Read this article in Hindi language to learn about the influence of society, culture and media during adolescence.
सामाजिक प्रभाव:
किशोरावस्था में सामाजिक विकास का महत्वपूर्ण स्थान है । सामाजिक विकास इस बात पर निर्भर करता है कि किशोरों का अपने परिवार व समवर्ती (Peer) समूह के साथ आपसी संवाद कैसा है ? चूंकि बच्चा किशोर में परिवर्तित होता है और उसके पश्चात् वयस्कता प्राप्त करता है अत: इस समय किशोर के लिए समाज के आदर्श और मूल्यों को समझाने के साथ-साथ यह भी आवश्यक होता है कि वह समाज के विभिन्न व्यक्तियों के व्यवहारों, विचारों और भावनाओं को समझना सीखे ।
जब तक किशोर उपरोक्त सभी बातों को नहीं सीखेगा तब तक उसके लिये समाज की विभिन्न परिस्थितियों में समायोजन करना दुरूह होगा । किशोर समाज में सम्मान व प्रतिष्ठा तभी प्राप्त कर सकता है जब उसका व्यवहार समाज के आदर्शों और मूल्यों के अनुसार हो तथा वह अपने व्यवहार से समाज में समायोजन स्थापित कर सके ।
अत: समायोजन व समाज के अनुसार व्यवहार करने के लिये यह आवश्यक है कि उनमें सामाजिक परिपक्वता हो । इस स्तर पर किशोरों में निजी विचारों की भावना विकसित होकर सुदृढ़ हो जाती है । विभिन्न मुद्दों पर उनके अपने दृष्टिकोण तथा भावनाएँ विकसित हो जाती हैं ।
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स्वतंत्र बनने तथा अपनी स्वयं की पहचान विकसित करने के प्रयास में वह धीरे- धीरे अपना निर्णय स्वयं लेने लगते हैं । माता-पिता अपने किशोर बच्चों को युवा वयस्कों के रूप में उत्तरदायी बनाकर उन्हें अपनी पहचान बनाने तथा स्वतंत्र व्यक्तित्व निर्माण करने में सहायक होते हैं । इस समय किशोरों के अपने परिवार तथा संगी साथियों के साथ सम्बन्धों में व्यापक परिवर्तन होते हैं ।
ये परिवर्तन अग्र प्रकार हैं:
(1) परिवार के साथ सम्बन्ध:
किशोर अपने परिवार से थोड़ी दूरी बनाने लगते हैं तथा अपने संगी साथियों पर अधिक विश्वास करना आरम्भ कर देते हैं । वे प्राय: प्रत्येक बात की सहमति के लिए अपने समवर्ती (Peer) वर्ग से सलाह लेते हैं तथा उनकी स्वीकृति प्राप्त करने के लिए वे स्वयं के व्यवहार में भी परिवर्तन करते हैं ।
अधिकांश किशोर एकान्त चाहते हैं और अपने माता-पिता के साथ कम समय व्यतीत करना चाहते हैं । वे अपने ऊपर किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध पसंद नहीं करते । अत: माता-पिता के लिए अपने बच्चों के इस वयस्कता वाले गुणों को स्वीकार करना कठिन हो जाता है ।
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किशोर बच्चे कई बार माता-पिता से प्रश्न व उनके कारण पूछते हैं तथा माता-पिता की बात न मानकर नाना प्रकार के तर्क करते हैं जिससे माता-पिता को महसूस होता है कि बच्चे उनका तथा उनके विचारों का आदर नहीं करते हैं परन्तु यह जरूरी नहीं है कि हमेशा ऐसा ही हो । इस सम्बन्ध की प्रकृति में परिवर्तन होता रहता है ।
यहाँ यह बात भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि माता-पिता व किशोर के आपसी संवाद व व्यवहार के लिए कुछ मार्गदर्शी सिद्धान्तों को स्थापित करना चाहिए । यह भी एक विषय है कि किशोरों के लिए माता-पिता की भूमिका आसान नहीं होती है ।
कभी-कभी माता-पिता किशोरों पर क्रोधित तथा हतोत्साहित हो जाते हैं क्योंकि उनको महसूस होता है कि उनका बच्चा उनके नियंत्रण से बाहर जा रहा है । उनकी धारणा होती है कि उनका बच्चा अपनी गतिविधियों के परिणामों का अनुमान नहीं लगा पा रहा है ।
