Read this article in Hindi to learn about image contrast and its types.
यह एक्सपोज तथा बिल्कुल साथ के अनएक्सपोज भागों की फोटोग्राफिक डेन्सिटी में फर्क के रूप में निरूपित किया जाता है अत:
सी = डी2 – डी1
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सी = कान्ट्रास्ट
डी2 व डी1 = दो बिन्दुओं पर डेन्सिटी
अच्छी स्थितियों में कम से कम कान्ट्रास्ट जो पहचाना जा सके 0.02 है ।
प्रकार:
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i. सब्जेक्ट कान्ट्रास्ट:
रोगी के शरीर के भिन्न भागों से निकलने वाली विकिरण इन्टेन्सिटी का फर्क ।
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ii. रेडियोग्राफिक कान्ट्रास्ट:
प्रोसेस की गयी फिल्म के भिन्न भागों में रिकार्ड की गई डेन्सीटी में फर्क ।
iii. सब्जेक्टिब कान्ट्रास्ट:
देखि जा रही इमेंज में भिन्न व्यक्तियों के पर्सनल एप्रीसियेशन में फर्क ।
सब्जेक्ट कान्ट्रास्ट:
1. रोगी के जांच किये जाने वाले भाग की मोटाई में फर्क:
डेन्सिटी में फर्क । टिश्यू की डेन्सिटी (मास पर यूनिट वैल्यू) अधिक होने पर उसकी एक्स रे को अटेनुयेट करने की क्षमता भी अधिक होती है । यह परमाणु संख्या में अन्तर के कारण हो सकता है । सब्जेक्ट कान्ट्रास्ट एक्स रे किरण पुंज के शरीर के भिन्न टिश्यू द्वारा रिलेटिव अटेनुयेशन पर निर्भर करता है जो डायग्नोस्टिक रेडियोलॉजी में मुख्य रूप से फोटो इलेक्ट्रिक एबजार्पशन पर निर्भर है ।
फोटो इलेक्ट्रिक एवजार्पशन ऊंचे परमाणु संख्या वाले पदार्थो का अधिक होता है । कम किलोवोल्टेज का प्रयोग (३० से कम) फोटो इलेक्ट्रिक एबजार्पशन द्वारा पेशी व वसा के बीच अधिकतम फर्क के लिए आवश्यक होता है जो हड्डी की अपेक्षा कम परमाणु संख्या वाले होते हैं, जैसे मैमोग्राफी में ।
2. किलोबोल्टेज:
कम किलोवाल्टेज पर अच्छा आबजेक्ट कान्दास्ट होता है । इसे सबजेक्ट कान्दास्ट कहा जाता है । उच्च किलोवोल्टेज खराब सब्जेक्ट कान्ट्रास्ट प्रदान करता है जिसे लोग स्केल कान्ट्रास्ट कहते हैं क्योंकि वहां ग्रेस्केल में बहुत सारे शेड होते हैं । विकिरण का प्रकार फिल्ट्रेशन व हाईटेशन सप्लाई पर भी निर्भर है ।
3. कान्ट्रास्ट माध्यम:
दोनों पाजीटिव (उच्च डेन्सिटी) तथा नेगेटिव (कम डेन्सिटी) कान्ट्रास्ट माध्यम सब्जेक्ट कान्ट्रास्ट बढ़ाते हैं ।
4. रेडियोग्राफी वाले भाग की पैथोलॉजी:
पैथोलॉजी भी डेन्सिटी में परिर्वतन कर सकती है । जैसे आस्टियोपोरोसिस में हड्डी की डेन्सिटी घट जाती है ।
5. स्कैटर्ड विकिरण:
यह सब्जेक्ट कान्ट्रास्ट घटाता है । इसे किरणपुंज को कोलीमेट कर या दाब विधि का प्रयोग कर कम किया जा सकता है । शरीर के किसी भाग का सब्जेक्ट कान्ट्रास्ट बीच में उचित कोलीमेशन, रोगी को दबाकर, कान्ट्रास्ट माध्यम का प्रयोग कर तथा उचित किलोवोल्टेज का प्रयोग कर बड़ा सकते हैं ।
