Read this article in Hindi language to learn about the top five points to be considered while selection of the fabric. The points are: 1. Purpose of Buying Fabric 2. Quality 3. Cost 4. Where to Shop? 5. Quantity.
Point # 1. कपड़ा क्रय करने का प्रयोजन: (Purpose of Buying Fabric):
वस्त्र खरीदते समय निज बातों का ध्यान रखना चाहिए:
i. कपड़ा किस प्रयोजन के लिए खरीदना है ? क्या यह कपडा उसके अनुकूल हैं ? क्या यह विशेष प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है ।
ii. क्या एक ही वस्त्र, एक से अतिरिक्त अन्य प्रयोजनों एवं अवसरों पर प्रयोग हो सकता है ? अत: कपड़ा प्रयोजन के अनुकूल ही लिया जाये ।
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iii. क्या यह कपड़ा काफी दिनों तक चलेगा ? कभी-कभी अनजाने में ऐसे कपड़े आ जाते हैं, जो जिस काम के लिये खरीदे गये हैं उसके लिये उचित नहीं होते तथा कुछ दिनों बाद बेकार साबित हो जाते हैं ।
iv. क्या वस्त्र मौसम के अनुकूल हैं ? तात्पर्य है कि गर्मी में ठंडा व जाड़े में गर्म कपड़ा ठीक रहेगा ।
v. कपड़े का वजन या उसकी संरचना कैसी है तथा वह अवसर के अनुकूल है ? कपड़े की संरचना अवसर के अनुसार होनी चाहिये । शादी व पार्टी के लिये रेशम, साटन, ब्रोकेड आदि कपड़े उपयोगी होते हैं । आदमियों के पेन्ट-कमीज के कपड़े मोटे व मजबूत होने चाहिये ।
vi. यदि वस्त्र प्रतिदिन उपयोग में लाना है, तो मजबूत व आसानी से धुलने वाला होना चाहिये; जैसे: खादी के कपड़े ।
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vii. वस्त्र ऐसा हो जिसे आसानी से धोया और प्रेस किया जा सके ? इनका संरक्षण करते समय इन्हें फफूँदी एवं कीड़ों से कैसे बचाया जाय यह भी ध्यान रखना चाहिए ।
viii. विशेष अवसर के वस्त्र कोमल, सुन्दर व आकर्षक होने चाहिये ।
ix. इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि वस्त्र पहनने वालों पर खिले व पहनावे के अन्य अंगों के साथ भी ताल-मेल दिखे ।
x. कपड़े के रख-रखाव का ध्यान भी खरीदने से पहले ही कर लेना चाहिए ।
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xi. कपड़े की कटाई सिलाई आसानी से होनी चाहिए ।
xii. कपड़ा उसी समय खरीदना चाहिये जब इसे खरीदने की इच्छा हो ।
xiii. कपडे पर जो धन लगाया जा रहा है वह उचित है या नहीं ।
Point # 2. कपड़े का गुण (Quality):
हर प्रकार के वस्त्र के गुण भिन्न भिन्न होते हैं । अत: ग्राहक को इसका ज्ञान होना चाहिए; जैसे: अन्दर के पहनने वाले वस्त्र हमेशा खास गुण वाले मुलायम होने चाहिये तथा वे पसीना आसानी से सोख लें व टिकाऊ होना चाहिए । कपड़े में सभी गुणों की या वे किस प्रकार तैयार किये गये हैं, इन सब बातों की जानकारी ग्राहक को होनी चाहिये । इन्हीं सारे तथ्यों को ध्यान में रखकर प्रत्येक कपड़े का चुनाव करना चाहिये ।
