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मैकिंडर ओर ब्रिटिश राजनीतिक भूगोल:
सर हल्फोर्ड मैकिंडर (1861-1947) जिन्हें ब्रिटेन में आधुनिक भूगोल का शीर्ष पुरुष (ग्रांड ओल्ड मैन) कहा गया है, राजनीतिक भूगोल के क्षेत्र में एक मूर्धन्य विचारक थे ।
मैकिंडर का राजनीतिक भौगोलिक चिन्तन रैटजेल द्वारा प्रतिपादित राज्य की जैविक संकल्पना के अनुरूप था परन्तु दोनों की चिंतन प्रक्रिया में मूलभूत अन्तर यह था कि दोनो के ही विचार अपने-अपने देश के राजनीतिक और आर्थिक उद्देश्यों से प्रेरित थे ।
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तत्कालीन जर्मनी की मूल समस्या और उसके राजनीतिक विचारकों की परिदृष्टि औद्योगिक विकास में द्रुत गति से आगे बढ़ने और देश को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर एक महान शक्ति के रूप में स्थापित करने के प्रयास में लगे राज्य की आवश्यकताओं से प्रेरित थी ।
इसके विपरीत मैकिडर विश्व की सबसे बडी आर्थिक और राजनीतिक शक्ति ग्रेट ब्रिटेन के नागरिक थे । बीसवीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों में जर्मनी की द्रुत गति से बढ़ती औद्योगिक प्रगति से ब्रिटेन के अलरराष्ट्रीय व्यापार को खतरा उत्पन्न हो गया था ।
अपेक्षाकृत सस्ते उत्पादों के माध्यम से जर्मनी ने ब्रिटेन के विश्व बाजार की सहभागिता को कम करना प्रारंभ कर दिया था । परिणामस्वरूप जहां जर्मनी मुक्त बाजार व्यवस्था का पक्षधर था वहीं अब ब्रिटेन को वर्तमान स्थितियों में अपने उपनिवेशों के बाजारों को सुरक्षित रखने की आवश्यकता प्रतीत होने लगी थी ।
ब्रिटिश साम्राज्य की ये समस्याएं और आवश्यकताएं मैकिंडर के राजनीतिक चिंतन का प्रमुख मुद्दा बन गई । यह बात उसके ”हृदय स्थल” सम्बन्धी विश्व सामरिक परिदृष्टि से स्पष्ट है । यूरोपीय इतिहास के अध्ययन के आधार पर मैकिंडर ने यह अवधारणा बनाई थी कि यूरोप में संस्कृतियों के विकास और पराभव की कहानी मूलरूप से सामुद्रिक शक्तियों और स्थल शक्तियों के बीच वर्चस्व के होड़ की लड़ाई थी तथा नई दुनिया की खोज के पश्चात् वर्चस्व का यह संघर्ष सामुद्रिक शक्तियों के पक्ष में हो गया था ।
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परिणामस्वरूप ब्रिटेन अपनी सामुद्रिक शक्ति के बलबूते विश्व के कोने-कोने में साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुआ था । मैकिंडर के अनुसार बीसवीं सदी के प्रारम्भिक वर्षो में ब्रिटेन और अन्य सामुद्रिक शक्तियों का अन्तरराष्ट्रीय वर्चस्व खतरे में पड़ गया था, क्योंकि स्थल यातायात की तकनीकों के विकास के साथ ही स्थल शक्तियों को तीव्र गतिशीलता प्राप्त हो गई थी ।
अत: रेलों का सम्यक् विकास करके एशिया के विशाल आन्तरिक क्षेत्र को प्रभावी सत्ता सूत्र में आबद्ध कर उपमहाद्वीपीय आकार के एक विशाल राज्य का विकास अब एक निश्चित सम्भावना बन गई थी । मैकिंडर की हृदय स्थल परिकल्पना इसी सम्भावना के वास्तविकता में परिणति के सम्भावित परिणामो की चिन्ता से प्रेरित थी ।
