Read this article in Hindi to learn about the objectives of the environment (protection) act.
1986 का पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम एक महत्वपूर्ण संविधानिक दस्तावेज है जिसकी एक अंतर्राष्ट्रीय पृष्ठभूमि भी है । जून 1972 में स्टाकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र मानव पर्यावरण सम्मेलन द्वारा जारी घोषणा की अंतर्निहित भावना को अधिनियम (कानून) बनाकर भारत सरकार ने लागू किया ।
पर्यावरण से संबंधित कानून प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पहले से मौजूद थे, फिर भी पर्यावरण के संरक्षण का एक सामान्य अधिनियम बनाना आवश्यक था क्योंकि मौजूदा कानून विशेष प्रकार के प्रदूषणों या विशेष श्रेणियों के घातक पदार्थों पर केंद्रित थे या पर्यावरण से उनका अप्रत्यक्ष संबंध सिर्फ उन कानूनों के माध्यम से था जो भूमि-उपयोग को नियंत्रित करते थे या हमारे राष्ट्रीय पार्कों, अभयारण्यों और वन्यजीवन को सुरक्षा देते थे ।
पर कोई व्यापक अधिनियम नहीं था और पर्यावरण संबंधी खतरों के कुछ पक्ष अभी भी कानून के दायरे से बाहर थे । पर्यावरण संबंधी भावी खतरों को रोकने तथा औद्योगिक और पर्यावरण सुरक्षा की व्यवस्था संबंधी अनेक कमियाँ थीं । आवश्यकता एक ऐसे प्राधिकरण की थी जो पर्यावरण सुरक्षा की दीर्घकालिक आवश्यकताओं का अध्ययन, नियोजन और क्रियान्वयन करे तथा पर्यावरण संबधी आकस्मिक खतरों से निपटने की व्यवस्था करे ।
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इस प्रकार उपर्युक्त अधिनियम पर्यावरण संरक्षण के लिए बनाया गया क्योंकि पर्यावरण की बिगड़ती हालत पर चिंता बढ़ रही थी । पर्यावरणीय ह्रास की अधिकता होने से 1970 के दशक में पर्यावरण संरक्षण एक राष्ट्रीय प्राथमिकता का विषय बन गया । लेकिन आज पर्यावरण सुरक्षा के लिए एक व्यापकतर सामान्य अधिनियम मौजूद होने पर भी पर्यावरण की क्षति जारी है ।
हमें अगर अपने पर्यावरण को बचाना है तो इस अधिनियम को बहुत आक्रामक ढंग से लागू करना होगा । वायुमंडल और जलीय पारितंत्रों में अत्यधिक मात्रा में हानिकारक रसायनों के मौजूद रहने से खाद्य-शृंखलाएँ भंग हो रही हैं और प्रजातियाँ नष्ट हो रही हैं ।
इस अधिनियम को लागू करने के लिए जनता की भागीदारी और समर्थन अनिवार्य है । इसके लिए जागरूक संचार माध्यमों, अच्छे प्रशासकों, अत्यधिक सजग नीति-निर्माताओं, प्रबुद्ध न्यायपालिका और प्रशिक्षित टेक्नोक्रेटों का समर्थन भी होना चाहिए जो मिलकर कार्य कर सकें और हमारे पर्यावरण को और बिगड़ने से बचा सकें । इसे संभव बनाने में हम सबकी भागीदारी होनी चाहिए ।
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