Read this article to learn about the era of air war in Hindi language.
प्रथम विश्व युद्ध के बाद से ही वायु यातायात और उसकी सामरिक सम्भावनाओं की चर्चा प्रारम्भ हो गई थी । 1920 के दशक में ही इटली के जनरल गियुलिओ दूहेत तथा संयुक्त राज्य के जनरल विलियम मिचेल इस विषय पर महत्वपूर्ण विचार प्रकट कर रहे थे । दूहेत ने स्पष्ट किया कि युद्ध संघर्ष अब उत्तरोत्तर समग्र राष्ट्रीय संघर्ष बन गया है, अर्थात् देश की समग्र जनसंख्या तथा सम्पूर्ण संसाधन-व्यवस्था युद्ध से सीधे तौर पर जुड़ गई है ।
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परिणामस्वरूप पुराने युद्धों के विपरीत (जबकि युद्ध मात्र शासकों तथा सेनाओं तक ही सीमित था) भविष्य के युद्ध राष्ट्रीय स्तर पर सर्वव्यापी संघर्ष (टोटल वार) का रूप धारण कर लेंगे । इसी प्रकार जनरल मिचेल ने स्पष्ट किया कि भविष्य में पुराने काल के युद्धों की भांति ही राष्ट्रों के बीच युद्ध की वास्तविक लड़ाई विशेष रूप से प्रशिक्षित वायु युद्ध में प्रवीण सैनिकों के बीच होगी ।
परन्तु युद्ध में स्थायी विजय प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि शत्रु की युद्ध क्षमता को पूरी तरह तहस नहस कर दिया जाए अर्थात् उसके उद्योगों, उसके शक्ति उत्पादक संस्थानों, उसकी संचार व्यवस्था, और उसकी कृषि उत्पादकता को विनष्ट करना आवश्यक है ।
वायुयान शत्रु देश के किसी भी कोने तक पहुंच कर उसे बम वर्षा द्वारा तहस नहस करने में सक्षम हैं, अत: द्रुतगामी वायुयानों की सहायता से सैनिक एक स्थान से चल कर अपने गंतव्य तक सीधे वार करके अपने स्थान पर वापस लौट सकेंगे । इसलिए भविष्य में अग्रिम पडावों (एडवांस बेसेज़) की आवश्यकता नहीं रहेगी ।
अलेक्ज़ाण्डर डी सेवरस्काई की वायु युगीन सामरिक संकल्पना:
दूहेत और मिचेल के विचारों को आगे बढाने में अमरीकी विद्वान अलेक्ज़ाण्डर डी सेवरस्काई का योगदान महत्वपूर्ण है । उसके विचार मिचेल से विशेष रूप से प्रभावित थे । डॉ. सेवरस्काई की प्रथम पुस्तक विक्टरी थ्रू एयर पावर 1942 में प्रकाशित हुई थी ।
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इसमें लेखक ने युद्ध में वायु शक्ति की केन्द्रीय भूमिका पर जोर देते हुए दो बातों की ओर ध्यान आकर्षित किया । एक यह कि वायु युद्ध के युग में युद्ध कार्य हेतु लम्बे अर्धव्यास की आवश्यकता है, तथा दूसरी यह कि वायु सेनाओं के लिए लम्बी चौड़ी स्थलीय संगठन व्यवस्था, तथा आर्कटिक सागरीय मार्ग पर वायुयान पड़ावों की व्यवस्था अनावश्यक है ।
डी सेवरस्काई के अनुसार हुतगामी वायुयानों का विकास कर प्रारम्भिक ठिकानों से निर्दिष्ट गंतव्य पर सीधे वार करना हर दृष्टि से अधिक प्रभावी है । साथ ही वायु युग का यह आधारभूत विवेक है कि भविष्य के युद्ध गह भूमि से ही संचालित हों ।