कपड़ों के निम्नलिखित गुण उसके चुनाव को प्रभावित करते हैं:
(i) बाहरी रूप (Appearance):
जब हम कपड़ा खरीदते हैं तो उसका बाहरी रूप ही देखते हैं । यहाँ बाहरी रूप से अर्थ है कि कपड़ा देखने में कैसा है ? अधिकांश लोग कपड़े के बाहरी रूप से ही प्रभावित हो जाते हैं । अत: रूप से अधिक कपड़े के गुणों को देखने के लिए स्पर्श, सुगन्ध, दृष्टि तथा अपनी ज्ञानेद्रियों का उपयोग करना चाहिये ।
कपड़ा देखने में स्वच्छ, सुन्दर व आकर्षक हो तथा उसमें रंगों का प्रभाव मिश्रण भी उत्तम होना चाहिये । तन्तु धागा, बुनाई तथा परिसज्जा आदि का प्रभाव भी कपड़े के बाहरी रूप पर पड़ता है । कपड़ों की बनावट तथा गुणों से भी कपड़े की उपयुक्तता का अनुमान लगाया जाता है ।
स्पर्श से हमें ज्ञात होता है कि रेशमी कपड़ों से कोमलता, ऊनी कपड़ों में गर्मी व लिनन में भी शीतलता का ज्ञान होता है । कोमल, चिकने व महीन कपड़े शिशुओं के सुन्दर वस्त्र निर्माण करने के लिये उपयोगी होते हैं । इनकी देखभाल व रखरखाव में सावधानी रखनी होती है ।
कठोर व मोटे वस्त्र स्कूल के यूनीफार्म/वर्दी के लिये उपयुक्त होते हैं । ज्यादातर सभी तन्तुओं से अच्छे गुणों वाले का वस्त्रों निर्माण होता है । वस्त्र जिस भी उद्देश्य से खरीदा जाये यदि खरीदने वाला उससे प्रभावित होता है तो वह उसे अवश्य ही खरीद लेता है । इस प्रकार बाहरी रूप कपड़े के चयन का महत्वपूर्ण कारक है ।
(ii) टिकाऊपन (Durability):
प्रत्येक व्यक्ति कपड़ा इस आशा से खरीदता है कि उस कपड़े को वह काफी समय तक उपयोग में ला सके अर्थात् कपड़ा सुन्दर होने के साथ-साथ टिकाऊ भी हो । कपड़े का टिकाऊपन उसके बाहरी रूप, सौन्दर्य व रंग आदि पर भी निर्भर करता है । कभी-कभी कपड़ा काफी मजबूत होता है परन्तु उसका रंग कच्चा होता है और वह एक ही धुलाई में रंग छोड़ देता है ।
अत: कपड़ा मजबूत होते हुए भी भद्दा दिखता है । कपड़ा अधिक दिनों तक तभी चलेगा जब उसमें पहनने, फटने, धुलाई, सफाई सहने की अच्छी क्षमता हो । कपड़े की बुनाई में ऐंठन वाले धागों का उपयोग होना चाहिये क्योंकि वे मजबूत होते हैं । कपड़े वही टिकाऊ होते हैं जिनकी बुनाई घनी व कसी होती है ।
बौस्केट व सटीक बुनाई में अधिक मजबूती नहीं होती जबकि सादी व ट्विल बुनाई अधिक मजबूत होती है । कपड़े का टिकाऊपन उसमें उपयोग किये गये तन्तुओं पर भी निर्भर करता है । सूती व रासायनिक कपड़े अधिक टिकाऊ होते हैं, जबकि रेशमी और गर्म कपड़े कम टिकाऊ होते हैं । परन्तु भारी सिल्क व भारी ऊनी कपड़े यदि उचित प्रकार से संग्रहित किये जायें तो सालों-साल चलते हैं ।
(iii) आसान रख-रखाव (Easy Maintenance):
हम प्रतिदिन कपड़े पहनते हैं । अत: वे अधिक गंदे होते हैं जिस कारण इन्हें प्रतिदिन धोना आवश्यक है । वस्त्रों में दाग-धब्बे भी पड़ जाते हैं जिनको छुड़ाना आवश्यक होता है । इसके लिए विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों का उपयोग करना पड़ता है ।
