Read this article to learn about the various factors influencing radiology in Hindi language.
फोकस फिल्म दूरी (एफ॰एफ॰डी॰):
इससे अधिक होने से फिल्म तक पहुंचने वाले रेडियेशन की इन्टेन्सिटी कम होगी । अत: इसे मिली॰ एम्पीयर सेकेण्ड में परिवर्तन कर पूरा करना होगा । सामान्य एफ॰ एफ॰डी॰ 100 सेमी॰ होती है ।
एफ॰एफ॰डी॰ के चुनाव में निम्न बातों का ध्यान रखें:
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1. एक्सरे ट्यूब को रोगी के बहुत पास न रखें अन्यथा रोगी ओ बहुत अधिक रेडियेशन डोज मिलेगी व जियोमेट्रिक अनशार्पनेस भी अधिक होगी ।
2. बहुत अधिक एफ॰एफ॰डी॰ ट्यूब लोडिंग पर बुरा प्रभाव डालती है ।
3. अधिक आब्जेक्ट फिल्म दूरी होने पर मैग्नीफिकेशन कम करने के लिए फोकस फिल्म दूरी भी बढ़ानी पड़ती है ।
4. शोर (न्वाइज) बढ़ने पर स्पीड भी बढ़ती है ।
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इन्टेन्सीफाइंग स्क्रीन:
फास्ट स्क्रीन के साथ स्लोसीन की अपेक्षा कम रेडियेशन में ही उतना फिल्म की न्येकनिंग हो जाती है । अत: एक्सपोजर फास्ट स्क्रीन के साथ कम कर देने चाहिए । फास्ट स्क्रीन रोगी को रेडियेशन डोज कम कर देते हैं । पर स्क्रीन अनशार्पनेस के कारण इमेज क्वालिटी अच्छी नहीं होती है ।
ग्रिड:
ग्रिड की खोज सर्वप्रथम डाक्टर गुस्तेव बकी ने सन: 1913 में की जो आज भी रेडियोग्राफी क्षेत्र में स्कैटर्ड रेडियेशन हटाने की सर्वोत्तम विधि हैं । यह कई लेड स्ट्रिपों से मिलकर बनी होती है । यह सारी चीजें एल्युमिनियम की कवरिंग में बन्द होती है ।
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स्कैटर्ड रेडियेशन रोगी के शरीर में भिन्न बिन्दुओं से पैदा होता है । तथा सभी दिशाओं में फैलता है । जिसका अधिकतर भाग (80 से 90. प्रतिशत) लेड स्ट्रिपों द्वारा सोख लिया जाता है जिससे कान्ट्रास्ट में बृद्धि होती है ।
क. गतिशील ग्रिड:
यह फिल्म पर लेड स्ट्रिप की इमेज नही बनने देता है । यह विधि टेबल के साथ जुड़ी होती है तथा थकी कहलाती है । लगभग 5 सेमी॰ स्थान की (रोगी व फिल्म के बीच) आवश्यकता इसकी गति के लिए होती है, जिससे मैग्नीफिकेशन होता है तथा जियोमेट्रिक व मूवमेंट अनशार्पनेस भी पैदा होती है ।
ख. स्थिर (स्टेस्नरी) ग्रिड:
इसमें लैड स्ट्रिप की लाइनें फिल्म पर आ जाती हैं । अत: ग्रिड के प्रयोग से फिल्म क्वालिटी तथा रोगी के एक्सपोजर में एक का त्याग करना पड़ता है । ग्रिड रेशियों लेड स्ट्रिप की ऊंचाई दो स्ट्रिपों के बीच दूरी अनुपात होता हे । लैड स्ट्रिप लगभग 0.05 मीमी मोटी होती है । ग्रिड रेशियों ग्रिड की स्कैटर्ड रेडियेशन हटाने की क्षमता को व्यक्त करता है ।
उच्च ग्रिड रेशियों के ग्रिड यद्यपि रोगी को अधिक रेडियेशन देते हैं, पर कान्ट्रास्ट काफी अच्छा होता है । प्राय: 5 या 8 से 10 या 12 तक ग्रिड रेशियो के ग्रिड प्रयोग किये जाते हैं । यद्यपि कुछ स्थितियों जैसे उच्च किलोवोल्टेज के प्रयोग के समय 16 ग्रिड रेशियों के ग्रिड भी प्रयोग किये जाते है ।
