Read this article in Hindi language to learn about the top eleven ways for taking care of the old people.
युवावस्था व प्रौढ़ावस्था में स्त्री पुरूष अपने घर तथा इच्छा के मालिक होते हैं, परन्तु वृद्धावस्था में शारीरिक व मानसिक परिवर्तनों के चलते उनके सारे निर्णय पुत्र व पुत्री द्वारा ही लिये जाते हैं । अत: उनकी संतानों को वृद्ध माता-पिता की आवश्यकताओं को देखते हुए उनकी देखभाल करनी चाहिये ।
घर में रहने वाले बुजुर्गों को उनकी संतानें नकार नहीं सकतीं क्योंकि उन्होंने अपना पूरा जीवन बच्चों की देखभाल व पालन-पोषण में लगाया है । अब बच्चों की बारी है कि वे अपने वृद्ध होते माता-पिता की उचित देखभाल करें क्योंकि वे अब सशक्त नहीं हैं ।
वृद्धों की देखभाल एक आदर्श कार्य है (Care of Old People is an Ideal Work):
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शारीरिक व मानसिक परिवर्तन के चलते वृद्ध लोग निराशा से पीड़ित होते हैं । कई बार वृद्धजन अपने आप को किसी कार्य के योग्य न समझ कर बेकार समझते हैं । इस समय बच्चों को वृद्ध की देखभाल करनी चाहिए ।
अत: वृद्धों की देखभाल करना बच्चों के लिये एक आदर्श कार्य है परन्तु इस कार्य में उनका अहम (Ego) नहीं आना चाहिये तथा उन्हें किसी भी प्रकार से नकारना नहीं चाहिए । वृद्ध व्यक्ति अपने आप को अकेला व असहाय महसूस करता है ।
बच्चे उनके साथ उचित व्यवहार न करें तो वे घर छोड़कर भी जा सकते हैं । वृद्धजनों की मानसिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उनकी याददाश्त कमजोर हो जाती है तथा उनकी सुनने की शक्ति भी कम हो जाती है । कभी-कभी वृद्धजन अधिक क्रोधित या आक्रमक (violent) भी हो सकते हैं । अत: इस स्थिति में उनके साथ प्यार व स्नेह का व्यवहार करना करना चाहिये ।
वृद्धों की उचित देखभाल के लिये घर में निम्न व्यवस्थाएँ की जानी चाहिये:
(1) उचित घर का प्रबन्ध (Proper Home Management):
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वृद्ध व्यक्ति अपने घर के स्वयं मालिक भी हो सकते हैं या वृद्धावस्था में वे अपने बच्चों के साथ रहने के लिये भी जा सकते हैं ।
अत: वृद्धों के लिये रहने की उचित व्यवस्था करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिये:
i. गृह में उनके लिये आरामदायक सोने का कमरा होना चाहिये ।
ii. गृह साफ-सुथरा, धूल रहित व हवादार होना चाहिये ।
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iii. वृद्धों का शौचालय व नहाने का स्थान उचित व उनकी आयु के अनुसार होना चाहिये । इससे सम्बन्धित सभी वस्तुएं उचित स्थान पर रखी जानी चाहिये ताकि वृद्ध व्यक्ति अपना कार्य स्वयं आराम से कर सकें ।
iv. शौचालय हमेशा साफ-सुथरा व सूखा होना चाहिए ताकि वे फिसल न सकें क्योंकि इस आयु में गिर कर हड्डी-टूटने का डर रहता है ।
(2) आहार प्रबन्धन (Meal Management):
वृद्धावस्था में शारीरिक परिवर्तन के कारण खानपान की व्यवस्था में परिवर्तन किया जाना चाहिये । वृद्धावस्था में पौष्टिक उग्रहार पर अधिक बल देना चाहिये क्योंकि इस अवस्था में शारीरिक क्षय होने से शरीर में पौष्टिक तत्व नष्ट होते रहते हैं ।
यदि वृद्ध जन किसी भी प्रकार के रोग; जैसे: उच्च रक्त चाप, मधुमेह, हृदय रोग आदि से पीड़ित हैं तो उनके लिये आहार व्यवस्था उसी प्रकार की जानी चाहिये । वृद्धजनों के लिये समय के अनुसार ही भोजन की व्यवस्था की जानी चाहिये । वृद्धजनों को खाना खिलाते समय धैर्यवान बने रहना चाहिये तथा किसी भी प्रकार का क्रोध या चीखना चिल्लाना नहीं चाहिये । पूरे दिन में वृद्धजनों को कई बार थोड़ा-थोड़ा खाने के लिये प्रेरित करना चाहिये ।
(3) स्वास्थ्य प्रबन्धन (Health Management):
शारीरिक व मानसिक क्षय होने के कारण इस समय वृद्धों के स्वास्थ्य का अधिक ध्यान रखना पड़ता है । इसलिए समय-समय पर उनके स्वास्थ्य का परीक्षण करवाना चाहिये । चिकित्सक व अस्पताल का नम्बर उनके कमरों की दीवार पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा होना चाहिये । वृद्धों के कमरे में First Aid Box रखना चाहिये तथा उसमें सभी प्रकार की आवश्यक दवाइयाँ रखी जानी चाहिए ।
(4) मनोरंजन (Entertainment):
वृद्धावस्था में पढ़ने-लिखने का शौक पूरा किया जा सकता है अत: वृद्धों के पढ़ने के लिये अखबार, मैगजीन, धार्मिक किताबों आदि की व्यवस्था करनी चाहिये । यदि वृद्धों को संगीत सुनने का या पिक्चर देखने का शौक हो तो उसकी व्यवस्था होनी चाहिये । उनके कमरे में टेलीविजन, डी.वी.डी. आदि की व्यवस्था करनी चाहिये ताकि वे न्यूज व पिक्चर देख सकें ।
