Read this article to learn about diagnostic radiology and anesthesiology in Hindi language.
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कई रेडियोलोजी जांचों में निश्चेतना विशेषज्ञ व उपचार करने वाले चिकित्सक का सहयोग अति आवश्यक होता है, जिससे जांच आसानीपूर्वक सम्पन्न हो सके । निश्वेतना विशेषज्ञ, निश्चेतक, सिडेशन, रिससिटेशन विधियों, रीजनल ब्लाक, आदि के सम्बन्ध में राय दे सकता है ।
जनरल निश्चेतना की रेडियोलोजी विभाग में सुविधा:
हाल ही में हुये एक सर्वे में पला चला है कि रडियोलोजी की जांच के दौरान निश्चेतना से होने वाली मारटेलिटी तथा जान की हानि बड़ी शल्यक्रिया जैसी ही होती है । इसका मुख्य कारण यह है कि जांच प्राय: गंभीर रूप से बीमार रोगियों पर की जाती है तथा वह स्थान भी शल्यक्रिया कक्ष से प्राय: दूर होता है । अन्य परेशानियां जो जांच के दौरान हो सकती हैं:
1. जांच कक्ष मे बहुत भीड़ का होना तथा अधिक उपकरणो का होना, जिससे निश्चेतना रिससिटेशन उपकरण रोगी से दूर स्थित होते है ।
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2. अंधेरे में रोगी की मॉनीटरिंग व उपकरणों का संचालन कठिन होता है ।
3. उच्च वोल्टेज वाले रेडियोलॉजी उपकरण से विद्युत धारा लीक होकर रोगी को हानि पहुंचा सकती है तथा धमाका भी हो सकता है ।
अत: सभी उपकरण मुख्य शल्य क्रिया कक्ष की तरह ही होने चाहिए । इन्डक्शन व रिकवरी के लिए अलग-अलग कक्ष होने चाहिए, जो पूरी तरह प्रशिक्षित नर्स की देख रेख में होना चाहिए । रोगी के निश्चेतना देने वाली टेबल रोगी के बैठने की स्थिति में होनी चाहिए ।
तैयारी:
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तैयारी के पूर्व रोगी की पूर्ण रूप से स्वास्थ्य परीक्षा की जानी चाहिए तथा सामान्य जांच जैसे ब्लड काउन्ट, हीमोग्लोबिन, सीने का एक्स-रे, सीरम इलैक्ट्रोलाइट, ई. सी. जी. आदि करवा लेने चाहिए । जांच से पूर्व सीडेशन आवश्यक होता है, जब जांच स्थानीय निश्चेतना में की जा रही हो ।
विशेषज्ञों के साथ निश्चेतक में परेशानियां:
रक्त संचार से सम्बन्धित जांचें:
एओरटोग्राफी:
इसके लिए सभी रेश्परेटरी फन्कशन टेस्ट, ई. सी. जी., ब्लड काउन्ट, प्लेटलेट काउन्ट आदि करवाना आवश्यक है । मुख्य रूप से ट्रान्सलम्बर रूट का प्रयोग किया जाता है तथा फीमोरल धमनी के लिए सेलडिंगर विधि का प्रयोग किया जाता है ।
ट्रान्सलम्बर रूट के लिए, जनरल निश्चेतना की आवश्यकता उचित इन्टयूवेशन तथा प्रोन स्थिति में नियंत्रित वेन्टिलेशन के साथ होती है । रोगी को केवल निश्चेतना विशेषज्ञ की उपस्थिति में ही घुमाना चाहिए । सामान्य ई. सी. जी. मानिटरिंग की आवश्यकता पहले से स्थित किसी हृदय रोग के लिए जांच के दौरान पड़ सकती है ।
कान्ट्रास्ट से होने वाली किसी भी परेशानी को सावधानी पूर्वक मानीटर करना चाहिए । जांच के पश्चात लैरेंगोस्पाज्म की संभावना से बचने हेतु रोगी के नर्सरी कक्ष में रखना चाहिए, यदि हल्का ही हो तो इन्ट्रावीनस सिडेशन व आक्सीजन उपयुक्त है ।
यदि लैरेंगोस्पाज्म अधिक है तो ट्यूब डालने की आवश्यकता पड़ सकती है । कभी-कभी पल्मोनेरी इडीमा (फेफड़ों की सूजन) जो जांच के दौरान हो सकती है । इन सभी खतरों के कारण स्थानीय निश्चेतना व फीमोरल सेलडिन्गर विधि की सलाह दी जाती है ।
कैरोटिड एन्जियोग्राफी:
न्यूरोरेडियोलाजिकल सेटअप में रोगी के बड़े हुये इन्ट्राक्रेनियल दाब के कारण परेशानी हो सकती है जिससे उल्टी व इलेक्ट्रोलाइट अनियंत्रण हो सकता है । अत: उड़ने वाले निश्चेतक जैसे हैलोथेन का प्रयोग बड़ी सावधानी पूर्वक करना चाहिए । क्योंकि इससे मस्तिष्क के ट्यूमर वाले रोगियों में इन्ट्राक्रेनियल दाब काफी अधिक बढ़ जाता है ।
ब्रान्कोग्राफी:
इसे प्राय: कण्ठ की स्थानीय निश्चेतना में किया जाता है, तथा रोगी को सिडेशन दिया जाता है । पर कभी-कभी जनरल निश्चेतना की भी आवश्यकता पड़ सकती है । अत: निश्चेतना विशेषज्ञ की उपस्थिति जांच के समय आवश्यक है ।
बीनोग्राफी:
कम पल्मोनरी रिर्जव व बार-बार होने वाली पल्मोनरी इम्बोलिक रोगियों में अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है । इसके लिए पल्मोनरी फन्कशन की जांच, सीने के एक्स-रे, आईसोटोप जांच, पल्मोनरी फन्कशन टेस्ट, रक्त गैप, एनालिसिस, तथा सामान्य स्वास्थ्य परीक्षा की आवश्यकता होती है ।
कम्प्यूटेड टोमोग्राफी और न्यूक्लियर मैग्नेटिक रिजोसेंस:
कभी-कमी इन विशेष जांचों के दौरान एक निश्चेतना विशेषज्ञ की उपस्थिति की आवश्यकता पड़ सकती है । एम. आर, इमेजिंग के लिए पेसमेकर, धातु की प्रोस्थेसिस व शल्य क्रिया की जांच अति आवश्यक है ।
रिसससिटेशन:
रिसससिटेशन की ए. बी. सी. पूर्ण रूप से सीख लेनी चाहिए जो रेडियोलोजी विभाग के टेक्नीशियन स्टाफ को पूर्ण रूप से आना चाहिए । रेडियोलोजी विभाग में कार्य करने वाले लोगो को लगातार रिसससिटेशन का प्रशिक्षण देते रहना चाहिए ।
सामान्य जीवन रक्षकों में:
i. वायु नली की देख-रेख-ट्रिपल मैन्योवर व सामान्य एयरपेसेज की सफाई ।
ii. माउथ-टू-माउथ श्वसन तथा बैग और मास्क विधि द्वारा ।
iii. बाह्य हृदय मासाज द्वारा रक्त संचार बनाये रखना ।
इन सभी स्थितियों में रोगी का सिर पैरों के लेबल से नीचे होना चाहिए तथा एक तरफ होना चाहिए जिससे उल्टी सांसनली में न जाये । रिसससिटेशन यूनिट को I.C.U. से तुरंत एडवान्सड लाइफ सर्पोट के लिए बुलाना चाहिए ।