Read this article to learn about the various procedures of regional radiography in Hindi language.
पोजीशनल नामकरण:
1. सुपाइन (डार्सल डेकुविटस) पीठ के बल लेटकर
2. प्रोन (वेन्ट्रल डेकुविटस) चेहरा नीचे कर लेट कर
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3. लैट्रल डेकुविटस-करवट लेटकर ।
4. इरेक्ट
5. सेमी रिकम्बेन्ट
जहां रोगी थोड़ा सा घूमे हुये होते हैं उन्हें निम्न क्रम में व्यक्त करते हैं:
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1. आरम्भिक (पोजीशन) स्थिति सुपाइन या पीठ फिल्म के साथ रखकर खड़े होकर ।
2. घूमने की दिशा-जैसे दायां या बांया सिरा उठाकर या टेबल से दूसरी ओर घूमना ।
3. मीडियन सेजाइटल या कोरोनल प्लेन से घूमने की मात्रा ।
प्रोजेक्श्न नामकरण:
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यह मध्य किरण पुंज की दिशा शरीर के प्लेन की तुलना में दर्शाता है ।
एन्टीरोपोस्टीरियर (ए.पी.):
मध्य किरण अग्र भाग पर पड़कर ट्रान्सवर्स प्लेन के साथ और मीडियन सेजाइटल प्लेन के साथ या समानान्तर जाकर पिछले भाग से निकलती है ।
पोस्टिरोएण्टीरियर (पी.ए.):
मध्य पिछले भाग पर सर्वप्रथम पड़कर ट्रान्सवर्स प्लेन के साथ और मीडियल सेजाइटलप्तेन के साथ या समानान्तर जाकर अगले भाग से निकलती है ।
लैट्रल:
मध्य किरण शरीर के एक तरफ से पड़कर कोरोनल या ट्रान्सवर्स प्लेन से होकर दूसरी तरफ निकलती है । इसे दायां लैदल जब मध्य किरण दायें तरफ से घुसती है तथा बांयी तरफ निकलती है । हाथ पैरों के लिए मीडियो लैट्रल या लैट्रो-मीडियल का प्रयोग होता है ।
एण्टीरियर ओब्लीक:
मध्य किरण पिछले भाग से पुसकर मीडियन सेजाइटल प्लेन से कुछ कोण से ट्रान्सवर्स प्लेन से गुजरती हुई अग्र भाग से निकलती है ।
फ्लोरोस्कोपी व रेडियोग्राफी में प्रयुक्त सेने वाले नामकरण:
पोजीशनिंग और प्रोजेक्शन:
इसे निर्धारित करने में:
1. फिल्म से रोगी की स्थिति ।
2. एक्स-रे किरण पुंज की दिशा व सेन्टरिंग ।
रेडियोग्राफी-रीजनल हैण्ड-पास्टीरोएण्टीरियर:
फोर आर्म को टेबल पर प्रोनेशन में रखें, हथेली फिल्म के साथ छूती हुई रहनी चाहिए । उंगलियां अलग कर एक्सटेंड करें । फिल्म में रेडियल व अलर स्टाइलायड प्रोसेस आने चाहिए तथा फिल्म से समान दूरी पर रहने चाहिए । उर्ध्वाधर मध्य एक्स-रे तृतीय मेटाकार्पल के हैड पर सेनटर होनी चाहिए ।
एण्टीरियर ओब्लीक (बेसिक):
पोजीशनिंग:
हाथ की पी॰ए॰ पोजीशन से इसे 45 डिग्री कोण पर लैट्रली धुमाकर इसे फोम पैड द्वारा स्थिर कर देते हैं । उगलियां थोड़ा फ्लेक्सड रहनी चाहिए ।
सेन्टरिंग:
उर्ध्वाधर मध्य किरण द्वितीय मेटाकार्पल के हेड पर ।
हाथ (लेट्रल):
पोजीशनिंग: फोर आर्म का मिडियल तरफ मेज के रखते हैं जिसमें हाथ के सामने का तरफ फिल्म से 90० पर रखते हैं ।
सेन्टरिंग:
उर्ध्वाकार मध्य किरण दूसरे मेटाकारपल वोन के सिर पर ।
पोस्टीरो एण्टीरियर-दोनों हाथ:
पोजीशनिंग:
दोनों आर्म प्रोनेटेड रहता हैं तथा हथेलियां कैसेट को छूती रहती हैं ।
सेन्टरिंग:
मध्य में, इन्टरफैलेनिजयल जोड़ व अंगूठों के बीच ।
पोस्टीरियर ओब्लीक-दोनों हाथ:
पोजीशनिंग:
दोनों फोरआर्म सुपीनेटेड स्थित में टेबल पर रहते हैं । दोनों हाथों के मीडियल एसपेक्ट तथा लिटिल फिंगर एक दूसरे से सटी रहती हैं । हाथ अब 48 डिग्री मीडियली बाल कैचिंग स्थिति में रोटेटेड होते हैं ।
सेन्टरिंग:
हाथों के मध्य पाचवें मेटाकार्पो फैलेन्जियल जोड़ के लेबल पर ।
लैट्रल इन्डेक्स व मध्य उगलियां:
पोजीशनिंग:
रोगी टेबल के बगल या साइड में बैठा रहता है तथा आर्म अबडक्टेड व मीडियली रोटेटेड रहती है जिससे इन्डेक्स फिंगर की लैट्रल एस्पेक्ट फिल्म के कान्टेक्ट में होती है । फोरआर्म सेडबैग द्वारा सहारा पाती है ।
इन्डैक्स फिंगर पूरी तरह एक्सटेन्डेड होती है तथा मध्य फिंगर थोड़ा सा फ्लेक्सड रहती है । फिल्म काफी बड़ी होनी चाहिए जिससे प्रभावित उंगलियां और दूसरी व तीसरी मेटाकार्पल ऊपरी सिरे भी फिल्म में आ सकें ।
सेन्टरिंग:
स्केफोयड:
1. पोस्टीरोएण्टीरियर हाथ एडक्टेड स्थिति में:
पोजीशनिंग: फोरआर्म प्रोनेटेड रहती है रेडियल और अल्नर स्टाइलायड प्रोसेस फिल्म से समान दूरी पर रहना चाहिए तथा हाथ एडक्टेड स्थिति में होना चाहिए । (चित्र 10. 1) सेन्टरिंग: रेडियल व अल्नर स्टाइलायड प्रोसेस के मध्य में ।
2. एण्टीरियर ओब्लीक (बेसिक):
पोजीशनिंग:
हाथ की पास्टीरोएण्टीरियर स्थिति से 45 डिग्री के कोण पर लैदली घुमाकर स्केफायड के लाग एक्सिस को फिल्म के समानान्तर लाते हैं ।
सेन्टरिंग: अल्नर स्टाइलायड प्रोसेस पर ।
3. पास्टीरियर ओब्लीक:
पोजीशनिंग:
एंटीरियर ओब्लीक से हाथ व हथेली को पूरे 900 डिग्री घुमा देते हैं जिससे स्केफायड का लाग एक्सिस फिल्म के उर्ध्वाधर हो जाये ।
सेन्टरिंग: अल्नर स्टाइलायड प्रोसेस पर ।
4. लैट्रल:
पोजीशनिंग:
पास्टीरियर ओब्लीक स्थिति से हथेली को 45 डिग्री घुमाकर पाम व हाथ को कैसेट सें राइट एंगल पर ले आते हैं । दोनों स्टाइलायड प्रत्रेयेसों को सुपरिमपोज कराने के लिए रिस्ट को थोड़ा पीछे की ओर घुमाते हैं ।
सेन्टरिंग: रेडियल स्टाइलायड प्रोसेस पर ।
कार्पल टनल: एक्सियल:
पोजीशनिंग:
रोगी टेबल के पीछे खड़ा होकर हाथ को कैसेट पर रखकर दबाता है ।
सेन्टरिंग: फोरआर्म की लाइन में हैमेट के हुक व स्केफोयड के ट्यूबरकिल के मध्य (दो हड्डियों के उभार के मध्य) में ।
कलाई (रिस्ट):
पहली विधि:
फोरआर्म को प्रोनेटेड स्थिति में रखते हुये हाथ को पोस्टीरोएण्टीरियर से घुमाकर लैट्रल स्थिति में ले आते हैं । इससे रेडियस के दो प्रोजेक्शन एक-दूसरे से 90 डिग्री के कोण पर प्राप्त होते है । अलग के लिए दोनों स्थितियों में एक ही प्रोजेक्शन होता है ।
दूसरी विधि:
स्थिति परिवर्तन में हयूमरल व अलना हड्डियों को घुमाते हैं । इससे अलना को दो प्रोजेक्शन एक-दूसरे से झ डिग्री के कोण पर प्राप्त होते हैं ।