1950 में डी सेवरस्काई ने एयर पावर: की टु सर्वाइवल शीर्षक से एक दूसरी पुस्तक प्रकाशित की । इसमें लेखक ने संयुक्त राज्य अमरीका के शासकों को सुझाव दिया कि देश का मुख्य सैनिक और सुरक्षा उद्देश्य अमरीका द्वारा विश्व की सर्वोपरि वायु शक्ति का विकास होना चाहिए ।
देश की वायु शक्ति इतनी विशाल बनानी चाहिए कि कोई भी दूसरा राष्ट्र उसके राष्ट्रीय हितों को हानि पहुंचाने का दुस्साहस करने से डरे और उसे भली प्रकार ज्ञात करा दिया जाए कि ऐसे किसी दुस्साहस का परिणाम प्रलयकारी सर्वनाश होगा ।
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लेखक ने देश की सीमाओं से दूर सुरक्षात्मक ठिकानों को सामरिक दृष्टि से अनावश्यक बताया । उसके विचार से घेरा बन्दी की विदेश नीति वायु यातायात के युग में सर्वथा असंगत हो गई है क्योंकि अब निर्णायक युद्ध गृहभूमि से सीधे लड़े जा सकते हैं ।
सोवियत संघ की सीमाओं पर छोटी बड़ी लड़ाइयां संसाधनों का अनावश्यक दुरुपयोग मात्र थीं क्योंकि अमरीका को इन पर बहुत अधिक धन व्यय करना पड़ता था लेकिन रूस को उनसे कोई हानि नहीं पहुंचती थी । ध्यातव्य है कि डी सेवरस्काई का सामरिक चिन्तन भी मूलत हृदय स्थल और उपान्तीय क्षेत्र के परस्पर संघर्ष की धारणा पर केन्द्रित था अर्थात् मैकिंडर की मूलभूत संकल्पना यथावत कायम थी ।
अन्तर मात्र यह था कि मर्केटर प्रक्षेप शीर्ष केन्द्रित समान दूरियों वाले प्रक्षेप द्वारा स्थानच्युत कर दिया गया था, और अब मुख्य संघर्ष हृदय स्थल बनाम यूरेशिया की तटीय समुद्री पेटी के स्थान पर आर्कटिक सागर के आर-पार एक दूसरे के आमने-सामने स्थित हृदयस्थल (अर्थात् सोवियत संघ) तथा संयुक्त राज्य अमरीका के बीच स्थानान्तरित हो गया था ।
वायु यातायात के युग में अमरीका और सोवियत संघ के बीच होने वाला सम्पूर्ण यातायात सम्पर्क आर्कटिक सागर के आर-पार होने लगा था क्योंकि दोनों के बीच वृहद्वृत्तीय मार्ग आर्कटिक सागर के ऊपर से ही गुजरते हैं । इस प्रकार आर्कटिक सागर वायु युग का ”भूमध्य” सागर बन गया था ।
संयुक्त राज्य और सोवियत संघ के बीच के सामरिक संघर्ष का वास्तविक भौगोलिक स्वरूप दर्शाने के उद्देश्य से डी सेवरस्काई ने विश्व के मानचित्र को उत्तरी ध्रुव पर केन्द्रित समान दूरी वारने एजिक्यूल प्रक्षेप पर प्रस्तुत किया ।
लेखक ने इस मानचित्र पर क्रमश: संयुक्त राज्य अमरीका तथा सोवियत संघ (रूस) के सवीधिक विकसित औद्योगिक प्रदेशों पर केन्द्रित दो अलग-अलग वृहद्वृत्त खीचें जिससे कि दोनों प्रतिस्पर्धी शक्तियों के वायु शक्ति प्रभाव क्षेत्रों को अलग-अलग दिखाया जा सके ।