लेखक का 1904 में प्रकाशित मूल लेख ”वि जिओग्राफिक पाइवट ऑफ हिस्टरी” (इतिहास की भौगोलिक धुरी) तथा इसके पन्द्रह वर्ष बाद प्रकाशित पुस्तक ”डेमोक्रेटिक आइडियल्स एण्ड रियलिटी” (लोकतांत्रिक आदर्श तथा यथार्थ) (1919) इस सम्भावना को वास्तविकता में परिवर्तित होने से रोकने की दिशा में किया गया एक वैचारिक प्रयास था ।
मध्य एशियाई हृदय स्थल क्षेत्र में एक सत्ता सम्पन्न उपमहद्विापीय आकार वाले राज्य का विकास ब्रिटेन के अन्तरराष्ट्रीय अस्तित्व के लिए खतरे की घंटी था । मैकिंडर की इस परिकल्पना की सविस्तार चर्चा अध्याय सात में अन्य सामरिक परिदृष्टियों के साथ की गई है ।
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1887 में प्रकाशित ”भूगोल की अध्ययन पद्धति और उसका विषय क्षेत्र” शीर्षक एक लेख में मैकिंडर ने राजनीतिक भूगोल में विवेकपूर्ण चिंतन के अभाव पर चिन्ता व्यक्त की थी । लेखक के अनुसार तत्कालीन राजनीतिक, भूगोल में तर्कसंगत ओर अनुशासनबद्ध अध्ययन का नितान्त अभाव था ।
इस प्रकार के अध्ययन के अभाव में राजनीतिक भूगोल उच्च ज्ञान की एक शास्त्रीय शाखा (डिसिप्लिन) नहीं बन सकता था । मैकिंडर की हृदय स्थल परिकल्पना अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों के भौगोलिक अध्ययन में अनुशासनबद्धता लाने की दिशा में एक विशिष्ट प्रयास था ।
संयुक्त राज्य अमरीका में राजनीतिक भूगोल का विकास |
संयुक्त राज्य अमरीक में राजनीतिक भूगोल का अध्ययन-अध्यापन प्रथम विश्व युद्ध के बाद ही प्रारम्भ हुआ । इसके पहले अमरीका यूरोपीय तथा विश्वस्तरीय राजनीति के प्रति सर्वथा उदासीन था ।
उसका सारा राजनीतिक प्रयास पश्चिमी गोलार्द्ध से यूरोपीय शक्तियों को दूर रखने पर केन्द्रित था । युद्धोपरान्त हुई शान्तिवार्ता में अमरीका की मुखर भागीदारी ओर रजसमें अमरीकी भूगोलविदों के सक्रिय सहयोग से स्थिति में गुणात्मक परिवर्तन आया तथा अमरीकी भूगोलविद् राजनीतिक भूगोल के अध्ययन की ओर आकृष्ट हुए ।
विश्व राजनीति में अमरीका का बदलता दृष्टिकोण और उसमें उसकी बढ़ती हुई भागीदारी इसका प्रमुख कारण था । इन बदलती हुई स्थितियों में राजनीतिक अध्ययन में भौगोलिक दृष्टिकोण की उपादेयता की ओर ध्यान आकृष्ट हुआ ।
यही कारण था कि युद्धोपरान शान्तिवार्ता और शान्ति समझौते में भूगोलविदों का सहयोग लिया गया । पैरिस शान्ति समझौते के लिए सीमाओं के निर्धारण हेतु मध्य और पूर्वी यूरोप के सही और विस्तृत सूचना देने वाले मानचित्रों की आवश्यकता थी ।