इसके परिणामस्वरूप माता-पिता को इस बात की चिंता होती है कि उनका बच्चा एक जिम्मेदार व्यक्ति बन पा रहा है या नहीं । उन्हें बच्चे के भविष्य की निरन्तर चिंता बनी रहती है ।
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किशोरों का उत्तरदायित्व:
यह किशोरों का उत्तरदायित्व है कि वे अपने माता-पिता के विचारों को सुनें, उनके सुझावों का ध्यानपूर्वक अवलोकन करें । इसके पश्चात् स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति का निरादर किये बिना अपने विचारों व भावनाओं को आदरपूर्वक, ईमानदारी से व स्पष्टपूर्वक प्रस्तुत करें ।
प्रभावपूर्ण संवाद पास्परिक प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत प्रत्येक सम्बन्धित व्यक्ति को न केवल अपने विचारों को प्रकट करने का अधिकार होता है बल्कि सम्मानजनक रूप से सुने जाने का भी अधिकार होता है ।
माता-पिता व किशोर के बीच सुदृढ़ सम्बन्ध स्थापित करने में निम्नलिखित उपाय सहायक होते हैं:
i. किशोर को अपनी भावनाएँ तथा विचार अपने माता-पिता के साथ बाँटने चाहिए ।
ii. इसके पश्चात् संवाद करने का एक मुक्त मार्ग स्थापित करना चाहिए ।
iii. माता-पिता तथा किशोरों को एक-दूसरे के विचारों को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए ।
iv. एक-दूसरे द्वारा दिये गये सुझावों पर ध्यानपूर्वक विचार करना चाहिए ।
v. माता-पिता व किशोर को अपने विचारों और भावनाओं को स्पष्ट तथा आपसी सहमति से सम्मानजनक रूप में प्रस्तुत करना चाहिए ।
vi. किशोर को अपने माता-पिता के प्रति उसी प्रकार शिष्टापूर्ण व्यवहार करना चाहिए जिस प्रकार वे अपने मित्रों के माता-पिता के साथ करते हैं । धीरे-धीरे जैसे किशोर बड़े होते हैं माता-पिता भी उनमें हो रहे परिवर्तनों को समझने व स्वीकार करने लगते हैं ।
vii. किशोर को इस बात को समझना चाहिए कि माता-पिता अपने बच्चों से अत्यधिक प्यार करते हैं तथा उनके सर्वोत्तम हित को हमेशा ध्यान में रखते हैं ।
viii. वे अपने बच्चे की संरक्षा व सुरक्षा के प्रति अत्यन्त चिंतित रहते हैं । यहाँ यह जरूरी नहीं है कि माता-पिता व किशोर के विचार समान हों ।
(2) समवर्ती समूह के साथ सम्बन्ध (Peer Group):
समवर्ती समूह को समान आयु, क्षमता, योग्यता, पृष्ठभूमि या सामाजिक स्थिति के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है । किशोरावस्था में बालक कुछ नये समूहों से सम्बद्ध होता है ।
इन किशोरों के द्वारा बनाये गये समूह बड़े होते हैं परन्तु समूह के सदस्यों के सम्बन्ध उतने दृढ़ (घनिष्ठ) नहीं होते जितने कि बाल्यावस्था में होते हैं । इस अवस्था में लडकों की अपेक्षा लड़कियों के समूह अधिक छोटे तथा अधिक घनिष्ठ होते हैं ।
किशोरों व किशोरियों के कुछ अन्तरंग मित्र-समूह होते हैं परन्तु अन्तरंग मित्र वयःसन्धि को अवस्था के बाद ही बनते हैं । ये अन्तरंग मित्र समान लिंग के होते हैं जिन पर किशोर को पूर्ण विश्वास होता है । इन अन्तरंग मित्रों की योग्यताएँ व रुचियों एक समान होती हैं ।
समवर्ती समूहका प्रभाव (Effect of Peer Group):
समवर्ती समूह का प्रभाव सकारात्मक या नकारात्मक हो सकता है । सकारात्मक समवर्ती सम्बन्धों से सामाजिक विकास, अच्छी छवि और आत्म विश्वास के निर्माण में सहायता मिलती है । ये सम्बन्ध कठिन से कठिन परिस्थितियों के समय सुरक्षा कवच का काम करते है ।