पोस्टीरोएण्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी टेबल पर आर्म को अबडक्ट कर बैठता है, कुहनियां 90 डिग्री पर फ्लैक्सड होती हैं तथा फोरआर्म प्रोनेटेड होती है । कंधा, कुहनियाँ और कलाई एक ही लेबल पर रहने चाहिए । फिल्म का सेन्टर 25 से॰मी॰ स्टाइलायड प्रोसेसों से प्राक्सिमल होना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
रेडियल व अलर स्टाइलायड प्रोसेसों के मध्य बिन्दु पर जो फिल्म से समान दूरी पर रहने चाहिए ।
लैट्रल:
पहली विधि के लिए हैण्ड को लैट्रली 90 डिग्री घुमाकर हथेली को टेबल से 90० के कोण पर ले आते हैं । द्वितीय विधि के लिए ह्यूमरस को 90 डिग्री लैट्रली घुमाकर कुहनी को एक्सटेन्ड कर फोरआर्म का मीडियल सिरा रिस्ट व हाथ टेबल से स्पर्श करा देते हैं । रेडियल और अल्नर स्टेलायड प्रोसेसों को थोड़ा पास्टीरियर रोटेशन देकर सुपरिमपोज करवा देते हैं ।
सेन्टरिंग:
रेडियल स्टालायड प्रोसेस पर ।
रिस्ट (ओब्लीक):
पोजीशनिंग:
रोगी आर्म को थोड़ा अबडक्ट कर कुहनी 90 डिग्री पर मोड़ कर तथा फोर आर्म को प्रोनेट कर बैठ जाता है । अब पाम के लेट्रलो, 45 डिग्री घुमा देते हैं ।
सेन्टरिंग:
अल्नर व रेडियल स्टाइलायड प्रासेसों के मध्य में उर्ध्वाधर बीम द्वारा ।
फोर आर्म- एण्टीरोपोस्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी आर्म को थोड़ा अवडक्ट कर कुहनी पूरी तरह सीधा कर व फोरआर्म सुपीनेट कर टेबल के किनारे बैठा होता है । कन्धे को नीचा कर कुहनी के लेबल पर लाता है । रेडियल व अल्नर स्टाइलायड प्रोसेस तथा मीडियल व लैट्रल कन्डाइल फिल्म से समान दूरी पर रहने चाहिए ।
सेन्टरिंग:
फोरआर्म के मध्य कुहनी व रिस्ट के बीच में ।
लैट्रल:
पोजीशनिंग:
रोगी टेबल के साइड में बैठकर कुहनी को 90० अंश पर मोड़कर, कन्धे को रिस्ट के लेबल तक नीचा करता है जिससे हयूमरल इन्टरकन्डाइलर रेखा, कैसेट जो फोर आर्म के नीचे रखा होता है कि परपेण्डीकुलर हो जाये । हथेली टेबल से 90० के कोण पर रहती है ।
सेन्टरिंग:
फोरआर्म के लैदल एस्पेक्ट पर रिस्ट और एलबो के बीच ।
कुहनी का जोड़ (एलबोज्वाइन्ट):
लैट्रल:
पोजीशनिंग:
रोगी टैबल की एक तरफ बैठा होता है तथा आर्म अबडक्टेड, कुहनी 90० मुड़ी हुई व हथेली टेबल से 90० के कोण पर स्थित रहती है । कन्धा कुहनी के ही लेबल पर होना चाहिए, जिससे अपर लिश्व का सम्पूर्ण मीडियल एस्पेक्ट टेबल के स्पर्श में हो । मध्य किरण इस स्थिति में हयूमरस की इन्टर इपीकन्डाइलर रेखा के समानान्तर गुजरती है ।
सेन्टरिंग:
हयूमरस के लैट्रल इपीकन्डाइल पर ।
हयूमरस का सैक्ट:
एण्टीरोपोस्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी अप्रभावित कन्धे को थोड़ा उठाकर टेबल पर सुपाइन लेट जाता है । आर्म थोड़ा सा अबडेक्टेड, कुहनी पूरी तरह सीधी तथा अपर आर्म के पोस्टीरियर अस्पेक्ट को कैसेट से स्पर्श कराने हेतु सुपीनेशन कराते हैं । कैसेट इतना बड़ा होना चाहिए जिससे यह कन्धा व कुहनी के जोड़ों की फिल्म ले सके । हूयूमरस के मीडियल व लैदल कन्डाइल फिल्म से समान दूरी पर रहने चाहिए । एक्सपोजर के दौरान गति न होने देने के लिए हथेली के ऊपर सैण्ड बैग का प्रयोग करते हैं । एक्सपोजर सांस रुकवाकर करते हैं ।
सेन्टरिंग:
कन्धे व कुहनी जोड़ के मध्य बिन्दु पर ।
लैट्रल:
पोजीशनिंग:
एण्टीरोपोस्टीरियर प्रोजेक्शन की स्थिति से कुहनी को 90० डिग्री मोड़ कर, आर्म अबडक्ट करते हैं तथा 90० मीडियली घुमाकर आर्म, कुहनी व फोर आर्म का मीडियल अस्पेक्ट टेबल के कान्टेक्ट में ले आते हैं । फोरआर्म को थोड़ा आराम देने हेतु हथेली को टेबल पर रखवा देते हैं ।
सेन्टरिंग:
कन्धे व कुहनी को जोड़ों के मध्य किन्तु पर जब हयूमरस को घुमा रहे हों, तो यह आवश्यक है कि कुहनी मोटे और आर्म को एबडक्ट करें, जिससे फोरआर्म टेबल के स्पर्श में आ जाये न कि रोगी के धड़ पर ।
हयूमरस – इन्टर ट्यूबरकुलर सल्कस:
एक्सियल:
पोजीशनिंग:
रोगी प्रभावित आर्म को अपने धड़ के साथ थोड़ा एबडक्शन स्थिति में रखकर खड़ा होता है । हथेली धड़ की तरफ होती है व हयूमरल कन्हाइलों को जोड़ने वाली रेखा धड़ से 45० के कोण पर । कैसेट को उर्ध्वाधर स्थिति में कन्धे के ऊपर रखते हैं ।
सेन्टरिंग:
मध्य किरण ऊपर की दिशा में ह्यूमरस के सैक्ट से 10० के कोण पर हयूमरस के हेतु के एण्टीरियर एस्पेक्ट पर सेन्टर होती हे ।
कन्धे का जोड-एण्टीरोपोस्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी प्रभावित कन्धे के टेबल के मध्य में रखकर सुपाइन स्थिति में लेट जाता है ।
सेन्टरिंग:
स्केपुला के कोराक्वायड प्रोसेस पर चोट की स्थिति में फिल्म में क्लेविकिल, स्केपुला तथा ऊपरी एक-तिहाई ह्यूमरस भी आनी चाहिए ।
इन्फीरोसुपीरियर (कन्धे का जोड़):
पोजीशनिंग:
यह प्राय: रोगी को खड़ा कर प्रभावित आर्म 90० डिग्री अब्डक्टेड तथा हथेली ऊपर की तरफ होती है । कैसेट के गर्दन के साथ कन्धों के उर्ध्वाधर रखते हैं ।
सेन्टरिंग:
एक्सिला की ओर थोड़ा सा धड़ की तरफ ।
सुपीरोइन्फीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी टेबल की एक तरफ बैठ कर धड़ को टेबल की ओर झुकाकर रखता है, प्रभावित आर्म अधिकतम अबडक्शन में कुहनी 90० डिग्री पर मुड़ी हुई और टेबल पर स्पर्श करती है । फिल्म टेबल पर कुहनी और धड़ के बीच होती है ।
सेन्टरिंग:
उर्ध्वाधर किरण ऊपर से सकेपुला के एक्रोमियन प्रासेस पर ।
स्ट्राइकरर्स प्रोजेक्श्न:
पोजीशनिंग:
कन्धे के जोड़ के बार-बार होने वाले डिसलोकेशन के रोगी में करते हैं । रोगी सुपाइन स्थिति में मुड़ी हुई कुहनी आगे की तरफ तथा हथेली सिर पर होती है ।
सेन्टरिंग:
ट्यूब को 10 डिग्री का कोण सिर की तरफ देते हुए कोराक्वायड प्रोसेस पर ।
कोराक्वायड प्रोसेस:
एण्टीरोपोस्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी खड़े होकर आर्म को सिर पर रखकर एक्स-रे ट्यूब की ओर मुंह करता है तथा इस प्रकार घूमता है जिससे स्केपुला का प्लेन कैसेट के समानान्तर आ जाये ।
सेन्टरिंग:
स्केपुला के लैट्रल बोर्डर पर ।
सुप्रास्पाइनेटस फोसा:
पोजीशनिंग:
रोगी ट्यूब की ओर चेहरा कर खड़ा होता है तथा आगे झुक जाता है जिससे स्केपुला का स्पाइन उर्ध्वाधर व कैसेट के समानान्तर हो ।
सेन्टरिंग:
