मनोरंजन के साधन | Article on the Sources of Entertainment in Hindi Language!
प्रस्तावना:
मनोरंजन शब्द ‘मन+रंजन’ से बना है, जिसका अर्थ है ‘मन की प्रसन्नता’ । वास्तव में मन ही तो सुखी व दुखी होता है । शरीर से भी मन की ही प्रसन्नता व्यक्त होती है । मन की प्रसन्नता से सारा शरीर पुलकित हो जाता है ।
मनोरंजन के क्षणों में शरीर के तन्तु ढीले पड़ जाते हैं जिससे शरीर को सरलता से अतिरिक्त शक्ति मिलने लगती है और उसमें नव स्कूर्ति आने लगती है । शक्ति व स्कूर्ति से शरीर के रोग भागने लगते हैं । शरीर पूर्ण स्वस्थ हो जाता है और आयु बढ़ जाती है । इसलिए जीवन में मनोरंजन अत्यन्त आवश्यक है ।
मनोरंजन के साधनों का विकास:
मनोरजन के साधनों का धीरे-धीरे विकास होता गया । प्राचीन मनोरंजन के साधनों में समय-समय पर युग के अनुकूल परिवर्तन होता रहा । खेल-कूद प्राचीन काल से ही खेले जाते रहे हैं लेकिन आज उनमे नये-नये ढंग व शैली द्वारा परिवर्तन कर दिया गया है, प्रत्येक खेलों में नवीन नियम बनाकर उन्हे व्यवस्थित रूप दे दिया गया है ।
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नाटक, नृत्य, संगीत, काव्य, चित्रकला आदि प्राचीन काल में भी प्रचलित थे लेकिन आज उन्हें बिस्कूल नया रूप दिया गया है । हमारे देश में रामलीला, रासलीला तथा अन्य रंगमंचीय साधनों द्वारा जनता का मनोरंजन किया जाता था ।
आज भी इनका प्रदर्शन होता है लेकिन आज उनमें आमूल-चूल परिवर्तन हो गया है । कोई भी मनोरंजन के साधन आज अपने मूल-रूप में नहीं पाये जाते हैं, प्रत्येक पर आधुनिकता की छाप लग चुकी है ।
मनोरंजन के प्राकृतिक साधन:
नृत्य, नाटक, गीत, कथा ये सब मनोरंजन के साधन हैं । गाँव में आज भी लोग एक स्थान पर बैठकर कथा श्रवण से मनोरंजन करते है । दन्त कथाएँ, पहेलियाँ, चुटकुले, कविता पाठ, कीर्तन, गायन से लोग मनोरजन करते है । मनोरंजन के लिए जिसमें हम बाह्य साधनो का प्रयोग नहीं करते हैं, वे सब प्राकृतिक साधन हैं ।
प्राकृतिक साधन मानव को निःशुल्क प्राप्त होते हे, जिनका प्रयोग मानव प्राचीन काल से आज तक करता आया है । आज भी विभिन्न जगली जानवरों, पक्षियों, मछलियों के विविध प्रदर्शन से जनता का भरपूर मनोरंजन किया जाता है । शहरो में जादू का खेल, सौंपों का प्रदर्शन, बन्दर व भालुओं के नृत्य द्वारा जनता का मनोरंजन होता है । विविध प्रकार के खेल-कूद आदि मनोरजन के प्राकृतिक साधन हैं ।
मनोरंजन के वैज्ञानिक साधन:
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विज्ञान की प्रगति हर क्षेत्र में हुई है । मनोरंजन के साधनो में भी विज्ञान ने प्रचुर प्रगति की है । रेडियो, टेलीविजन, चलचित्रों के नूतन आविष्कार ने मनोरंजन को काफी बढ़ावा दिया है । खेलों में भी वैज्ञानिक प्रगति हुई है । जिन नाटकों को रंगमंच पर दिखाया जाता है आज सिनेमा के माध्यम से चलचित्रो द्वारा भरपूर मनोरंजन किया जाता है । फिल्म उद्योग ने आज काफी प्रगति व लोकप्रियता प्राप्त कर ली है ।
इस समय संसार भर में भारत व अमेरिका में सर्वाधिक फिल्मसे बनती हैं । रेडियो के द्वारा हम मधुर गीत, नाटक, कथा, चुटकुले आदि सुनकर मनोरंजन करते हैं । आजकल दूरदर्शन व वीडियो द्वारा मनोरंजन को सर्वाधिक बढ़ावा मिला है ।
दूरदर्शन में लोकप्रिय धारावाहिकों से सभी लोग आकर्षित होते हैं । रामायण व महाभारत को देखने के लिए लोग अपने आवश्यक कार्यो को भी छोड़ देते थे । मुद्रण-यन्त्र के आविष्कार से पुस्तक, पत्र-पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों के क्षेत्र में अद्भुत उन्नति हुई है । इनके द्वारा आज का मानव भरपूर मनोरंजन करता है ।
मनोरंजन के साधनों का दुरुपयोग:
आधुनिक मनोरंजन के साधनों का दुरुपयोग होने से मनुष्य को काफी हानि पहुँच रही है । सिनेमा व चलचित्रों में अश्लील दृश्यों के प्रदर्शन द्वारा समाज का नैतिक पतन हो रहा है । पत्रिकाओं में अश्लील चित्र व कथाएँ आधुनिक नवयुवक को भटका रही है ।
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मनोरंजन का उद्देश्य मन को प्रसन्न रखना व स्वास्थ्य को बढ़ाना है, परन्तु यदि मनोरंजन के साधनों से स्वास्थ्य का नाश व मन दुखी हो जाए तो वह मनोरंजन नहीं है । जूआ खेलने, शराब पीने, अश्लील दृश्यों को देखने से तन, मन व धन का नाश होता है । यह प्रवृत्ति आजकल समाज में उत्तरोत्तर बढ़ रही है । इन सब साधनों के दुरुपयोग से समाज का पतन हो रहा है ।
उपसंहार:
मनोरंजन मानव जीवन के लिए नितान्त आवश्यक है । उसके बिना मानव जीवन नीरस व शुष्क: बैन जाता है इसलिए अपने सामर्थ्य के अनुकूल मनोरंजन का भरपूर आनन्द लेना चाहिए । मनोरंजन के लिए प्राकृतिक साधन सबसे अधिक उयपुक्त्त है, क्योंकि उनसे यथार्थ रूप में मनोरंजन प्राप्त होता है ।
आधुनिक मनोरंजन के साधनों का हमें सदुपयोग करना चाहिए । मनोरंजन के साधनो के दुरुपयोग को रोकने के लिए समाज को और सरकार को भी प्रयत्नशील होना चाहिए जिससे समाज के नैतिक पतन को रोका जा सके ।