अत: यहाँ स्पष्ट होता है कि कपड़ा ऐसा खरीदना चाहिए जो आसानी से धुल जाये तथा उस पर रासायनिक पदार्थों का बुरा प्रभाव न पड़े । इसके साथ चाहे हाथ से या मशीन से धोया जाये, उसकी चमक व निखार बना रहे तथा कपड़े साफ करने के पश्चात् नये जैसे लगें ।
अत: इस प्रकार के कपड़े अधिक प्रचलित होते हैं । यदि आप सभी प्रकार के कपड़ों की तुलना करें तो सूती वस्त्रों का रख-रखाव अत्यंत आसान होता है, उनको धोना भी आसान होता है तथा सूती कपड़ों पर ताप घर्षण या रगड़ आदि का कोई भी विपरीत या हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता ।
रेशमी, ब्रोकेट, गोटे, जरी के काम के वस्त्रों व रेशम व ऊनी वस्त्रों की धुलाई अत्यंत सावधानीपूर्वक की जानी चाहिये । अच्छा हो कि इन कपड़ों से बने वस्त्रों की ड्राइक्लीनिंग करायी जाये । अत: कपड़ा खरीदते समय कपड़े की धुलाई की विधि को भी ध्यान में रखना चाहिये ।
(iv) परिसज्जा (Finishing):
कपड़ा देखने में सुन्दर व आकर्षक लगे तथा उसकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिये कपड़े पर विभिन्न प्रकार की परिसज्जा की जाती है । कभी-कभी परिसज्जा अच्छी न होने के कारण वह एक ही धुलाई में निकल जाती है तथा वस्त्र देखने में खराब लगता है ।
अत: कपड़ा खरीदते समय परिसजा किस विधि से की गई है, इसका ज्ञान भी रखना चाहिए या कपड़े के लेबिल पर परिसज्जा की विधि देख लेनी चाहिये । परिसज्जा का चुनाव आवश्यकता के अनुसार ही करना चाहिये ।
परिसज्जा के प्रकार; जैसे: क्रीज या क्रश अवरोधक (crease and crush resistant), क्षमता वाले वस्त्र, जल अमेद्यता (water proof), जल अपारगम्यता (water repellent), अज्वलनशील (fire proof), मर्सराइज्ड (mercerised) आदि क्षमताओं से युक्त हैं । थोड़ा-सा कपड़ा लेकर उसे धोकर देख लेना चाहिए कि रंग पक्का होना चाहिये । जिस वस्तु के निर्माण के लिये कपड़ा खरीदा जा रहा है उसी के अनुरूप पक्के रंग का कपड़ा लेना चाहिए ।
(v) आराम (Comfort):
कपडें के द्वारा हमें दो प्रकार से आराम मिलता है:
(a) शारीरिक आराम (Physical Comfort):
वस्त्रों से हमारे शरीर को आराम पहुँचना चाहिये । जो कपड़े ठंडे, वजन में हल्के, देखने में सुन्दर तथा छूने में अच्छे होते हैं वे ही हमें शारीरिक आराम देते हैं । जो वस्त्र, पसीना सोख लेते है तथा ठंडक प्रदान करते हैं वे गर्मी के लिये उत्तम होते हैं । खादी के वस्त्र आसानी से पसीना सोख लेते हैं ।
अत: वे गर्मी के लिये अच्छे होते हैं । वे वस्त्र जिनके द्वारा हवा आर-पार जा सकती है, वह वस्त्र हमें ठंडक तथा आराम प्रदान करते हैं । सर्दियों में गरमाऊनी ट्वीड कपड़ों से आराम मिलता है । सूती वस्त्र गर्मियों में अधिक आरामदायक होते हैं क्योंकि उसमें ऊष्मा का संचरण आसानी से होता है । हल्के वजन वाले वस्त्र भारी वस्त्रों की अपेक्षा अधिक आरामदायक होते हैं ।