एफ्रोमोक्लेविकुलर जोड़ के ठीक मीडियली ।
क्लेविकिल: एंटीरोपास्टीरियर-सुपाइन:
पोजीशनिंग:
रोगी को थोड़ा प्रभावित क्लेविकिल की तरफ घुमाकर यह निश्चित करते हैं कि क्लेविकिल का मीडियल सिरा मेरुदण्ड पर सुपरिमपोज्ड न हो । जाँच की तरफ वाली आर्म धड़ के साथ आराम से रहती है ।
सेन्टरिंग:
सांस रुकवाकर, क्लेविकिल के मध्य में ।
र्स्टनोक्लेविकुलर जोड़:
एण्टीरियर ओब्लीक:
पोजीशनिंग:
रोगी पहले बकी की ओर मुंह करके खड़ा होता है फिर 45 के कोण पर जांच किये जाने वाले र्स्टनोक्लेविकुलर जोड़ की ओर धूम जाता है जिससे यह फिल्म के पास आ जाता है । फिर रोगी वर्टिकल स्टैण्ड पकड़ कर खड़ा होता है तथा फेफड़ों को ब्लर करने के लिए एक्सपोजर के समय सांस लेते रहने को कहते हैं ।
सेन्टरिंग:
चौथे थोरेसिक बर्टिवा के लेबल पर मध्य से 10 से॰मी॰ दूरी पर फिल्म से दूसरी ओर ।
निचला लिम्ब:
पैर (फुट): डार्सी-प्लान्टर पोजीशनिंग:
पैर का प्लान्टर एस्वेक्ट फिल्म के स्पर्श में रहता है ।
सेन्टरिंग:
कयूवोयड ने वीकुलर जोड़ पर जो नेवीकुलर ट्यूबरासिटी व पांचवी मेटाटार्सल की ट्यूबरोसिटी के मध्य स्थित होता है ।
लैट्रल:
पोजीशनिंग:
घुटने व कूल्हे के जोड़ मुड़े होते हैं तथा लिम्ब को इस प्रकार घुमाते हैं जिससे पैर का लैट्रल एस्पेक्ट फिल्म से 90 के कोण पर आ जाये ।
सेन्टरिंग:
मध्य किरण पैर के प्लेन्टर एस्पेक्ट के समानान्तर नेवीकुलर क्यूनीफार्म जोड़पर ।
डार्सीप्लान्टर (ओब्लीक):
पोजीशनिंग:
रोगी कुल्हों व घुटनों को मोड़ कर बैठता है, फिर लिम्ब को मीडियली झुकने देते हैं । जिससे फुट लगभग 45 डिग्री में घूम जाये ।
सेन्टरिंग:
मध्य एक्सरे किरण फिल्म के उर्ध्वाधर पहले मेटाटार्सोंफ्लेन्जियल जोड़ पर फोकस करने के लिए टिल्ट देते हैं ।
कैल्केनियम (लैट्रल):
पोजीशनिंग:
रोगी पैरों को फैलाकर सुपाइन लेट जाता है । दोनों पैरों के अंगूठे एक-दूसरे को छूते रहते हैं । एड़ियों को एक नान रेडियो ओपेक पैड़ द्वारा थोड़ा सा अलग कर देते हैं । दोनों । एकलों को एक बैडेंज की सहायता से डार्सीफ्लेक्स कर लेते हैं ।
सेन्टरिंग:
एडी के प्लेन्टर एस्पेक्ट पर या दोनों एड़ियों के मध्य । मध्य एक्स रे किरण क्रेनियली 30 डिग्री के कोण पर ।
सबटैलर जोड़:
(टेलो कैलकेनियल या टैलोकैलकेनियो नेवीकुलर) मीडियल एक्सियल विव सल्कस टार्सी को दिखाने हेतु अर्थात मध्य एवं पोस्ट आर्टीकुलर फेसेट के मध्य स्थित ग्रूव । रोगी लिम्ब के सीधा कर फुट को डार्सीफ्लेक्स एक बैंडेज की सहायता से टेबल पर बैठ जाता है । लिम्ब को मीडियली 60 डिग्री धुमाकर फुट को एक पैड से सहारा देते हैं ।
सेन्टरिंग:
लैट्रल मैलियोलस से 1 इंच दूरी पर व ट्यूब एंगल सिर की तरफ ।
लैट्रलएक्सियल विव:
जोड़ के पिछले भाग के लिए सभी कुछ समान रहता है सिर्फ लिम्य को 60 डिग्री लैदली घुमा देते हैं ।
एंकल ज्वाइंट: एण्टीरोपोस्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाइन या बैठा होना चाहिए एकल डार्सीफ्तेक्सन में सर्पोटेड होना चाहिए तथा दोनों मैलियोलायी फिल्म से समान दूरी पर होने चाहिए ।
सेन्टरिंग:
दोनों मैलियोलायी के मध्य किरण दोनों मेलियोलायी को जोड़ने वाली काल्पनिक रेखा से 90० के कोण पर ।
लेट्रल:
पोजीशनिंग:
रोगी जांच किये जाने वाली तरफ घूम जाता है । एकंल को डार्सीफ्लेक्सन में सर्पोट करते हैं तथा लिम्ब को तब तक घुमाते हैं, जब तक दोनों मैलियोलायी एक-दूसरे पर सुपरिमपोज न हो जायें । टीबिया फिल्म के समानांतर होनी चाहिए ।
सेन्टरिंग:
मीडियल मैलियोलस पर ।
लेग: एण्टीरोपोस्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी पैर फैलाकर सुपाइन स्थिति में लेटा होना चाहिए । एंकल डार्सीफ्लेक्सड व मीडियली रोटेटेड रहना चाहिए । फिल्म में घुटने व एंकल दोनों जोड़ आने चाहिए ।
सेन्टरिंग:
टीबिया के एक्सिस और दोनों मैलियोलायी को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा से 90० के कोण पर ।
लेट्रल:
पोजीशनिंग:
रोगी जांच किये जाने वाली तरफ घूम जाता है । एकल को डार्सीफ्लेक्सन में सर्पोट करते हैं तथा लिश्व को तब तक सेट करते हैं जब तक दोनों मेलियोलायी सुपरिमपोज न कर जायें ।
सेन्टरिंग:
फिल्म के मध्य, टीबिया 90० के कोण पर व दोनों मैलियोलायों को जोड़ने वाली काल्पनिक रेखा से समानान्तर ।
घुटने का जोड़: एन्टीरोपोस्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाझ लेटा या सहारे के साथ बैठा होता है । जांच किया जाने वाला लिश्व फैलाकर रखता है । पैर को इस प्रकार घुमाते हैं जिससे पटेला दोनों फीमोरल कन्हाइलों के मध्य आ जाये ।
सेन्टरिंग:
पटेला के एपेक्स से 1 से॰मी॰ डिसटल ।
मीडियोलैट्रल:
पोजीशनिंग:
जांच की जाने वाली तरफ रोगी लेट जाता है, पुटना लगभग 30 डिग्री मुड़ा होता है । जांच किये जाने वाले पुटने को सैण्डबैगों के सहारे टीबिया का एक्सिस फिल्म के समानान्तर ले आते हैं । दोनों फीमोरल कन्डाइलों के वर्टिकलों सुपरिमपोज होने तक लिम्ब को घुमाते हैं ।
सेन्टरिंग:
मध्य किरण टीबिया की एक्सिस के 90 डिग्री पर मीडियल टीबियल कन्डाइल के ऊपरी बोर्डर पर ।
इन्टरकन्डाइलर स्पेस:
पोजीशनिंग:
रोगी घुटने को 130 डिग्री के कोण पर मोड़ कर लेटा या बैठा होता है । मुड़ा हुआ कैसेट घुटने के जोड़ के नीचे रखते हैं । पुटने के जोड़ को सैण्ड बैगों की सहायता से स्थिर रखते हैं ।
सेन्टरिंग:
टीबिया का ऊपरी बार्डर पर, 30 डिग्री के कोण पर सिर की तरफ ।
पटेला:
इन्फीरोसुपीरियर या स्काइलाइन विव:
पोजीशनिंग:
रोगी 135 डिग्री के कोण पर घुटने को मोड़ कर टेबल पर बैठता है जो सैंडबैग के सहारे रहता है । कैसेट को फिमोरल कन्डाइलों से छह इंच प्राक्समली पकड़े रखते हैं ।
सेन्टरिंग:
सिर की तरफ 10 डिग्री का ट्यूब एंगल के साथ पटेला की निचली सतह पर ।
फीमर का सैफट एण्टीरोपोस्टीरियर:
पोजीशनिंग:
जांच किया जाने वाला पैर सीधा कर रोगी सुपाइन लेटता है । लिम्ब को तब तक घुमाते हैं, जब तक पटेला बिल्कुल मध्य में न आ जाये ।
सेन्टरिंग:
दोनों फीमोरल कन्डाइलों के एण्टीरियर बार्डरों को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा से 90 डिग्री कोण पर ।
