Read this article to learn about the functions of conductor, non-conductor and semi-conductor in Hindi language.
सुचालक:
वे पदार्थ जिनमें अधिक संख्या में मुक्त इलेक्ट्रान होते हैं, सुचालक कहलाते हैं । धातुओं की प्रतिरोधकता 106 ओह्म/सें॰ मी॰ के लगभग होती हैं । ऐसे पदार्थो के लगभग मुक्त इलेक्टान पदार्थ में प्रवाहित हो सकते हें लेकिन पदार्थ से बाहर नहीं जा सकते ।
यही इलेक्ट्रानिक चालकता के लिए जिम्मेदार हैं । सभी धातुएं सुचालक होती हैं । चांदी विद्युतधारा की बहुत बढ़िया सुचालक है । तांबा, एल्युमिनियम, कोयला, पारा, मानव शरीर, क्षार, लवण आदि भी विद्द्युत के सुचालक होते हैं । सुचालक का ऊर्जा विन्यास चित्र 4.9 (a) में दिया गया है ।
इसमें सयोंजकता बैंड तथा चालकता बैंड अतिर्प्याप्त होते हैं । जब विद्द्युत क्षेत्र लगाया जाता है तो इलेक्ट्रान अतिरिक्त ऊर्जा ग्रहण करके चालकता बैंड में चले जाते हैं । यह गतिमान इलेक्ट्रान वियुत धारा बनाते हैं तथा इनमें कोई वर्जित अंतराल नहीं होता ।
कुचालक:
वे पदार्थ जिनमें मुक्त इलेक्ट्रानों की संख्या नगण्य होती है, कुचालक कहलाते हैं । इनकी प्रतिरोधकता 1013 ओहम/सेमी॰ के लगभग होती है । लकड़ी, एबोनाइड, कांच, माइका, गंधक व मोम इसके कुछ उदाहरण हैं । इन पदार्थो का संयोजकता बैंड पूरी तरह भरा हुआ व चालकता बैंड खाली होता है ।
वर्जित बैंड या अंतराल 6 इलेक्ट्रान वोल्ट के लगभग होता है । बाहर से विद्युत क्षेत्र लगा कर या तापमान बढ़ाकर संयोजकता बैंड के इलेक्ट्रान चालकता बैंड में नहीं पहुंचाये जा सकते क्योंकि यह ऊर्जा 6 ev से बहुत कम होती है ।
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इसलिए इन पदार्थो में चालकता नहीं होती । हीरा 7 ev वर्जित अंतराल का एक ऐसा कुचालक है । एक इलेक्ट्रान वोल्ट वह ऊर्जा है जो एक इलेक्ट्रान (आवेश 1.6 x 1019 कूलांब) वोल्ट विभवांतर से त्वरित हो कर ग्रहण करता है । 1 ev = आवेश x विभवांतर = 1.6 x 1019 x 1 जूल = 1.6 x 1012 अर्ग
अर्धचालक:
जिन पदार्थों की चालकता सुचालक एवं कुचालक पदार्थों के बीच में होती है । वे अर्धचालक कहलाती हैं जैसे सिलिकन, जर्मेनियम, कार्बन, सिलीनियम । इनकी प्रतिरोधकता 1013 ओहम से.मी. से कम तथा 106 अ ओहम से.मी. से अधिक होती है ।
अर्धचालकों के ऊर्जा बैंड चित्र 4.70 में दिखाये गये हैं । वर्जित अंतराल लगभग 1 ev होता है । 0o पर सिलिकान में यह अंतराल 1.21 ev तथा जर्मेनियम 0.758 ev होता हे । परमशून्य तापमान पर सभी अर्धचालक कुचालक होते हैं । ताण्मान बढ़ने पर कुछ इलेक्ट्रान ऊर्जा ग्रहण कर के संयोजकता बैंड से वर्जित अंतराल को पार कर चालकता बैंड में पहुंच जाते हैं ।
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इलेक्ट्रान की अनुपस्थिति को होल कहा जाता हैं । इस प्रकार अर्धचालकों में “होल” का अर्थ हैं भरे हुए संयोजकता बैंड में कुंड ऊर्जा स्तरों में इलेक्ट्रानों की अनुपस्थिति । संयोजकता बैंड से चालकता बैंड में इलेक्ट्रानों के पहुंचने की प्रायिकता तापमान के साथ चर घातांकी रूप से बढ़ती है तथा अंतराल के परिमाण कं साथ उसी प्रकार घटती है ।
जब कुछ इलेक्ट्रान उत्तेजित हो कर संयोजकता बैंड से चालकता बैड में चले जाते हैं तो संयोजकता बैंड के ऊपरी भाग में उतने ही “होल” बन जाते हैं । अब संयोजकता बैंड पूरा भरा हुआ नहीं होता तथा चालकता में योगदान दे सकता हैं । यह “होल” धनावेशित आवेश वाहकों की तरह कार्य करते हैं ।
चालकता बैंड में इलेक्ट्रानों की संख्या तथा संयोजकता बैंड में “होल” की संख्या बराबर होती एक शुद्ध अर्धचालक जिसमें अपद्रव्य न हो, नैज अर्धचालक कहलाता है । जिन अर्धचालकों में पांच संयोजकता का फास्फोरस या तीन संयोजकता का वोरान, एल्यूमिनियम आदि मिलाया जाता है । उन्हें क्रमश: “एन” तथा “पी” किस्म के अर्धचालक कहते हैं ।