अत: शान्तिवार्ता के दौरान अमरीकी प्रतिनिधियों को परामर्श देने के लिए उस समय के मूर्धन्य भूगोलविद इजाया बोमेन (1878-1950) के नेतृत्व में भूगोलविदों की एक नामिका (पैनल) पूर्वी और मध्य यूरोप में नई राजनीतिक सीमाओं के निर्धारण में सहायता प्रदान करने के लिए तेयार की गई थी जिससे कि विभिन्न ”राष्ट्रीय” इकाइयों (वास्तव में भिन्न-भिन्न भाषाई इकाइयों) के लिए अलग-अलग और पूर्णतया स्वतंत्र राजनीतिक इकाइयों के सीमा निर्धारण में सुविधा हो ।
शान्तिवार्ता के दौरान प्राप्त अनुभवों के परिणामस्वरूप अमरीकी विद्यार्थियों में राजनीतिक भूगोल के अध्ययन में रुचि जागत हुई । शान्तिवार्ता में भूगोल को मिली इस मान्यता के फलस्वरूप राजनीतिक भूगोल में क्षेत्रीय परिदृष्टि को बढावा मिला ।
पेरिस शान्तिवार्ता में भूगोलविदों का मुख्य योगदान अन्य विद्वानों को विभिन्न क्षेत्रों में जनसंख्या और भाषाई गुटों के क्षेत्रीय वितरण तथा विभिन्न क्षेत्रीय इकाइयों के आर्थिक, सामरिक और राजनीतिक महत्व के आकलन आदि के वारे में सूचित करना था जिससे कि इन क्षेत्रों में नई सीमाओं के निर्धारण के पश्चात् स्थायी और पूर्णतया क्रियाशील राजनीति इकाइयों का निर्माण हो सके ।
परिणामस्वरूप बिना किसी स्पष्ट उद्देश्य एवं नियोजित प्रयास के ही राजनीतिक भूगोल का अध्ययन धीरे-धीरे अधिकाधिक क्षेत्रपरक (“कोरोलॉजिकल”) अध्ययन बन गया । इस दिशा में बोमैन की पुस्तक: न्यू वर्ल्ड: प्राब्लम्स इन पोलिटिकल ज्यॉग्राफी (1921) विशेष प्रभावकारी सिद्ध हुई । इस पुस्तक में बोमैन ने पेरिस शांति समझौते के आधार पर किए गए क्षेत्रीय-राजनीतिक परिवर्तनों की भौगोनिक पृष्ठभूमि का विश्लेषण प्रस्तुत किया था जो प्रबुद्ध पाठकों द्वारा प्रशंसित हुआ ।
इसी प्रकार अन्य कई विद्वानों ने शान्तिवार्ता के दोरान चर्चित विषयों पर विस्तृत जानकारी देते हुए अनेक लेख प्रस्तुत किए । इन पुस्तकों और लेखों में राजनीतिक भूगोल की प्रकृति, राज्यों के स्वरूप तथा इस विषय की अध्ययन पद्धति आदि की कोई चर्चा नहीं थी ।
अत: अमरीकी विद्वत् समाज राजनीतिक भूगोल विषय की रेटजेल की विरासत से प्राय पूर्णतया अछूता रह गया । यही कारण है कि अमरीकी राजनीतिक भूगोल में प्रारम्भ से ही स्थानिक ओर आनुभविक (कोरोलॉजिकल एण्ड इम्पिरिकल) परिदृष्टि का बोलबाला था ।
परन्तु विषय के मूर्धन्य विचारकों के स्तर पर अमरीकी राजनीतिक भूगोल पर यूरोपीय विचारों का प्रभाव स्पष्ट था । रैटज़ेल द्वारा प्रतिपादित राज्य की जैवीय संकल्पना और उस पर आधारित राजनीतिक भूगोल की अध्ययन पद्धति से ये विद्वान भली- भांति परिचित थे ।
राजनीतिक भूगोल की चर्चा करते हुए बोमैन ने 1934 में लिखा था कि ”राजनीतिक भूगोल का अध्ययन राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी सहायता से किसी भी राजनीतिक इकाई के सामाजिक जीवन और उसके भौगोलिक वातावरण के समायोजन को सरलता से समझा जा सकता हैं” तथा साथ ही इसके अध्ययन से राजनीतिक इकाइयों के ”राष्ट्रीय विकास की सीमाओं और सम्भावनाओं” का आकलन भी प्राप्त होता है । इस कथन में जर्मन भूराजनीति का प्रभाव स्पष्टतया परिलक्षित है ।