Here is a collection of four Hindi poems especially written for class 4 kids.
Poem # 1. वरदान | Boon:
दिया क्यों जीवन का वरदान ?
इसमें है स्मृतियों का कंपन;
सुप्त व्यथाओं का उन्मीलन;
ADVERTISEMENTS:
स्वप्नलोक की परियाँ इसमें,
भूल गईं मुसकान !
इसमें है झंझा का शैशव;
अनुरंजित कलियों का वैभव;
ADVERTISEMENTS:
मलयपवन इसमें भर जाता,
मृदु लहरों के गान ।
इंद्रधनुष-सा घन-अंचल में;
तुहिन-बिन्दु-सा किसलय दल में;
ADVERTISEMENTS:
करता है पल-पल में देखो
मिटने का अभिमान ।
सिकता में अंकित रेखा-सा;
बात-विकंपित दीपशिखा-सा;
काल-कपोलों पर आँसू-सा
ढुल जाता हो म्लान ।
Poem # 2. मंगलाचरण | Manglacharan:
ज्ञान का प्रकाश हो ।
अज्ञान का नाश हो ।।
मानवीय विमर्श हो ।
विज्ञान का उत्कर्ष हो ।।
प्रकृति अनुकूल हो ।
वृष्टि भी माकूल हो ।।
धुँआ हो न धूल हो ।
तरु हरित फल-फूल हो ।।
हर दिशा हो प्रकाशमान ।
विश्व बंधुता का हो भान ।।
सर्व प्रथम हो आनबान ।
हो ऐसी मानवीय शान ।।
चहूँ ओर शांति हो ।
प्राणियों पे क्रांति हो ।।
भ्रम हो न भ्रांति हो ।
ऐसी विश्व शांति हो ।।
जीव सब सुखी रहें ।
कोई ना दुखी रहे ।।
चहुँ ओर सुधा वृष्टि ।
हो ऐसी कृपा दृष्टि ।।
Poem # 3. पथिक | Traveler:
चल तू अपनी राह पथिक, चल, तुझको विजय-पराजय से क्या ?
भँवर उठ रहे हैं सागर में,
मेघ घुमड़ते हैं अंबर में,
आँधी और तूफान डगर में,
तुझको तो केवल चलना है, चलना ही है फिर हो भय क्या ?
चल तू अपनी राह पथिक, चल, तुझको विजय-पराजय से क्या ?
इस दुनिया में कहीं न सुख है,
इस दुनिया में कहीं न दुख है,
जीवन एक हवा का रुख है,
होने दे होता है जो कुछ, इस होने का हो निर्णय क्या ?
चल तू अपनी राह पथिक, चल तुझको विजय-पराजय से क्या ?
अरे, थक गया ! फिर बढ़ता चल,
उठ, संघर्षों से अड़ता चल,
जीवन विषम पंथ चढ़ता चल,
अड़ा हिमाचल हो यदि आगे, ‘चढ़ूँ कि लौटूँ’ यह संशय क्या ?
चल तू अपनी राह पथिक, चल तुझको विजय-पराजय से क्या ?
कोई रो-रो कर सब खोता ।
कोई खोकर सुख में सोता,
दुनिया में ऐसा ही होता,
जीवन का क्रम मरण यहाँ पर, निश्चित ध्येय यदि फिर क्षय क्या ?
चल तू अपनी राह पथिक, चल, तुझको विजय-पराजय से क्या ?
Poem # 4. बाल दिवस | Children’s Day:
फटा-पुराना झोला कर में,
आँखों में है नीर ।
बीन रहे हैं बच्चे कितने,
कचरे में तकदीर ।।
उन बच्चों पर स्नेह लुटाएँ ।
बाल दिवस इस तरह मनाएँ ।।
होटल में बर्तन धोने को,
जो होते मजबूर ।
यह कैसा अन्याय, बालपन,
में वे हैं मजदूर ?
चलकर उनको न्याय दिलाएँ ।
बाल दिवस इस तरह मनाएँ ।।
भूखे-प्यासे जो सो जाते,
जिन्हें न मिलता प्यार ।
जिनका अपना कहीं न कोई
ऐसे हैं लाचार ।।
उनको अपनापन दिखलाएँ ।
बाल दिवस इस तरह मनाएँ ।।
जो पढ़ने के लिए तरसते,
जा पाते ना हैं स्कूल ।
झेला करते इसी उम्र में,
जो अभाव का शूल ।।
चलें हम सभी उन्हें पढ़ाएँ ।
बाल दिवस इस तरह मनाएँ ।।