ग्रिड दो पैटर्न के लीनियर व क्रास्ड होते है । इनकी क्षमता का आकलन:
1. प्राइमरी ट्रान्समिशन
2. बकी फैक्टर
3. कान्टास्ट इम्प्रूवमेंट फैक्टर द्वारा की जाती है । उच्च ग्रिड रेशियों वाले ग्रिडों का कन्ट्रास्ट इम्प्रूव्मेंट फैक्टर भी अधिक होता है ।
फिल्म की डेन्सिटी:
फिल्म के एक्सपोजर से काले होने की क्षमता की माप आप्टिकल डेन्सिटी द्वारा की जाती है जिसे प्राय: डेन्सिटी के नाम से पुकारते हैं ।
D = log Io / I1
Io- फिल्म के छोटे भाग पर पड़ने वाले दृश्य प्रकाश की इन्टेन्सिटी
I1 = फिल्म के एक भाग से निकलने वाले प्रकाश की इन्टेन्सिटी
रेडियेशन एक्सपोजर से डेन्सिटी में बदलाव:
प्रोसेस किये गये रेडियोग्राफ की डेन्सिटी उसमें उपस्थित सिल्वर की मात्रा पर निर्भर है जो रेडियेशन एक्सपोजर द्वारा नियंत्रित होता है । अत: डेन्सिटी रेडियेशन एक्सपोजर के सीधे प्रपोरसनल है ।
कैरेक्टरस्टिक कर्व:
यह डेन्सिटी व एक्सरे एक्सपोजर के लागरिदम के बीच बनने वाला ग्राफ है । यह प्रोसेसिंग स्थिति, फिल्म के गुणों पर निर्भर करता है । अत: यदि क्रिस्टल का आकार समान है तो गामा अधिक होता है जबकि क्रिस्टल का आकार फर्क है तो गामा कम होता है ।
प्राय: रेडियोग्राफी के लिए 8 गामा वाली फिल्में प्रयोग की जाती हैं । यह किसी चुने गये एक्सपोजर से होने वाली अधिकतम डेन्सिटीमें फर्क की माप है तथा इसे विशेष शब्द गामा (Y) कहा जाता है ।
1. क ख फाग लेबल
यह सामान्य डेन्सिटी की बिना एकसपोजर के माप हैं । इसे बेस लाइन माप कहते हैं ।
2. सीधी रेखा (ग=प)
फिल्म की स्पीड:
फिल्म की स्पीड = एक की डेन्सिटी के लिए 100 मि॰ली॰ रान्जन का प्रयोग
बड़े आकार का सिल्वर ब्रोमाइड क्रिस्टल=फास्ट फिल्म । अत: यदि हइ स्पीड फिल्म है तो समान डेन्सिटी के लिए कम स्पीड की फिल्म की अपेस्प कम रेडियेशन की आवश्यकता होती है ।
फिल्म का लैटीट्यूड:
यह किसी फिल्म की स्वीकार करने योग्य डेन्सिटी (0.4 से 2.0) के लिये दिये गये एक्सपोजर की सीमा की माप है । गामा अधिक होने से लैटीट्यूड घटता है ।
रेडियोग्राफिक क्वालिटी:
इसके अन्तर्गत
1. फोटोग्राफिक व आप्टिकल डेन्सिटी (सम्पूर्ण कालापन)
2. रेडियोग्राफिक कन्ट्रास्ट (दो या अधिक डेन्सिटियों में फर्क)
3. डेफिनीशन (रेडियोग्राफ की गयी वस्तु की शार्पनेस)
4. डिसटारजन (इमेज का आकार प्रकार आब्जेक्ट की तुलना में)
डेन्सिटी और प्रोसेसिंग:
रेडियोग्राफिक डेन्सिटी पर डेवलपमेंट समय डेवलेपर का ताप, ताप समय (आटोमेटिक प्रोसेसिंग), डेवलेपर की कन्सेन्द्रेसन आदि का प्रभाव पड़ता है । कमजोर सल्यूशन अन्डर डेवलप्ड फिल्में प्रदान करते हैं जिसकी डेन्सिटी अच्छी नहीं होती है ।
डेन्सिटी और इन्टेन्सीफाइंग स्क्रीन:
प्राय: हाईस्पीड रेयर अर्थ स्क्रीनों का प्रयोग उच्च रेडियोग्राफिक डेन्सिटी के लिए हाई आउटपुट उपकरण के साथ करते है ।
डेन्सिटी और स्कैटर्ड रेडियेशन:
स्कैटर्ड रेडियेशन कम करने से (अन्य फैक्टर बिना बदले) रेडियोग्राफिक डेन्सिटी भी कम हो जाती है । किरण पुंज को कोन, कोलीमेटर या डायाफ्राम के द्वारा रोक लगाकर स्कैटर कम किया जा सकता है ।