Read this article to learn about the description of x-ray and x-ray tube in Hindi language.
एक्स किरणों की खोज सन् 1895 में जर्मन वैज्ञानिक विल्हेम्स कोनार्ड राजन द्वारा एक निर्वात नली में उत्पन्न उच्च वोल्टेज पर विसर्जन (डिस्वार्ज) का अध्ययन करते समय हुई थी । उन्होंने विर्सजन नली से कुछ ही दूर स्थित एक बेरियम प्लेटिनोसाइड पर्दे या पट पर प्रतिदीप्ति का निरीक्षण किया । उन्होंने इसका नाम एक्स किरणे रख दिया क्योंकि उस समय इन किरणों की प्रकृति के बारे में वे कुछ नहीं जानते थे ।
तत्पश्चात कई वैज्ञानिकों द्वारा इन किरणों की प्रकृति एवं गुण धर्म का अध्ययन किया गया, जो निम्नलिखित है:
1. किरणें मूलत: विद्द्युत चुंबकीय किरणें होती है जो तरंग और कण दोनों की तरह कार्य करती हैं ।
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2. इनकी भेदन शक्ति अत्याधिक होती है ।
3. विद्युत चुंबकीय तरंगें होने के बावजूद ये किरणें विद्द्युतीय दृष्टिकोण से उदासीन होती हैं ।
4. ये परमाणु चक्र में उपस्थित इलेक्ट्रानों को अलग कर गैस को अप्रत्यक्ष रूप से आयनीकृत कर सकती हैं ।
5. इनकी तरंग दैर्ध्य 0.1–0.5 A० के लगभग होती है तथा संबधित ऊर्जा लगभग 25-125 Kev होती है ।
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6. ये किरणें प्रकाश की गति (3×108 मी॰/से॰) से चलती हैं ।
7. ये किरणें प्रकाश किरणों की भांति सीधी रेखा में चलती हैं । हालांकि सामान्य प्रकाश की किरणों की तरह ये लैंस से फोकस नहीं की जा सकतीं ।
8. पदार्थों से गुजरते समय ये किरणें अल्प मात्रा में ऊष्मा उत्सर्जित करती हैं ।
9. ये कुछ किस्टलों में प्रतिदीप्ति उत्पन्न करती हैं ।
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10. ये किरणें, सिल्वर हैलाइड क्रिस्टल पर रासायनिक परिवर्तन द्वारा फोटोचित्रण प्रभाव उत्पन्न करती हैं ।
11. ये किरणें, आयनीकरण और उत्तेजीकरण द्वारा रासायनिक और जैविक परिवर्तन कर सकती है ।
एक्स किरणों की प्रकृति विषमांगी (हीट्रोजीनियस) तथा अचरित या अखंड वर्णक्रम युक्त होती है । इनकी भेदन शक्ति ऊर्जा के साथ बढ़ती जाती है । यह ऊर्जा तरंग दैर्ध्य के द्युक्रमानुपाती होती है । भेदन क्षमता के आधार पर इन्हें अतिभेदनशील (हार्ड) और कम भेदनशील (साफ्ट) में वर्गीकृत किया जा सकता है ।
कम भेदनशील किरणों की अपेक्षा अति भेदनशील किरणों की तरंगदैर्ध्य कम होती है या ऊर्जा अधिक होती है । जिसके कारण भेदन शक्ति अधिक होती है । ट्यूब वोल्टेज जितना अधिक होगा उत्पन्न एक्स किरणें उतनी ही हार्ड होंगी और उनकी ऊर्जा भी उतनी ही अधिक होगी । इसीलिए एक्स किरणों के गुणधर्म दरब वोल्टेज के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं, जो निम्न तालिका में दिखाए गए हैं ।
