मेरे जीवन का उद्देश्य (लक्षय) । Article on My Ambition in Hindi Language!
हर व्यक्ति के कुछ स्वप्न होते हैं । बहुत से लोग धनवान होना चाहते हैं अथवा व्यापार के जगत के चमकते सितारे । कुछ लोग नेता बनना चाहते हैं कुछ राजनीतिज्ञ एवं कुछ समाज सुधारक ।
कुछ दादागिरी करना चाहते हैं और अपने मुहल्ले या शहर के सामाज विरोधी तत्वों के मुखिया बनना चाहते हैं, जिनसे सब डरे यह एक बुरी अभिलाषा है । कुछ लोग भावुक हृदय प्राणी होते हैं जो कवि, लेखक, उपन्यासकार अथवा साहित्यकार बनना चाहते हैं ।
जबकि हममें से अधिकतर नामी गिरामी डाक्टर, इंजीनियर अथवा वैज्ञानिक बनना चाहते हैं । बहुत से ऐसे भी होते हैं जो इस बात को लेकर चलते हैं जो होगा देखा जायेगा या जो भाग्य में होगा वो बन जायेंगे । मेरी महत्वाकांक्षा भी कोई बहुत बड़ा लक्षय प्राप्त करने की नहीं है । मैं कोई करोड़पति या अरबपतियों की सूची में अपना नाम लिखना नहीं चाहता ।
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मेरा उद्देश्य है सरलता एवं अच्छाई (साधुता) के साथ मानवता की सेवा में जीवन समर्पित करना । एक पेशावर नेता अथवा एक राजनीतिज्ञ की जीवन शैली मुझे नहीं जँचती क्योंकि अधितर ऐसे लोग समाज पर आश्रित हो जाते हैं । मेरा जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ । मैंने प्रारम्भ से ही जीवन के लिये संघर्ष किया है ।
अधिकतर व्यवसायों में गलाकाट प्रतियोगिता है । इसके दूरगामी परिणाम होते हैं, लोग भ्रष्ट होते जा रहे हैं और उनका धैर्य टूट रहा है । यहां ऐसे कई उदाहरण दिये जा सकते हैं जिसमें इंजीनियर को बड़ी-बड़ी रिश्वते लेते देखा गया, वकीलों को अपराधियों को छुड़ाने में मदद करते एवं डाक्टरों को रोगियों से शल्य चिकित्सा की निर्णायक परिस्थितियाँ में पैसों की मांग करते पाया गया ।
मैं क्या बनना चाहता हूँ ? मैं दिल से एक अध्यापक बनना चाहता हूँ । मेरे जीवन का उद्देश्य है ‘सादा जीवन उच्च विचार’ और यह ही मुझे इस पेशे को अपनाने के लिये प्रेरित करता है । प्राचीन काल के गुरुओं के कई आदर्श हमारे सामने हैं । हालांकि मैं एक अध्यापक के जीवन में आने वाली कठिनाइयों एवं चुनौतियों से पूर्णतया परिचित हूँ ।
मुझे ज्ञात है कि एक अध्यापक के भाग्य में अभाव ही लिखा होता है । वह कठिन परिश्रम भरी जिन्दगी जीता है एवं सदैव विद्यार्थियों की पुस्तिकायें एवं उत्तर पुस्तिकायें जांचने में व्यस्त रहता है । उसके जीवन में किसी उत्तेजना का संचार नहीं होता ।
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इन सब कष्टों के होते हुये भी मैं अध्यापक ही बनना चाहूँगा । मेरे पास इस व्यवसाय को चुनने के कई कारण एवं तर्क हैं । अपनी बाल्यावस्था से ही मुझे छोटे बच्चों से बहुत लगाव है । मेरे विचार से वे फूल की पंखुड़ियों की तरह कोमल एवं सुन्दर होते हैं ।
मैं यह अनुभव करता हूँ कि अध्यापक बनने पर मैं उनके ज्ञान में वृद्धि करने में सहायक हो सकता हूँ जिससे उनका दृष्टिकोण विस्तृत होगा । मैं उन्हें अच्छा नागरिक बनाकर देश की सेवा भी कर सकूंगा । इसके अतिरिक्त छोटे बच्चों का सानिध्य मेरे विचारों एवं दृष्टिकोण को सदैव युवा बनाये रखने में सहायक होगा ।
इन सेवाओं को समर्पित होने पर भी मेरी जीविका अर्जित होती रहेगी । मुझे एक महान एवं आदर्श अध्यापक के जीवन पर बहुत विश्वास है क्योंकि हमारे राष्ट्रपति श्री राधाकृष्णन जो एक अध्यापक एवं दर्शनिक थे उनके अनुसार गुरु उच्च नैतिक मूल्यों के अभिरक्षक होते हैं ।