स्वावलम्बन | Article on Self Independence in Hindi Language!
प्रस्तावना:
समाज का जो भी व्यक्ति पूर्णरूपेण दूसरों पर ही आश्रित रहता है वह पगु है और जो नरसिंह अपने अधिकतर कार्य अपने आप करते हैं वे स्वावलम्बी होते हैं एवं अपने कार्यो में सफल होकर उन्नति के शिखर पर पहुँच जाते हैं । पूर्णरूप से दूसरे पर निर्भर लोग स्वयं दुख पाते हैं और पराधीनता का जीवन व्यतीत करते हैं । स्वावलम्बी लोग सदैव सुखी होते हैं ।
अर्थ व व्याख्या:
स्व+आलम्बन का तात्पर्य है आत्मनिर्भरता अर्थात् अपना काम स्वत: करना और दूसरों पर किसी प्रकार से निर्भर न रहना स्वावलम्बन है ।
इसलिए स्वावलम्बन का अर्थ है: अपने दायित्वों के प्रति मनुष्य जागरूक रह कर कर्त्तव्य निष्ठा से अपने कार्य स्वयं करे । समाज द्वारा जो दायित्व जिसको सौंपा गया है उसको वह पूर्ण निष्ठा के साथ स्वयं पूर्ण करे और अपना बोझ दूसरों पर न डाल कर अपनी उन्नति के लिए स्वयं राह निर्धारित करे ।
सर्वागीण उन्नति का आधार:
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आत्मनिर्भरता उन्नति का आधार है, और आत्मविश्वास का प्रतीक है । जो व्यक्ति समाज में अपने सारे कार्य अपने आप करता है, आवश्यकता पड़ने पर दूसरों की सहायता लेता है और उसी प्रकार दूसरों को भी सहायता देता है वह व्यक्ति उन्नति की दौड़ में कभी पीछे नहीं रह सकता है ।
अपने दैनिक जीवन के सारे काम स्वयं करना और उनका पूर्ण ज्ञान रखना मानव के लिए अत्यावश्यक है । जिस काम के लिये कोई भी व्यक्ति दूसरी पर निर्भर रहता है, उस कार्य में वह पिछड़ जाता है और उसका वह कार्य अपूर्ण रहता है ।
जो कर्मवीर व्यक्ति होते हैं वे समय का सदुपयोग कर अपने सारे कार्य समय पर सम्पन्न कर लेते है । जो मनुष्य जिस कार्य में पारंगत होता है, उस कार्य में वह अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक उन्नति करता है । सार्वजनिक जीवन में जो दायित्व सौंपा जाता है उसको अपना पुनीत कर्त्तव्य समझ कर पूर्ण करना चाहिए ।
स्वावलम्बी पुरुष सिह उद्यमी व परिश्रमी होता है । परिश्रम पूर्वक किये गये कार्यो में सफलता चरण दूरकी है । स्वावलम्बी व्यक्ति परिश्रम के कारण शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ होता है । लक्ष्मी उसके घर में निवास करती है, इसलिए उसके पास धन की कमी नहीं रहती है ।
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वह अपने ही बाहुबल से सारी सुख-सुविधा को जुटाने में सक्षम होता है । दूसरों को सहयोग देने के कारण समाज में यश अर्जित करता है । इस प्रकार हम देखते हैं कि स्वावलम्बी पुरुष चहु ओर से उन्नति कर शिखर पर पहुंच जाता है ।
स्वावलम्बन व विद्यार्थी:
विद्यार्थी जीवन मानव जीवन की प्राथमिक अवस्था है । विद्यार्थी जीवन में उसकी जैसी नीव पड़ जाती है उसी पर सारा जीवन अवलम्बित होता है । इसलिए एक विद्यार्थी को अपने सारे कार्य अपने आप करने चाहिएं । विद्यार्थियो को दूसरों पर निर्भर रहने की आदत नहीं होनी चाहिए ।
घर में विद्यार्थी को माता-पिता पर पूर्ण निर्भर नहीं रहना चाहिए । घर के दैनिक कार्यो में माता-पिता का सहयोग करना चाहिए । अपने कपड़े अपने आप धोने चाहिये । अपने शरीर व पढ़ाई-सम्बन्धी कार्यो के लिए दूसरों पर निर्भर नही रहना चाहिए ।
बड़े विद्यार्थियों को विद्या अध्ययन के साथ धन अर्जित करने के साधन भी जुटाने चाहियें ताकि समय-समय पर माता-पिता के भार को हल्का कर सकें । अपने विद्यालय के कार्यो को किसी दूसरे छात्रों द्वारा नहीं कराना चाहिए । विद्यार्थी जीवन में ही दैनिक जीवन के सारे कार्य सीखने चाहिए । चाहे लड़का हो या लड़की घर में गृहस्थी के कार्य भी सीखने चाहिएं जो जीवन के हर मोड़ पर काम आते हैं ।
महापुरुषों के आदर्श:
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संसार में बहुत से ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपनी जिन्दगी को अपने आप महान् बना लिया । अब्राहम लिंकन एक निर्धन परिवार में पैदा हुए थे जो स्वावलम्बन के द्वारा अमेरिका के राष्ट्रपति बन गये । मैक्डोनल नामक एक मजूदूर परिश्रम से इग्लैंड का प्रधानमत्री बन गया । हमारे देश में ऐसे महापुरुषो के आदर्शो की कमी नहीं है ।
श्री लालबहादुर शास्त्री एक नितान्त गरीब घर में पैदा होकर देश के प्रधानमंत्री बने । उन्होंने स्वावलम्बन के बल पर भारत का लाल व भारत का बहादुर बनकर दिखा दिया । इसी प्रकार देश के कई अन्य गणमान्य जन हैं जिन्होंने जीवन भर अपना काम स्वयं करके आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता से समाज व राष्ट्र को ऊपर उठाया ।
गाँधीजी सदैव साधारण जीवन जीकर भारतीयों के प्रेरणा-स्रोत बने । गाँधी जी के सेवा आश्रम में प्रत्येक व्यक्ति को अपना काम अपने आप करना पड़ता था । यहाँ तक कि जो अतिथि वहाँ जाता था वह अपने रवाने के लिए स्वयं आटा पीसता था, रोटी बनाता था और खाता था । इंग्लैड की वर्तमान प्रधानमत्री मगिरट थैचर आज भी अपना खाना अपने आप बनाती हैं और कपड़े भी धोती हैं ।
जपसंहार:
स्वावलम्बन जीवन का आधार है, प्रगति की सीढ़ी है, इसलिए हमें अपने जीवन को उन्नत बनाने के लिए हर क्षेत्र में स्वावलम्बी बनना चाहिए । यदि सभी विद्यार्थी स्वावलम्बन की शिक्षा पर आचरण करे तो वे जीवन में किसी भी क्षेत्र में असफल नहीं हो सकते हैं । यदि हमारे यहाँ सभी स्वावलम्बी बन जाये तो सारा राष्ट्र उन्नत हो जायेगा ।