इस प्रकार यदि ट्यूब KV स्थिर हो तो उत्पन्न एक्स किरणों की तीव्रता कैथोड धारा, जो मिलीएम्पियर (MA) में मापी जाती है, के समानुपाती होती है । यदि कैथोड धारा स्थिर हो तो एक्स किरणों की तीव्रता वोल्टेज बढ़ाने से बढ़ती जाती है ।
विद्युत जनित्र द्वारा उत्पन्न धारा प्राय: स्थिर नहीं होती है तथा वोल्टेज ट्यूब वोल्टेज वक्र के अनुसार परिवर्तित होती है । ट्यूब के अधिकतम वोल्टेज पर, जिसे पीक वोल्टेज (अधिकतम केवी या KVp) भी कहते है, उत्सर्जित इलेक्ट्रानों की गति तथा एक्स किरणों की ऊर्जा अधिकतम होती है ।
लाइन फोकस के सिद्धांत:
इसके लिए दो बातें आवश्यक हैं:
1. जितने बड़े क्षेत्र पर ऊष्मा उत्पन्न होती है यानी जितना बड़ा फोकस आकार होगा स्थानीय तापमान उतना ही कम होगा । अत: फोकस आकार बड़ा होना ट्यूब की सुरक्षा के लिए आवश्यक है ।
2. साथ ही शारिरिक अंगों के सुस्पष्ट चित्रण के लिए फोकस आकार छोटा होना चाहिए । दो विरोधी आवश्यकताओं को हल करने के लिए एनोड ”TT” (चित्र 5.1) की सतह पर एक पट्टी (स्ट्रिप) 17० कोण पर लगा दी जाती है ।
हालांकि पट्टी की वास्तविक लम्बाई उसकी चौड़ाई की कई गुनी है पर प्रभावी लम्बाई, CD है जो परछाई डाल सकती है इसलिए सुस्पष्ट चित्रण करना संभव है । इस प्रकार बड़ा क्षेत्र होने के कारण एनोड अधिक धारा को भी सहन कर सकता है और प्रभावी आकार छोटा होने के कारण सुस्पष्ट चित्रण भी होता है ।
क्ष-किरण नलिका:
प्रारम्भिक दिनों में एक्सरे ट्यूब केवल एक शीतल कैथोड वाली गैस नलिका होती थी । इसमें आंशिक निर्वात का एक ग्लास बत्त्व होता है जिसमें गैस अल्प मात्रा में भरी होती है । अंतिम सिरों पर उच्च शक्ति वाले विभव का प्रयोग कर गैसों को आयनीकृत किया जाता है । इसमें फिलामेन्ट (जो केथोड पर होता है) से निकलने वाले इलेक्ट्रान एनोड से टकराते हैं तथा एक्स किरणों उत्पन्न करते हैं ।
इस प्रकार के ट्यूब में हानियाँ निम्न हैं:
1. वोल्ट या धारा में परिवर्तन से नियंत्रण न होने के कारण किरणों की मात्रा और गुणवत्ता पर नियंत्रण नहीं रखा जा सकता ।
2. कैथोड के सिरे गर्म नहीं होते ।
3. गैस की उपस्थिति, ट्यूब को काला करके उसकी आयु को कम कर देती है ।
डायोड, एक विशेष प्रकार का ट्यूब होता है । इसमें एक निर्वात नलिका होती है जिसमें एक टंगस्टन फिलामेंट, कैथोड व एनोड तथा फिलामेंट को गर्म करने एवं उससे निकले इलेक्ट्रानों को कैथोड से एनोड तक पहुंचाने के लिए दो विद्द्युतीय परिपथ (सर्किट) लगे होते हैं । ये इलेक्ट्रान एनोड से टकराकर एक्स किरणें उत्पन्न करते हैं ।
कैथोड:
