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1. संरक्षण अवरोधक:
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150 किलो वोल्ट और उससे अधिक पर प्रचलित एक्सरे ट्यूबों वाली मशीनों के प्रतिष्ठानों में नियंत्रक पैनल अलग कमरे में होना चाहिए और तकनीशियन को इसी कमरे में अर्थात नियंत्रण कक्ष में रहकर उद्मास देना चाहिए ।
150 किलो वोल्ट से कम की मशीनों के प्रचालन के लिए नियंत्रण पैनल अलग कक्ष में भी हो सकता है या एक्सरे कक्ष में चलायमान संरक्षण अवरोधक की आड़ में स्थित किया जा सकता है जिसकी मोटाई 1.5 मिमी॰ सीसा हो या 1.5 मिमी॰ सीसे की तुल्य मोटाई हो ।
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इसकी जगह विभाजक दीवाल में भी स्थित किया जा सकता है । इन दोनों में ही रोगी को देखने के लिये सीसायुक्त कांच का एक शीशा होना चाहिए और उसकी अवरोध क्षमता 1.5 मिमी॰ सीसे के तुल्य हो । रोगी तथा प्रचालक के बीच की दूरी लगभग 2 मीटर होनी चाहिए । यदि नियंन्त्रण पैनल अलग कक्ष में लगा है तो रोगी से बात करने के लिए व्यवस्था होनी चाहिए ।
रेडियोग्राफी की स्थिति में, कैसेट धारक को (चेस्ट स्टॅन्ड) उर्ध्वाधर यानी सीधी खड़ी अवस्था में रखना चाहिए । जननांगों के बचाव के लिए भी अवरोधक का प्रयोग करना चाहिए । बाकी को भी कम से कम 0.5 मि॰मी॰ सीसे के तुल्य किसी अवरोधक साधन से ढकना चाहिए ।
प्रतिदिन मशीनों की स्थिति में, सीमा नियंत्रक को अवरोध से ढकने की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे विकिरण चिकित्सक के हाथों को उद्भासित होने से बचाया जा सकता है । प्रतिदीप्त पट के पीछे सीसा युक्त काँच लगा होना चाहिए जिसकी मोटाई 70 किलोवोल्ट तक 1.5 मि॰मी॰ सीसे के तुल्य 70 किलोवोल्ट व 100 किलो वोल्ट के बीच 2 मि॰मी॰ सीसे के तुल्य होनी चाहिए और 100 कि॰ वोल्ट से ऊपर, प्रत्येक किलोवोल्ट बढ़ने पर .01 मिमी॰ सीसे के तुल्य मोटाई बढ़ाई जानी चाहिए ।
इसके साथ-साथ हाथों के संरक्षण के लिए 0.25 मिमी॰ सीसे के तुल्य सीसा युक्त विनायल के दस्ताने, प्रतिदीप्ति (स्क्रीनिंक) करते समय प्रयोग में लाने चाहिए । विकिरण चिकित्सक को 1.5 मिमी॰ सीसे के तुल्य मोटाई की विशेष कुर्सी पर बैठ कर प्रतिदीप्ति करनी चाहिए ।
0.50 मिमी॰ सीसे के तुल्य सीसा युक्त विनायल की पट्टियों (प्लेपों) का भी प्रयोग करना चाहिए । प्रतिदीप्त पट से इन्हे लटकाकर चिकित्सक अपने जननंगों के उद्भास को कम कर सकता है । ये पटिटयां 45 सें॰मी॰ X 45 से॰मी॰ के आकर की होनी चाहिए ।
उर्ध्वाधर प्रतिदीप्ति (इसमें किरणपुंज क्षितिज के समानान्तर होती हैं व रोगी सीधा खड़ा होता है) में इन पट्टियों को पट स्क्रीन के निचले किनारे से लटकाना चाहिए जिसमें की विकिरण चिकित्सक को पुटनों तक ढक ले । क्षितिज के समानान्तर स्थिति में (पुंज ऊर्ध्वाधर अथवा धरातल के लम्बरूप होती है व रोगी लेटी अवस्था में होता है ।) बगल में किनारे से ऐसे लटकाना चाहिए जिससे प्रतिदीप्ति मेज के ऊपर के किनारों को छू ले ।
विशेष परीक्षणों में रोगी के पास होने या अपरिहार्य स्थिति में रोगी को पकड़ने के लिए विकिरण चिकित्सक (रेडियो लोजिस्ट) या तकनीशियन को जब भी मशीन के पास खड़ा होना पइए तो 0.25 मि॰मी॰ सीसे के तुल्य सीसा युक्त विनायल एपरन पहनना चाहिए ।