लैट्रल:
पोजीशनिंग:
रोगी कूल्हे व घुटने को थोड़ा मोड़कर जांच किये जाने वाली तरफ घूम जाता है । पेल्विस पीछे की तरफ घुमा देते हैं । फीमोरल कन्डाइलों के एण्टीरियर बार्डर को पलट कर उन्हें वर्टिकली सुपरिमपोज करवा देते हैं ।
सेन्टरिंग:
दोनों फीमोरल कनडाइलों को जोड़ने वाली काल्पनिक रेखा के समानान्तर ।
कूल्हे का जोड़:
एण्टीरोपोस्टीरियर (दोनो कूल्हे):
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाइन स्थिति में एड़ियों थोड़ा सा अलग तथा लिम्ब मीडियली घूमा रहता है जिससे पेर लांग एक्सिस उर्ध्वाधर से 5-10 डिग्री के कोण पर रहे । फिल्म को सिम्फाइसिस प्यूविस के ऊपरी बोर्डर से 1.5 से॰मी॰ ऊपर रखते हैं तथा इसमें दोनों ट्रोकेन्टर और ऊपरी एक-तिहाई फीमर भी आनी चाहिए ।
सेन्टरिंग:
मध्य में फीमोरल पल्स के लैवल पर, सिम्फाइसिस पयूविस से 2.5 से॰मी॰ ऊपर ।
एण्टीरोपोस्टीरियर (एक कूल्हा):
पोजीशनिंग:
फिल्म को ग्रोइन की फीमोरल पल्स के लेवल पर सेन्टर करते हैं तथा सामान्यतया इसे ऊपरी तिहाई फीमर इनक्लूड करना चाहिये ।
सेन्टरिंग:
जांच की जाने वाली तरफ की ग्रोइन में स्थित फीमोरल पल्स पर ।
लैट्रल (एक कूल्हा):
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाइन लेटता है फिर धड़ को 45 डिग्री पर जांच किये जाने वाली तरफ घुमा देते हैं । कूल्हा व घुटना (जांच वाली तरफ) को थोड़ा सा मोड़ देते हैं जिससे उनका लैट्रल एस्पेक्ट टेबल टाप से स्पर्श कर दूसरा लिम्ब थोड़ा सा उठाकर जांच किये जाने वाले लिम्ब के पीछे रख देते हैं ।
सेन्टरिंग:
जांच वाली तरफ की फीमोरल पल्स पर उर्ध्वाधर किरण-पुंज द्वारा ।
फीमर की नेक: लैट्रल:
पोजीशनिंग:
सुपाइन लेटकर जांच वाले लिम्ब को फैलाकर व मीडियली धुमाकर, जिससे फुट का लांग एक्सिस उर्ध्वाधर हो जाये । साथ ही यह देखें की दूसरा लिम्ब सुपरिमपोज न करें । अत: उसे उठाकर उसे उचित सहारे के साथ रखें ।
स्टेशनरी ग्रिड युक्त कैसेट को उर्ध्वाधर जांच की जाने वाली कमर के साथ इलायक क्रेस्ट के ठीक ऊपर रखें । कैसेट का लांगीट्यूडिनल एक्सिस फीमर के नेक के समानान्तर होना चाहिए । फीमर के नेक की दिशा पता करने के लिए एक काल्पनिक रेखा फीमोरल पल्स व ग्रेटर टोकेन्टर की प्रोमिनेन्स से 2.5 से॰मी॰ डिस्टल स्थित बिन्दु को मिला कर प्राप्त करते हैं ।
सेन्टरिंग:
हारिजोन्टल एक्स-रे किरण पुंज फिल्म के 90 डिग्री के कोण पर फीमोरल पल्स व ग्रेटर ट्रोकेन्टर की प्रोमीनेन्स को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा के मध्य बिन्दु पर ।
दोनों कूल्हे के जोड़: लैट्रल-फ्राग-पोजीशन:
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाइन स्थिति में कूल्हे एबडक्टेड व घूटने मुड़े हुये तथा लिम्ब 60 डिग्री बाहर की तरफ घुसे हुये । घुटने अलग रखने चाहिए तथा पैर का प्लान्टर एस्पेक्ट एक-दूसरे के स्पर्श में रहने चाहिए ।
सेन्टरिंग:
मध्य में फिमोरल पल्स के लेबल पर ।
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाइन स्थिति में घुटने मुड़े हुये, एड़ियाँ एक-दूसरे के अलग लिम्ब मीडियली घूमा हुआ जिससे फुट का लांग एक्सिस उर्ध्वाधर से 5-10 डिग्री के कोण पर हो ।
सेन्टरिंग:
मध्य में, एंटीरियर सुपीरियर इलायक स्पाइनों व सिम्फासिस प्यूविस का ऊपरी बोर्डर के मध्य, फिल्म में उर्ध्वाधर मध्य किरण पुंज ।
वानरोजेन विव:
पोजीशनिंग:
बच्चा सुपाइन स्थिति में प्रत्येक लेग 35 डिग्री अवडेक्सन में (जिससे 90 डिग्री का मुचुअल कोण बने) इन्टरनल रोटेशन में ।
सेन्टरिंग:
मध्य में फीमोरल पल्स के लेबल पर ।
लैट्रल:
1. इरेक्ट:
रोगी को स्थिर रखने के लिए पैर थोड़ा सा अलग होने चाहिए तथा मिडएक्जलरी रेखा फिल्म के केन्द्र में होनी चाहिए । आर्म सीधे पर मुड़ी होनी चाहिए तथा फिल्म के पास वाली आर्म बकी के ऊपर स्थित होनी चाहिए ।
2. कूल्हा (लैट्रल डेकुविटस):
रोगी करवट लेट जाता है । निचले लिम्ब सीधे व आर्म सीने के सामने मुड़ी होती है । मेरुदण्ड फिल्म के समानान्तर रहना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
ग्रेटर ट्रोकेन्टर के ठीक ऊपर स्थित गड्ढ़े में ।
पेल्विस-पोस्टीरियर ओब्लीक:
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाइन लेटने के बाद जांच वाली तरफ 30-40० घूम जाता है । कूल्हा व घुटने मुड़े होने चाहिए ।
सेन्टरिंग:
जांच वाली तरफ के एण्टीरियर सुपीरियर इलायक स्पाइनों के मध्य ।
सैक्रोइलायक जोड़: एण्टीरोपोस्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाइन स्थिति में एण्टीरियर सुपीरियर इलायक स्पाइन टेबल टाप से समान दूरी पर रहने चाहिए । पुटने मुड़े होने चाहिए ।
सेन्टरिंग:
मिड लाइन में एण्टीरियर सुपीरियर इलायक स्पाइनों व सिझाइसिस प्यूविस के ऊपरी बार्डर के मध्यलेवल पर ।
पोस्टीरियर ओब्लीक:
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाइन स्थिति में लेटकर 15-25 डिग्री जांच वाली तरफ के विपरीत घूम जाता है । एण्टीरियर सुपीरियर इलायक स्पाइन (जांच वाली तरफ) पोस्टीरियर सुपीरियर इलायक स्पाइन के ठीक लैदल रहना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
जांच वाली तरफ एण्टीरियर सुपीरियर इलायक स्पाइन के चार से॰मी॰ (1 ½) इंच मीडियल ।
सरवाइकल स्पाइन:
एण्टीरो-पोस्टीरियर:
पोजीशनिंग:
(1-3 सरवाइकल वर्टिब्रा) रोगी एक्स-रे टेबल पर सुपाइन लेट जाता है । ढोड़ी नीचे की तरफ र्स्टनम से छूती है, जिससे मैक्सिला, आक्सीपुट के निचले बोर्डर से सुपरिमपोज हो जाये । मुंह पूरी तरह खुला होना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
खुले हुये मुंह के मध्य में ।
एण्टीरो पोस्टीरियर (3 से 6 सरवाइकल वट्रिब्रा):
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाइन स्थिति में । ढोढ़ी उठी हुई जिससे मैंडीवुल आक्सीपुट से सुपरिमपोज हो जाये ।
सेन्टरिंग:
मध्य में मैण्डीवुन के एंगिल के लेबल पर ट्यूब सिर की तरफ 15 डिग्रीके कोण पर ।
लैट्रल:
पोजीशनिंग:
