सुबह की सैर । Article on the Morning Walk in Hindi Language!
सुबह बिस्तर छोड़ना कोई सरल काम नहीं है । सामान्यत: मैं रात ग्यारह बजे सोने जाता हूँ । ‘जल्दी सोना जल्दी उठना’ वाली कहावत अब पुरानी हो चली है । मेरे पिताजी एक कठोर अधिकारी हैं । वह मुझे सुबह जल्दी उठाकर गणित पढ़ाते हैं ।
एक दिन मैंने उन्हें सुबह की सैर के गुण गिनवाये । तो उन्होंने मुझे सुबह की सैर पर चलने के लिये तैयार होने को कहा । हमारा मुहल्ला अपने बगीचों के लिये लोकप्रिय है । मैं इतने लोगों को बगीचे में देखकर आश्चर्य चकित रह गया । ठण्डी हवा बह रही थी । पेड़ों की हरी-हरी पत्तियाँ हवा की लय में कुछ गुनगुना रही थीं ।
पंछियों ने अपने घोसले छोड़ दिये थे और दाने की तलाश में निकल पड़े थे । सूर्योदय का दृश्य अत्यन्त मनोहर था । आग के मुलायम गोले की पहली किरणों को धरती पर पहुँचते हुये देखना बहुत सुहावना अनुभव था । धीरे-धीरे वो नारंगी रग की गेंद अपना स्वरूप बदल रही थी ।
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बगीचे के एक हिस्से में बच्चे एक छोटी गेंद से खेल रहे थे । कुछ युवक एक ओर दौड़ लगा रहे थे । कुछ लोग व्ययाम करने में व्यस्त थे । दूसरे हिस्से में ‘योग’ के शिक्षक योग की प्रक्रियायें समझा रहे थे । सीखने के इच्छुक लोग अपने शिक्षक के निदेर्शों का सावधानी से पालन कर रहे थे ।
उसने उन्हें जोर से हँसने के लिये कहा । वह सब मिलकर इतनी जोर से हँसे कि मैं भी अपनी हँसी नहीं रोक पाया । बगीचे के एक अन्य हिस्से में झण्डा फहरा रहा था । कुछ वद्ध एवं युवा लोगों ने झण्डे को सलामी दी व देशभक्ति गीत गाया । उन सबने सफेद रंग की कमीजें एवं खाकी निकरें पहनी हुयी थी ।
वह सब भारतीय जनसंघ पार्टी से सम्बन्धित थे । वह ‘युद्ध-कला’ सीख रहे थे । मेरे पिताजी ने मुझे पूरे बगीचे के दो चक्कर लगाने को कहा । एक चक्कर लगाना तो सरल था पर मैं दूसरा चक्कर नहीं लगा पाया था ।
कुछ दूर दौड़ने के पश्चात् ही मैंने पिताजी से जाकर कहा कि गणित पढ़ने के लिये बहुत कम समय रह गया है । मैं दो राक्षसों के बीच में था दौड़ना व गणित पढ़ना । गणित पढ़ना अधिक सरल लगा । पिताजी ने मेरी बात मान ली व हम घर लौट आये ।