Read this article in Hindi to learn about the composition of blood in human body.
रक्त कणिकायें तीन प्रकार की होती हैं:
1. लाल रक्त कणिकायें या इरेथ्रोसाइट्स |
2. श्वेत रक्त कणिकायें या ल्यूकासाइट्स |
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3. प्लेटलेट रक्त कणिकायें या थ्रोम्बोसाइटस |
1. लाल रक्त कणिकायें या इरेथ्रोसाइट्स:
रक्त में सबसे अधिक संख्या में पायी जाने वाली कणिकायें लाल रक्त कणिकायें हैं । ये वाइकानकेव या अवतल होती है, इस आकर से उनका गोल कणिका की अपेक्षा सरफेस एरिया बढ़ जाता है जो आक्सीजन व कार्बनडाइ आक्साइड के आदान-प्रदान में मदद करता है ।
बिना न्यूक्लियस की तथा इनका व्यास 7.2 माइक्रोन होता है । इनकी सेल मेम्ब्रेन खिंचने वाली व आकार परिवर्तित करने वाली होती है जिससे लाल रक्त कणिकायें पतली-पतली कैपिलरियों से भी निकल जाती हैं । उनकी संख्या एक सामान्य वयस्क में 5 X 1012 रक्त कणिकायें प्रति लीटर होती है ।
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लाल रक्त कणिकाओं में एक विशेष प्रोटीन पाया जाता है जिसे हीमोग्लोबिन कहते हैं । यह लौह युक्त हीम तथा प्रोटीन, ग्लोबिन से मिलकर बना होता है । एक सामान्य व्यक्ति मे लगभग 14.5 ग्राम हीमाग्लोबिन प्रति 100 मि॰लि॰ रक्त में होता है ।
हीमोग्लोबिन की आक्सीजन से अधिक प्रगाढ़ता होती है । यह फेफड़ों में आक्सीजन से जुड़ जाता है तथा कोशिकाओं में पहुंचकर उन्हें आक्सीजन प्रदान कर देता है । जहां उपापचय के पश्चात कार्बन डाईआक्साइड का निर्माण होता है ।
लाल रक्त कणिकाओं का निर्माण जिसे इरेथ्रोपोयसिस कहते हैं, लाल अस्थि मज्जा में बड़े केन्द्रक वाली कोशिकाओं से होता है । ये कोशिकायें विभाजित होकर छोटी कोशिकाओं का निर्माण करती हैं जो परिपक्व होने पर अपना केन्द्रक खो देती हैं ।
सामान्य रक्त कणिका का जीवन काल 120 दिन होता हैं । उसके पश्चात यह मैक्रोफेज तन्त्र द्वारा नष्ट कर दी जाती हैं । इसमें उपस्थित हीमोग्लोवीन टूटकर हीम और ग्लोबीन में बंट जाता है । आयरन फेरिटिन के रूप में इकट्ठा कर लिया जाता है जो पुन: हीमोग्लोबिन बनाने में काम आता है तथा बाइलपिगमेंट विलीरूबिन का निर्माण जिगर में होता है जो पित्त मे होते हुये यह छोटी आंत में पहुंचता है ।
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यदि एण्टीकोआगुलेटिड रक्त को वेस्टग्रीन या विन्द्रोव ट्यूब में कुछ समय के लिए रखा जाये तो रक्त कणिकाये एक निश्चित दर से नीचे बैठ जाती हैं । जिसे इरथ्रोसाइट सेडमेन्टेसन दर (ESR) कहते हैं । यह भिन्न बीमारियों में बढ़ जाता है ।
रक्त अल्पता या एनीमिया में हीमोग्लोबिन की मात्रा एक निश्चित निम्न मात्रा से कम हो जाती है इसके कारण:
1. रक्त की हानि = लम्बे समय में या थोड़े समय में |
