भारत में विकलांगों की समस्या पर अनुच्छेद । Article on the Problems of Disabled in India in Hindi Language!
विकलांगता चाहे शारीरिक हो या मानसिक दोनों ही जीवन को अभिशापित कर देती है। आज यह समस्या प्राय: विश्व के प्रत्येक देश में देखने की मिलती है । यह एक ऐसी समस्या है जिससे पीड़ित व्यक्ति अधूरा-सा बनकर रह जाता है । यदि व्यक्ति शारीरिक रूप से विकलांग है, तो इसका प्रभाव उसकी मानसिकता पर भी पड़ता है ।
इसलिए इनकी समस्या के निदान और पुनर्वास के प्रयासों पर अधिकाधिक बल दिया जाना चाहिए । भारत एक विशाल देश है । यहाँ विकलांगता की समस्या कोई नई समस्या नहीं है। सन् 1991 में भारत में विकलांगों की संख्या 1.6 करोड़ थी ।
इसके बाद 2001 की गणना के अनुसार भारत की जनसंख्या बढ़कर 100 करोड़ हो गई । जनसंख्या के बढ़ने के साथ ही विकलांगों की समस्या भी बड़ी । कुल विकलांगों में से लगभग पचहत्तर से अस्सी प्रतिशत तक विकलांग गाँवों में हैं । इसका प्रमुख कारण वहाँ स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव होता है, यदि गाँव में कोई दुर्घटना हो जाती है तो उसके उपचार की व्यवस्था नहीं है ।
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विकलांग हमारे समाज का हिस्सा होते हैं उन्हें न केवल हमारी सहानुभूति चाहिए बल्कि हमारे सहृदय सहयोग की भी आवश्यकता होती है । विकलांगता किसी के जीवन को अभिशप्त न बना दे, इस बात के प्रयास सामाज्कि और प्रशासनिक स्तर पर किए जाने चाहिए ।
हमारे देश में विकलांगों के पुनर्वास और उनकी स्थिति बेहतर बनाने के प्रयास निरंतर किए जा रहे हैं । शारीरिक विकलांगता अक्सर हमारे जीवन-यापन में आड़े आती है । यह विकलांग व्यक्ति की मानसिकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है । हमें विकलांग व्यक्ति के भीतर से यह हीनभावना दूर करनी होगी कि वह भी सामान्य मनुष्यों की तरह सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है ।
सरकार को विकलांगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए रोजगार के साधन उपलब्ध कराने होंगे । ऐसा करने से उनके जीवन-यापन में कुछ हद तक सुधार किया जा सकता है । आज विश्वभर में विकलांगों को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास जारी हैं । भारत में विकलांगों की बड़ी जनसंख्या है इसलिए यहाँ प्रयासों को और अधिक व्यापक बनाने की आवश्यकता है । भारत में भी विकलांगों की आत्मनिर्भर बनने तथा उनके जीवनस्तर में सुधार लाने के लिए अनेक संस्थाएं प्रयासरत हैं ।
भारत सरकार का श्रम मंत्रालय भी विकलांगों की समस्याओं के प्रति सचेत है । श्रम मंत्रालय का रोजगार एवं प्रशिक्षण निदेशालय भी विकलांगों के जीवन सुधार के लिए कार्यरत है । इसके सहयोग से विकलांगों को रोजगार मुहैया कराया जाता है । ये कार्यालय उनका पंजीकरण करवाते हैं और उन्हें नौकरी दिलाने में उनकी सहायता करते हैं ।
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केन्द्रशासित प्रदेशों में सत्रह व्यावसायिक पुनर्वास केन्द्रों की स्थापना की गई ताकि विकलांगों की योग्यता और उनकी क्षमता का यथेष्ट मूल्यांकन हो सके और उसी के अनुसार उन्हें सेवाओं में समायोजित किया जा सके । विकलांगों की चार श्रेणियाँ मानी जाती हैं-मानसिक विकलांगता दृष्टि विकलांगता चलने-फिरने संबंधी विकलांगता तथा बोलने और सुनने सम्बन्धी विकलांगता ।
इन चार श्रेणियों को भी चार वर्गों में बांटा जाता है । ये हैं-सामान्य मध्यम गंभीर और गहन विकलांगता । इन व्यावसायिक कार्यक्रमों के माध्यम से विकलांगों को सहयोग दिया जाता है और उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जाता है ।
विकलांगों के पुनर्वास के परिप्रेक्ष्य में एक अच्छी बात यह भी है कि इस दिशा में संयुक्त राष्ट्र संगठन द्वारा अनुमोदित प्रस्तावों एवं अनुशंसाओं तथा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के सिद्धांतों के अनुरूप ही पहल होती है । विकलांगों की दक्षता और मांग के अनुरूप उन्हें फोटोग्राफी, टेक्सटाइल डिजाइनिंग, इलेक्ट्रानिक्स, घड़ीसाजी आदि व्यवसायों में प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार दिया जाता है ।
यद्यपि भारतीय विकलांग पुनर्वास केन्द्रों पर मूल्याकन की प्रणालियाँ ठीक हैं फिर भी इन्हें और अधिक आधुनिक बनाना होगा । जब तक दक्षता का सही मूल्यांकन नहीं होगा सही समायोजन न हो सकेगा । कार्यस्थितियों को और बेहतर बनाने में भी इससे सुविधा मिलेगी । पश्चिमी देशों में इस संदर्भ में अधिक सतर्कता बरती जा रही है तथा मूल्यांकन के लिए नई प्रणालियों का विकास किया जा चुका है ।
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हमारे देश में अधिकतर विकलांग गाँव में रहते हैं । पाँच चयनित पुन र्वास केन्द्रों के अन्तर्गत ग्यारह ग्रामीण पुनर्वास विस्तार केन्द्र काम कर रहे हैं । ग्रामीण क्षेत्रों में विकलांगों की बड़ी हुई संख्या को ध्यान में रखते हुए यह संख्या पर्याप्त नहीं है । ग्रामीण क्षेत्रों में इनके पुनर्वास के लिए और प्रयत्न करने होंगे तथा लीक से हटकर इस दिशा में नई विधियों का समावेश करना होगा ।
हमारे देश में नौकरी में विकलांगों के आरक्षण का जो प्रबंध है वह इनकी बढ़ती संख्या को देखते हुए कम है । सरकार ने नौकरी में विकलांगों को आरक्षण की सुविधा दी हुई है । विकलांगों की समस्या को दूर करने के लिए केवल सरकार ही नहीं, अपितु निजी संस्थाओं और सगंठनों को भी आगे आना होगा और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे ।