Read this article to learn about the contribution of Stephen Jones to political geography in Hindi language.
क्रियापरक अध्ययन पद्धति को प्रस्तुत करते हुए हार्टशोर्न ने जोर देकर कहा था कि वे राजनीतिक भूगोल के अध्ययन में क्षेत्रपरक परिदृष्टि के पक्षधर हें तथा वे इसके अन्तर्गत अलग-अलग राज्यों के विशिष्ट राजनीतिक-क्षेत्रीय इकाइयों के रूप में अध्ययन के पक्षधर हैं ।
उनकी मान्यता थी कि राजनीतिक भूगोल में वैज्ञानिक नियमों ओर सामान्य तथ्यों के प्रतिपादन के प्रयास निरर्थक हैं क्योंकि प्रत्येक राज्य अनेक अर्थों में अन्यतम इकाई है । स्टीफेन जोन्स इस विचार से सहमत नहीं थे ।
उनके अनुसार ”अध्ययन के विषयवस्तु का अनूठापन, अध्ययन की जाने वाली क्षेत्रीय समष्टि अथवा उसके सन्दर्भ की क्लिष्टता, सिद्धान्त प्रतिपादन के रास्ते में अवरोध नहीं है क्योंकि सिद्धान्त मात्र सांख्यिकीय साधारणीकरण नहीं है” |
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अपनी इसी मान्यता के आधार पर अमरीका में येल विश्वविद्यालय के आचारी स्टीफेन जोन्स ने 1954 में राजनीतिक भूगोल के अध्ययन की एक नई विधि ”राजनीतिक भूगोल का सम्मिलित क्षेत्र सिद्धान्त” शीर्षक से प्रस्तुत किया ।
इसकी प्रस्तावना में लेखक ने कहा कि इस अध्ययन विधि को प्रस्तुत करने में उसका उद्देश्य राजनीतिक भूगोल में व्याप्त अध्ययन के उद्देश्य और विधि सम्बन्धी विरोधात्मक विविधता को समाप्त करके एक देसी विधि की स्थापना करना है जो विभिन्न प्रकार के मतों और मान्यताओं को परस्पर जोड़ कर एक ऐसी अध्ययन पद्धति को जन्म दे जिसके माध्यम से न केवल राजनीतिक भूगोल की विभिन्न मान्यताओं बल्कि राजनीति सम्बन्धी समान्तर मान्यताओं के बीच सामंजस्य स्थापित किया जा सके ।
एक ऐसी पद्धति जो ”आकारिकी और क्रियाशीलता, तथा स्थानिकता और ऐतिहासिक प्रक्रिया को आपस में बांध सके, तथा साथ ही (राजनीतिशास्त्र के) आधारभूत अवधारणाओं (ग्राण्ड आइडियाज़) तथा पुथ्वी की सतह के बीच सम्बन्ध स्थापित कर सके” ।
जोन्स राजनीतिशास्त्र और राजनीतिक भूगोल के बीच अभेद्य दीवार सम्बन्धी की मान्यता के विरोधी और दोनों विषयों में निरन्तर वैचारिक आदान-प्रदान के पक्षधर थे । सम्मिलित क्षेत्र सिद्धान्त का प्रारम्भिक बिन्दु हार्टशोर्न द्वारा चर्चित राज्य की राजनीतिक अवधारणा, अर्थात् ”स्टेट-आइडिया” ही था । जोन्स के विचार से ”राज्य’ और उसकी ”अवधारणा” के वीच स्थित अर्द्ध विराम (हाइफेन) दोनों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने वाले तीन माध्यमिक तत्वों (अर्थात् कड़ियों) का प्रतिनिधित्व करता है ।
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हार्टशोर्न की ”स्टेट-आइडिया” का पूरा रूप इस प्रकार है ”राजनीतिक अवधारणा-निर्णय-संचार- संचार क्षेत्र-राजनीतिक क्षेत्र” । पांच शब्दों के इस विन्यास को जोन्स ने ”अवधारणा राज्य शृंखला” (आइडिया-एरिया चेन) की संज्ञा दी ।
यहां संचार से लेखक का तात्पर्य गाटमैन की संचार सम्बन्धी अवधारणा के अनूरूप था और यह शब्द वहीं से लिया गया था । जोन्स ने रेखांकित किया कि इस शृंखला को लोहे की शृंखला न मानकर एक ही स्तर पर स्थित पांच जलाशयों की शृंखला के रूप में देखना चाहिए ।
इनके समान स्तर पर स्थित होने के कारण जो द्रव एक जलाशय में प्रविरस होगा वह धीरे-धीरे शेष चारों में सचरित हो जाएगा । इस संदर्भ में राजनीति एक अवधारणा का तात्पर्य मात्र राज्य की राजनीतिक अवधारणा से नहीं अपितु सभी प्रकार की राजनीतिक अवधारणाओं से है, ऐसी अवधारणाएं जो राजनीतिक परिवर्तन से प्रेरित हों ।
मनुष्य के सभी निर्णय, हमारी सम्पूर्ण राजनीति हमारे मस्तिष्क की उपज है अत: राजनीति का अध्ययन विचार प्रधान अध्ययन है । परन्तु असंख्य राजनीतिक अवधारणाओं में कोई एक ही स्पष्ट निर्णय का आधार बनती है और वही भविष्य की राजनीति को आधार प्रदान करती है ।
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प्रत्येक राजनीतिक निर्णय (अर्थात् निर्धारित नीति) नई क्रियाओं को जन्म देती है जो हमें संचार प्रक्रिया के माध्यम से परिलक्षित होते हैं । हर निर्णय या तो नई प्रकार की संचार प्रकिया को जन्म देता है, वर्तमान संचार प्रक्रिया को अवरुद्ध करता है, अथवा उसे संशोधित करता है ।
इसमें सभी प्रकार के संचार (सामान, व्यक्ति, और समाचार आदि) सम्मिलित हैं । राजनीतिक निर्णय के परिणामस्वरूप उत्पन्न संचार प्रक्रिया एक संचार क्षेत्र (फील्ड) बनाती है । भौतिकी में संचार क्षेत्र से तात्पर्य अनिवार्य रूप से संचार (मूवमेण्ट) से नहीं होता, उसका तात्पर्य प्रयोग की गई शक्ति की गहनता में क्षेत्रीय अन्तर से है ।
उदाहरण के लिए वृक्ष से सेब न गिरने की अवस्था में भी गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र उपस्थित रहता है । जोन्स की संचार क्षेत्र सम्बन्धी अवधारणा भौतिकीय अवधारणा के अनुरूप है । संचार क्षेत्र के दो परस्पर सम्बन्धित आयाम हैं, समय तथा भौगोलिक क्षेत्र ।
उदाहरण के लिए आवागमन संचार मूलतया समय ओर क्षेत्र सापेक्ष प्रक्रिया है जो कालान्तर में एक विशिष्ट प्रकार के संचार क्षेत्र को जन्म देती हैं । जब किसी राजनीतिक निर्णय के क्रियान्वयन से उद्भूत संचार राजनीतिक निर्णय में निर्दिष्ट क्षेत्र में पूर्ण व्यापकता प्राप्त कर लेता है तो संचार क्षेत्र और राजनैतिक क्षेत्र समरूप हो जाते हैं ।
अत: सम्बद्ध राजनीतिक निर्णय का उद्देश्य पूरा हो जाता है । इस प्रकार मूल अवधारणा पूर्ण रूप से सफल हो जाती है । राजनीतिक विचार और राजनीतिक क्षेत्र परस्पर स्वरूप हो जाते हैं तथा राजनीतिशास्त्र और भूगोल की शास्त्रीय परिदृष्टियां परस्पर परिपूरक बन जाती हैं ।
अपने द्वारा प्रस्तावित अध्ययन पद्धति की उपादेयता दर्शाने के लिए जोन्स ने इजराइल का उदाहरण देते हुए समझाया कि किस प्रकार इस अध्ययन पद्धति का उपयोग किसी नई राजनीतिक इकाई के उद्भव के अध्ययन में किया जा सकता है । इजराइल के जन्म के पीछे मूल अवधारणा यहूदीवाद की थी ।
बाल्फ़र घोषणा के माध्यम से यहूदियों के लिए पश्चिमी एशिया में स्वतंत्र राज्य के निर्माण का निर्णय उसकी राजनीतिक परिणति था जिसने विभिन्न प्रकार की संचार प्रक्रियाओं को जन्म दिया । यहूदी राज्य के लिए निर्धारित क्षेत्र इस संचार प्रक्रिया का संचार क्षेत्र बना जिसने इजराइल को प्रभुतासम्पन्न और पूर्णतया क्रियाशील राजनीतिक इकाई का रूप दिया ।
पाकिस्तान, बांग्लादेश अथवा अन्य किसी नए राज्य के उद्भव के अध्ययन में भी इस विधि को सफलतापूर्वक अपनाया जा सकता हैं । इसके अतिरिक्त सीमाओं, राजधानियों और नए औद्योगिक नगरों अथवा उपनगरों के विकास को भी इसकी सहायता से निरूपित किया जा सकता है ।
अपनी चर्चा के निष्कर्ष में लेखक ने स्पष्ट किया कि उसके विचार में एक न्याय संगत सैद्धान्तिक अवधारणा (वैलिडथियरी) को तीन उद्देश्यों की पूर्ति करना चाहिए :
(1) सुसम्बद्ध विवरण प्रस्तुत करना,
(2) व्याख्या के लिए दिशा निदेश करना, और
(3) अपेक्षाकृत अधिक संतोषप्रद अध्ययन हेतु उपकरण प्रस्तुत करना ।