कम्प्यूटर टोमोग्राफी (CT) लग मशीनों की स्थिति में नियंत्रण पेनल अलग कक्ष में होना चाहिए । देखने के लिए झरोखा होना चाहिए जिसकी अवरोधक क्षमता उतनी होनी चाहिए जितनी बाकी दीवार की है, जिसमें वह लगा हैं यह लगभग 2-3 मि॰मी॰ सीसे के तुल्य हो सकती है ।
2. कार्यविधि:
एक्सरे परीक्षणों के समय ऐसे उपाय करने चाहिए, जिससे स्वयं कार्मिक को रोगी को या जनसाधारण को अनावश् क विकिरण प्राप्त नहीं हो । अत: जितने सरंक्षण साधन चित्र 6.11 में बताए गये हैं प्रयोग में लाने चाहिए । ऐसे सभी उपाय करने चाहिए, जिससे उद्भास कम से कम हो और संरक्षण उपयुक्तता के लिए इन साधनों को नियमानुसार जांच करते रहना चाहिए ।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि विकिरण क्षेत्र व प्रकाश क्षेत्र एक समान हैं, पुंज नियंत्रक घातु पट (डायफ्राम) की भी समय-समय पर जांच करनी चाहिए । यह भी सुनिश्चित करते रहना चाहिए कि कभी टूट-फूट के कारण डायफ्राम से एक्स किरणें बाहर तो नहीं आ रहीं ।
अनावश्यक विकिरण को दूर करने के लिए यह भी सुनिश्चित करवाना चाहिए कि उद्भास देने से पहले चेतावनी संकेत को प्रकाशित कर दिया है । एक्सरे कक्ष में परीक्षण से सम्बन्धित व्यक्ति के अलावा कोई नहीं होना चाहिए (चित्र 6.12 a) । एक ही कक्ष में दो मशीनें प्रतिष्ठापित नहीं होनी चाहिए ।
पुंज नियंत्रित डायफ्राम का प्रयोग पुंज नियंत्रण के लिए करना चाहिए (चित्र 6.12a) । प्रजनन काल की आयु वालों का विशेषकर महिलाओं का विशेष ध्यान रखना चाहिए । गर्म धारण योग्य आयु की स्त्रियों के श्रोणि क्षेत्र (पेलविस) और पेट के एक्स-रे परीक्षण के समय यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह गर्भवती तो नहीं ।
गर्म धारण की अवस्था में जहाँ तक संभव हो एक्सरे परीक्षण टालना चाहिए और 8-15 सप्ताह के गर्भकाल में तो तब तक एक्सरे नहीं करना चाहिए जब कि जीवन मरण का प्रश्न न हो क्योंकि इस दौरान उद्भास देने से मंद बुद्धि के बच्चे पैदा होने की संभावना बहुत अधिक होती है ।
विकिरण कार्मिक को, बच्चे या शिशुओं को, परीक्षण के समय, नहीं पकड़ना चाहिए । यदि किन्हीं अपरिहार्य कारणों से उन्हें पकड़ना पड़े तो सीसा विनायल अवरोधक पहनना न भूलें और पहनकर चित्र 6.11 में दिखाई स्थिति के अनुसार ही खड़े हों ।
रोगी या कैसेट और ट्यूब के नाभि (फोकस) के बीच उपयुक्त दूरी रखना चाहिए जिससे शरीर से गुजरने पर पुंज में विचलन डायवर्जन न्यूनतम हो और रोगी को सीमा में विकिरण मात्रा मिले । उदाहरण के लिए प्रतिदीप्ति में यह दूरी 72 इंच होनी चाहिए ।
प्रतिदीप्ति की अवस्था में (चित्र 6.13) दस्ताने सहित या बिना दस्ताने, दोनों हालतों में हाथ सीधी या मुख्य किरणों के आगे न आने चाहिए इसके लिए इन दोनों स्थितियों में परिस्पर्शन (पल्पेशन) नहीं करना चाहिए । इसके लिए परिस्पर्शन चम्मच प्रयोग में लानी चाहिए । यह जानना चाहिए कि अवरोधक दस्ताने केवल द्वितीय एक्स किरणों के लिए तो उपर्यक्त है पर मुख्य या सीधी किरणों के लिए नहीं । रोगी की उद्मास या उसे प्राप्त विकिरण मात्रा निम्न प्रकार से कम की जा सकती है ।
1. ट्यूब धारा कम करके
2. तीव्र पट (स्क्रीन) का प्रयोग करके
3. जहाँ-जहाँ संभव हो प्रतिबिम्ब तीव्रता वर्धकों का प्रयोग करके यदि इन तीव्रता वर्धकों को काम में लाने से ट्यूब को कम विद्युत धारा पर प्रचलित किया जा सकता है और