रोगी लैट्रल स्थिति में जांच वाले कन्धे के कैसेट से सट कर बैठता है । दूसरे कन्धे को जितना नीचा हो सके, करना चाहिए जिससे ओवरलैपिंग न हो । ठोढ़ी ऊपर सरवाकल वर्ट्रिब्रा के रास्ते में न आये । कैसेट का ऊपरी सिरा कान के पिन्ना के लेबल पर व निचला सिरा कन्धे के लेबल पर होना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
मैण्डीवुल के एंगिल के पीछे ।
एटलेन्टो-आक्सीपिटल जोड़:
उसी लैट्रल विव की स्थिति में 2.5 से.मी. एक्सटर्नल आडिटरी मीटस से नीचे ।
दायां व बांया पोस्टीरियर ओब्लीक-इरेक्ट:
पोजीशनिंग:
रोगी खड़े या बैठे स्थिति में सिर व कन्धे का पिछला भाग उर्ध्वाधर बकी को स्पर्श करता है । धड़ का मीडियन सेजाइटल प्लेन 45० दांये व बांये बारी-बारी से घुमा देते हैं । सिर को इस प्रकार घुमाते हैं जिससे इसका मीडियन सेजाइटल प्लेन फिल्म के समानान्तर हो जाये ।
सेन्टरिंग:
ट्यूब हारिजोन्टल से 15 डिग्री पर पास वाली थायरायड कार्टिलेज के लेबल पर ।
सरवाइकोथोरेसिक वर्टिब्रा:
लैट्रल:
पोजीशनिंग:
रोगी खड़े या बैठ कर कन्धे को वर्टिकल बकी से सटाकर रखता हैं । धड़ व सिर का मीडियन सेजाइटल प्लेन फिल्म के समानान्तर रहता है । फिल्म के पास वाली आर्म सिर के ऊपर मुड़ी होती है । तथा एक्स-रे ट्यूब के पास वाली आर्म जितना संभव हो नीचे करनी चाहिए । ऊपर थोरेसिक रीजन के डार्सल सतह से पांच से.मी. एंटीरियर स्थित बिन्दु बकी के मध्य से उभयनिष्ठ होना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
फिल्म से दूसरी ओर स्थित कन्धे के ठीक ऊपर ।
एंटीरोपोस्टीरियर:
सेन्टरिंग:
स्टर्नल नाच के ठीक ऊपर । थोरेसिक वर्टिब्रा एण्टीरोपोस्टीरियर पोजीशनिंग-रोगी सुपाइन या इरेक्ट स्थिति में रहता है । कैसेट का ऊपरी सिरा थाइरायड कार्टिलेज के उभार के लेबल से ठीक नीचे रहना चाहिए ।
सेन्टरिंग-स्टर्नल एंगिल से से.मी. नीचे स्थित बिन्दु से ।
लैट्रल:
पोजीशनिंग:
मीडियल सेजाइटल प्लेन फिल्म के समानान्तर होना चाहिए तथा एक्सिला की मिडलाइन टेबल या बकी से कोनिसाइड करनी चाहिए । आर्म मोड़कर सिर पर रखनी चाहिए । मेरुदण्ड फिल्म के समानान्तर होना चाहिए । कैसेट का ऊपरी सिरा सातवीं सरवाइकल वर्टिब्रा से 3-4 से.मी. नीचे ।
सेन्टरिंग:
पांचवी सरवाइकल वर्टिब्रा के स्पाइनस प्रोसेस के लेविल पर मिड एक्सिलरी लाइन की तरफ या स्पाइनल एंगिल से 25 से.मी. नीचे ।
दांया या बांया पोस्टीरियर ओझीक:
पोजीशनिंग:
सुपाइन स्थिति से रोगी को 45 अंश बारी-बारी दोनों तरफ घुमाते हैं ।
सेन्टरिंग:
उठी हुई तरफ से मिड विकुलर रेखा में स्टर्नल एंगिल से दो इंच नीचे ।
लम्बर वटिव्रा: एण्टीरोपोस्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाइन स्थिति में कूल्हे व घुटने मुड़े हुये, पैरों के प्लेन्टर एसपेक्ट टेबल टाप पर रखे होने चाहिए जिससे लम्बर आर्च कम लै जाये । यदि रोगी कूल्हे व घुटने पर्याप्त मोड़ने में असमर्थ हो तो कच्चे व सिर को तकिया द्वारा ऊंचा कर देना चाहिए । फिल्म में निचली थोरेसिक वटिबा व सैक्रोइलायक जोड़ भी आने चाहिए ।
सेन्टरिंग:
निचली कास्टल मार्जिन पर मध्य रेखा की ओर ।
लैट्रल:
पोजीशनिंग:
रोगी बकी टेबल की किसी तरफ बैठ जाता है । आर्म उठी होती हैं, तथा सिर के ऊपर रखनी चाहिए । मेरुदण्ड फिल्म के समानान्तर होना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
निचली कास्टल मार्जिन के लेबल पर तीसरी लम्बर स्पाइनस प्रोसेस से 75 से॰मी॰ एण्टीरियर ।
पोस्टीरियर ओबलीक:
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाइन स्थिति में 45 डिग्री बारी-बारी से दोनों तरफ घूमता है । कूल्हे व घुटने थोडा मुड़े होने चाहिए ।
सेन्टरिंग:
निचली कास्टल मार्जिन के लेबल पर उठी हुई तरफ की मध्य क्लेविकुलर रेखा की तरफ ।
सेक्रम:
लेट्रल:
पोजीशनिंग:
रोगी घुटने मोड़कर करवट लेट जाता है । कैसेट में सैक्रम कासिक्स आने चाहिए तथा इसका ऊपरी भाग एण्टीरियर सुपीरियर इलायक स्पाइन के लेबल पर होना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
पोस्टीरियर इलायक स्पाइन के लेबल पर पांच से.मी. एण्टीरियर बिन्दु पर ।
कासिक्स: एण्टीरोपोस्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी टेबल पर पुटने मोड़कर सुपाइन स्थिति में । उचित आकार का कैसेट ।
सेन्टरिंग:
मध्य रेखा पर पांच से.मी. एण्टीरियर इलायक स्पाइन के नीचे ट्यूब 15 डिग्री पैरों की ओर एंगिल्ड ।
लैट्रल:
रोगी घुटने मोड़कर करवट लेट जाता है ।
सेन्टरिंग:
कासिक्स पर ।
थोरेक्स की हड्डीयां:
निचली पसलियां एण्टीरोपोस्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाइन कैसेट चौड़ाई में निचला सिरा कास्टल मार्जिन से ठीक नीचे स्टर्नम की बाडी से दांयी और बांयी तरफ की पसलियां निचले कास्टल मार्जिन तक आनी चाहिए ।
सेन्टरिंग:
मध्य रेखा में निचली कास्टल मार्जिन पर फिर क्रेनियल एगुलेशन फिल्म के सेन्टर से कोइनसाइड कराने हेतु ।
र्स्टनम:
एण्टीरियर ओब्लीक: धड़ रोटेटिड:
पोजीशनिंग:
रोगी बकी की तरफ मुंह कर के खड़ा या बैठा होता है । फिर रोगी को लगभग 20-30 डिग्री किसी तरफ घुमा देते हैं जिससे स्टर्नम थोरेसिक वर्टिब्रा से सुपरिमपोज न हो ।
सेन्टरिंग:
फिल्म के उर्ध्वाधर एक्स-रे किरणपुंज एक्स रे ट्यूब से पास की साइड की र्स्टनल नाच से दो इंच नीचे या पांचवी थोरेसिक वर्टिया से 7.5 से.मी. लैदल बिन्दु पर ।
लैट्रल:
पोजीशनिंग:
रोगी दोनों कन्धों को वर्टिकल बकी से सटाकर खड़ा होता है । रोगी दोनों हाथों को पीठ के पीछे पकड़ता है तथा कन्धे पीछे की ओर खिचे रहते हैं । पैरों को स्थायित्व प्रदान करने के लिए थोड़ा अलग रखते हैं । 60 इंच फोकस फिल्म दूरी का प्रयोग किया जाता है ।
सेन्टरिंग:
हारिजोन्टल एक्स-रे किरण स्टर्नल एंगिल से 2.5 से.मी. नीचे ।
शरीर रचना नामकरण (एनाटामिकल टर्मिनोलॉजी):
रेखायें:
इन्टर आर्विटल (इन्टर प्यूपिलरी) रेखा:
दो आर्विटों के केन्द्र को जोड़ती है या दो प्यूपिलों के मध्य बिन्दुओं को जोड़ती है, जब आखें सामने देख रही हों ।
एन्थोपोलाजिकल बेस रेखा (एनाटामिकल बेस रेखा या रीडवेसलाइन या फ्रैंकफर्ट रेखा):
