Read this article to learn about the various types of radioisotopes in Hindi language.
रेडियम:
R.a. 226—का प्रयोग ब्रेकीथेरेपी में किया जाता है ।
ऊर्जा—0.19—2.43 एम॰ई॰वी॰ (M.e.V.)
हाफलाइफ—1620 वर्ष
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डिके होने की दर—लगभग एक प्रतिशत प्रति 25 वर्ष
के॰ फैक्टर = 8.25
हानियां:
इसका प्रयोग निम्न कारणों से बन्द कर दिया गया है ।
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1. रेडोन गैस का क्षरण:
(a) इसका एक डिकेइंग प्रोडक्ट रेडान गैस भी है जो रेडियोएक्टिव होती है ।
(b) कम स्पेसिफिक एक्टिविटी, लगभग एक क्यूरी/ग्राम है । अत: सोर्स का आकार बड़ा होना चाहिए ।
(c) बहुत अधिक फोटान ऊर्जा के कारण सोर्स हाउसिंग का बचाव मुश्किल होता है । (d) यह सभी (α.B.υ) विकिरण का निर्माण करता है । अत: यदि शरीर में एल्फा α पार्टीकिल एबजार्व हो जाये तो वह काफी लम्बे फिजिकल व बायोलाजिकल हाफ लाइफ तक एक्टिव रहते हैं ।
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लाभ:
1. निश्चित डोज पर होती है ।
2. अधिकतर कैलकुलेशन रेडियम पर ही आधारित होते हैं ।
3. बहुत लम्बी हाफ लाइफ होती है ।
सीजियम:
सीजियम—137 का प्रयोग टेली व ब्रेकीथैरेपी दोनों में किया जा सकता है । पर चूंकि इसकी स्पेसिफिक एक्टिविटी कम होती है । अत: इसका प्रयोग टेलीथेरेपी में कम तथा ब्रेकीथेरेपी के लिए अधिकतम किया जाता है । सीजियम यूनिटें 40 सेमी॰ से कम की सोर्स न दूरी पर कार्य करती हैं तथा जब इसका प्रयोग टेलीथेरेपी में किया जाता है तो चौड़े पेनम्ब्रा के कारण तीव्र स्किन रियेक्शन होती है ।
गुण: Properties
ऊर्जा = 0.662 एम॰ ई॰ वी॰ (M.e.V.)
हाफ लाइफ = 30 वर्ष
डिके की दर = एक प्रतिशत / प्रति छह माह, दो प्रतिशत हर वर्ष सोर्स को हर बीसवें साल बदल देना चाहिए ।
के॰ फैक्टर = 3.3
सोर्स स्किन दूरी = 20—40 सेमी॰
कोवाल्ट—60:
कोवाल्ट 60 का प्रयोग टेली तथा ब्रेकीथैरेपी दोनों में किया जाता है । इसकी इफेक्टिव फोटान ऊर्जा रेडियम की अपेक्षा थोड़ा सा कम होती है । तथा हाफ लाइफ अपेक्षाकृत छोटी होती है । फिर भी कोवाल्ट—60 का प्रयोग टेलीथेरेपी में बहुत अधिक किया जाता है । छोटी हाफ लाइफ के कारण उपचार समय में एक प्रतिशत प्रति महीने की वृद्धि करनी पड़ती है ।
गुण:
गामा किरण ऊर्जा 1.17 एम॰ ई॰ बी॰,(M.e.V.) 1.33 एम॰ ई॰ वी॰ (M.e.V.) (अर्थात 1.25 एम॰ ई॰ बी॰(M.e.V.)
हाफ लाइफ = 5.3 वर्ष, अत: प्रयोग में इसे 3-4 वर्ष में बदलना पड़ता है ।
डिके की दर = एक प्रतिशत प्रति महीना
के॰ फैक्टर 13.0
ट्रीटमेंट प्लानिंग:
इसका उद्देश्य ट्यूमर बोल्यूम को रेडियेशन की समान डोज देना व आस पास के सामान्य टिश्यू के कम से कम विकिरण देना है । इसके अंतर्गत डोज वितरण को ग्राफ के रूप में दर्शाते हैं जिससे एक या अधिक विकिरण किरणें ट्रीटमेंट वोल्यूम पर कन्वर्ज कर सकें ।
ट्रीटमेंट व ट्रीटेड वोल्युम का पता करने के पश्चात उचित रेडियेशन वितरण हेतु (चित्र 14.5) फील्डों का चुनाव करते हैं जो निन्न विधियों जैसे, बॉक्स टेक्नीक, थ्री फील्ड टेक्नीक, आदि के रूप में हो सकती है । (चित्र 14.6) । दो या दो से अधिक फील्डों के प्रयोग के लिए प्राय: बेस फिल्टर या टिश्यू कम्पन्सेटर का प्रयोग करते हैं (चित्र 14.7) ।
सामान्य रोग विज्ञान:
ट्यूमर या नियोप्लेजिया दो प्रकार के होते है:
1. बेनाइन या सिम्पल
2. मेलिगनेंट या कैंसरस
बेनाइन व मेलिगनेंट में फर्क:
कैंसर के सात लक्षण:
1. टट्टी व पेशाब की आदतों में परिवर्तन ।
2. घाव जो न भर रहा हो ।
3. असामान्य रक्तस्राव या डिस्वार्ज का होना ।
4. स्तन में या शरीर के अन्य कहीं गांठ का होना ।
5. अपच या खाना निगलने में परेशानी ।
6. मस्सों या मोल आदि में अचानक परिवर्तन या वृद्धि ।
7. लगातार खांसी या आवाज में परिवर्तन ।