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हृदय स्थल की सामरिक संकल्पना (1919):
मैकिंडर की इतिहास की धुरी संकल्पना 1904 में प्रकाशन के बाद से ही राजनीतिक चर्चा का केन्द्र बन गई थी । इस बीच यूरोपीय देशों को 1914-1919 के प्रथम विश्व युद्ध की त्रासदी झेलनी पडी । युद्ध के दौरान ब्रिटेन की सामुद्रिक पहुंच को कड़ी परीक्षा का सामना करना पड़ा ।
साथ ही इस दौर में जर्मनी की निरन्तर बढ़ती हुई सामरिक शक्ति और भविष्य के सम्भावित खतरो का भी ब्रिटेन तथा अन्य यूरोपीय उपनिवेशवादी शक्तियों को सम्यक् पूर्वानुमान हो गया । अत: युद्ध के घटनाक्रम के परिप्रेक्ष्य में मैकिंडर को अपनी सामरिक संकल्पना में कुछ संशोधन आवश्यक प्रतीत हुए । साथ ही युद्ध में जर्मनी की पराजय के परिणामस्वरूप शान्ति समझौते की तैयारियां तेजी से हो रही थीं ।
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समझौते में लगे राजनेताओं को भावी खतरों की ओर चेतावनी देने की दृष्टि से मेकिंडर को यह आवश्यक प्रतीत हुआ कि वे अपनी सामरिक संकल्पना को समसामयिक परिप्रेक्ष्य में सविस्तार प्रस्तुत करें । अत: 1919 में लेखक ने अपनी संकल्पना को स्पष्ट करते हुए ।
डेमोक्रेटिक आइडियल्स एण्ड रियल्टी शेर्षिक से एक पुस्तक प्रकाशित किया । मैकिंडर की चिन्ता के दो प्रमुख कारण थे पहला यह कि 1917 में रूसी साम्राज्य का पतन हो गया था तथा उसके नए कम्यूनिस्ट शासको ने जर्मनी के साथ उसी की शर्तों पर शान्ति समझौता कर लिया था ।
दूसरा यह कि युद्ध के दौरान ग्रेट ब्रिटेन तुर्की जलडमरुमध्य के रास्ते काला सागर में प्रवेश करने में असफल रहा था । साथ ही जर्मनी की बारूदी सूरंगों ने ब्रिटिश नौ सेना को बाल्टिक सागर के बाहर ही रोके रखा था । इससे स्पष्ट था कि सामरिक प्रभाव की दृष्टि से हृदय स्थल का क्षेत्र मैकिंडर द्वारा 1904 में प्रतिपादित आन्तरिक जल प्रवाह पर आधृत क्षेत्र से कहीं अधिक व्यापक था ।
अत: 1919 में मेकिंडर ने हृदय स्थल की एक सर्वथा नई परिभाषा प्रस्तुत की । इसके अनुसार हृदय स्थल वह क्षेत्र है जिससे कि आधुनिक तकनीक के सहारे, सामुद्रिक शक्तियों की प्रभावी ढंग से बाहर रखा जा सकता है । इस आधार पर परिभाषित सामरिक हृदय स्थल के अन्तर्गत बाल्टिक सागर, डैन्यूब नदी की नौकागम्य मध्य और निचली घाटी, काला सागर, तूर्की, आर्मेनिया, ईरान, तिब्बत तथा मंगोलिया सम्मिलित हो गए ।
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1917 में जर्मन सेनाएं यूराल और कैस्पियन सागर के बीच स्थित संकरे घास के मैदान के रास्ते रूस के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में प्रवेश कर गई थीं । इससे यह भली-भांति स्पष्ट हो गया था कि हृदय स्थल में प्रवेश करने का एकमात्र प्रभावी मार्ग इसी द्वार के माध्यम से है ।
अर्थात् सामुद्रिक शक्तियों के अन्तरराष्ट्रीय वर्चस्व को अब सबसे बड़ा संकट जर्मनी की ओर से था क्योंकि पूर्वा यूरोप में अपने राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणामस्वरूप जर्मनी हृदय क्यल के इस एक मात्र प्रवेश द्वार पर सरलता से नियंत्रण कर सकता था ।