सूती थर्मल शर्ट अधिकतर गर्म होती है जिन्हें केवल ठंड में पहनना चाहिये । नॉयलान, टेरालीन या डेक्करॉन से बने कपड़े सुंदर, टिकाऊ व आरामदायक होते हैं । परन्तु इनको गर्मी के मौसम में नहीं पहना जा सकता है । इसी प्रकार रोएँदार सूती कपड़े सस्ते होते हैं ।
परन्तु ये सर्दी में ही आराम देते हैं । अत: स्पष्ट होता है जिन क्रेताओं को अनुभव तथा उनकी क्रय क्षमता अच्छी है, फिर भी वे उच्चस्तर व अधिक महँगे कपड़े नहीं खरीदते । वे कपड़ों का चयन उसके आरामदायक गुणों के अनुसार करते हैं ।
(b) मनोवैज्ञानिक आराम (Psychological Comfort):
कुछ व्यक्ति आराम से ज्यादा अपनी पसंद, आधुनिक फैशन के अनुसार कपड़ों का चयन करते हैं । इन लोगों को ऐसे कपड़ों में अधिक आराम मिलता है तथा उससे उन्हें अधिक आत्म विश्वास आता है ।
(vi) मौसम (Season):
वस्त्रों का मुख्य कार्य है-गर्मी व सर्दी में गर्म व ठंडी हवा से शरीर की रक्षा करना । वस्त्र विभिन्न मौसम में शरीर का तापक्रम नियंत्रित करने का कार्य भी करता है । गर्मी के मौसम में ठंडक प्रदान करने वाले सूती या खादी के कपड़े आरामदायक होते हैं । ये पसीना सोखकर शरीर को ठंडक पहुंचाते हैं । अत: गर्मी में मलमल, खादी व अन्य सूती कपड़ों का प्रयोग अच्छा होता है ।
ये कपड़े पसीना सोख लेते हैं तथा लू को शरीर के अन्दर नहीं जाने देते हैं । सर्दी के मौसम में शरीर को गर्मी प्रदान करने वाले ऊनी कपड़े खरीदने चाहिये । ये ताप के कुचालक होते हैं । जिस कारण शरीर से गर्मी बाहर नहीं निकल पाती ।
सर्दियों में निम्न रंग के कपड़ों का चयन करना चाहिये जैसे:
लाल, पीला, नारंगी, काला आदि । ये रंग सूर्य की किरणों को अवशोषित कर लेते हैं, इस कारण गर्म रहते हैं । सर्दियों में रेशमी कपड़ों का भी प्रयोग होता है क्योंकि ये भी ताप के कुचालक होते हैं, जिससे शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकल पाती ।
बरसात के मौसम में सिंथेटिक कपड़े जो रासायनिक तन्तुओं से बने होते हैं, अधिक उत्तम होते हैं बरसात में पानी में भीगने पर ये पानी सोखते नहीं तथा शीघ्र ही सूख जाते हैं । इसलिये ये गीले नहीं होते । इन पर किसी भी प्रकार की सिकुड़न भी नहीं पड़ती है ।
Point # 3. कीमत (Cost):
कपड़ा खरीदते समय सबसे महत्वपूर्ण तत्व है कि हमारे पास कितना धन है जो हम वस्त्र खरीदने में खर्च कर सकते हैं । व्यक्ति को अपनी आय देखकर तथा वस्त्रों की आवश्यकताएँ समझकर ही वस्त्रों के चयन को प्राथमिकता देनी चाहिये ।
वस्त्रों की कीमत को कई तत्व प्रभावित करते हैं जो कि निम्न प्रकार हैं:
i. वस्त्रों की बुनाई,
ii. प्रकार,
iii. परिसज्जा,
iv. नूमना,
v. हस्तकार्य ।
खरीददारी से पहले बाजार मैं उपलब्ध कपड़ों की कीमत व गुणों का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहिये तथा इस बात का ज्ञान रखना चाहिये कि वस्त्रों का मूल्य निर्धारित मूल्य के अनुरूप है या नहीं, यह अत्यंत आवश्यक बिन्दु है । कभी भी खरीददारी बिना उद्देश्य के नहीं करनी चाहिये ।
जल्दबाजी में की गई खरीददारी में अधिक रुपया व्यय होता है तथा उद्देश्य भी पूरा नहीं होता । उद्देश्यहीन खरीददारी में पैसा, समय व शक्ति नष्ट होती है । कभी-कभी हम ऐसा कपड़ा खरीद लेते हैं जो कि पहले से हमारे पास होता है । हमें इस बात का ज्ञान भी होना चाहिये कि क्या केवल कीमती कपड़े ही उत्तम व टिकाऊ होते हैं ।
अधिकांश देखा गया है कि कीमती कपड़े टिकाऊ होने के साथ-साथ व्यक्तित्व को निखारते भी हैं तथा उनकी रौनक अधिक दिन तक बनी रहनी है । यह अच्छा होगा कि सूझ-बूझकर ही कम कीमत वाले कपड़ों का चयन किया जाये जोकि उद्देश्य की पूर्ति कर सके ।
कभी-कभी कम कीमत का कपड़ा खराब निकल जाता है, जिससे उस पर खर्च की गई सिलाई का पैसा व्यर्थ ही जाता है । अत: यह स्पष्ट होता है कपड़ों को चयन करने में धन का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है ।
Point # 4. खरीददारी कहाँ से करें ? (Where to Shop?):
कपड़ के चयन में खरीददारी स्टोर का भी चयन करना आवश्यक है । आजकल अनेकों स्टोटर्स हैं जहाँ से खरीददारी की जाती है । इसके साथ-साथ कपड़ों की कीमत देने की भी कई विधियाँ हैं । खरीददारी करने से पहले अपनी आवश्यकताओं की सूची अवश्य ही तैयार कर लेनी चाहिये तथा जहाँ तक सम्भव हो उसी के अनुसार खरीददारी करनी चाहिए ।
बाजार का निरीक्षण भी अवश्य ही कर लेना चाहिये ताकि इस बात का ज्ञान हो कि कौन-सा कपड़ा कहाँ मिलता है । कपड़ा कब, कैसे और कहाँ से खरीदना है ? यह सब सोच-समझकर ही खरीददारी करनी चाहिये ।
कपड़ों की खरीददारी करते समय निम्न दुकानें या स्टोर्स को पहले देखना चाहिए:
(i) थोक या फुटकर स्टोर्स (Wholesale and Retail Stores):
थोक व्यापारी अधिक मात्रा में कपड़े बेचते हैं तथा उनके पास मिल से थोक में कपड़ा आता है । ये व्यापारी थान की थान कपड़ा फुटकर व्यापारियों को बेचते हैं । थोक व्यापारी थोड़ी मात्रा में कपड़ा नहीं बेचते
हैं । फुटकर व्यापारी आराम से समय लेकर कपड़ा दिखाते हैं तथा इनसे कपड़ों की आराम से परख करके व रंग आदि का चयन करके कपड़ा खरीद सकते हैं । परन्तु फुटकर दुकानों पर कपड़ों की कीमत अधिक होती है जबकि थोक व्यापारियों के द्वारा ली गई कीमत कम होती है ।
(ii) विश्वसनीय दुकान (Reliable Shop):
कपड़ों की खरीददारी जान पहचान की, प्रतिष्ठित विश्वसनीय दुकानों या स्टोर्स से ही करनी चाहिए । खरीददारी करने से पहले अपनी खरीद की सूची तैयार करें । उसके पश्चात् ही बाजार का निरीक्षण करना चाहिये तथा यह निश्चित करना चाहिये कि कब, कहाँ से और किस प्रकार से खरीददारी करना उचित होगा । इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये कि बिना सोचे समझे जल्दबाज़ी में ख़रीददारी न करें ।