0.2 सेमी व्यास और 1.0 सेमी लम्बाई का टण्गस्टन फिलामेन्ट कैथोड का कार्य करता है । इससे अत्याधिक मात्रा में इलेक्ट्रान तब उत्सर्जित होते हैं जब उसका तापमान ऐसा हो जिस पर निर्वात में धातु के परमाणुओं का वाष्पीकरण बहुत ही कम हो ।
वोल्टेज बड़ा कर ताप बढ़ाया जा सकता हैं जिसके फलस्वरूप इलेक्ट्रान संख्या बढ़ाई जा सकती है, पर एक सीमा तक क्योंकि किसी एक तापमान के बाद ताप बढ़ाने से इलेक्ट्रानों की संख्या नहीं बढ़ती । फिलामेन्ट दो मजबूत तारों से जुड़ा होता है जिसमें से विद्द्युत प्रवाहित की जाती है ।
फिलामेंट चारों ओर से मोलिबिडनम धातु की टोपी से घिरा होता है, जो विद्द्युत क्षेत्र प्रदान करती है, जिससे इलेक्ट्रोन पुंज को फोकस करने में सहायता मिलती है । अत्याधुनिक ट्यूबों में इस प्रकार के दो फिलामेंट की व्यवस्था होती है जिनकी अलग अलग टोपी होती है जिससे अलग-अलग आकार के दो धब्बे बनते हैं ।
इनका वास्तविक आकार नलिका (ट्यूब) की धारा व वोल्टेज बदलने पर थोड़ा बहुत बदलता है । सामान्यत: फिलामेन्ट धारा 3-5 एम्पियर की होती है और 10 वोल्ट पर प्रवाहित होती है । चित्र 5.2 एवं 5.3
एनोड:
एक आदर्श एनोड के लिए प्रयुक्त धातुओं की निम्न विशेषताएं होनी चाहिए:
i. उच्च परमाणु संख्या वाले धातु हों ताकि इलेक्ट्रोन ऊर्जा का एक्स किरणों में प्रत्यावर्तन अधिकाधिक हो सके ।
ii. उच्च गलनांक वाले धातु हों ।
iii. उच्च विशिष्ट ऊष्मा और ताप चालकता वाले धातु हों ।
iv. उच्च ताप पर भी वाष्प दाब कम हो ताकि सतह पर परमाणुओं का जमाव न हो ।
v. सरंचना के उद्देश्य से उपयुक्त यांत्रिक गुण होने चाहिए । जिससे एनोड को सही (यथार्थ) व आसानी से बनाया जा सके । टंगस्टन (W), जिसकी परमाणु संख्या 74 तथा गलनांक 3370 डिग्री से॰ग्रे॰ है, में उपर्युक्त सभी गुण पाए जाते हैं । इस प्रकार नैदानिक नलिकाओं को दो मुख्य श्रेणियों में बाँट सकते हैं ।
1. ऐसी नलिका जिसमें एनोड स्थिर होता है ।
इसमें लक्ष्य (टार्गेट) तांबे के ब्लाक में जमाया टंगस्टन बटन होता है । इसकी ऊष्मा धारिता क्षमता, और ताप क्षय करने के लिए चालकता उच्च स्तर की होती है ।
2. ऐसी नलिका जिसमें एनोड घूर्णन करता रहता है ।
प्रारम्भ में शुद्ध टंगस्टन का प्रयोग होता था पर आधुनिक नलिका (ट्यूब) में 5-6% रीनियम मिला देते हैं जिससे उसको चटकने फेंक पड़ने से रोका जा सकता है । ऐसा करने के लिए रेनियम मिश्रित रगस्टन की परत मोलिबिडनम धातु के आधार पर चढ़ा दी जाती है ।
घूर्णनशील एनोड में लक्ष्य (टोर्गट) एक पट्टी के आकार में होता है जो एक टिक्की (व्यास 7.5-12.5 से॰मी॰) पर चढ़ा होता है जो 3300-3600 घूर्णन प्रति मिनट (आर॰पी॰एम॰) की दर से घुमाई जाती है । ऐसा करने से लक्ष्य की अधिक से अधिक मात्रा पर इलेक्ट्रान पुंज का प्रहार किया जा सकता है ।