इस प्रकार भविष्य में जर्मनी हृदय स्थल में उत्तरोत्तर प्रभाव विस्तार करते हुए अपने नेतृत्व में यूरेशिया में विश्व का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित कर सकता था । अत पैरिस में शान्ति वार्ता के लिए एकत्र यूरोपीय तथा अमरीकी राजनायिकों को मैकिंडर की सलाह थी कि उन्हें भविष्य के खतरों की सम्भावनाओ को ध्यान में रखते हुए पूरी तरह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे पूर्वी यूरोप और हृदय स्थल क्षेत्र में ऐसी सारी सम्भावनाओं को समाप्त कर दे जिनसे कि जर्मनी के विश्व विजय के इरादे को प्रोत्साहन मिल सकता हो ।
विश्व युद्ध के अनुभव के आधार पर मैकिंडर ने विश्वव्यापी वर्चस्व स्थापित करने के लिए एक नया सामरिक सूक्ति प्रतिपादित किया जिसके अनुसार:
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जो पूर्वी यूरोप पर शासन करेगा वह हृदय स्थल पर अधिकार स्थापित कर सकेगा; जो हृदय स्थल पर शासन करेगा वही विश्व द्वीप का स्वामी होगा; जो विश्व द्वीप पर राज्य करेगा वह पूरे विश्व को अपने अधिकार कर लेगा । इस सूक्ति के समर्थन में मैकिंडर का तर्क कुछ इस प्रकार था । हृदय स्थल क्षेत्र पृथ्वी पर सवीधिक सुरक्षित प्राकृतिक दुर्ग हे । साथ ही उसे एक अद्धइमहाद्वीपीय क्षेत्र की संसाधन सम्पदा विकास हेतु प्राप्त है ।
अत: जो राजनीतिक शक्ति इस क्षेत्र पर आधिपत्य स्थापित करने में सफल होगी वह विश्व की अन्य किसी भी राजनीतिक शक्ति से अधिक शक्तिशाली बन जाएगी । यह दुर्ग तीन ओर अभेद्य अवरोधों से घिरा है । इसमें प्रवेश का एक मात्र द्वार दक्षिण पश्चिम में स्थित है ।
इस द्वार तक पहुंचने के लिए पूर्वी यूरोप के रास्ते गुजरना आवश्यक है । अत: जो भी देश राज्य पूवी यूरोप पर अपना शासन स्थापित कर सकेगा वही इस द्वार का प्रहरी तथा स्वामी बन जाएगा । रूस उस समय इस स्थिति में नहीं था कि इतने विशाल क्षेत्र का स्वयं विकास कर सके अत जो राज्य पूर्वी यूरोप पर अधिकार जमाने में सफल होगा वह हृदय स्थल पर भी अधिकार स्थापित कर लेगा, तथा उसकी विशाल सम्पदा का विकास करके वहां विश्व का सर्वाधिक शक्तिशाली सामरिक शक्ति स्थापित कर लेगा ।
इस स्थिति में पहुंचने के वाद इस विशाल साम्राज्य के लिए एक-एक करके सष्प्री उपान्तीय अर्धचन्द्र क्षेत्र (अर्थात् समुद्रतटीय यूरेशियाई देशों) को अपने अधिकार क्षेत्र में आत्मसात करना अपेक्षाकृत सरल कार्य हो जाएगा । इस प्रकार हृदय स्थल पर स्वामित्व स्थापित करने वाला देश पूरे विश्व द्वीप का शासक बन जाएगा क्योंकि इस प्रकार विश्व के कुल भौगोलिक क्षेत्र का दो तिहाई भाग, तथा विश्व का 87.5 प्रतिशत जनसंसाधन उसके अधिकार में होगा ।
भारत की समुद्री सीमा निर्धारित आधार रेखा से सागर में बारह समुद्री मील की दूरी तक फैली है । चित्र 7.3 मैकिंडर द्वारा 1919 में परिभाषित ”सामरिक” हृदय स्थल (दीक्षित, 1994 से साभार उद्धृत) ।