ये दोनों वृहद्वृत एक विस्तृत क्षेत्र के ऊपर एक दूसरे का अधिच्छादन करते हैं । डॉ. सेवरस्काई के अनुसार इस अधिच्छादन क्षेत्र में ही दोनों महाशक्तियों की सापेक्षिक शक्ति का अन्तिम निर्णय सम्भव था । अत: लेखक ने इसे निर्णय क्षेत्र की संज्ञा दी । डॉ. सेवरस्काई के अनुसार संयुक्त राज्य को अपनी सारी सामरिक शक्ति इस निर्णय क्षेत्र में ही संचित करनी चाहिए जिससे कि विश्वव्यापी सामरिक शक्ति परीक्षण में उसकी विजय के बारे में किसी प्रकार का अन्देशा न रहे ।
युद्ध की तकनीक में लगातार होती क्रांतिकारी प्रगति के परिणामस्वरूप 1950 की तकनीक के परिप्रेक्ष्य में लिखी गई डी सेवरस्काई की संकल्पना भी शीघ्र ही समयक्षत हो गई । पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली अन्तरमहाद्वीपीय मिसाइलों के आगमन के साथ ही डी सेवरस्काई कि आर्कटिक केन्द्रित हृदय स्थल बनाम संयुक्त राज्य अमरीका के बीच के संभावित सामरिक संघर्ष पर केन्द्रित संकल्पना समकालीन स्थिति के अनुरूप नहीं रही ।
युद्ध यातायात की इस तकनीक के परिप्रेक्ष्य में “निर्णय क्षेत्र” की चर्चा निरर्थक हो गई । साथ ही अणुशक्ति चालित और समुद्र की सतह के नीचे लम्बे समय तक बनी रहने वाली पनडुब्बियों के निर्माण ने विश्व के देशों के बीच के सामरिक सम्बन्धों में एक नया आयाम जोड़ दिया है ।
डी सेवरस्काई की संकल्पना की मूलभूत त्रुटि यह थी कि लेखक का सारा चिन्तन राष्ट्रीय स्तर के सम्पूर्ण युद्ध (अर्थात् शत्रु के पूर्ण विध्वंस) की परिकल्पना पर केन्द्रित था । परन्तु युद्ध का मूल उद्देश्य शत्रु को पराजित करके शक्ति संचय करना तथा उसके माध्यम से देश के मित्रों का दायरा बढ़ाना तथा शत्रुओं की संख्या कम करना है ।
शत्रु का विध्वंस इन उद्देश्यों की पूर्ति नहीं कर सकता । इस संकल्पना की एक अन्य कमी यह थी कि लेखक ने अन्तरराष्ट्रीय राजनीति को पूरी तरह दो महाशक्तियों के बीच के सीधे संघर्ष के रूप में देखने का प्रयास किया । वास्तव में विश्व राजनीति प्रकृति से ही बहुनाभीय तथा बहुक्षेत्रीय संघर्ष है ।
शीत युद्ध के युग में दोनों महाशक्तियां अन्तरराष्ट्रीय राजनीति की पहरेदार अवश्य थीं परन्तु उसका केन्द्र नहीं । लेकिन यह निर्विवाद सत्य है कि हृदय स्थत्न संकल्पना बीसवीं सदी के सामरिक चिन्तन की आधारशिला बन गई थी, और 1950 के बाद संयुक्त राज्य तथा सोवियत रूस भूमण्डलीय स्तर पर शक्ति के दो परस्पर प्रतिस्पधीं ध्रुवों के रूप में स्थापित हो गए थे, तथा अपने आप को उसी रूप में देखने लगे थे ।
अत: दोनों मुख्य प्रतिद्वंद्वियों की मानसिकताएं डॉ. सेवरस्काई की संकल्पना के अनुरूप थीं । यही मानसिकता आणविक शक्ति के विकास और संचयन का मुख्य कारण बनी तथा वायुशक्ति को उत्तरोत्तर आणविक शस्त्रों के वाहन के माध्यम के रूप में देखा जाने लगा । अत: विश्व राजनीति का शीत युद्ध कालीन भयाक्रांत ठहराव का मूल कारण वायुशक्ति न होकर आणविक प्रास्त्रास्त्र थे ।