Read this article to learn about the importance of human resources in political geography in Hindi language.
राजनीति का प्रारम्भ मनुष्य की आवश्यकता पूर्ति के लिए किए जाने वाले प्रयासों को दिशा देने के उद्देश्य से ही हुआ था । अत: अन्य सोद्देशय मानवीय क्रियाओं की भांति राजनीति भी जनसंख्या के विभिन्न पक्षों से गहराई से सम्बन्धित है ।
इस दृष्टि से जनसंख्या के सबसे महत्वपूर्ण पक्ष उसका आकार और वितरण, उसकी गुणवत्ता, तथा उसकी संरचना हैं । अनेक अर्थों में जनसंख्या का आकार अर्थात् कुल जनसंख्या का परिमाण राजनीतिक-आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ।
पूर्व-आधुनिक युग में, जव तकनीकी विकास की प्रगति निम्नस्तरीय थी, जनसंध्या देश की सबसे बड़ी शक्ति तथा सबसे महत्वपूर्ण संसाधन थी क्योंकि सभी क्षेत्रों में विकास के लिए मानव श्रम केन्द्रीय महत्व का था । परिणामरमरूप पुराने जमाने में विशाल जनसंख्या वाले देश सबसे शक्तिशाली देश थे । यही कारण था कि पूर्व आधुनिक युग में फ्रांस, यूरोपीय, महाद्वीप का सबसे शक्त्ति सम्पन्न राज्य था ।
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उसके पास यूरोप की सबसे बड़ी सेना थी । उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में फ्रांस की कुल जनसंख्या 24,000,000 थी, जबकि रूस की कुल जनसंख्या 19,000,000 तथा ब्रिटेन की मात्र 10,900,000 थी । फ्रांसीसो सेनाओं के विजय का श्रेय देश की वृहद जनसंख्या को था ।
पचास वर्ष वाद स्थिति बहुत बदल चुकी थी । जीवन स्तर के विकास के साथ-साथ फ्रांस में जनसंख्या वृद्धि की दर काफी नीचे आ गई थी । तथा वर्ष 1870 तक जर्मनी यूरोप का सवीधिक जनसंख्या वाला देश बन गया था ।
उन्नीसवीं सदी के अन्त तक ब्रिटेन की जनसंख्या भी फ्रांस से ज्यादा हो गई थी । 1870-71 तक जर्मनी यूरोप महाद्वीप का सवसे शक्ति सम्पन्न राज्य बन गया था, यद्यपि कि विश्व स्तर पर वह ब्रिटेन से अभी भी बहुत पीछे था ।
जर्मनी की बढ़ती हुई राजनीतिक और आर्थिक शक्ति में अनेक तत्वों का सम्मिलित योगदान या परन्तु इसमें उसकी जनसंख्या अर्थात मानव संसाधन का आकार और उसकी गणवत्ता का योगदान निश्चय ही महत्वपूर्ण था ।
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प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् सर्वागीण तकनीकी विकास के परिणामस्वरूप शक्ति निर्धारण में संध्या के स्थान पर जनसंख्या की गुणवत्ता अर्थात् उसकी बुद्धि प्रवणता और उसके तकनीकी ज्ञान के स्तर का महत्व सर्वोपरि हो गया ।
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् की यातायात गति और मारक यंत्रों की विध्वंसक क्षमता सामरिक शक्ति के मूल निर्णायक तत्व वन गए उद्योगों में भी सब कुछ प्राय: यांत्रिक हो गया, यहां तक कि कुषि कार्य में भी यात्रिकता का वोल-वारना हो गया ।