इंफीरियर आर्विटल मार्जिन के सबसे नीचे के बिन्दु से इक्सर्टनल आडिटरी मीटस के ऊपरी बार्डर को जोड़ने वाली रेखा ।
आरीकुलर रेखा:
कोरोनल प्लेन में एन्थ्रोपोलाजिकल बेस लाइन के उर्ध्वाधर जो इक्सर्टनल आडिटरी मीटस से जाती हो ।
आर्बिटोमीटल बेस रेखा (रेडियोग्राफिक बेस लाइन):
आंख के बाहरी कैन्थस से इर्क्सटर्नल आडिटरी मीटस को जोड़ने वाली रेखा । ऐन्थ्रोपोलॉजिकल बेस रेखा से 10 अंश पर स्थित रेखा ।
प्लेन:
आर्बिटो-मीटस प्लेन:
इस प्लेन में दो आर्विटोमीटस बेस लाइनें आती हैं । तथा यह एन्थ्रोपोलाजिकल बेस रेखा से 10 डिग्री पर स्थित होता है ।
एंथ्रोपोलाजिकल प्लेन:
यह एक हारिजान्टल प्लेन है जिसमें दोनों एन्थ्रोपोलाजिकल बेस रेखायें एवं इन्फ्राआर्विटल रेखा स्थित होती है ।
आरिकुलर प्लेन:
एन्थ्रोपोलाजिकल प्लेन के उर्ध्वाधर व इक्सटर्नल आडिटरी मीदस के सेन्टर से जाने वाला प्लेन ।
मीडियन सेजाइटल:
यह एक हारिजोन्टल प्लेन है जिसमें दोनों एन्सोपोलॉजिकल और कोरेनल प्लेन एक दूसरे से 90 डिग्रीके कोण पर स्थित होते हैं ।
नेजियान:
फ्रन्टोनेजल आर्टिकुलेशन-ग्लेवला के ऊपर स्थित बोनी उभार ।
इक्सटर्नल आक्सिपिटल प्रोमिनेन्स:
आक्सिपिटल हड्डी के निचले सिरे पर स्थित उभार । सामान्यतया बकी टेबल या इरेक्ट बकी का प्रयोग किया जाता है । मध्य किरण ग्रिड प्लेटके “एक्रास” एंगल नहीं बनाई जा सकती है । अत: रोगी के सिर को घुमाना आवश्यक है ।
प्रोजेक्सन नामकरण:
स्कल या कपाल के प्रोजेक्शन किसी प्लेन के सन्दर्भ में निरूपित किये जाते हैं । जैसे मीडियल सेजाइटल प्लेन, कोरोनल प्लेन, आरिकुलर प्लेन और एन्थ्रोपोलाजिकल आर्विटोमीटल प्लेन । जांच के पूर्व सभी ओपेसिटी (जैसे गहने) सिर व गर्दन से निकाल देने चाहिए ।
मीडियन सेजाइटल प्लेन को फिल्म से 90 डिग्री पर लाने के लिए दोनों इक्सर्टनल आडिटरी मीटस फिल्म से समान दूरी पर होने चाहिए । मीडियन सेजाइटल प्लेन में फिल्म के समानान्तर लाने के लिए इन्टरआर्विटल लाइन फिल्म के 90 डिग्री के कोण पर होनी चाहिए ।
कपाल (क्रेनियम):
लैट्रल:
पोजीशनिंग:
रोगी टेबल पर सेमीप्रोन स्थिति में लेट जाता है तथा जांच की तरफ वाला कपाल टेबल के स्पर्श में रहता है । सिर को इस प्रकार व्यवस्थित करते कं जिससे मीडियन सेजाइटल प्लेन टेबल के समानान्तर रहें, इन्टर आर्विटल रेखा टेबल से सीधे एंगल पर व नेजियान व इनिआन टेबल से समान दूरी पर हों ।
सेन्टर्रिग:
ग्लेवेला और इक्सर्टनल आक्सीपिटल उभार के मध्य ।
लैट्रल (सुपाइन):
पोजीशनिंग:
इसे स्कल टेबल का प्रयोग कर एक्स-रे किरण पुंज को हारिजोंटल रख लेते हैं । यहां तक सामान्य एक्स-रे टेबल ग्रीड के साथ क्रास टेबल लैट्रल बिव के रूप में कर सकते हैं । इस स्थिति में हैड इंजरी में एक्स-रे आवश्यक होता है । ग्रिडयुक्त कैसेट लम्बाई में सिर के लैट्रल एस्पेक्ट में मीडियन सेजाइटल प्लेन के समानान्तर सपोर्ट करते हैं तथा इसका सिरा वर्टेक्स से पांच से.मी. ऊपर होना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
इंटर आर्विटल रेखा के समानान्तर, ग्लेवेला व इक्सटर्नल आर्टिवल उभार पर ।
आक्सिपिटो फ्रन्टल:
पोजीशनिंग (10.9) प्रोन लेटे हुये रोगी को टेबल के मध्य सेन्टर हैं जिससे नाक व चेहरा टेबल के स्पर्श में रहे । गर्दन मोड़कर आर्बिटोमीटल रेखा को टेबल के 90 डिग्री पर ले आते है तथा सिर को उस उकार व्यवस्थित करते हैं, जिससे इक्सर्टनल आडिटरी मीटस फिल्म से समान दूरी पर रहे ।
सेन्टरिंग:
ट्यूब पांच डिग्री पैरों के ओर एंगिल ग्लेवेला पर पीट्रस बोन को आर्बिट में दिखाने या 20 डिग्री पैरों की ओर ट्यूब एंगल पीट्रस बोन को अर्बिट के नीचे दिखाने के लिए ।
फ्रन्टो-आक्सिपिटल 30० काडल: (टाउन्स):
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाइन स्थिति में ठोढ़ी का नीचे कर लेटा होता है, जिससे आर्विटोमीटल रेखा टेबल से 90 डिग्री के कोण पर आ जाये ।
सेन्टरिंग:
मध्य किरण आर्विटोमीटल प्लेन से 30 अंश का कोण बनाती हुई, इक्सटर्नल आडिटरी मीटसो के मध्य से गुजरती हुई ।
सबमेन्टो वर्टिकल (बेस आफ स्कल):
पोजीशनिंग:
टेबल पर रोगी सुपाइन स्थिति में कन्धे तकिया की सहायता से उठा दिये जाते हैं । गर्दन हाइपर एक्सटेन्ड कर दी जाती है जिससे वर्टेक्स टेबल से छू ले व बेस लाईन टेबल के समानान्तर हो जाये । इक्सटर्नल आडिटिरी मीटस फिल्म से समान दूरी पर होने चाहिए । अर्बिटोमीटस प्लेन यथा संभव फिल्म के पास रहना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
दो जबडों के एंगल के मध्य एक्स किरण बेस लाइन से 95० पर या 50 डिग्री चेहरे के तरफ ।
सेलाटर्सिका:
पोजीशनिंग:
क्रेनियम लैट्रल के समान ।
सेन्टरिंग:
इक्सर्टनल आडिटरी मीटस के 25 से.मी. ऊपर व 25 से.मी. सामने ।
आप्टिक फोरामिना:
पोजीशनिंग:
रोगी प्रोन स्थिति में जांच वाली तरफ की गाल व ठोढी टेबल के स्पर्श में । आर्विट को बकी की मध्य रेखा पर सेन्टर करते हैं । यह सिर को 35 डिग्री घुमाकर आर्बिटोमीटल रेखा को हारिजोंटल से 35 डिग्री कोण पर लाकर भी किया जा सकता है ।
सेन्टरिंग:
जांच के विपरीत वाले इक्सर्टनल आडिटरी मीटसके 7.5 से.मी. के ऊपर व पीछे जिससे मध्य किरण टेबल के स्पर्श वाली आर्बिट से निकलें ।
मेस्टोयड:
लैट्रल 25 डिग्री काडल:
पोजीशनिंग:
रोगी प्रोन लेट जाता है या वर्टिकल बकी की ओर मुंह कर खड़ा होता है । फिर सिर को एक तरफ घुमा देते हैं । कान का पिन्ना आगे की ओर मोड़ देते हैं । सिर इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है जिससे मीडियन सेजाइटल प्लेन टेबल के समानान्तर और ऐन्सोपोलाजिकत्र बेस इसके ट्रान्सवर्स होता है । इक्सर्टनल आडिटरी मीटस टेबल के मध्य वर्टिकली सुपरिमपोज करने चाहिए ।
सेन्टरिंग:
एन्थ्रोपोलाजिकल प्लेन से 25 डिग्री काडली । फिल्म रु विपरीत इर्क्सटनल आडिटरी मीटस के पांच से.मी. ऊपर आरिकुलर रेखा के साथ ।
पीट्रस हड्डी:
आक्सिपिटोफ्रन्टल 10 डिग्री (पर आविटल विव):
पोजीशनिंग:
रोगी प्रोन या बैठा होता है, चेहरा तथा नाक टेबल के स्पर्श में रहती है । गर्दन मोड़कर व ठोढ़ी नीचे करके आर्बिटोमीटल रेखा को टेबल के 90 डिग्री के कोण पर ले आते हैं ।