रेडियोग्राफी में नलिका में एनोड की रचना “लाइन फोकस” के सिद्धांत पर की जाती है । इससे फिल्म की ओर प्रक्षेपित होने वाला “फोकस क्षेत्र” वास्तविक एनोड क्षेत्र से कम होता है । लक्ष्य सतह एनोड पर 10०, 12० या 17० पर झुकी होती है । इसे “एनोड कोण” कहते हैं । इस प्रकार आधुनिक ट्यूब में प्रभावी फोकस काफी संकीर्ण प्राप्त हो सकता है । इससे धारा क्षमता काफी बढ़ जाती है तथा फोकस क्षेत्र भी कम रहता है ।
निर्वात में एनोड का तीव्रता से घूर्णन करवाना एक तकनीकी समस्या है क्योंकि ऐसा करवाने के लिए स्नेहक (तुब्रीकेशन) की आवश्यकता होती है, पर स्नेहक पदार्थ निर्वात में नहीं रह पाते क्योंकि निर्वात में वे गैस बन जाते हैं । आजकल स्नेहक धातुओं के बाल बियरिंगों का प्रयोग किया जाता है जिससे घूर्णन सहज ढंग से हो सके । इसमें स्टेटर (एनोड खींचने के लिए) तथा धूर्णक (जिस पर गति निर्भर करती है) दोनों साथ-साथ होते हैं ।
कांच का आवरण (इनवलप) तथा आधान (हाउसिंग):
इसमें एनोड और कैथोड बोरोसिलीकेट कांच कक्ष के अन्दर स्थित होते हैं तथा जहां निर्वात अधिक से अधिक होता है (108 मिमी पारे का दबाव) । गैस होने से इलेक्ट्रान प्रवाह में बाधा हो सकती है । इस समस्या के कारण अब पूर्ववर्ती गैस नलिकाओं के स्थान पर निर्वात नलिकाओं का प्रयोग किया जाता है ।
निर्वात “डीगैसिंग” विधि द्वारा किया जाता है । ये नलिकायें बेलनाकार होती हैं, जिस पर पतले कांच का झरोखा लगा दिया जाता है । जिससे एक्स किरणें बिना अवरोध के बाहर आ सकें । एक्स किरण नलिकाओं को धातु के विशाल कक्ष के अन्दर रखा जाता है जिस पर सीसे की पर्त चढ़ी होती है (झरोखे को छोड़ कर) ।
इसके निम्न कारण है:
1. यह उच्च ऊर्जा की एक्स किरणों के लिए अवरोधक कार्य करता है ।
2. इसमें घूर्णन एनोड की शक्ति स्रोत निहित होती है ।
3. फिलामेन्ट और नलिका परिपथ के लिए तार के सिरे इसमें से होकर निकाले जाते हैं ।
4. ताप क्षय के लिए शीतलन तेल का प्रयोग होता है ।
5. तार के सिरों के बीच उच्च वोल्टेज स्कूलिंग स्पाकी को रोकने में भी तेल सहायक होता है ।
6. संपुंजक (लीमेटर) लगाने के लिए संपर्क सतह का कार्य करता है ।
मूलभूत परिपथ एक्स किरण जनित्र का:
एक्स किरण नलिका के फिलामेंट को गर्म करने से इलेक्ट्रान उत्सर्जित होते हैं । उसके लिए अपचायी (स्टैप डाउन) ट्रान्सफर द्वारा 10-12 वोल्ट पर 4.5 आम्पियर धारा फिलामेंट में प्रवाहित की जाती है । तत्पश्चात कैथोड तथा एनोड के बीच एक उच्चायी ट्रान्सफोर्मर के सिरों को जोड़कर उसके द्वारा विद्युतीय विभव (40-150 के॰ वी॰ बीच के लगभग) उत्पन्न करते हैं ।
