Read this article to learn about the top five experiments on x-ray in Hindi language.
Experiment # 1. निदानकारी एक्स-किरण मशीन में फोकस क्षेत्र के आकार का मापन:
यह मापन पिन तुल्य छिद्र (पिन होल) कैमरे के सिद्धांत पर आधारित है । छिद्र से जाने वाली किरणें पर्दे पर स्रोत के विपरीत दिशा में प्रतिविम्ब बनाती हैं । प्रतिविम्ब और लक्ष्य की लम्बाईयों का अनुपात, प्रतिविम्ब और लक्ष्य की छिद्र से दूरियों के अनुपात के बराबर होता है ।
इसी तरह एक्स-किरणों को सीसे पट्टी (शीट) में स्थित छिद्र से गुजारा जाय तो फिल्म पर बना प्रतिविम्ब फोकस क्षेत्र का उल्टा प्रतिबिम्ब होगा ।
यदि A = वस्तु का आकार
ADVERTISEMENTS:
A1 = प्रतिविम्ब का आकार
B = स्रोता और पिन तुल्य छिद्र की दूरी
B1 = फिल्म और पिन तुल्य छिद्र की दूरी
तो A/B = A1/B1
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विधि:
फिल्म से भरी कैसेट एक मेज पर रखी जाती है तो सीसे की प्लेट को जिसके केन्द्र में पिन तुल्य छिद्र होता है, एक्स-किरण ट्यूब और कैसेट के बीच स्थित किया जाता है फिर एक्स-रे ट्यूब केन्द्र को इस छिद्र की ओर करके फिल्म पर केन्द्रित करते हैं । अन्त में आकारों का मापन किया जाता है और गणना करके फोकस क्षेत्र का आकर ज्ञात किया जा सकता है ।
Experiment # 2. रेडियोग्राफ पर प्रकीर्णित विकिरण का प्रभाव तथा ग्रिड प्रयोग द्वारा उसका निराकरण:
यह इस सिद्धांत पर आधारित है कि जब एक्स-किरणें किसी माध्यम से गुजरती हैं तो प्रकीर्णन होता है जिसके फलस्वरूप लक्ष्य का प्रतिबिम्ब बुधला हो जाता है । ग्रिड के प्रभाव से इन प्रकीर्णित विकिरण को अवशोषित कर लेते है, जिससे लक्ष्य का एक सुस्पष्ट चित्र फिल्म पर अंकित हो जाता है ।
प्रयोग विधि:
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फिल्म भरी कैसेट को पहले एक्स-किरण मशीन की मेज पर रखते हैं । उसके ऊपर एक बीकर रखते हैं, जिसके तले के नीचे तार की एक जाली रखी जाती है । तत्पश्चात फिल्म को उद्भासित किया जाता है । इसके बाद बीकर को दो तिहाई पानी से मर देते हैं, फिर उतने ही उद्मास से दूसरी फिल्म को उद्भासित करते है ।
तीसरा रेडियोग्राफ ग्रिड का प्रयोग करके लेते हैं । इसके लिए भी बीकर को पानी से दो तिहाई भरते हैं और तार की जाली, फिर ग्रिड बीकर के नीचे रखते हैं । फिर उतना ही उद्भास देते हैं । अंतिम फिल्म भी तीसरी की तरह उद्भाषित करते हैं पर उद्मास 10% अधिक देते हैं ।
यह देखा जाता है कि पहली फिल्म पर लक्ष्य का प्रतिबिम्ब व विपर्यास (कन्ट्रास्ट) दोनों ही यथोचित होते हैं । दूसरी फिल्म में पानी के माध्यम के कारण धुधंलापन आ जाता है । तीसरी फिल्म में प्रतिबिम्ब अच्छा बनता है पर विपर्यास कम हो जाता है । अंतिम फिल्म में दोनों अच्छे होते हैं ।
इससे यह स्पष्ट होता है कि पानी विकिरण का प्रकीर्णन करता है और प्रकीर्णित किरणें प्रतिबिम्ब को युधला बना देती हैं । तीसरी फिल्म में विपर्यास अच्छा न होने के कारण ग्रिड है जो अवशोषण करके उद्मास को कम कर देता है । अत: उद्भास को बढ़ाने से फिर प्रतिबिम्ब अच्छा उभर कर आता है ।
Experiment # 3. प्रकाशीय व विकिरण क्षेत्र में अनुरूपता:
इसका सिद्धांत है कि जब फिल्म पर एक्स-किरणें पड़ती हैं तो वह काली हो जाती है । घुलने पर यह फिल्म उद्भासित क्षेत्र में कालापन दर्शाती है जो उसके केन्द्र पर उद्भास की तीव्रता पर निर्भर करता है । धातुपट (डायफ्राम) का प्रयोग करके उद्भास क्षेत्र बदला जा सकता है । आदर्श रूप से प्रकाशीय व एक्स-किरण दोनों ही क्षेत्रों में सबही स्थानों पर सबही होनी चाहिए ।
