ।
कान्ट्रास्ट माध्यम:
डाइनोसिल एकुयुस 10 मि.लि. ।
विधि:
1. रोगी की सुपाइन लिटाकर उसकी गर्दन हाइपरएक्सटेन्द्व कर देते हैं । लोकल निश्चेतक (जाइलोकेन 4%) नेजोफैरेन्क्स पर स्प्रे करते हें ।
2. अब नाक में पड़े कैथेटर द्वारा कान्ट्रास्ट डालते हैं तथा मरीज से कान्ट्रास्ट को न निगलने को कहते हैं तथा फिल्में ले लेते हैं ।
जांच के बाद रोगी को निर्देश:
रोगी से तब तक कुछ न खाने को कहते हैं जब तक लोकल निश्चेतक का प्रभाव समाप्त न हो जाये ।
Instrument # 11. लैरेन्गोग्राफी:
यह लैरेन्कस या स्वर तंत्र की कान्ट्रास्ट डालकर उसमें होने वाले रोगों जैसे कैंसर, फाइब्रोसिस, पैरेसिस आदि के लिए की जाने वाली एक्स रे जांच है ।
रोगी की तैयारी:
जांच के पांच घण्टे पहले से मुंह से खाने को कुछ नहीं देते हैं । जांच के 30 मिनट पहले इन्जेक्शन एट्रोपीन 0.6 मि.ग्रा. ।
कान्ट्रास्ट माध्यम:
10-15 मि.लि. डायनोसिल एकुअस ।
आरम्भिक फिल्म:
1. गर्दन के साफ्ट टिश्यू का एक्स-रे डीप इन्सपिरेशन में सांस रुकवाकर तथा अलसल्वा विधि के दौरान ।
2. एण्टीरोपोस्टीरियर, दाढी ऊंची कर ।
3. टोमोग्राफिक बिव भी लिये जा सकते हैं ।
4. जीरोरेडियोग्राफी यदि उपलब्ध हो ।
विधि:
लोकल निश्चेतक डालने के बाद एक टेढ़ी लैरिन्जियल सिरिंज द्वारा पालीथीन कैथेटर द्वारा जीभ के पीछे कान्दास्ट गिराते हैं । फिल्में फ्लोरोस्कोपी में देखकर लेते हैं ।
1. लैट्रल- जब वालगत्था विधि कर रहे हों या ”ई” शब्द का उच्चारण कर रहे हों ।
2. एण्टीरोपोस्टीरियर, दाढी उठी हुई ।
3. टोमोग्राम भी लिये जा सकते हैं ।
जांच के पश्चात रोगी को मुंह से लोकल निश्चेतक का प्रभाव खत्म होने तक कुछ नहीं देना चाहिए ।
Instrument # 12. बान्क्रोग्राफी:
यह कान्ट्रास्ट डालकर बोन्क्रियल ट्री की एक्स-रे जांच है । यह जांच परिधि पर स्थित फेफड़े के टयूमर, ब्रोन्कियेक्टेसिस तथा थूक में आने वाले खून का कारण पता करने में जब अन्य जांच निदान न कर पा रही हो ।
कान्ट्रास्ट माध्यम:
डायनोसिल एकुअस 12 मि.ली. एक तरफ के लिए वयस्कों में व बच्चों में 1 मि.ली. प्रति वर्ष एक तरफ ।
रोगी की तैयारी:
1. जांच के तीन दिन पूर्व सीने की फिजियोथेरेपी ।
2. यदि आवश्यक हो तो एन्टीबायोटिक ।
3. जांच के 30 मिनट पहले इन्जेक्शन एट्रोपीन 0.6 मि.मि. ।
आरम्भिक फिल्में:
चेस्ट पोस्टीरोएण्टीरियर एवं लैट्रल ।
विधि:
i. दांयी तरफ-चेस्ट पोस्टीरोएण्टीरियर एवं दायां लैट्रल ।
ii. बांयी तरफ-चेस्ट पोस्टीरोएण्टीरियर ।
iii. 45 डिग्री दांया पोस्टीरियर ओबलीक ।
iv. 45 डिग्री बांया पास्टीरियर ओबलीक ।
जांच के बाद रोगी की देखभाल:
थूक निकालने तथा सीने की फिजियोथेरेपी कराते हैं । लोकल निश्चेतक का प्रभाव समाप्त होने तक मुंह से कुछ नहीं देते हैं ।
Instrument # 13. आथ्रोग्राफी:
यह जोड़ की आन्तरिक रचना के अध्ययन हेतु सिंगल या डबल कान्ट्रास्ट विधि से की जाने वाली एक्स-रे जांच है । यद्यपि किसी भी साइनोवियल जोड़ का अध्ययन इस जांच से किया जा सकता है पर प्राय: इसका उपयोग बडे जोड़ों जैसे कुलहों का जोड़, पुटने का जोड़ (चित्र 11.19) तथा कन्धे का जोड़ में किया जाता है ।
कान्ट्रास्ट माध्यम:
कानरे 280 या यूरोग्राफिन 60 प्रतिशत मात्रा जोड़ पर निर्भर करती है लगभग 4-10 मि.लि. ।
डबल कान्ट्रास्ट के लिए हवा प्रयोग की जाती हे । इस जांच को नमो आर्थोग्राफी कहते हैं ।
आरम्भिक फिल्में:
1. कन्धे का जोड़ एटीरोपोस्टीरियर, लैट्रल तथा अन्य एक्सियल स्ट्राइकर बिंव की भी आवश्यकता बार-बार होने वाले डिसलोकेशन में पड़ सकती है ।
2. घुटने का जोड़ एण्टीरोपोस्टीरियर व लैट्रल ।
3. कूल्हे का जोड़ स्टीरोपोस्टीरियर व लैट्रल ।
विधि:
लोकल निश्चेतक देने के बाद, जोड़ में एक सुई डाल देते हैं । साइनोवियल इक्यूजन के रोगियों में थोड़ा द्रव निकालकर कान्दास्ट डालते हैं तथा उसके बाद हवा डालते हैं । जोड़ की कसरत कान्ट्रास्ट के समान वितरण के लिए करवाते हैं ।
फिल्में:
आरम्भिक फिल्मों की तरह ही घुटने की फिल्में ले लेते हैं । इसके अतिरिक्त फ्तोरोस्कोपी में देखते हुए स्ट्रेस फिल्में भी लेनी होती हैं जो मेनिस्कस तथा लिगामेंट की टूट-फूट दिखा सकें । पुन: आधे घण्टे बाद फिल्में लेते हैं जो जोड़ में पड़ी हुई लूजबाडीज, अतिरिक्त पड़ी हुई वस्तुओं को दिखाने के लिए का आती है ।