राष्ट्रीय एकता व अखंडता | Article on National Unity and Integrity in Hindi Language!
प्रस्तावना:
हमारे देश में भिन्न-भिन्न धर्मो के लोग हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी रहते हैं जिनकी पहचान व उपासना विधि पृथक-पृथक है । यहीं विभिन्न धर्मो की विविध जातिया व उप-जातियाँ रहती हैं जिनके अपने-अपने रीति-रिवाज हैं ।
देश में लग भग पन्द्रह संविधान सम्मत भाषाएँ है जिनकी अलग-अलग लिपि है । इसी प्रकार अलग-अलग प्रान्तो की वेश-भूषा भी भिन्न-भिन्न है । उक्त सभी धर्मो, जातियो, भाषाओं, बोलियो, प्रान्तो के लोगो का मिल-जुलकर रहना ही एकता है । सभी लोगों के पूजा स्थल व उपासना विधि अलग होते हुए भी सभी एक ईश्वर की पूजा करते हैं ।
सबमे एक भारतीयता की भावना व राष्ट्रीय एकता है । इसी प्रकार भारत कश्मीर से कन्या कुमारी व असम से काठियावाड़ तक एक व्यापक अखण्ड भारत है, जिसके पश्चिम में पाकिस्तान पूर्व में बर्मा, बंगलादेश, उत्तर में नागाधिराज हिमालय व दक्षिण में हिन्द महासागर है ।
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उक्त सीमाओं से घिरा हुआ यह देश हमारा भारत है । इसका कही से भी कोई खण्ड अलग न हो, इसको अखण्ड भारत कहते हैं । यह व्यापकता राष्ट्रीय अखण्डता है । देश की एकता व अखण्डता सदैव बनी रहे, यह सभी भारतवासियो का परम कर्त्तव्य है । हम सभी पहले भारतीय है, तब हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई व जाति, भाषा, प्रान्त के हैं ।
एकता व अखण्डता को खतरा:
अंग्रेजो ने भारत में एकछत्र राज्य करने के लिए सबसे पहले यहीं की एकता पर प्रहार किया, क्योकि कोई भी शासक अपना प्रभुत्व जमाने के लिए जनता में एकता नहीं चाहता है । इसलिए उन्होने ‘फुट डालो राज करो’ की प्रबल नीति अपनाई जिसके कारण वे सैकड़ों वर्ष तक भारत के सशक्त शासक बने रहे ।
परिणामत: भारत में धर्मो व जातियों तथा वर्गो के आधार पर कलह, दगे भड़कते रहे । वे कभी किसी एक धर्म के लोगों को संरक्षण देते और दूसरों को तंग करते तो कभी दूसरे धर्म के लोगो को प्रोत्साहित करते थे जिससे जनता परस्पर लड़ती रहे । फिर भारत के स्वतंत्र होने पर अंग्रेज भारत की अखण्डता समाप्त करके ही गये ।
भारत का विभाजन अंग्रेजों की अपनी नीति थी । इस प्रकार उन्होने हमारी एकता व अखण्डता दोनों को तोड़ा । आज भारत में जगह-जगह पर साम्प्रदायिक दंगे होते रहते है । एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों से लड़ते हैं । देश में कई स्थानो पर वर्ग सघर्ष छिड़ा है ।
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स्वर्ण व हरिजनों के कलह भी देखने को मिलते हैं । आरक्षण व अनारक्षण पर लड़ाई-झगड़ा चलता रहता है । भाषा के आधार पर भी कई स्थानों पर झगड़े भड़कते हैं । दक्षिण में हिन्दी के विरोध में सरकारी सम्पत्ति को क्षति पहुंचाई जाती है । उत्तर में अंग्रेजी का विरोध प्रबल है ।
बंगाल, असम, कश्मीर में हिन्दी विरोधी लहर चल रही है । कही उर्दू का विरोध है तो कही हिन्दी का विरोध । इस प्रकार विभिन्न प्रकार से राष्ट्रीय एकता खतरे मे पड़ी है । राष्ट्रीय अखण्डता भी विगत दशकों से संकट मे है । कुछ उग्रवादी अलग खालिस्तान चाहते हैं । कश्मीर आतंकवादी अलग कश्मीर की माँग कर रहे है ।