सेन्टरिंग:
इक्सटर्नल आडिटरी मीटस के लेबल पर मध्य में से, जिससे वह आर्विटोमीटल रेखा से गुजरे ।
एन्टीरियर ओब्लीक (स्टेनवर्स बिव):
पोजीशनिंग प्रोन स्थिति से रोगी को इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं जिससे जांच वाली तरफ की सुप्राआर्बिटल मार्जिन टेबल के सेन्टर में रहे । नाक व माथा टेबल के स्पर्श में और आर्बिटोमीटल रेखा फिल्म से उर्ध्वाधर हो ।
गर्दन को सीधा करके आर्बिटोमीटल रेखा को उर्ध्वाधर से पांच डिग्री के कोण पर तथा सिरे को जांच वाली तरफ 45० डिग्रीके कोण पर घुमा देते हैं ।
सेन्टरिंग:
फिल्म के विपरीत आक्सीपिटल प्रोदूबरेन्स व इक्सटर्नल आडिटरी मीटस के मध्य में मध्य किरण 12 डिग्री सिर की तरफ एंगिल पर अर्थात 12 डिग्री अर्बिटोमीटल प्लेन से ।
पैरानेजल साइनसेज:
पोस्टीरो-एण्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी टेबल से नाक व ठोढ़ी को सटाकर लेट जाता है । फिर आर्विटोमीटल को होरिजोंटल से 45 डिग्री पर तथा बकी को सेन्टर लोअर आर्बिटल मार्जिन पर रहना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
मध्य में इक्सर्टनल आक्सीपिटल प्रोटूवरेन्स पर जिससे यह आर्बिट के निचले बोर्डर से निकले ।
लैट्रल बिव:
पोजीशनिंग:
रोगी सिर को दूसरी आर्म से दबाकर रखते हुये वर्टिकल बकी से सटाकर बैठता है । मीडियन सेजाइटल प्लेन को फिल्म से समानान्तर ले आते हैं तथा इन्टर आर्विटल लाइन को बकी से 90 डिग्री के कोण पर रखते हैं ।
सेन्टरिंग:
आंख के बाहरी कैंथस से 2.5 सेमी पीछे आर्बिटोमीटल रेखा के साथ ।
आक्सिपिटोफ्रन्टल 15० काडल:
पोजीशनिंग:
रोगी नोज चिन (नाक-ठोढ़ी) स्थिति में बकी वर्टिकल से 15 डिग्री टिल्ट कर देते हैं । सिर को इस प्रकार व्यवस्थित कर देते हैं । जिससे आर्बिटोमीटल रेखा हारिझोंटल प्लेन से 12 डिग्री का कोण बनायें ।
सेन्टरिंग:
आक्सीपिटल रीजन के मध्य में जिससे नेजियान से निकल सके ।
चेहरे की हड्डियां:
आक्सीपिटोमेन्टल:
रोगी उर्ध्वाधर बकी टेबल की तरफ मुंह कर खड़ा होता है । फिर सिर को व्यवस्थित कर आर्बिटोमीटल रेखा को हारिजोंटल से 45 डिग्री कोण पर जो एक्स-रे किरण पुंज की भी दिशा होती है, पर लाते हैं । बकी का सेन्टर निचली आर्बिटल मार्जिन पर रखते हैं ।
सेन्टरिंग:
मध्य में निचली आर्बिटल मार्जिन के लेबल मध्य एक्स-रे किरण 30 डिग्री पैर की तरफ ।
लैट्रल:
पोजीशनिंग:
रोगी उर्ध्वाधर बकी के साथ सिर सटाकर बैठ जाता है । मीडियन सेजाइटल प्लेन फिल्म के समानान्तर व इन्टर आर्बिटल रेखा इससे 90 डिग्री के कोण पर रहती है । सेन्टरिंग-होरिजोन्टल मध्य किरण आंख के बाहरी कैन्थस से 2.5 से.मी. नीचे की तरफ ।
आर्बिट:
परिवर्तित आक्सीपिटोमेन्टल
पोजीशनिंग:
रोगी बकी टेबल से नोज चिन स्थिति में रहता है । सिर को इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं जिससे आर्बिटोमीटल रेखा होरिजोन्टल से 35 डिग्री के कोण पर आ जाये जो एक्स-रे किरण की भी दिशा होती है ।
सेन्टरिंग:
निचली आर्बिटल मार्जिन के लेबल पर मध्य में ।
नेजल बोन (नाक की हड्डी) लैट्रल:
पोजीशनिंग:
रोगी की कनपटी कैसेट के साथ स्पर्श करती है । मीडियन सेजाइटल रेखा इससे समानान्तर व इन्टर आर्विटल रेखा इसके उर्ध्वाधर हो । या तो उच्च रिजोल्यूशन फिल्म/स्क्रीन तन्त्र या बिना स्क्रीन की फिल्म बकी टाप पर रखते हैं । फिल्म को नेजल बोन पर सेन्टर करते हैं ।
सेन्टरिंग:
नेजल बोन के सेन्टर से कोलीमेटेड एक्स-रे बीम फिल्म के उर्ध्वाधर ।
सुपीरोइन्फीरियर ओक्लूजल:
पोजीशनिंग:
रोगी कजल फिल्म का एक-तिहाई भाग मुंह में तथा दो-तिहाई मुंह के बाहर रख सुपाइन फिल्म का लांग एक्सिस सिर के मीडियन सेजाइटल प्लेन के साथ होना चाहिए । फिल्म का ट्यूब की तरफ वाला सिरा सिर की तरफ होना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
ग्लेवेला व ऊपर मध्य इन्साइजरों को मिलाने वाली रेखा, के मध्य थे ।
निचला जबड़ा (मैण्डीबुल):
पोजीशनिंग:
रोगी बैठता या प्रोन बकी टेबल को नाक व फोरहेड से स्पर्श करते हुआ लेटता है ! गर्दन को मोड़कर आर्बिटोमीटल रेखा को टेबल से 90 डिग्री के कोण पर लाता है ।
सेन्टरिंग:
मैण्डीवुल के एंगिल के लेबल पर मध्य में फिल्म के उर्ध्वाधर ।
एण्टीरियर ओब्लीक:
पोजीशनिंग:
रोगी बकी टेबल की तरफ मुंह करके खड़ा होता है तथा मीडियन सेजाइटल प्लेन और आर्बिटोमीटल रेखा फिल्म से 90 डिग्री के कोण पर होती है । फिर रोगी के सिर को 20 डिग्री किसी तरफ घुमाते हैं ।
सेन्टरिंग:
मध्य रेखा से जांच की विपरीत दिशा में पांच से.मी. लैट्रल मैण्डीबुल के एंगिल के लेबल पर ।
टेम्प्रोमैण्डीबुलर जोड़:
यदि रोगी डेन्चर का प्रयोग करता हो तो उसे जांच के समय नहीं निकाला जाना चाहिए ।
लैट्रल ओब्लीक 25 डिग्री काडल:
पोजीशनिंग:
रोगी प्रोन स्थिति में लेटा हुआ या बकी के साथ बैठ रहता है । सिर को घुमाकर मीडियन सेजाइटल प्लेन बकी के समानान्तर औ इन्टर आर्बिटल रेखा इसके 90 डिग्री लाते हैं ।
सेन्टरिंग:
25 डिग्री काडल बीम एंगुलेशन फिल्म से विपरीत जोड़ से पांच से.मी. ऊपर ।
एक्सपोजर निम्न स्थितियों में:
1. दांत भींच कर ।
2. पूरा मुंह खोल कर ।
3. मुंह बन्द कर, दांत भींच कर नहीं ।
सीना (चेस्ट):
सावधानी रखें कि कपड़ों या गाउन के नीचे कोई रेडियो ओपेक वस्तु न हो बालों को (चुटिया को पिन से बांध कर रखें) ।
पोस्टीरो-एण्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी ठोढ़ी सीधी कर व कैसेट के ऊपर मध्य में रखे बिना किसी रोटेशन के कैसेट की तरफ मुंह करके खड़ा होता है । कैसेट का ऊपरी बार्डर कन्धों के दो इंच ऊपर स्थित होना चाहिए जिससे फेफड़ों के एपेक्स भी फिल्म में आ सकें ।
रोगी को स्थिर रखने के लिए दोनों पैरों को थोड़ा अलग रखें । कन्धे आगे की तरफ तथा नीचे की और दबे होने चाहिए तथा कैसेट से स्पर्श करते रहने चाहिए । यह हाथों के डार्सल एस्पेक्ट को कूल्हे के पीछे व नीचे रख, कुहनियों को आगे लाकर तथा आर्म को कैसेट के एनसर्कल करवाकर किया जा सकता है ।
