Here is my favourite moral story on ‘Unity’ written in Hindi language.
पात्र-परिचय:
दिगंत: एक युवक,
प्रतीक: दिगंत के पिता,
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सुषमा: दिगंत की माँ ।
सुषमा: अपना दिगंत कालेज के बाद क्या करता है, कहाँ जाता है, उसके दोस्त कौन-कौन हैं, कुछ पता है आपको ?
प्रतीक: (मुसकराकर) अब मुझे बेटे के पीछे-पीछे भी रहना पड़ेगा क्या ?
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सुषमा: बेटे का भविष्य बनाने के लिए यह काम आपको करना ही पड़ेगा ।
प्रतीक: (गुस्से से) पहेलियाँ मत बुझाओ, साफ-साफ कहो ।
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सुषमा: उसके दोस्त जेम्स, जावेद और जसबीर सिंह हैं ।
प्रतीक: तो ? वे उसके विद्यालय में पढ़ते है ।
सुषमा: पर अब वे घर पर भी आने लगे है ।
प्रतीक: (मुसकराकर) दोस्त होंगे तो घर पर भी आएँगे और खाएँगे-पीएँगे भी ।
सुषमा: मालूम है वह उन सबको घर पर दावत देने जा रहा है ?
प्रतीक: मुझसे तो उसने इस संबंध में कोई बात नहीं की ।
सुषमा: तभी तो । वे सभी हमारी रसोई में बैठकर खाएँगे ।
प्रतीक: (मुसकराकर) विश्वास रखो, वह ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे तुम्हें दुख हो । वह एक समझदार लड़का है ।
दिगंत: (गुनगुनाता हुआ) मिल के चलो, मिल के चलो, मिल के चलो रे ! चलो भाई मिल के चलो रे !
प्रतीक: ‘मिल के चलो’ का गीत आजकल बहुत गुनगुनाने लगे हो !
दिगंत: अच्छा लगता है, इसीलिए गुनगुनाता हूँ ।
प्रतीक: (आवेश में) जेम्स, जावेद, जसबीर सिंह कौन हैं ?
दिगंत: जी, मेरे दोस्त हैं ।
प्रतीक: क्या वे सभी हमारे घर दावत पर आनेवाले हैं ?
दिगंत: जी पिता जी, मैंने उन्हें अपने जन्मदिन पर बुलाया है ।
प्रतीक: बेटा, तुम तो जानते हो तुम्हारी माता जी जरा पिछड़े विचारोंवाली है, उन्हें यह सब पसंद नहीं आएगा ।
दिगंत: पिता जी, आज दुनिया कहाँ-से-कहाँ पहुंच गई है । जब मैं उनके घर जाता हूँ, खाता हूँ तब उन्हें तो कोई एतराज नहीं होता फिर हम ही संकुचित दृष्टिकोण क्यों रखें और माता जी आज भी… ।
प्रतीक: (बीच में ही टोकते हुए) मैं तुम्हारी माता जी को समझाने की कोशिश करूंगा पर तुम भी उनकी भावनाओं को समझो ।
दिगंत: पिता जी, जो इनसान भारत देश में रहता है, उसका सिर्फ एक ही धर्म होता है, भारतीयता ।
प्रतीक: बेटे !
दिगंत: दुनिया बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है, पिता जी ! धर्म आदि का ढिंढोरा पीटना – सब बहुत पीछे छूट चुका है । जन्म लेने से कोई बालक हिंदू, ईसाई, सिख, मुसलमान नहीं होता । हिंदू, ईसाई, सिख, मुसलमान तो उसे हम और आप बनाते है ।
प्रतीक: बेटे, मैं तो ये बातें मानता हूँ, पर तुम्हारी माता जी ……..
दिगंत: पिता जी, आज आवश्यक इस बात की है कि हम ऊंच-नीचे का भेदभाव भुलाकर, भारत के वासियों को एकता के धागे में बाँध लें । सांप्रदायिक एकता में बहुत बड़ी शक्ति है, पिता जी ।
प्रतीक: (प्रसन्न होकर) बहुत अच्छा बेटे ! (नारे के स्वर में) हमारी एकता !
दिगंत: जिंदाबाद ! (माँ सारी बातें सुन लेती हैं।)
सुषमा: बेटा, मैंने तुम्हारी सारी बातें सुन ली हैं । तुमने मेरी आँखें खोल दीं । अब तुम अपने जन्मदिन पर अपने दोस्तों को बेझिझक बुला लो, मुझे कोई आपत्ति नहीं है ।