(iii) विभागीय भंडार (Departmental Stores):
कपड़े उन्हीं से खरीदने चाहिये जहाँ उपभोक्ता सेवाएँ संतोषजनक हों । स्टोर व भंडार सुविधाजनक स्थान पर स्थित हों । स्टोर में माल की विविधता हो तथा अधिकांश मात्रा में स्टोर हो । स्टोर में सभी वस्तुएं अच्छी तरह सजाकर रखी गई हों ताकि ग्राहक आराम से खरीददारी कर सके ।
इन स्टोर्स (मॉल) में छोटे बच्चों के लिये खेल गाड़ियाँ, गेम्स, स्नैक्स आदि की सुविधायें भी होनी चाहिये । इन मॉलों में फ्री कार पार्किग, रेस्टरूम, ट्रायल रूम आदि की सुविधायें भी होती हैं । पूछताछ के लिए भी केन्द्रों की व्यवस्था होती है ।
कई स्टोर्स में उपहार पैकिंग की मुफ्त सुविधा भी होती है । आजकल के मल में लिफ्ट, बिजली से नियंत्रित दरवाजे, केन्द्रीय सुरक्षा, ई-मेल सेवा, बच्चों के खेलने का स्थान, फूडकोर्ट, कॉफी रूम स्थानों में पेड़-पौधे और हरियाली भी होती है ।
यहाँ अलग-अलग मिलों के कपड़े एक ही छत के नीचे उपलब्ध होते हैं । इससे समय व शक्ति की बचत होती है । कभी-कभी कपड़ों में कोई शिकायत होने पर बिल दिखाकर कपड़ा वापस किया जा सकता है । इस प्रकार इन स्टोर्स ग्राहकों को पूर्ण संतोष देकर सामान खरीदने की सुविधा प्रदान की जाती है । अत: इन सुविधाओं के कारण सामान की कीमत बढ़ जाती है ।
(iv) फुटकर दुकानें (Retail Shops):
ये व्यापारी थोक की दुकानों से सामान खरीदकर बेचते हैं । इनके पास दुकान छोटी होती हैं तथा किसी भी प्रकार के विलासिता के साधन उपलब्ध नहीं होते हैं । नकद खरीददारी पर ही इनका व्यापार चलता है । फुटकर व्यापारी किसी भी प्रकार की गारंटी या एक बार माल बेचने के पश्चात् वापस नहीं लेते हैं । अनुभवी ग्राहक समझदारी से इन दुकानों से अच्छा माल खरीद सकते हैं ।
(v) छूट प्रदान करने वाली दुकानें (Discount Stores):
इनका आजकल अत्यधिक प्रचलन है; जैसे ही मौसम समाप्त होता है इन दुकानों पर छूट दी जाने लगती है । कभी-कभी इन स्टोर्स पर कपड़े सीधे कारखानों से आते हैं जिन पर छूट दी जाती है । परन्तु कभी-कभी इस छूट के लिये दिये गये गलत/भ्रम के कारण विज्ञापनों से या अधिक छूट व उपहार से ग्राहक लालच में आकर खराब कपड़े खरीद लेते हैं ।
कभी-कभी निम्न स्तर के कपड़ों को लुभावने व आकर्षक पैकिंग में रखकर ग्राहकों को बेवकूफ बना देते हैं । अत: ग्राहक को अनुभव व समझदारी से ही खरीददारी करनी चाहिये । बाजार बन्द होने पर कुछ व्यापारी पटरी बाजार लगाते हैं । यहाँ पर भी अनुभव व समझदारी से ही अच्छा कपड़ा खरीदा जा सकता है ।
(vi) ब्राण्डेड स्टोर्स (Branded Stores):