मिजोरम में ‘मिजो नेशनल फन्ट’ भी अलग राष्ट्र की मांग कर रहा था जो अब शान्त हो गया है । दार्जिलिंग में गोरखा उग्रवादियों ने भी हथियार उठाये लेकिन अब वे चुप हो गये हैं । दक्षिण में भी एक बार द्रविड़स्तान की माँग चल रही थी । कुछ समय से अब पूरे भारत में हिन्दू उग्रवाद ने भी अपने पैर फैलाकर हमारी सरकार को परेशान कर दिया है । इस प्रकार कतिपय स्वार्थी तत्त्व भारत को छिन्न-भिन्न कर देना चाहते हैं ।
भेदभाव व अलगाव के कारण:
देश व राष्ट्र मे अन्तर है । देश का सम्बन्ध सीमाओ से है । एक निश्चित सीमा से घिरा हुआ क्षेत्र देश है । राष्ट्र का सम्बन्ध भावनाओ से है । सारे देश के लोगो की भावनाएं मिलकर राष्ट्र का निर्माण करती हैं । जब तक किसी देश के निवासियों की एक विचार धारा न हो तब तक वह राष्ट्र कहलाने का हकदार नहीं है ।
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हमारे यहाँ आज तक शासको ने अपने क्षुद्र स्वार्थो के कारण इस देश को राष्ट्र नहीं बनने दिया । आज राजनैतिक नेताओ ने अपनी क्षुद्र दलगत राजनीति के कारण राष्ट्र बनाने में बाधा पहुँचाई है । वोट प्राप्त करने के लिए सारे देश को धर्मो, जातियों, भाषाओ की सकीर्ण धाराओ में बाँट दिया ।
अभी देश के नेताओ, अधिकारियों व जनता में राष्ट्रीय भावना नहीं जागी है । वे पहले कोई और हैं तब बाद में भारतीय हैं । जब कोई व्यक्ति कही सत्ता में आता है तो वह वहीं अपने ही वर्ग के लोगों का समर्थन करते पाया जाता है । वोटों की राजनीति सबको लड़ाने का काम कर रही है ।
यही कारण है कि राष्ट्रीय एकता के खतरे के प्रति नेताओं की तुष्टीकरण की नीति ही देश को राष्ट्र नही बनने दे रही है । आज देश में ही लोग सविधान की प्रति जला रहे हैं । राष्ट्रीय ध्वज को फाड़ने व जलाने के समाचार भी सुने जाते हैं । राष्ट्रीय गीत के समय खड़ा न रहना सामान्य बात बन गयी है ।
इन तमाम अपराधों के लिए दण्ड नियत किये हुए है परन्तु किसी को भी कोई दण्ड नही मिलता है । यह है नेताओं की तुष्टीकरण की नीति । इससे देश-द्रोहियों को प्रोत्साहन मिलता है । आज देश में देश-द्रोही, तस्कर, अपराधी नेताओं के संरक्षण में पल रहे हैं ।
यही कारण है कि सबमें राष्ट्रीय भावना का अभाव बढ़ता जा रहा है, जिससे देश की एकता व अखण्डता भी खतरे में पड़ गयी है । देश में अष्टाचार, अनाचार, बेईमानी धोखाधड़ी उच्च स्तर पर छाये हुए हैं ।
उपसंहार:
किसी देश की प्रगति व स्वतंत्रता की रक्षा देश की एकता व अखण्डता पर निर्भर है । हमारे देश में जब तक उच्च स्तर पर राष्ट्रीय भावना नही आती तब तक राष्ट्रीय एकता भी नही आ सकती है । एकता के अभाव में अखण्डता भी खतरे में पड़ जाती है ।
नेताओ को दलगत क्षुद्र राजनीति का परित्याग कर राष्ट्र हित में काम करना चाहिये । देश-द्रोहियों व अपराधियो को दण्डित करना चाहिए । जनता में भारतीय संस्कृति का प्रचार कर उनमे देश-प्रेम की भावना जागृत करनी चाहिये । स्व-भाषा, स्व-संस्कृति, स्व-भूमि से प्यार करना चाहिये, तभी हमारी राष्ट्रीय एकता व अखण्डता सुरक्षित रह सकती है ।