4. पुंज सीमा को नियन्त्रित करके (चित्र 6.126 b व C)
5. उपयुक्त छन्ने का प्रयोग करके: इससे कम अल्प ऊर्जा वाली एक्स किरणों को जिनसे निदान के लिए कोई जानकारी तो मिलती नहीं पर उद्मास मिल जाता है, निकाल दिया जाता है अर्थात शरीर पर पड़ने से रोक दिया जाता है ।
6. लाल चश्मा पहनकर विकिरण चिकित्सक (रेडियालोजिस्ट) को प्रतिदीप्ति परीक्षण शुरू करने से पहले करीब दस मिनट के लिए अपनी आखों को अंधेरे का अभ्यस्त करना चाहिए । अभ्यास होने के बाद लाल चश्मे को उतार लेना चाहिए अन्यथा बिना अभ्यस्त हुए ज्यादा चमक लाने के लिए ज्यादा उद्भास देना पड़ेगा ।
7. परीक्षण समय कम करके: यह संभव है यदि परीक्षण योग्य एवं प्रशिक्षित चिकित्सक द्वारा किया जाय ।
चल/चलिष्णु (जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाया जा सके) मशीन प्रतिदीप्ति के लिए कभी भी प्रयोग में नहीं लानी चाहिए (चित्र 6.14) । प्रचालक को मशीन रोगी व उपयोगी किरण पुंज से जितनी दूर संभव हो उतनी दूर खड़ा होना चाहिए ।
इसके लिए बिजली की डोरी (केबिल) की पूरी लम्बाई काम में लानी चाहिए । किरण पुंज को कभी भी द्वार, खिड़की या अधिवासी (घिरी हुई) स्थान की दिशा में नहीं दिष्ट करना चाहिए । फिल्म कैसेट को हाथ से नहीं पकड़ना चाहिए ।
दंत चिकित्सक को भी हाथ से फिल्म नहीं पकड़नी चाहिए । रोगी को स्वयं को फिल्म पकड़ना चाहिए, और उसे अवरोधक एपरन भी पहनना चाहिए (चित्र 6.15) । इस प्रकार दन्त मशीन के ट्यूब गृह हाउसिंग को भी हाथ से नहीं पकड़ना चाहिए । प्रकाश प्रतिदीप्ति चित्रण जैसे विशेष परीक्षणों में विकिरण मात्रा कम करने के लिए उच्च दक्षता की प्रकाशिक प्रणाली प्रयोग में लानी चाहिए ।
इसके अलावा रोगी को विशेष परीक्षणों में विकिरण मात्रा कम करने के लिए किसी अंग विशेष के परीक्षण के हेतु जितने कम रेडिओग्राफ लेना संभव हो उतने कम लेने चाहिए । रेडिओग्राफों को एक चिकित्सालय से दूसरे में स्थानान्तरण करने की सुविधा होनी चाहिए ।
ऐसा करने से चिकित्सा के लिए यदि रोगी एक चिकित्सालय से दूसरे में जाता है, तो उसी निदान के लिए रोगी का दुबारा रेडिओग्राफ लेने की आवश्यक्ता नहीं होगी और इस प्रकार रोगी को मिलने वाली मात्रा कम हो जायेगी ।
स्तन चित्रण (मेमोग्राफी) जैसे विशेष परीक्षण को विशेष संयंत्र पर ही करकना चाहिए क्योंकि इन परीक्षणों में उच्च विभव (अधिक किलोबोल्ट) की आवश्यक्ता नहीं होती है, जैसी सामान्य मशीनों में होती है ।
इसी प्रकार जिन विशेष परीक्षणों में उच्च विभव की आवश्यख्ता होती है, (जैसा कम्प्यूटर टोमाग्राफी में) उन में विशेष सावधानी की आवस्यक्ता होती है । यदि मशीनों से गत्यात्मक अध्ययन किया जाता है तय उस मशीन के चारों और विकिरण मात्रा क्य चित्रण करना चाहिए जिससे ऐसा अध्ययन करते समय खड़े होने की ऐसी स्थिति चुनी जा सके जहां कम से कम बिकिरण मात्रा मिले ।
नमूने के तौर पर यह मान चित्रण किसी एक मशीन के लिए चित्र 6.16 व 6.17 में दिया गया है । विकिरण कार्य शुरू करने से पहले कार्मिक मोनीटरिंग बैज पहनना न भूलें और कार्य समाप्ति के याद उसै विकिरण रहित क्षेत्र जैसे कार्यालय में भण्डारण करें । इसी भण्डार क्षेत्र में एक नियंत्रण बैज भी रखना चाहिए ।