रेडियोग्राफिक (आब्जेक्टिव) कान्ट्रास्ट:
यह निम्न पर निर्भर है:
1. सब्जेक्ट कान्ट्रास्ट ।
2. फिल्म पर पहुंचने वाले स्कैटर्ड रेडियेशन पर (कान्ट्रास्ट घटता है) ।
3. इन्टेन्सीफाइंग स्क्रीन:
(कान्ट्रास्ट बढ़ाती है) वही फिल्म में यदि बिना कीन के की जाये जो उनका कान्ट्रास्ट कम होता है ।
4. फिल्म का प्रकार:
सिंगल कोटेड की अपेक्षा डबल कोटेड फिल्म का कान्ट्रास्ट अधिक अच्छा होता है । फिल्म जिसका कैरेक्टररिस्टक कर्व अधिक ग्रेडियेन्ट वाला होता है, अच्छा कान्ट्रास्ट प्रदान करता है ।
5. फिल्म फाग:
यह फिल्म इमल्शन के उन सिल्वर हैलाइड कणों के डेवलप होने से होता है, जो वास्तव में एक्स-रे या प्रकाश द्वारा एक्सपोज नहीं हुये । फाग अनैच्छिक फिल्म डेन्सिटी प्रदान करता है जो रेडियोग्राक्कि कान्ट्रास्ट कम करता है ।
वास्तविक फाग निम्न स्थितियों में बढ़ जाता है:
क. अनुचित फिल्म का भण्डारण (उच्च ताप व आर्द्रता पर)
ख. मिलावट युक्त व कमजोर डेवलेपर ।
ग. डेवलेपर सल्यूशन का बहुत अधिक ताप या समय ।
घ. उच्च संवेदनशीलता के ग्रेन का प्रयोग (हाई स्पीड फिल्म) ।
6. फिल्म डेन्सिटी:
फिल्म का कैरेक्टरिस्टक कर्व फिल्म की डेन्सिटी पर निर्भर करता है जो वास्तविक एक्सपोजर (एम ए एस व समय) पर निर्भर है ।
7. डेवलेपमेन्ट:
यह डेवलेपर, ताप व समय पर निर्भर होता है अधिक डेवेलपमेन्ट होने से फिल्म कान्ट्रास्ट, फिल्म स्पीड व फोग बढ़ जाता है ।
सब्जेक्टिव कान्ट्रास्ट:
यह निम्न पर निर्भर करता है:
1. रेडियोग्राफिक कान्ट्रास्ट
2. देखने वाले पर
3. विविंग बॉक्स (ब्राइटनेस, इलूमिनेशन व रंग की समानता)
4. एम्बियेन्ट प्रकाश
एक्सपोजर फैक्टर:
1. मिली एम्पीयर (एम.ए.एस.)
2. किलोवोल्टेज
3. फोकस-फिल्म डिसटेंस ।
एम॰ए॰एस॰:
मिली एम्पीयर सेकेण्ड एक्स-रे टयूब करंट व एक्सपोजर समय का गुणनफल होता है । यह प्रयोग किये गये विकिरण को बताता है, तथा फिल्म के कालेपन के लिए जिम्मेदार है । मिली एम्पीयर सेकेण्ड फिल्म डेन्सिटी को नियंत्रित करता है ।
किलोवोल्टेज:
इसे बढ़ाने से रेडियेशन की पैनेट्रेटिंग पावर बढ़ जाती है । डायग्नोस्टिक रेडियोलाजी में 30 से 120 किलोवाल्ट तक प्रयोग होती है । यह अकेला कान्ट्रास्ट निर्धरित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर है । किलोवोल्टेज इतनी होनी चाहिए कि यह शरीर से गुजर कर फिल्म तक पहुंच सके ।
अधिकतम कान्ट्रास्ट कम से कम किलो वोल्टेज का प्रयोग जो शरीर के सबसे डेन्स भाग को पेनिदेट कर फिल्म तक पहुंच सके, से होती है । अत: किलोवोल्टेज इमेज कान्ट्रास्ट व एक्सपोजर लैटीट्यूड को प्रभावित करती है ।