ऐसे में जनसंख्या की विशालता सुविधा के स्थान पर असुविधा का कारण बन गई । अधिक जनसंख्या को अब उपयोगी श्रम संसाधन के स्थान पर देश के संसाधनों पर अनावश्यक दबाव के रूप में देखा जाने लगा । तकनीकी गुणवत्ता रहित जनसंख्या देश की गरीबी का कारण बन गई जैसा कि दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के उदाहरण से स्पष्ट है ।
वियतनाम युद्ध जैसी गोरिल्ला युद्ध शैली वाली स्थितियों के अतिरिक्त (वह भी तभी तक जब तक कि यह आश्वासन हो कि बड़े पैमाने पर विध्वंस करने वाले मारक यंत्रों का प्रयोग नहीं किया जाएगा) जनसंख्या का विशाल आकार आज की स्थिति में प्राय सर्वथा समस्यामूलक है ।
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जनसंख्या के क्षेत्रीय वितरण का स्वरूप अनेक अर्थों में बहुत महत्व का हैं । जनसंख्या के घनत्व का क्षेत्रीय वितरण किसी देश में अमीरी और गरीबी तथा उसकी साधन सम्पन्नता और विपन्नता के क्षेत्रीय प्रारूप का महत्वपूर्ण सूचक है ।
इस दृष्टि से जनसंख्या के घनत्व का क्षेत्रीय वितरण परोक्ष रूप से राजनीतिक दृष्टिकोण के क्षेत्रीय वितरण का भी परिचायक होता हे क्योंकि बन्धन मुक्त मतदान वाली बहुदलीय जनतांत्रिक व्यवस्था में जीवन स्तर का क्षेत्रीय वितरण दक्षिण पंथी बनाम वामपंथी राजनीतिक रुझान के विकास में निर्णायक भूमिका निभाता है ।
वर्तमान तकनीकी विकास के युग में जबकि जनसंख्या का विशाल आकार आर्थिक दृष्टि से महत्वहीन हो गया है और बहुत हद तक मानव श्रम का स्थान मशीनों ने ले लिया है, जनसंख्या का महत्व मुख्यतया उसकी गुणवत्ता पर निर्भर है ।
आज गुणवत्ता का मुख्य प्रतिमान शिक्षा और वैज्ञानिक तथा तकनीकी ज्ञान का स्तर है । इन्हीं तत्वों पर मानव श्रम की उत्पादक क्षमता निर्भर है और वे ही विकास की कुंजी प्रदान करते हैं । यह सामान्य तथ्य है कि संसार के गरीब और अविकसित तथा विकासशील देशों में शिक्षा और तकनीकी ज्ञान का स्तर निम्न है, जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग अशिक्षित और आधुनिक ज्ञान से अछूता है ।
अनेक अर्थों में जनसंख्या का संरचनात्मक पक्ष उसके मूल स्वरूप का परिचायक है । जनसंख्या संरचना के मुख्य पक्ष इस प्रकार हैं आयु, लिंग, जन्मदर, मुत्युदर, शिक्षा का स्तर, तथा जातीय और सामाजिक अनेकता । आयु जनसंख्या में बच्चों, युवक-युवतियों और अधेड तथा बृद्ध लोगों का प्रतिशत दर्शाती है ।
जहां शिशु और बच्चों का प्रतिशत अधिक है, भविष्य में जनसंख्या वृद्धि की दर ऊंची होगी । इसी प्रकार जनसंख्या की समकालीन वृद्धि युवक-युवतियों की संख्या पर निर्भर है । कुल जनसंख्या में इनका प्रतिशत जितना अधिक होगा वृद्धि दर उतनी ऊंची होगी ।
दूसरी ओर यदि कुल जनसंख्या में 45 वर्षों से अधिक आयु वाले लोगों का प्रतिशत अधिक है तो वहां जनसंख्या वृद्धि की दर धीमी होगी अथवा जनसंख्या स्थायी होगी । ऐसे में जनसंख्या विकास की दर ऋणात्मक भी हो सकती है । इसी प्रकार जनसंख्या में आयु वर्ग के अनुसार महिलाओं का प्रतिशत किसी देश की जनसंख्या विकास की सम्भावनाओं का अनुमान देता है, तथा श्रमशक्ति की दृष्टि से उसका महत्व निर्धारित करता है ।