विधि:
कैसेट फिल्म से भरा हुआ एक्स रे मेज पर रखकर उस पर ट्यूब से प्रकाश केन्द्रित करते हैं । प्रकाश के आस-पास के हिस्से में तार वगैहरा रख देते हैं । अगर प्रकाशीय व विकिरण क्षेत्र में अनुरूपता है तो फिल्म अच्छी आयेगी ।
Experiment # 4. रेडियोग्राफी चित्रण पर धोने (डेवलपमेन्ट) के समय प्रभाव की जांच करना:
इससे फिल्म भरी के सेट को एक्स-किरण मेज पर रखकर तारे मे जाली से ढक देते हैं । फिर नलिका के केन्द्र को तारों की जाली के केन्द्र पर केंद्रित करके उद्मास देते हैं । उसी उद्मास पर चार रेडियोग्राफ प्राप्त करते हैं । फिर अलग-अलग समय 1 मिनट, 2 मिनट, 3 मिनट व 4 मिनट के लिए उनका विकास या डेवलपमेन्ट करते हैं । हम देखते हैं कि पहली फिल्म क्य विपर्यास डेवलपमेन्ट के कारण खराब होता है ।
दूसरी का भी खराब होता है पर तीसरी फिल्म में प्रतिबिंब स्पष्ट विस्तृत व उत्तम विपर्यास का होता है । तात्पर्य यह है कि डेवलपमेन्ट समय यथोचित रहा । चौथी फिल्म के अधिक डेवलपमेन्ट के कारण प्रतिबिंत्र फिर अस्पष्ट हो गया ।
Experiment # 5. एक्स किरण मशीनों के कालमापी की यथार्थता (एक्यूरेसी) और उसका दिष्टीकरण (रेक्टीफिकेशन):
प्रयोग का सिद्धान्त प्रयुक्त धारा की आकृति (50 चक्र प्रति सैकण्ड) पर निर्भर करता है जो समय परिपथ को बदलकर बदला जा सकता है । इसके लिए छिद्र युक्त चक्रिका (डिस्क) लेते है जिसे टोप कहते है ।
घूर्णन करती चक्रिका को उद्भासित करके फिल्म पर बिन्दुओं की संख्या की गणना की जाती है । यदि यह संख्या धारा की आकृति व उद्भास समय के हिसाब से है तो कालमापी व दिष्टीकरण यथार्थ सही है, अन्यथा उनमें त्रुटि है ।
विधि:
फिल्म से भरी कैसेट मेज पर रखी जाती है, उसके उपर घूर्णन करती चक्रिका रखकर एक्स-रे मशीन को उसकी ओर केन्द्रित करते है । तदुपरान्त चक्रिका की उसी घूर्णन गति पर फिल्मों को चार विभिन्न समयों के लिए उद्भासित करते हैं ।
उढ्भास कारक:
निरीक्षण:
i. पहले रेडियोग्राफ में दो बिंदु दिखाई देते हैं, जो आवृति व उद्मास समय के अनुसार है । आवृत्ति 100 आवर्तन या चक्र प्रति सैकण्ड है । अत: 0.02 सैकण्ड उद्भास काल में 100 X .02 = 2 आवर्तन या चक्र होने अर्थात दो बिंदु दिखाई देने चाहिए, जो देखे जाते हैं । इसलिए यह दर्शाता है कि दिष्टीकरण या कालमापी वस्तुत: या यथार्थ है ।
ii. दूसरे में 7 बिंदु दीखते हैं पर ये उद्मास समय व आवृति के अनुसार नहीं है । क्योंक 100 आर्वन प्रति सैकण्ड के हिसाब से 0.06 सैकण्ड के उद्भास समय में 100 X 0.06 = 6 बिंदु दिखाई देने चाहिए, पर दिखते हैं 7, अत: यह फिल्म यथार्थता नहीं दर्शाती है । अर्थात दिष्टीकरण या कालमापी में कोई त्रुटि है ।
iii. तीसरे रेडियोग्राफ में 0.08 सैकण्ड में 9 बिंदु दिखते हैं । यह भी कालमापी या दिष्टीकरण की यथार्थता नहीं दर्शाता है । क्योंकि आवृत्ति 100 आवर्तन प्रति सैकण्ड के हिसाब से 0.08 सैकण्ड के उद्भास समय में 100 X 0.08 = 8 बिंदु दिखाई देने चाहिए । पर दिखते हैं 9 ।
iv. चौथे रेडियोग्राफ में 0.1 सैकण्ड में 11 बिंदु दिखते हैं । ये भी कालमापी और दिष्टीकरण की यर्थाथता नहीं दर्शाता है । क्योंकि 1.0 सैकण्ड में 100 आवर्तन प्रति सैकण्ड के हिसाब से 100 X .1 = 10 बिंदु दिखाई देने चाहिए । पर दिखते हैं 11 ।
परिणाम:
संक्षेप में उपरोक्त प्रयोग दर्शाते हैं कि पहले रेडियोग्राफ से पता चलता है कि एक्स-रे मशीन के कालमापी और दिष्टीकरण यथार्थ सही है । जब कि इसके दूसरे, तीसरे और चौथे रेडियोग्राफ से पता चलता है कि एक्स-रे मशीनके कालमापी व दिष्टीकरण में कुछ त्रुटि है ।