राजनीति में महिलाओं का स्थान । Article on Women and Politics in Hindi Language!
प्राचीन काल से ही समाज पुरुष प्रधान रहा है । इसमें ऐसी व्यवस्थाएँ लागू की जाती रही है जिनके रहते महिलाओं के लिए अपने उत्थान की बात तक सोचना अकल्पनीय रहा है । आधुनिक युग में ऐसी शिक्षा पद्धति को अपनाया गया जिसमें महिलाओं के लिए पर्याप्त विकास की संभावनाएँ नहीं थीं । इसका मुख्य कारण यह था कि अधिकांश अभिभावक लड़कियों की उच्च शिक्षा के पक्षधर नहीं थे ।
धीरे-धीरे एक ऐसा समय भो आया जब महिलाओं ने राजनीति में भी पदार्पण किया । परंतु राजनीति में वे अभी तक पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं कर सकी हैं । राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के संबंध में कुछ प्रश्न उभरकर सामने आते हैं: क्या उन्हें राजनीति में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए ?
यदि हाँ तो क्यों मिलना चाहिए और यदि नहीं तो क्यों नहीं मिलना चाहिए ? वर्तमान समाज दो वर्गों में बंटा हुआ है । एक वर्ग सुधारवादी अथवा विकासवादी है तो दूसरा वर्ग रूढ़िवादी । सुधारवादी वर्ग का कहना है कि महिलाओं को राजनीति के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए जबकि दूसरी ओर रूढ़िवादी मानते हैं कि महिलाओं द्वारा घरेलू सीमा लाँघने से परिवार पर बुरा असर पड़ेगा ।
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इन तर्कों को सुनने के बाद सुधारवादियों और रूढ़िवादियों दोनों के तर्क सत्य प्रतीत होते हैं । हमारे सामने ऐसे कई उदाहरण हैं, जब महिलाओं ने पारिवारिक दायित्वों के साथ-साथ सक्रिय राजनीति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।
भारतीय सभ्यता के इतिहास में सर्वाधिक विकसित समाज ऋग्वैदिक काल के इतिहास को माना जाता है । उस समय की सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं को भी पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे । वैदिक काल में ऐसी आदर्श व्यवस्था होने के बावजूद समय के साथ-साथ भारतीय समाज में महिलाओं को दबाकर रखने की प्रवृत्ति विकसित होती गई ।
उत्तर वैदिक काल से ही महिलाओं की राजनीतिक क्षेत्र में सक्रियता कम होती चली गई । मध्यकाल तक महिलाओं के लगभग सभी अधिकार छीन लिए गए । आधुनिक काल में पाश्चात्य शिक्षा का विकास होने से महिलाओं को भी शिक्षा-प्राप्ति के अवसर उपलब्ध होने लगे ।
पश्चिमी देशों की महिलाओं को घर से बाहर निकलने और स्वतंत्र आचरण-विचरण का अधिकार दे दिया गया और उन्होंने शीघ्र ही अपनी स्थिति में सुधार कर लिया । परंतु उनकी स्थिति आज भी बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती और वे पुरुषों के हाथ की कठपुतली बनी हुई हैं ।
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विकासशील देशों के संपूर्ण विकास के लिए राजनीति का पर्याप्त महत्व है । भारत जैसे विकासशील देशों में राजनीति के बल पर ही विभिन्न वर्गों ने शक्ति प्राप्त की है और अपना विकास सुनिश्चित किया है । प्राचीनकाल से निर्विरोध राज करने वाले पुरुषों को अपनी सत्ता खतरे में नजर आने लगी जब महिलाओं ने राजनीति में अपने पर्याप्त प्रतिनिधित्व की मांग आरंभ कर दी ।
उन्होंने महिलाओं की मांग का विरोध आरंभ कर दिया । पुरुषों के एक वर्ग ने उनकी इस मांग का समर्थन भी किया । महिलाओं को राजनीति में पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने हेतु उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था करने की बात भी उठाई जाती रही है परंतु पुरुषों में इस मुद्दे पर सहमति न बन पाने के कारण यह मामला भी अधर में ही लटका हुआ है ।
महिलाओं को घर की चार दीवारियों में ही रहने की बात कहने वाले लोगों की मानसिकता संकीर्ण होती है । महिलाएँ भी मानव हैं और उन्हें भी अपने अच्छे-बुरे के बारे में सोचने निर्णय लेने और विकास करने का अधिकार है । इतना अवश्य संभव है कि लबी अवधि तक दबाकर रखे जाने के कारण उनकी क्षमताओं का विकास पूरी तरह न हो सका हो ।
यही कारण है कि फिलहाल उनके उत्थान के लिए आरक्षण की व्यवस्था करनी आवश्यक हो चुकी है । जब हमारे देश में अनुसूचित जातियों व जनजातियों के उत्थान हेतु पचास से भी अधिक वर्षो तक आरक्षण की व्यवस्था हो सकती है, तो महिलाओं के लिए ऐसा क्यों नहीं हो सकता ? प्राचीन काल से ही महिलाएँ मानव समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही हैं ।
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आज समय की यही मांग है कि उन्हें राजनीति में पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाए अब चाहे उन्हें यह आरक्षण के माध्यम से मिले या राजनीतिक दलों की ईमानदारी और नैतिकता के कारण । समाज में पुरुषों और महिलाओं की जनसंख्या लगभग बराबर ही है और जब तक दोनें का विकास समान रूप से नहीं होगा तब तक हमारा समाज विकसित समाज नहीं बन सकता ।