(5) धार्मिक रुचि (Religious Interest):
वृद्धावस्था मानव जीवन की अवस्था का अंतिम पड़ाव होता है । इस अवस्था को सुखमय बनाने के लिये सबसे उचित मार्ग है: धार्मिक क्रिया कलापों में व्यस्त रहना । अत: उनके धार्मिक क्रिया कलापों को करने की उचित व्यवस्था करनी चाहिये ।
भारतीय संस्कृति में प्राचीनकाल से ही मानव जीवन के मुख्य चार उद्देश्य माने गये हैं: धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष । अत: उन्हें उनकी धार्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये उन्हें विभिन्न धार्मिक संगठनों व संस्थाओं का सदस्य बनाना चाहिये ताकि वे व्यस्त रह सकें ।
(6) आर्थिक प्रबन्धन (Financial Management):
वृद्धावस्था में कई बार बीमारियों में अधिक धन लग जाता है जिसकी पहले से व्यवस्था करनी चाहिये।
इसके लिये निम्न उपाय किये जा सकते हैं:
i. सेवानिवृत्ति के पश्चात् पेन्शन का उचित निवेश तथा उसकी निकासी का प्रबन्ध ।
ii. बीमा का प्रबन्ध क्योंकि कभी-कभी आकस्मिक बीमारी के कारण कॉफी मात्रा में धन की आवश्यकता पड़ सकती है । अत: वृद्धों के लिये उचित बीमा का प्रबन्ध पहले से करना चाहिये ताकि उनका समय पर उपयोग किया जा सके ।
iii. बचत तथा अन्य स्कीमों की जानकारी बच्चों को रखनी चाहिये ताकि वृद्धों की देखभाल पर किसी भी प्रकार की आर्थिक परेशानी न हो ।
(7) उचित व्यायाम का प्रबन्धन (Exercise Management):
बढ़ती आयु में भी फिट रहने के लिए व्यायाम करना आवश्यक हो जाता है । अत: बच्चों को वृद्ध माता-पिता के लिये हल्के-फुल्के व्यायाम, सुबह-शाम सैर व प्राणायाम की व्यवस्था करनी चाहिए । सैर पर जाने वाले वृद्धों के पास उनका पहचान पत्र तथा मोबाइल फोन अवश्य ही होना चाहिये । ताकि आकस्मिक दुर्धटना के समय घर पहुँचने की उचित व्यवस्था हो सके ।
(8) आकस्मिक समय के लिये ध्यान देने योग्य बातें (Things to Keep in Mind for Emergency):
i. अस्पताल का एम्बुलेन्स का नम्बर लिखा होना चाहिये ।
ii. परिवार के सदस्यों का मोबाइल नम्बर भी वृद्ध जनों के मोबाइल में होना चाहिये ।
iii. अपने पड़ोसियों को इस बात की जानकारी देनी चाहिये कि वुद्ध माता-पिता उनके साथ रह रहे हैं ताकि समय पर उनका सहयोग प्राप्त हो सके । आवश्यकता के समय पर वृद्ध व्यक्ति के लिये सहायक/सहायिका का प्रबन्ध करना चाहिये ताकि वृद्धों की उचित देखभाल या सेवा हो सके ।
iv. कभी भी वृद्धों को नकारात्मक आदेश नहीं देना चाहिये इससे उनके दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है ।
v. वृद्धों को स्नेह व प्रेम की आवश्यकता होती है । घर के परिवार के सदस्य को इस बात का विश्वास दिलाना चाहिये कि परिवार के सदस्य उनसे प्रेम व स्नेह करते हैं ।
(9) सहानुभूतिपूर्वक देखभाल (Sympathetic Care):
वृद्धजन शारीरिक रूप से कमजोर व अक्षम एवं विभिन्न रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं जिस कारण परिवार के युवा, छोटे बच्चे व अन्य सदस्य उनके साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार करते हैं । अत: इस समय इस बात की आवश्यकता है कि उनके प्रति सहानुभूति रखी जाए व उनके कष्टों को समझकर उनकी सेवा की जाए अत: बच्चों को वृद्धजनों को स्नेह युक्त सेवा व सहानुभूतिपूर्वक उचित देखभाल करनी चाहिये ।
(10) वृद्धों को प्रसन्नचित्त रखना चाहिये (Keep the Elders, Happy):
वृद्धावस्था में अनेक शारीरिक व मानसिक परिवर्तन एवं परेशानियाँ होती हैं । वृद्ध व्यक्ति प्राय: दुखी व असंतुष्ट रहते हैं, तथा इनके सुख भी निराले होते हैं । इस समय वृद्ध अपनी सभी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं । वे नाती-पोतों के साथ खेलकर एवं उनकी गति विधियों से मन बहलाकर अपना समय अच्छी तरह व्यतीत कर सकते हैं ।
(11) वार्तालाप करना (Talk with them):
यदि वृद्धावस्था में पति-पत्नी में से कोई एक यदि अकेला रह जाता है उस समय स्थिति अत्यंत कष्टदायक होती है । अकेला पुरूष या अकेली स्त्री अपने मन की बात किससे कहे और किसकी सुने । घर के सभी सदस्य अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं जिस कारण वृद्ध व्यक्ति अपने को बहुत अकेला महसूस करता है ।
अत: परिवार के सदस्यों को अपने व्यस्त कार्यक्रमों में से कुछ समय निकाल कर वृद्धजनों से बातचीत करते रहना चाहिये । अत: घर पर वृद्धजनों की देखभाल करने के लिए बच्चों को उचित व्यवस्था करनी चाहिये ताकि वृद्धजन आराम से रह सकें ।