लेखक के अनुसार उसके द्वारा प्रस्तुत अध्ययन पद्धति इन तीनों शर्तों को पूरा करती है । इसकी पांच शब्दों वाली संखला एक प्रकार की जांच सूची (चेक लिस्ट) है जिसके आधार पर शोधकर्ता स्वयं जांच सकता है कि किन आवश्यक तत्वों का परीक्षण किया जा चुका है और किस दिशा में आगे और खोज आवश्यक है ।
जोन्स के शब्दों में इस सिद्धान्त की भौगोलिकता इस बात में निहित है कि इसमें प्रस्तुत संचार-क्षेत्र की परिकल्पना के सहारे विद्यार्थी राजनीतिक विचारों और निर्णयों को मानचित्रित कर सकता है जो कि अन्यथा मानचित्रण योग्य नही हें ।
साथ ही इस सिद्धान्त के माध्यम से भूगोल का विद्यार्थी सम्भावनावादी और क्षेत्रपरक संरचनात्मक अध्ययन के बीच सेतु बन्धन कर सकता है । सम्भावनावाद परिवेशमूलक तत्वों में मानवीय चुनाव पर जोर देता है ।
परिवेश सम्बन्धी चुनाव का वरण एक प्रकार का निर्णय है जो अन्य प्रकार के निर्णयों की भांति ही नए प्रकार के संचार उत्पन्न करता हैं । साथ ही इस अध्ययन के माध्यम से राजनीतिक भूगोल और राजनीतिशास्त्र एक दूसरे के परिपूरक बन सकते हैं ।
सिंघावलोकन:
हार्टशोर्न द्वारा प्रतिपादित क्रियात्मक परिदृष्टि ने राजनीतिक भूगोल के अध्ययन को एक नया मोड़ दिया । इसके माध्यम से राजनीतिक भूगोल पुन राज्य के सामाजिक स्वरूप के अध्ययन की ओर प्रवृत्त हुआ तथा राष्ट्र और राज्य की राजनीतिक अवधारणा सम्बन्धी विचारों के माध्यम से एक वार फिर रैटजेल द्वारा प्रतिपादित राजनीतिक भूगोल को सांस्कारिक विरासत से न्यूनाधिक रूप में जुड़ गया ।
परन्तु क्रियाशील अध्ययन पद्धति की दो आधारभूत कठिनाइयां थी । पहली, हार्टचोर्न द्वारा प्रतिपादित अध्ययन पद्धति राज्य के भौगोलिक क्षेत्र को समग्रता प्रदान करने की समस्या पर केन्द्रित यी जिसका यूरोप और उत्तरी अमरीका के देशों में बहुत पहले ही समाधान हो चुका था ।
अत: इस अध्ययन विधि की सामयिक उपयोगिता सीमित थी । दूसरी, अपने लेख में हटिशोर्न ने बार-बार दोहराया कि वे राज्य की प्रादेशिक अवधारणा के पक्षधर हैं और उनका अभिमत है कि राजनीतिक भूगोल राज्यों का विशिष्ट और अनूठी स्थानिक इकाइयों के रूप में अध्ययन है ।
अत: राजनीतिक भूगोल के अन्तर्गत सिद्धान्तपरक अध्ययन के लिए स्थान नहीं है लेखक की इस वर्जना के परिणामस्वरूप विषय का वौद्धिक चुनौती सम्बन्धी आकर्षण सीमित हो गया । परन्तु यह निर्विवाद है कि हार्टशोर्न तया गाटमैन के लेखों ने राजनीतिक भूगोल को नई सोच दी जो आज भी उपयोगी है ।
जोन्स ने हार्टशोर्न के लेख में सिद्धान्तपरक अध्ययन के प्रति वर्जनात्मक दृष्टिकोण के विपरीत वक्तव्य देकर तथा राजनीतिक भूगोल और राजनीतिशास्त्र के बीच सेतु बन्ध का निर्माण कर के विषय के अन्तरविषयी (इण्टरडिसिप्लिनरी) आयाम को मुखर करने का प्रयास किया ।
परन्तु जोन्स स्वयं राजनीतिक भूगोल में प्रादेशिक परिदृष्टि के पक्षधर थे (जैसा कि लेखक ने अपने निबन्ध में स्वीकार किया था) । इसके परिणामस्वरूप जोन्स की अध्ययन पद्वति सिद्धान्तपरक अध्ययन के समर्थन में दिए गाए वक्तव्य के बावजूद केवल अलग-अलग क्षेत्रीय इकाइयों (नए राज्यों, नगरों, राजनीतिक सीमाओं आदि) के अध्ययन के लिए ही उपयोगी थी ।
सामान्य (जनरल) समस्याओं और व्यापक तथ्यों के तुलनात्मक अध्ययन के लिए इससे कोई सहायता नहीं मिल सकती थी राज्यों के अध्ययन में भी यह अध्ययन पद्धति केवल उन्हीं इकाइयों के विश्लेषण के लिए उपयुक्त थी जिनके विकास का इतिहास पूरी तरह ज्ञात है । प्राचीन संस्कृति वारने राज्यों के अध्ययन में इसकी उपयोगिता अत्यधिक सीमित थी ।