Here is a story on ‘Shantiniketan’ written in Hindi language.
शांति निकेतन मूलत: उस आवास का नाम था, जहाँ रवींद्रनाथ ठाकुर रहा करते थे, जो चारों तरफ वृक्षों, फूलों, लताओं से घिरा हुआ था । वहाँ उन्हें आत्मिक शांति मिलती थी । रवींद्रनाथ के पिता देवेंद्रनाथ ने किसी जागीरदार से वह जमीन खरीदी थी । उसके आसपास घना जंगल था । जहाँ डाकू लूटपाट करते थे ।
वह घना जंगल शांति निकेतन में बदल गया और वहाँ डाकुओं के बजाय ऋषि रहने लगे । जब रवींद्रनाथ ठाकुर ने वहाँ विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना की तो वह अनेक विद्वानों, बृद्धिजीवियों, कलाकारों का आवास बन गया । उस समूचे क्षेत्र का नाम शांति निकेतन हो गया ।
इस पुण्यभूमि की यात्रा का अवसर मुझे मिला । मैं दिल्ली से कोलकाता के लिए वायुयान से उड़ा । वायुयान सबेरे लगभग ६.४० पर उड़ा और ८.३५ पर कोलकाता के हवाई अड्डे पर उतरा । टैक्सी लेकर हावड़ा स्टेशन पहुँचा । वहाँ से बोलपुर की गाड़ी पकड़ी । रेल टिकट पर बोलपुर के नीचे ‘शांति निकेतन’ मुद्रित था । तो स्टेशन का नाम शांति निकेतन क्यों नहीं रखा जाता ?
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हावड़ा से बोलपुर लगभग एक सौ पचास किमी दूर है । रेलगाड़ी शाम को साढ़े छह बजे बोलपुर स्टेशन पहुंची । बोलपुर की तंग गलियाँ और सड़कें पार कर शांति निकेतन का खुला प्रांगण शुरू हो गया । साफ-चौड़ी सड़कें, दोनों ओर वृक्षों की पंक्तियों, विभिन्न विभागों के भवन, खुले मैदान मानो घोषणा कर रहे थे कि यह शांति निकेतन है, जहाँ देश विदेश के जिज्ञासु उसी प्रकार खिंचे चले आते है जैसे दीपक की ली पर पतंगे ।
डा.शैलेंद्र त्रिपाठी अगले दिन सबेरे अतिथिगृह मैं आए । त्रिपाठी जी मुझे हिंदी-भवन में ले गए । वहाँ विभाग को ‘भवन’ कहते है । विश्वभारती के हिंदी-भवन के अंतर्गत उच्च स्तरीय शोध कार्य हो रहा है । अपराह्न चार बजे हम ‘उत्तरायण’ देखने गए । यह उस संग्रहालय का नाम है जहाँ रवींद्रनाथ टैगोर की दैनिक उपयोग की वस्तुएँ, जैसे प्याले, तश्तरियाँ, तसवीरें, नोबल पुरस्कार का प्रतीक चिह्न आदि प्रदर्शित हैं ।
उत्तरायण रवींद्रनाथ ठाकुर के जीवन व्यक्तित्व और उनकी उपलब्धियों का स्मारक है । उस दिन कलाभवन भी देखा । उसके प्रांगण में ऐसी अनेक मूर्तियों है, जो दर्शकों को स्तंभित कर देती है । श्रवणकुमार और महात्मा गांधी की विशाल प्रस्तर मूर्तियों आकर्षक है । मूर्तिकार ने पत्थर में जान डाल दी है ।
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लौटते हुए मिट्टी का वह मकान देखा, जिसमें शांति निकेतन आने पर महात्मा गांधी, सी॰एफ॰एंड्रयूज आदि ठहरा करते थे । रवींद्रनाथ ठाकुर कल्पनाशील और व्यावहारिक व्यक्ति थे । उन्होंने श्रीनिकेतन स्थापित किया, जिसमें विद्यार्थियों को कृषि और कला का प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे प्रशिक्षित होकर अपना व्यवसाय कर सकें । शांति निकेतन केवल विश्वभारती तक सीमित नहीं है ।
वह एक शैक्षिक एवं कलात्मक जगत है, जिसमें प्राथमिक पाठशाला और विश्वविद्यालय की उच्चतम शिक्षा का प्रबंध है । शांति निकेतन स्वयं में एक दुनिया है, जीवन कला का एक प्रयोग है ।
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वहाँ का खुला वातावरण, वृक्षों की अपार संख्या और विपुल हरियाली उसे आधुनिक युग का गुरुकुल अथवा किसी आधुनिक ऋषि का आश्रम बना देती है । प्रकृति की गोद में बैठकर, वहाँ के मुक्त वातावरण में शिक्षा ग्रहण करना एक सुखद अनुभव है ।
यह वातावरण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उपादेय है । मुक्त वातावरण में ही व्यक्तित्व का मुक्त विकास संभव होता है । शांति निकेतन इस व्यवस्था का अन्यतम उदाहरण है । देश की अन्य शैक्षिक संस्थाओं को शांति निकेतन के आदर्शों को अपनाते हुए अपना विकास करना चाहिए ।
शिक्षा के प्रति जागरूक और समर्पित शिक्षा विदों को भी शांति निकेतन के आदर्शों का प्रचार, प्रसार करना चाहिए । शांति निकेतन की स्मृतियों में खोया मैं हावड़ा लौट आया । मैंने शांति निकेतन को एक सजीव सांस्कृतिक स्थल के रूप में पाया ।