Read this article in Hindi to learn about the traditional value systems of India.
प्राचीन भारतीय परंपरा पर्वतों, नदियों, वनों और पशुओं को महत्त्व देती थी । इसीलिए प्रकृति के एक बड़े भाग का सम्मान और संरक्षण किया जाता था । हिंदू धर्म और आदिवासी संस्कृतियों में भी वनों को वनदेवों और वनदेवियों से संबंधित माना जाता है । पौधों की विशेष प्रजातियों की ‘वृक्षदेवियाँ’ होती हैं ।
पीपल (Ficus religiosa) की पूजा की जाती है और उसे काटा नहीं जाता है । कुछ क्षेत्रों, जैसे महाराष्ट्र, में बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है और साल में एक बार उसके चारों ओर धागा लपेटकर उसे सम्मान दिया जाता है । तुलसी का पौधा हर घर में लगाया जाता है ।
विभिन्न भारतीय संस्कृतियों में, खासकर आदिवासी क्षेत्रों में, वनों के हिस्सों को जो अब ‘पवित्र कुंज’ कहलाते हैं किसी देवता को समर्पित कर दिया जाता है । वनों के संरक्षित ये भाग अप्रभावित वनस्पतियों की सच्ची प्रकृति को दर्शाते हैं तथा उनमें बड़ी संख्या में देसी पौधों की प्रजतियाँ पाई जाती हैं क्योंकि स्थानीय लोग उनके उपयोग पर कड़ा नियंत्रण रखते हैं ।
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वृक्षों की कुछ प्रजातियों को उनके फल-फूल के महत्त्व के कारण संरक्षित रखा गया है । लकड़ी जब दुर्लभ हो जाती है तब भी खेतों के आस-पास आम के पेड़ उनके फलों के लिए बचाकर रखे जाते हैं । आदिवासी जनता महुआ के वृक्ष (Madhuca indica) को बचाकर रखती है क्योंकि इससे खाने योग्य फूल, बीजों से तेल और कच्ची शराब मिलती है ।
भारतीय चिकित्सा विज्ञान में अनेक पौधों, झाड़ियों का उपयोग किया जाता था जो कभी निर्जन में बड़ी संख्या में पाए जाते थे । अब ये तेजी से लुप्त हो रहे हैं । पशुओं की अनेक प्रजातियों को देवी-देवताओं का ‘वाहन’ माना जाता है जिन पर वे ब्रह्मांड की यात्रा करते हैं ।
भारतीय पुराणों में हाथी का संबंध गणेश से है । गजानन गणेश का संबंध मूषक से भी है । विष्णु का संबंध गरुड़ से है । राम का संबंध बंदरों से है । पुराणों के अनुसार वानर-देवता हनुमान ने लंका पर चढ़ाई करने में राम की अमूल्य सेवा की । सूर्यदेव की सवारी घोड़ा है और उनका एक अद्वितीय रथ है जिस पर वे आकाश में विचरण करते हैं ।
सिंह का संबंध दुर्गा से और काले हिरन का चंद्रमा से है । गाय का संबंध कृष्ण से, सर्प का शिव और विष्णु से तथा हंस का सरस्वती से है । विष्णु के अनेक पशु-अवतार बताए गए हैं; ये क्रम से मत्स्यावतार, कच्छप अवतार, वामन अवतार और नरसिंह अवतार हैं ।
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जिन विभिन्न पौधों का धार्मिक महत्त्व माना गया है उनमें तुलसी भी है जिसका संबंध लक्ष्मी और कृष्ण से है । तुलसी के पौधे का संबंध पितरों की पूजा से भी है । कहते हैं कि बुद्ध ने बरगद के वृक्ष के नीचे ही बोध प्राप्त किया था । बरगद का संबंध विष्णु और कृष्ण से भी है । आमलकी और आम समेत अनेक अन्य वृक्षों और तुलसी की झाड़ी का संबंध देवी लक्ष्मी से भी है ।
परंपरा यह भी कहती है कि ये प्रजातियाँ, जिनको प्रकृति का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष माना जाता था, स्थानीय जीवन प्रणालियों की आधार और एक सामंजस्य भरे जीवन का अभिन्न अंग थीं । अतीत के परंपरागत समाजों में ये सभी मिसालें उन नैतिक मूल्यों के अंग थीं जो प्रकृति का संरक्षण करते थे । प्रकृति के शोषण पर आधारित आधुनिक विज्ञान का जब भारत में प्रसार हुआ तो प्रकृति के संरक्षण के उपायों के रूप में इनमें से अनेक परंपराओं का प्रभाव कम होने लगा ।
इसलिए जो धारणाएँ प्रकृति की एकता को बल पहुँचाती हैं, वे हमारी आधुनिक शिक्षाप्रणालियों के अंग बननी चाहिए । यही प्रकृति के संरक्षण और निर्वहनीय जीवनशैलियों की नई नैतिकता की स्थापना की कुंजी
है ।