इलेक्ट्रान की गतिज ऊर्जा का एक अल्पांश (30 केवी पर 0.1% या 200 के॰ वी॰ पर 1%, या 30-40 एम॰ई॰वी पर 4%) ही एक्स किरणों में परिवर्तित होता है । शेष ऊष्मा में परिवर्तित होता है जो एक्सरे उर्त्सजित कर रहे एनोड का तापक्रम बढ़ाता है ।
ऊष्मा क्षय करवाने की बिभिन्न पद्धतियां:
(क) गवाक्षीभवन यातायान विन्यास (फेनेस्ट्रेशन):
इसमें एनोड को विशाल ऊष्मा क्षमता वाले धातु से जोड़ देते है । इसमें कई केलोरी ताप को अवशोषित करने की क्षमता होती है । यह धातु गर्म होकर वातावरण में ऊष्मा उत्सर्जित करता है । इस तरह की व्यवस्था प्रतिदीप्ति नलिका में प्रयुक्त होती हे ।
(ख) पंखा:
निम्न तथा मध्यम निदानकारी नलिकाओं में पंखों का उपयोग करते हैं जो एनोड से ऊष्मा बाहर निष्कासित करते हैं ।
(ग) जलशीतलता:
इसमें एनोड को तेल के संपर्क द्वारा ठंडा करते हें । और तेल को जल के प्रवाह से ठंडा किया जाता है ।
(घ) तेलशीतलन:
यह विधि निदानकारी तथा उपचारकारी दोनों तरह के ट्यूबों में प्रयोग की जाती है । एनोड से उत्सर्जित ऊष्मा कांच को गरम करती है, जो संचालन द्वारा चारों ओर के तेल में क्षय हो जाती है । जिससे संवाहन धाराएं उठने लगती हैं ।
नलिकाओं की विफलता के कारण:
1. अत्यन्त उच्च वोल्टेज
2. क्षय ग्रस्त फिलामेंट
3. एनोड का पिघलना
4. कांच के ट्यूब में पंचर होने से गैस का बनना जो इलेक्ट्रान प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करती है ।
5. इलेक्ट्रानों के टकराने से क्षीण होने पर कांच नलिका का विक्षत होना । विफलताएं दो प्रकार की होती हैं: (1) प्रारंम्भिक विफलताएं (2) विलंबित विफलताएं ।
प्रारंम्भिक विफलताएं:
क. विद्युत विफलता
ख. विद्युत अवरोधन का विफल होना
ग. अत्यधिक गर्म होना
घ. फिलामेंट की यांत्रिक हानि या उसका क्षय होना
च. कांच के कक्ष की यांत्रिक हानि या नष्ट होना
विलंबित विफलताएँ:
क. नलिका का गैस मय होना
ख. फिलामेंट के अक्षम होने के कारण-लगातार गर्म होने के कारण फिलामेंट के लगातार पतले होने से उसका अक्षम होना ।
ग. एनोड क्षेत्र का लगातार क्षय होना
नलिका की आयु के नियंत्रण के कारण पद उसकी उपयोगी आयु में वृद्धि के उपाय:
1. अपने वाष्पीकरण से उत्पन्न वाष्प के कारण फिलामेंट पतला होता जाता है । और कांच ट्यूब की सतह पर टंगस्टन जमता जाता है । अत्याधिक फिलामेन्ट धारों का प्रयोग (उच्च ताप के कारण) इसकी आयु कम कर देता है । अत: इसकी तैयारी अवधि जितनी कम संभव हो उतनी रखनी चाहिए ।
2. “ट्यूब रेटिंग” चार्ट के अनुसार तात्कालिक रेटिंग का जो मान ज्ञात हो उसी का प्रयोग करना चाहिए, कभी भी उससे अधिक नहीं रखना चाहिए ।
3. “लोड” बढ़ाने से पहले एनोड को गरम करना चाहिए । “ठंडे” एनोड पर उद्भास बढ़ाने से विषम प्रसार के कारण एनोड डिस्क चटक सकती है ।