अविकसित देशों में जहां शिक्षा और तकनीकी विकास निम्न स्तरीय है महिला अपेक्षाकृत कम मूल्यवान संसाधन होती है, परन्तु विकसित देशों में विशेषकर मानसिक कार्य के क्षेत्र में स्थिति भिन्न है क्योंकि वहां लिग भेद कार्य दक्षता के स्तर पर महत्वपूर्ण नहीं रह जाता ।
जनसंख्या की आयु ओर लिंग सम्बन्धी संरचना का निरूपण बहुधा जनसंख्या पिरामिड (पापुलेशन पिरामिड) द्वारा किया जाता हैं । इसके अन्तर्गत प्राय पांच वर्ष के अन्तराल के आधार पर कुल जनसंख्या को पृथक-पृथक आयु वर्ग में विभक्त कर लिया जाता है, और इनको क्षैतिज स्थिति वाले दण्डों (बार) के रूप में कम आयु वाले वर्ग से प्रारम्भ करते हुए एक के ऊपर दूसरे वर्ग की स्थिति दर्शाते हैं ।
इस प्रकार एक ”पिरामिड” का आकार बन जाता है जो सामान्य स्थिति में नीचे चौड़ा और ऊपर क्रमश संकरा होता जाता है । वहुधा इन क्षैतिज दण्डों में प्रत्येक को पुरुष और महिला के प्रतिशत के आधार पर वाट कर दरशाया जाता है जिससे कि कुल जनसंख्या में विभिन्न आयु वर्गों में लिंग के आधार पर जेन संसाधन के विभाजन का ज्ञान प्राप्त हो सके ।
इस पिरामिड की आकृति सम्बद्ध देश की जनसंख्या की संरचना के बारे में महत्वपूर्ण सूचना देता है । सामान्यतया स्थायी विकास दर वाले देशों की जनसंख्या संरचना दिखाने वाले पिरामिड का आधार चौड़ा और नीचे से ऊपर की ओर क्रमवार रूप से संकरा होता जाता है ।
इसके विपरीत यदि कोई देश क्रमश घटती जनसंख्या विकास दर वाला है तो वहां वृद्धों की संख्या अधिक और कम आयु वर्गों की संख्या अपेक्षाकृत कम होगी । ऐसे में पिरामिड की आकृति उल्टी होगी, अर्थात् पिरामिड ऊपर चौड़ा और नीचे संकरा होगा ।
जनसंख्या में धार्मिक, भाषाई और अन्य सांस्कृतिक और सामाजिक विभिन्नताओं पर आधारित विभाजन भी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । जिन देशों में इन मामलों में एकरूपता विद्यमान है वहां राष्ट्रीय एकता अधिक पुष्ट होगी ।
धार्मिक भाषाई और अन्य प्रकार की विविधता राष्ट्रीय जीवन में पार्थक्य को जन्म देते हैं । अत: भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक पहचान वाले समूहों को एक सूत्र में पिरोने के लिए राजनेताओं को निरन्तर प्रयासरत होना पड़ता है ।
यहां भी विभिन्न धार्मिक-सांस्कृतिक आस्था वाले, समूह यदि क्षेत्रीय रूप में एक दूसरे से मिले जुले रूप में वितरित हों तो सारे पार्थक्य के बावजूद उनको आपसी समझौते के माध्यम से एक मंच पर लाना बहुत दुष्कर नहीं होता क्योंकि प्रत्येक वर्ग की यह परिस्थितिजन्य मजबूरी है कि वे आपस में सौहार्दपूर्वक रहें क्योंकि यही उनकी नियति है ।
इसके विपरीत यदि विभिन्न सांस्कृतिक गुटों का क्षेत्रीय वितरण इस प्रकार का है कि क्षेत्र अलग-अलग विशिष्ट आस्था वाले समूहों के बहुमत वाले क्षेत्र हों तो इन समूहों को परस्पर एक सूत्र में बांधना बहुत कठिन हो जाता है ।