Here is my favourite moral story on ‘Determination’ written in Hindi language.
पात्र परिचय:
मेरी, बलवीर, सलीम, कैलाश: आठवीं कक्षा के छात्र,
अरविंद: कैलाश का बड़ा भाई,
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श्यामचरण: कैलाश के पिता जी
कैलाश: आइए, भाई साहब । (कुर्सी की ओर इशारा करते हुए) बैठिए ।
अरविंद: अरे, पाँच बज गए । आज तुम खेलने नहीं जाओगे ?
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कैलाश: नहीं, भाई साहब ।
अरविंद: लेकिन क्यों ?
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कैलाश: मुझे अपनी असफलता पर खीझ आती है । खेलने जाऊंगा तो साथी कुछ न कुछ कहेंगे ही ।
अरविंद: तो तुम कभी घर से नहीं निकलोगे क्या ? अनुत्तीर्ण तो तुम हुए नहीं हो । नब्बे प्रतिशत न सही पर अस्सी प्रतिशत तो मिले हैं, तो इसमें इतनी चिंता की क्या बात है ! चलो खेलने जाओ ।
मेरी: मुझे तो सत्तर प्रतिशत मिले है । मेरा ध्यान टीवी, संगणकीय खेल में रहता है । अब मेरी समझ में आ रहा है ।
सलीम: हमें तो इससे सीख लेकर अभी से परिश्रम करना चाहिए । तुमने खरगोश और कछुए की दौड़वाली कहानी तो सुनी होगी ।
कैलाश: सुनी है । इसका मतलब है, थोड़ी-सी सफलता मिलने पर हम बीच में सुस्ताने न बैठ जाएँ ।
बलवीर: थोड़ा-थोड़ा नियमित रूप से पढ़ना चाहिए । रोज का काम रोज खत्म कर लें । फिर देखना कि कछुए की तरह हम भी तेज दौड़नेवाले खरगोश से बाजी ले जाएँगे ।
कैलाश: मानो मेरे मन में अब कोई उमंग ही न रही हो ।
सलीम: अरे, मन के हारे हार है, मन के जीते जीत । हौसला अगर पस्त हुआ तो आदमी गया काम से ।
मेरी: आज से हम सब मिलकर पढ़ाई करेंगे ।
श्यामचरण: (एक और से कुर्सी खीचंकर बैठाते हुए) अरे, तुम लोग मौन क्यों हो ? (कैलाश और अरविंद बैठ जाते हैं) आज तो कैलाश की परीक्षा का परिणाम सुनाया गया होगा । प्रथम आया ?
अरविंद: वही बात चल रही थी पिता जी । कैलाश को अस्सी प्रतिशत अंक मिले है । वह बहुत दुखी है ।
श्यामचरण: ऐसे कैसे काम चलेगा, कैलाश ! तुमने सुना होगा, ‘अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत’ । एक बड़ी पुरानी कहावत है, ‘बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि ले ।’
अरविंद: यही तो मैं कह रहा था, पिता जी ! पर यह कहता है कि इस असफलता से इसका मन मर चुका है ।
कैलाश: हाँ, पिता जी ! मैंने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है । मैंने तब आपकी बात नहीं मानी । अगर रोज ही थोड़ा-थोड़ा पढ़ लेता, तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता ।
श्यामचरण: तुम ऐसा महसूस करते हो, यह बहुत अच्छा है । इसलिए बीती असफलता की चिंता छोड़ आगे की सफलता के लिए प्रयास करो ।
अरविंद: एक महान व्यक्ति का कथन है, ‘मैं रोज-रोज भूल करूँ, पर किसी भूल को दोबारा न करूँ ।’
श्यामचरण: वास्तव में भूलों से नसीहत मिलती है ।
अरविंद: बिलकुल ठीक है । हमें अपनी भूओं से नसीहत लेनी चाहिए, न कि उनपर रोना चाहिए । कैलाश तुम मन लगाकर मेहनत करो । देख लेना तुम सदैव ही सफल रहोगे ।
श्यामचरण: (उठकर कैलाश के गाल पर प्यार से हलकी-सी चपत लगाते हुए) पागल कहीं के ! बस, यह समझ लो कि संसार में जिन लोगों ने उन्नति की है, उनका एक उसूल रहा है ।
कैलाश: ठीक है, पिता जी । मैं और मेरे मित्र परिश्रम करेंगे । वह भी नियमित रूप से ।