समवर्ती समूह की भूमिका यदि सकारात्मक है तो वह स्वस्थ व्यवहार को भी प्रोत्साहित कर सकता है । जिन किशोर पर समवर्ती समूह का नकारात्मक दबाव होता है वे गैर जिम्मेदार सामाजिक गतिविधियों उदाहरणस्वरूप: चोरी, नशीली वस्तुओं का सेवन, गलत व आपराधिक कार्य आदि में लिप्त हो जाते हैं । सकारात्मक समवर्ती सम्बन्ध आपसी आदर व सराहना पर आधारित होते हैं ।
अत: किशोरों में आपसी स्वस्थ सम्बन्धों को स्थापित करने के लिए निम्न उपायों को अपनाना आवश्यक है:
i. किशोरों को अपने संवादों में कुशलता लानी चाहिए । उन्हें अपने विचारों और भावनाओं को समाज द्वारा स्वीकार माध्यमों का प्रयोग करके अभिव्यक्त करना चाहिए । उदाहरणस्वरूप: (a) बोलने वाली भाषा मधुर व सुनने में स्पष्ट हो, (b) दूसरों के विचारों को ध्यानपूर्वक सुनें, (c) अपने विचारों को व्यक्त करने का प्रयत्न करें;
ii. किशोरों को अपने में सामाजिक कौशलों को विकसित करने का प्रयास करना चाहिये; जैसे: क्रोध प्रबंधन, ईमानदारी तथा संवेदनशीलता ।
iii. किशोरों को दूसरों के प्रति सहानुभूति विकसित करनी चाहिए । अपने आस-पास के लोगों व मित्रों के साथ वैसा व्यवहार करना चाहिए जैसा व्यवहार वे अन्य से चाहते हैं ।
iv. किशोरों को अच्छी आदतों व कौशलों का अभ्यास करके ही दूसरों के साथ समय बिताना चाहिए । सदैव अच्छे व्यवहार करने के लिए ही कार्य करना चाहिए ताकि आपसी विवादों तथा असहमतियों को आसानी से व कुशलतापूर्वक दूर किया जा सके ।
v. किशोरों को हमेशा सकारात्मक आलोचना करनी चाहिए । उन्हें एक-दूसरे के साथ समान व्यवहार करना चाहिए और गलतफहमियों के दूर हो जाने के पश्चात् एक-दूसरे को क्षमा कर देना चाहिए ।
vi. किशोरों को उदारवादी व सहायक बनना चाहिए । मित्रों की समस्या को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए तथा उन्हें दूर करने के लिए तत्पर रहना चाहिए ।
vii. मित्रों के साथ आपसी व आदरपूर्ण सम्बन्ध बनाना चाहिए । मित्रता में चालाकी का कोई स्थान नहीं होता है ।
(i) सांस्कृतिक प्रभाव (Cultural Effect):
आधुनिक किशोर विश्व की संस्कृति से प्रभावित होते हैं, वे लोकप्रिय भाषा, कपडों, संगीत तथा नृत्य की नकल करने का प्रयास करते हैं, किशोर-किशोरी अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपने समवर्ती समूह में लोकप्रिय या मीडिया में प्रचारित फैशनेबल सभी बातों को ग्रहण करना चाहते हैं, आधुनिक युग में देश-विदेश के विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का सेवन किशोर व किशोरियाँ करते हैं, विदेशों की संस्कृति से प्रभावित होकर पब जाना तथा मदिरापान करना भी आजकल लोकप्रिय होता जा रहा है ।
(ii) मीडिया का प्रभाव (Media Effect):
आधुनिक युग में हमारे देश में मीडिया गाँवों व दूर-दराजों के क्षेत्रों में पहुँच गया है । इन मीडिया में मुख्य रूप से टेलीविजन, रेडियो, समाचार पत्र, पत्र-पत्रिकाएं, इंटरनेट आदि विशेष हैं ।
किशोरों पर इनका दो प्रकार का प्रभाव पड़ता है:
(a) सकारात्मक
(b) नकारात्मक ।
(a) सकारात्मक प्रभाव (Positive Effects):
i. मीडिया विभिन्न मुद्दों पर जनता में जागरूकता उत्पन्न करती है ।
ii. मीडिया जनसाधारण को अपने विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होने का अवसर प्रदान करती है । आजकल लोग रेडियो की वार्ता व टेलीविजन के विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेकर पुरस्कार व अवार्ड जीत रहे हैं ।
