Here is a good Hindi story on ‘Carefulness’ especially written for class 1 kids.
उस दिन रेल स्थानक पर बहुत भीड़ थी । विपुल अपने दादा जी, दादी जी और बहन विमला के साथ स्टेशन पर आया हुआ था । वे सपरिवार पचमढ़ी घूमने जा रहे थे । विपुल और विमला बहुत उत्साहित थे । वे सभी प्रतीक्षालय में जाकर बैठ गए । प्रतीक्षालय में भी भीड़ थी ।
विपुल के दादा जी ने उसे हमेशा सतर्क रहने की सलाह दी थी । वह अपने आसपास के लोगों को बड़ी बारीकी से देखा करता । कौन कैसा है, किसके चेहरे पर कौन-से भाव आते-जाते हैं, यह सब टोहना उसकी आदत थी । इस समय भी वह इसी खेल से अपना दिल बहला रहा था ।
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अचानक विपुल ने देखा कि दरवाजे के पास की भीड़ में से रास्ता बनाते हुए एक आदमी भीतर घुसा । उसके चेहरे पर काली दाढ़ी थी । उसकी आँखों पर काला चश्मा देख विपुल को ताजुब हुआ । उस व्यक्ति के झोले में शायद कोई भारी सामान था क्योंकि उस व्यक्ति ने उसे नीचे से हाथ का सहारा दिया हुआ था ।
पता नहीं क्यों विपुल को उसका व्यक्तित्व कुछ अजीब-सा लगा । एकाध मिनट वहाँ रुकने के बाद वह आदमी चारों तरफ नजर घुमाता हुआ शौचालय की ओर चला गया । उस आदमी को वहाँ गए काफी समय हो गया था । जिज्ञासु विपुल के खोजी मस्तिष्क को कहीं कुछ गड़बड़ी की आशंका निरंतर कौंधने लगी ।
आखिर वह शौचालय के कमरे में चला ही गया । वहाँ कोई नहीं था । उसे ‘धब्ब’ की आवाज आई जैसे कोई ऊपर से कुद हो । विपुल की कुछ भी समझ में नहीं आया । वह वहाँ से फिर प्रतीक्षालय में आ गया । उसे तब बहुत आश्चर्य हुआ जब उसने फिर उसी आदमी को प्रतीक्षालय में घुसते देखा । इस बार उसका झोला खाली था ।
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थोड़ा रुककर उस आदमी ने अपनी कलाई पर बँधी घड़ी देखी और वह वहाँ से चला गया । अब विपुल के दिमाग की सुई तीव्र गति से घूमने लगी और वह लगभग भागता हुआ शौचालय की ओर गया । बहुत गौर से देखने पर उसे फर्श पर पलस्तर का थोड़ा चूना बिखरा हुआ दिखाई दिया । उसे माजरा समझते देर न लगी ।
उसने एक पैर नल पर और दूसरा दीवार पर टिकाकार पानी कीं टंकी में झाँका । टंकी का पूरा पानी निकालकर पाइप के मुँह पर कपड़ा ठूँस दिया गया था । टंकी की दीवार से बैटरीनुमा एक डिब्बे को बाँधा गया था । डिब्बे पर दो टर्मिनल थे । इनमें लगे तार बैटरी के पिछले हिस्से में चले गए थे ।
बम में लगी हुई घड़ी में समय देखकर विपुल ने मन-ही-मन हिसाब लगाया कि बम फटने में केवल दस मिनट शेष है और इतने कम समय में किसी को बुलाना संभव नहीं है । विपुल को सामान्य-ज्ञान की किताब में पढ़ी टाइम-बम की संरचना याद हो आई । वह बड़ा साहसी था । उसने झट टर्मिनल पर लगी गोल चक्रियों को घड़ी के काँटों की विपरीत दिशा में घुमाया ।
वे खुल गई, । उसने नीचे फँसें तारों को निकालकर अलग कर दिया । इतना करने के बाद विपुल ने राहत की साँस ली । अब विपुल प्रतीक्षालय में अपने दादा जी के पास आ गया । उन्हें सारा वृत्तांत कह सुनाया और स्वयं के द्वारा निष्क्रिय किया हुआ बम भी दिखाया । दादा जी ने तुरंत रेलवे पुलिस से संपर्क कर उन्हें सब कुछ सिलसिलेवार बता दिया ।
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पुलिस ने अविलंब प्रतीक्षालय के शौचालय पहुँचकर निष्क्रिय बम निकाल लिया । इन्स्पेक्टर ने विपुल से पूछा, “बेटा क्या तुम उस आदमी का हुलिया बयान कर सकते हो ?” विपुल बोला, “चाचा जी, यदि दिख जाए तो मैं उसे पहचान लूँगा ।” इन्स्पेक्टर और दो सिपाही तुरंत विपुल को लेकर प्लेटफार्म पर निकल आए । विपुल ने चारों तरफ अपनी पैनी नजर दौड़ाई । अचानक उसकी दौड़ती नजर थम गई ।
उसने इन्स्पेक्टर से कहा, ”वह देखिए उस चाय की दूकान पर सफ़ेद कुरता-पाजामा पहने कंधे पर खाली झोला लटकाए खड़ा व्यक्ति वही आदमी है जिसने शौचालय में बम रखा था ।” इन्स्पेक्टर के संकेत पर दोनों सिपाहियों ने दो तरफ से घेरते हुए उस आदमी को हिरासत में ले लिया ।
इन्स्पेक्टर ने विपुल को गले लगाते हुए कहा, ”आज यदि विपुल न होता तो बड़ा अनर्थ हो जाता लेकिन बम को हाथ लगाना घातक होता है । हम अपनी ओर से विपुल का नाम साहसी बच्चों को दिए जानेवाले शौर्य-पुरस्कार के लिए भेजेंगे ।” रेल स्थानक पर आ चुकी थी । दादा जी और परिजन सभी अपने आरक्षित डिब्बे में जा बैठे । विपुल परिवार का दुलारा तो था ही, आज वह सबकी आँखों का तारा बन गया था ।