सेन्टरिंग:
होरिजोंटल बीम को पहले चौथी थोरेसिक वर्टिब्रा के लेबल पर सेन्टर कर इसे पांच डिग्री का काडल एन्दुलेशन दे देते हैं जिससे मध्य किरण फिल्म से गुजरे । थोरेसिक मैग्नीफिकेशन कम करने के लिए लम्बी फोकस दूरी 150 से.मी. या 180 से.मी. का प्रयोग करना चाहिए ।
एण्टीरोपोस्टीरियर:
पोजीशनिंग:
रोगी अपनी पीठ कैसेट से सटाकर खड़ा हो जाता है । कन्धे नीचे तथा आगे की ओर ले आता है । हाथों का पिछला भाग कूल्हों के नीचे और कुहनियां आगे की तरफ रहती हैं । आर्म को लैट्रली घुमाकर हथेलियों को सामने करना ज्यादा उपयुक्त रहता है ।
सेन्टरिंग:
होरिजोंटल बीम के पहले स्टर्नल नाच पर सेन्टर करवाकर इसे एंगुलेट करते हैं, जब तक फिल्म पर कोईन्सीडेन्ट न हो जाये । यह फिल्म हृदय के आकार की माप के लिए उपयुक्त नहीं होती है, क्योंकि अधिक आब्जेक्ट फिल्म दूरी से इसमें मैग्नीफिकेशन होने की संभावना होती है ।
लैट्रल:
पोजीशनिंग:
पोस्टीरोएण्टीरियर प्रोजेक्शन से रोगी को 90 डिग्री धुमाकर जांच वाली कैसेट के स्पर्श में लाते हैं । हाथ, सिर के ऊपर मुड़े रहते हैं तथा शरीर का मीडियन सेजाइटल प्तेन कैसेट के सामानान्तर रहता है । कैसेट फेफड़े के एपेक्स तथा निचला लोब पहली लम्बर वर्टिब्रा तक आना चाहिए । सेन्टरिंग-फिल्म से 90 डिग्री के कोण पर पोस्टीरोएण्टीरियर बिव के ही लेबल पर मध्य एक्सिलरी रेखा में ।
एपाइकोग्राम:
फेफड़ों के एपेक्स पोस्टीरोएण्टीरियर या एंटीरोपोस्टीरियर प्रोजक्शन को थोड़ा परिवर्तित कर देखे जा सकते हैं जिसकी निम्न विधियां हैं:
1. रोगी पोस्टीरोएण्टीरियर प्रोजेक्शन में मध्य एक्स-रे किरण 30० काडली स्पाइनस प्रासेसों पर सेन्टर्ड ।
2. रोगी एण्टीरोपोस्टीरियर प्रोजेक्शन में मध्य एक्स-रे किरण 30० क्रेनियली स्टर्नल एंगल पर सेन्टर्ड ।
3. रोगी पीछे की तरफ 30 डिग्री झुके हुये तथा गर्दन का पिछला भाग कैसेट के ऊपरी भाग से स्पर्श करता हुआ सीधी एक्स-रे किरण पुंज र्स्टनल नाच पर ।
लार्डोटिक बिव:
पोजीशनिंग:
रोगी पोस्टीरोएण्टीरियर प्रोजेक्शन की तरह कैसेट की तरफ मुंह कर खड़ा होता है । फिर वह कैसेट को दोनों हाथों से पकड़कर पीछे की ओर झुक जाता है । यह डार्सीफ्लेक्शन लगभग 30-40 अंश का होता है ।
सेन्टरिंग:
होरिजोंटल बीम फिल्म के मध्य ।
लैट्रल डिकुबिटस:
पोजीशनिंग:
रोगी (क) प्यूरल कैवेटी में द्रव दिखाने के लिए प्रभावित तरफ के करवट कर लेटता है या (ख) प्यूरत स्पेस में हवा दिखाने हेतु प्रभावित तरफ से विपरीत करवट में लेट जाता है । कैसेट रोगी के पीछे उर्ध्वाधर रखा जाता है ।
सेन्टरिंग:
होरिजन्टल बीम, कैसेट के मध्य ।
हृदय व महाधमनी:
दांया एण्टीरियर ओब्लीक:
पोजीशनिंग:
पोस्टीरोएण्टीरियर पोजीशन से रोगी को घुमाकर रोगी के थोरेक्स का दांया हिस्सा कैसेट के स्पर्श में लाते हैं । रोगी के धड़ को इतना घुमाना चाहिए जिससे कोरोनल प्लेन फिल्म से 65 डिग्री के कोण पर हो ।
सेन्टरिंग:
छठी थोरेसिक वर्टिब्रा पर 150 से.मी. फोकस फिल्म दूरी के साथ ।
बांया एण्टीरियर ओब्लीक:
पोजीशनिंग:
पोस्टीरोएण्टीरियर प्रोजेक्शन की स्थिति से रोगी को घुमाते हैं । रोगी के थोरेक्स का बांया भाग कैसेट के स्पर्श में तथा धड़ को घुमाकर कोरोनल प्लेन को फिल्म से 75 डिग्री के कोण पर ले आते हैं ।
सेन्टरिंग:
छठी थोरेसिक वर्टिब्रा पर ।
उदर (एबडोमेन):
एण्टीरोपोस्टीरियर (सुपाइन):
पोजीशनिंग:
रोगी सुपाइन स्थिति में एण्टीरियरसुपीरियर इलायक स्पाइन टेबल से समान दूरी पर रहने चाहिए । कैसेट इस प्रकार रखा जाता है जिससे प्यूविक सिम्फाइसिस ओब्लीक एक्स-रे द्वारा कैसेट से बाहर प्रोजेक्शन हो ।
सेन्टरिंग:
उर्ध्वाधर किरण द्वारा फिल्म के मध्य में एक्सपोजर सांस रूकवाकर ।
इरेक्ट:
पोजीशनिंग:
रोगी बकी की तरफ पीठ करके खड़ा होता है । एक्सपोजर के लिए उच्च एम. ए. तथा छोटे एक्सपोजर समय का प्रयोग करना चाहिए सुपाइन की अपेक्षा 7-10 किलोवाट बढ़ा देना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
अम्बलाइकस के ऊपर मध्य में । एक्सपोजर पोजीशन करने के थोड़े समय बाद करना चाहिए, इऐ परफोरेशन की स्थिति में स्वतंत्र गैस डायाफ्राम के डोमों के नीचे इक्टठी सके ।
यूरिनरी ट्रैक्ट:
लैट्रल:
रोगी को जांच वाली करवट कूल्हे व घूटने मुड़वाकर लिटा देना चाहिए । मीडियल सेजाइटल प्लेन फिल्म के समानान्तर तथा मेरुदण्ड टैस्थ्य के मध्य में रहना चाहिए । कैसेट पहली-दूसरी लम्बर वर्टिक्र के लेबल पर लगभग पांच से.मी. निचली कास्टल मार्जिन से ऊपर रहना चहिए ।
सेन्टरिंग:
फिल्म के मध्य में ।
मूत्राशय:
पोस्टीरियर ओब्लीक ।
पोजीशनिंग:
रोगी को 35 डिग्री घुमाते हैं । उठी हुई तरफ के एण्टीरियर सुपीरियर इलायक स्पाइन व प्यूविक सिझाइसिस का मध्य बिन्दु टेबल की मध्य रेखा पर होना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
प्यूविक सिम्फाइसिस से 2.5 से.मी. ऊपर ।
एक्स-रे एबडोमेन एण्टीरोपास्टीरियार (के.यू.बी.):
पोजीशनिंग:
रोगी हाथों को सीने पर रखे हुये सुपाइन स्थिति में व घुटने के नीचे लकड़ी के ब्लॉक स्थित रहते हैं । कैसेट में प्यूविक का निचला भाग आना चाहिए । कैसेट का सेन्टर मध्य एक्सिलरी रेखा में निचली कास्टल मार्जिन पर तंथा कैसेट का ऊपरी सिरा गीफीर्स्टनम के लेबल पर होना चाहिए ।
सेन्टरिंग:
मध्य रेखा में, कैसेट के मध्य ।
बांया एण्टीरियर ओब्लीक प्रोन:
पोजीशनिंग:
रोगी प्रोन लेट जाता है । दांयी तरफ को धुमाकर धड़ के कोरोनल प्लेन को फिल्म के 20 डिग्री पर ले आते हैं । दांया हाथ रोगी के सिर पर तथा बांयी भुजा (आर्म) धड़ के साथ रहती है ।
दायां पोस्टीरियर ओब्लीक:
पोजीशनिंग:
रोगीसुपाइन स्थिति में लेटता है फिर बायें भाग को उठाते हुये रोगी को इतना घुमाते हैं जिससे मीडियन सेजाइटल प्लेन टेबल से 20 डिग्री पर आ जाये । दोनों कन्धे व कोहनियां मुड़ी होती हैं, व दोनों हाथ रोगी के सिर पर स्थित रहते हैं ।
सेन्टरिंग:
दायी एबडोमिनल वाल एवं मध्य रेखा के मध्य स्थित बिन्दु पर कैसेट के सेन्टर में निचली कास्टल मार्जिन से 2.5 से.मी. ऊपर ।