This article provides a note on regional political geography of the world in Hindi language.
1930 के दशक में राजनीतिक भूगोल की केन्द्रीय अवधारणा में आया यह परिवर्तन अनेक अर्थों में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन था क्योंकि मोटे तौर पर 1935 के पूर्व और पश्चात्र के राजनीतिक भूगोल की पहचान एक दूसरे से सर्वथा भिन्न थी ।
पूर्वगामी राजनीतिक भूगोल पारिस्थितिकीय वैज्ञानिक अध्ययन का प्रतिनिधित्व करता था इसलिए अन्य वैज्ञानिक अध्ययनों की तरह वह विश्लेषणात्मक अध्ययन था । साथ ही सामान्य तथ्यों और आचरण सम्बन्धी नियमों की पहचान सम्बन्धी साधारण सिद्धान्तों का प्रतिपादन इसके अनुशलिन की स्वाभाविक परिणति थी । इसके विपरीत हार्टशोर्न और ह्विट्लसी आदि द्वारा पुनर्परिभाषित राजनीतिक भूगोल वर्णनात्मक क्षेत्रीय अध्ययन था जिसमें सिद्धान्तपरक परिदृष्टि के लिए कोई स्थान नहीं था ।
परिणामस्वरूप जहां जैविक राजनीतिक भूगोल राजनीतिक अध्ययन की अन्य शाखाओं की तरह राज्य के वास्तविक संगठनात्मक स्वरूप को समझने की दिशा में एक सम्बद्ध कड़ी था, वहीं क्षेत्रपरक राजनीतिक भूगोल अन्य प्रकार के क्षेत्रीय अध्ययनों की भांति मूलतया नि:संगतावादी (आइसोलेशनिस्ट) था क्योंकि वह प्रत्येक राज्य को क्रियाशील संगठित इकाई के स्थान पर अनूठी क्षेत्रीय इकाई के रूप में देखने का पक्षधर था । परिणामस्वरूप विद्यार्थीकी दृष्टि राज्यों को एक दूसरे से अलग पहचान देने वाली विशिष्टताओं पर केन्द्रित थी न कि उनके बीच की संगठनात्मक समानताओं पर ।
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यही कारण था कि रैटज़ेल का राजनीतिक भूगोल राजनीति के विद्यार्थियो में अत्यधिक लोकप्रिय हुआ और राजनीतिक भूगोल सामाजिक विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा के रूप में प्रतिष्ठित हो गया । इसके विपरीत 1935 के बाद के पुनर्परिभाषित राजनीतिक भूगोल की कोई भी समाज वैज्ञानिक पहचान नहीं बन सकी ।
परिणामस्वरूप राजनीतिक भूगोल अन्य सामाजिक विज्ञानों से पूरी तरह अलग थलग पड़ गया । राजनीतिक भूगोल का यह संकल्पनात्मक पुनर्जन्म मूल रूप से इस विषय को जर्मन भूराजनीति और राज्य की जैविक परिकल्पना से सर्वथा अलग और भूगोल की क्षेत्रीय अवधारणा के अनुरूप स्थापित करना था ।
अत: चालीस और पचास के दशक में इसे संयुक्त राज्य अमरीका में बहुत लोकप्रियता मिली । विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में इसकी कक्षाओं में विद्यार्थियों की संख्या काफी बढ़ गई । परन्तु यूरोपीय देशों, विशेषकर ब्रिटेन में, इस नई परिभाषा का विपरीत प्रभाव पड़ा ।
कुछ वर्षों से ब्रिटेन विश्व के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित था । उसके विशाल साम्राज्य में सूरज कभी भी अस्त नहीं होता था । यही कारण था कि ब्रिटेन में राज्य की जैविक संकल्पना और तत्सम्बन्धी अध्ययन पद्धति अत्यधिक लोकप्रिय हुई ।
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अत: अपने क्षेत्रपरक नए अवतार में राजनीतिक भूगोल व्रिटिश अध्येताओं को नीरस और वास्तविकता से दूर, तथा राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से सर्वथा अनुपयोगी प्रतीत हुआ । परिणामस्वरूप इसकी लोकप्रियता हुत गति से समाप्त हो गई और अर्द्धशती के आते-आते इसके अध्ययन-अध्यापन का अवसान होने लगा । ब्रिटेन में राजनीतिक भूगोल के विद्यार्थी प्रारम्भ से ही राजनीतिक अध्ययन में वैश्विक परिदृष्टि के पक्षधर थे ।
तत्कालीन विश्व के सबसे बड़े साम्राज्य के इन नागरिकों को इसके अध्ययन में आत्म गौरव और राष्ट्रीय स्वाभिमान की अनुभूति होती थी । क्षेत्रीय परिदृष्टि वाले नए राजनीतिक भूगोल में राज्यों के परस्पर सम्बन्धों और विश्वव्यापी अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक मुद्दों के अध्ययन के लिए स्थान नहीं था ।
परिणामस्वरूप इसके अध्ययन-अध्यापन में हुत गति से हास आया । द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हास की गति ओर तीव्र हो गई । राजनीतिक भूगोल के पुराने अध्येता युद्ध पश्चात विश्व के राजनीतिक मानचित्र में आए परिवर्तनों आदि से सम्बद्ध मुद्दों के अध्ययन की ओर प्रवृत्त हो गए ।
इस प्रकार के क्षेत्रीय राजनीतिक परिवर्तनों से सम्बद्ध प्रकाशनों में ब्रिटिश भूगोलवेत्ता ईस्ट और स्पेट द्वारा सम्पादित चेजिंग मैप ऑफ एशिया (1950) तथा ईस्ट और मूडी द्वारा सम्पादित कृति चेजिंग वर्ल्ड (1956) विशेष उल्लेखनीय हैं । इस दौर में ब्रिटिश राजनीतिक भूगोल विषय के सैद्धांतिक और वैचारिक पक्षों पर विचार-विमर्श की गतिविधियो से प्राय: कटा रहा ।
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वैचारिक विचार-विमर्श अब प्रमुखतया अमरीकी विद्वानों के योगदान का क्षेत्र बन गया । यद्यपि तीस ओर चालीस के दशकों में संयुक्त राज्य अमरीका में राजनीतिक भूगोल के स्नातक स्तरीय अध्ययन में आशातीत विकास हुआ परन्तु उच्च स्तरीय शोध की प्रक्रिया सर्वथा मन्द बनी रही ।
इस बात की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए हटिशोर्न ने 1950 में प्रकाशित अपने अध्यक्षीय भाषण में दु:ख प्रकट करते हुए कहा कि भूगोल की अन्य किसी शाखा में शिक्षकों द्वारा दूसरों को सिखाने का प्रयास स्वयं को शिक्षित करने के प्रयास से इतना दूर नहीं हुआ है जितना कि राजनीतिक भूगोल में ।