4. घूर्णक समय बढ़ाने से घूर्णक में प्रयुक्त होने वाले बियरिंग की आयु कम हो जाती है । अत: एनोड को व्यर्थ ही नहीं चलाना चाहिऐ ।
5. तेल का अत्यधिक तापक्रम भी ट्यूब की आयु कम कर सकता है । अत: शीतलन की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए ।
X. किरण उपचारकारी नलिका:
एक्स किरण उपचारकारी नलिका कम धारा पर प्रचलित होती है और निम्न चार विभिन्न ऊर्जा सीमा की एक्स किरणें उत्पन्न करती है ।
1. त्वचा के उपचार के लिए सीमा 50 से 120 केवी (निम्नवोल्टेज) की किरणें ।
2. त्वचा सतह के कुछ सेमी॰ गहराई पर स्थित घाव के उपचार के लिए मध्यम वोल्टेज 130 से 150 केवी की किरणें ।
3. काफी भीतरी भागों के उपचार के लिए आर्थोवोल्टेज (उच्च वोल्टेज) सीमा 110-300 केवी की किरणें ।
4. मेगा वोल्टेज (अति उच्च वोल्टेज) सीमा 4 एम॰वी॰ या उससे अधिक शक्ति की किरणें ।
रेडियोग्राफी नलिका के विपरीत प्रतिरूप आर्थोवोल्टेज उपचार नलिका मे एक बड़ा फिलामेन्ट, स्थिर एनोड तथा एक बड़ा फोकस क्षेत्र होता है तथा एनोड कोण 300 के लगभग होता है ।
ट्यूब को ठंडा करने की विशेष व्यवस्था होनी चाहिए । उपचार नलिका में खोखले एनोड होते हैं, जिनको तेल से (45 पौंड दाब पर) ठंडा किया जाता है जो नलिका और आधान (हाउसिंग) के बीच में घूमता है । एक पंप द्वारा गर्म तेल को विशिष्ट टैंक में स्थानांतरित किया जाता है जहां यह कुंडली में धूमते हुए पानी से ठंडा होता है ।
त्युत्क्रमानुपाती वर्ग नियम:
यदि एक्स किरण पुंज किसी बिन्दु से प्रारम्भ होती है और क्योंकि फोटोन एक सीधी रेखा में गमन करते हैं, तो प्रारंम्मिक पुंज उद्गम बिन्दु से सभी दिशा में समान रूप से शंकु के आकार में प्रसारित होता है ।
उद्गम बिन्दु से जैसे जैसे दूरी बढ़ती जाती है वैसे ही वैसे पुंज चौड़ी होती जाती है और फोटोन का घनत्व कम होता जाता है क्योंकि वे ही फोटोन अधिक क्षेत्र में फैल जाते हैं । दूसरे शब्दों में जैसे उद्गम बिन्दु व फिल्म की दूरी बढ़ती जाती है वैसे ही उद्भास दर कम होती जाती है ।
दूरी व उद्भास दर में ज्योमिटी संबंध होता है, जो किरण के ब्यूक्रमानुपाती वर्ग नियम से जाना जाता है । यह प्रकाश व एक्स किरणों, दोनों के लिए सत्य है और इसके अनुसार विकिरण (साधारण प्रकाश व विकिरण की तीव्रता) (I) या उद्भास दर, स्रोत से दूरी के वर्ग के व्युक्तमानुपाती होता है अर्थात, I α 1/D2 इसका अर्थ यह भी निकलता है कि यदि के॰वी॰ व एम॰ए॰एस॰ के मान स्थिर रखे जायें तो दूरी दुगनी रखने से तीव्रता चौथाई रह जाएगी ।
इसलिए दुगनी दूरी पर वही उद्भास दर रखने के लिए एमएएस को चौगुना करना पड़ेगा । विकिरणोपचार में शरीर में स्थित ऊतकों को मिलने वाली मात्रा की गणना इसी नियम से की जा सकती है ।