iii. समाचार पत्रों, पत्रिकाओं व बेबसाइटों आदि में लोग अपने लेख प्रकाशित करने का सुनहरा अवसर कभी नहीं गँवाते तथा मीडिया के कार्यक्रम भी उन्हें प्रोत्साहित करते हैं ।
iv. बेबसाइटों पर भी लोग अपने विचार तथा अपनी बात रखते हैं ।
v. मीडिया किशोरों को खेलकूद व सामाजिक सेवा आदि की गतिविधियों में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि उनका संवर्धन खेलकूद व सामाजिक कार्यों का संचालन करने वाली संस्थाओं से अत्यन्त निकट का होता है ।
(b) नकारात्मकप्रभाव (Negative Effect):
i. मीडिया अनेकों ऐसे कार्यक्रमों व विचारधाराओं का संवर्धन करता है जो कि किशोरों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है; उदाहरणस्वरूप: सम्बन्धी चित्र, हिंसा सम्बन्धी कार्यक्रम, महिलाओं द्वारा वाणिज्यिक विज्ञापनों में दिखाया गया नंगापन । इस प्रकार के विषयों के निरन्तर सम्पर्क में आने के कारण युवाओं के मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है ।
ii. मीडिया के प्रभाव से आज के किशोरों के व्यक्तित्व में तेजी से परिवर्तन आ रहा है । किशोर मुख्यतया प्रसिद्ध लोगों से अत्यन्त प्रभावित होते हैं । मुख्यत: फिल्मी सितारों, टेलीविजन के कलाकारों व व्यावसायिक कलाकारों का प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर सबसे अधिक पड़ता है । किशोर इन लोगों को अपना आदर्श मान लेते हैं तथा अपने स्वयं के व्यक्तित्व को पीछे छोड़ देते हैं ।
iii. कलाकार तथा मॉडल अपने शारीरिक आकार से किशोरों को प्रभावित करते हैं । इसके प्रभाव से आजकल किशोरियाँ अपने आहार पर अधिक नियंत्रण करती हैं जिस कारण उनके शरीर में पौष्टिक तत्वों की कमी हो जाती है । अत्यधिक वजन कम करने से किशोरियों में शक्ति क्षीण हो जाती है । रोग क्षमता कम हो जाती है । रजोधर्म-चक्र में अनियमितता आ जाती है । किशोरों में भी मॉडलों व कलाकारों की तरह माँसपेशियों को सुदृढ़ करने का जुनून सवार हो जाता है ।
iv. किशोर जिम जाकर अनेकों प्रकार की मशीनों द्वारा अधिक भार उठाने की क्षमता में वृद्धि करते हैं तथा इसके लिये वे औषधियों व पूरक आहार भी सेवन करते हैं । इनमें से कुछ औषधियों में सान्द्र (Concentrated) स्टीयरॉयड होता है जिसका किशोरों के शरीर पर हानिकारक प्रभाव पडता है ।
उपरोक्त मीडिया का प्रभाव नकारात्मक न पड़े इसके लिये माता-पिता निम्न उपाय कर सकते हैं:
i. कल्पना व वास्तवकिता में अंतर बता कर किशोरों को समझा सकते हैं ।
ii. हिंसा व जोखिम (Risk) उठाने वाले कार्यक्रमों के परिणामों की आपस में बैठ कर चर्चा कर सकते हैं ।
iii. किशोरों में सकारात्मक विचाराधारा कौशलों को विकसित करके उनके द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों की समीक्षा करवा कर संदेशों को संशोधित करना ।
iv. किशोरों में उनकी आयु के अनुरूप सामग्री देखने के लिए निर्णय निर्धारण कौशलों को विकसित करना ।
अत: उपरोक्त बिन्दुओं से स्पष्ट होता है की किशोर व किशोरियाँ अपने आप पर कितना नियंत्रण करते हैं, यह बात उन पर निर्भर करती है कि वे क्या देखना व पढ़ना चाहते हैं । क्योंकि आप धीरे-धीरे वयस्कता की ओर बढ़ रहे हैं । किशोरों व किशोरियों के लिये आवश्यक है कि वे सही सूचनाओं के आधार पर विवेक पूर्ण निर्णय लें ।