2. अपर्याप्त मात्रा में लाल रक्त कणिकाओं का निर्माण यह आयरन, विटामिन B12, या फोलिक एसिड की कमी की वजह से या अस्थि मज्जा के कुछ रसायनों, एक्सरे, दवाओं और कैंसर आदि से नष्ट होने की वजह से हो सकता है ।
3. अधिक रक्त कणिकाओं के नष्ट होने से जिसे हीमोलिसिस कहते हैं- हीमोलिटिक एनीमिया, लाल रक्त कणिकाओं में गड़बड़ी की वजह से हो सकती है जिससे वे सामान्य कणिकाओं की अपेक्षा जल्दी नष्ट हो जाती हैं, या फिर वे कुछ दवाओं, एण्टीबाडीज व मलेरिया जैसे रोगों के कारण ।
2. श्वेत रक्त कणिकायें या ल्यूकासाइट्स:
श्वेत रक्त कणिकाये, लाल कणिकाओं की अपेक्षा कम संख्या में होती हैं । सामान्य वयस्क व्यक्ति में यह 8000 से 11000 प्रति 100 मिलीलीटर होती है । इनकी संख्या में प्रति घण्टे परिवर्तन हो सकता है ।
श्वेत कणिकायें दो प्रकार की होती है:
1. ग्रेनुलोसाइट:
(a) न्यूट्रोफिल
(b) इयोसिनोफिल
(c) बेसोफिल
2. एग्रेनुलोसाइट:
ग्रेनुलोसाइट का व्यास 10 से 24 माइक्रान होता है । न्यूट्रोफिल शरीर की इन्फेक्शन से लड़ने की क्षमता का एक महत्वपूर्ण भाग बनाती हैं । ये कणिकायें तेजी से एक स्थान से दूसरे स्थान को जा सकती हैं । इयोसिनोफिल फेगोसाइटोसिस का कार्य करती हैं और ये कम चलायमान होती हैं ।
ग्रेनुलोसाइट ग्रुप में सबसे कम पायी जाने वाली कणिकायें बेसोफिल हैं । ये कोशिकाओं में पायी जाने वाली मास्टसेल के समान होती है तथा कुछ हाइपर सेन्सिटिविटी क्रियाओं में काम आती है । लिम्फोसाइट का निर्माण अस्थि मज्जा में होता है ।
वहां से वे थाइमस में (जहां वे “टी” लिम्फोसाइट या किलर सेल बनाते हैं) या पाचन तन्त्र के लिम्फैटिक कोशिकाओं में पहुंचकर (जहां वे “बी” लिम्फोसाइट बनाते हैं) एण्टीबाडी बनाते हैं । मोनोसाइट श्वेत रक्त कणिकाओं के सबसे बड़ी कणिकायें है जो 14 से 18 माइक्रॉन आकार के होते हैं । ये फेगोस्टिक होते हैं ।
इनमें से कुछ रक्त में तथा कुछ मैक्रोफेज तन्त्र में पायी जाती है । सामान्य व्यक्ति में:
ग्रेनुलोसाइट = 70 प्रतिशत (न्यूट्रोफिल 40-75 प्रतिशत)
इयोसिनोफिल = 5-16 प्रतिशत
वेसोफिल = 0-1 प्रतिशत, मोनासाइट 2-10 प्रतिशत
लिम्फोसाइट = 20-45 प्रतिशत
3. प्लेटलेट रक्त कणिकायें या थ्रोम्बोसाइटस:
प्लेटलेट रंगहीन कणिकायें होती है जो आकार में भिन्न-भिन्न (2-4 माइक्रॉन) होती हैं तथा उनमें केन्द्रक नहीं होता है । एक लीटर रक्त में उनकी संख्या 150 – 400 X 109 होती है । इनका निर्माण मेगाकोरियोसाइट द्वारा अस्थि मज्जा में होता है । रक्त जमने में इनका अति महत्वपूर्ण स्थान है ।
अस्थिमज्जा सभी अस्थियों के केन्द्र में पायी जाती है तथा दो प्रकार की होती है:
1. लाल मज्जा,
2. पीली मज्जा ।
लाल मज्जा जन्म के समय सारी हड्डियों में पायी जाती है । पर पांच वर्ष की उम्र के पश्चात् यह लम्बी हड्डियों में पीली मज्जा में परिवर्तित हो जाती है । 20-25 वर्ष की उम्र में लाल अस्थि मज्जा केवल पसलियों, स्टर्नम, वर्टिब्रा, कपाल, पेल्विस व फीमर और ह्यूमरस के ऊपरी सिरों में पायी जाती है ।