कई मिलों के अपने स्टोर्स तथा फ्रेंचाइजी होती हैं उन स्टोर्स पर निर्धारित दामों पर कपड़े बेचे जाते हैं । इनकी कीमतें स्थिर होती हैं तथा मोल-भाव की कोई गुंजाइश नहीं होती है । इन स्टोर्स से ग्राहक पूरे विश्वास से खरीददारी कर सकता है तथा की गई खरीददारी पर विश्वास कर सकता है । ऐसे स्टोर्स मुख्यतया बॉम्बेडाइंग, अरविन्द रेमण्ड, विमल, कैलिको आदि मिल के होते हैं ।
(vii) पड़ोसी भंडार (Neighbourhood Stores):
कई बार रिहायशी कॉलौनी में ही सुविधा के लिये छोटी-छोटी कपड़ों की खरीददारी के लिए भंडारघर या दुकानें खोली जाती हैं परन्तु ये सीमित कपड़ा ही रखती हैं । इस प्रकार की व्यवस्था से आस-पास के लोगों को अत्यंत सुविधा होती है क्योंकि इससे समय, श्रम व पैसे की बचत होती है हालांकि ये दुकानें महँगी होती हैं ।
(viii) इन्टरनेट से खरीददारी (Shopping by Internet):
इंटरनेट पर कई दुकानें अपने कपड़ों को प्रस्तुत करती हैं तथा पहले से पैसा जमा करने व खरीददारी का आदेश देने पर माल घर पर ही भेज देती हैं ।
Point # 5. मात्रा (Quantity):
कपड़ा खरीदने से पहले कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि यदि हम अन्दाज से ही कपड़ा खरीदेंगे तो वह कम या ज्यादा हो सकता है । अत: कपड़ा उतना ही खरीदना चाहिये जितना परिधान बनाने के लिये आवश्यक हो, अधिक कपड़ा खरीदने पर थोड़ा कपड़ा बच जाता है जो कि किसी भी काम में नहीं आता तथा उसमें पैसा व्यर्थ होता है । इसी प्रकार कम कपड़ा खरीदने पर भी परिधान ठीक प्रकार से बन नहीं सकता तथा कपड़ा व्यर्थ जाता है ।
अत: मात्रा के अनुसार कपड़ा खरीदते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिये:
i. कपड़ा मीटर के हिसाब से बिकता है । अधिकतर कपड़े बुने हुए होते हैं तथा उनका प्रयोग कन्नी से किया जाता है । कपड़ा खरीदने से पहले उसकी संरचना की जानकारी प्राप्त करनी चाहिये ।
ii. कपड़े की चौड़ाई उसकी तन्तु रचना से सम्बन्धित होती है । हाथ के बने कपड़ों की चौड़ाई करघे के हिसाब से होती है । प्रत्येक कपड़े की चौड़ाई अलग-अलग होती है, जिसके लिये अलग-अलग करघे का प्रयोग किया जाता है; जैसे: थान का कपड़ा, साड़ियाँ तौलियाँ आदि ।
iii. कपड़ा खरीदने से पहले उसका अर्ज या पनहा अर्थात् चौड़ाई (width) का पूरा ज्ञान होना चाहिए । अर्ज के द्वारा परिधान बनाने के लिये आवश्यक कपड़े की मात्रा की जानकारी आसानी से हो जाती है । अधिक अर्ज वाले कपड़े कुछ कीमती होते हैं परन्तु कम अर्ज वाले कपड़ों की कीमत कम होती है ।
iv. परिधान किस प्रकार से बनाया जायेगा ? कभी-कभी ढीला वस्त्र बनाने के लिये अधिक गुंजाइश देने के लिये अधिक कपड़ा लेना होता है ।
v. बच्चों के परिधान बनाने के लिये अधिक कपड़े खरीदने चाहिये । कपड़े अधिकतर, सूती कपड़े सिकुड़ते है अत: उनका अनुमान ठीक प्रकार लगाना चाहिये ।
vi. कुछ ऐसे कपड़े भी होते हैं जो कि सिलाई के पश्चात् उधड़ते, सरकते या छिटकते हैं उसमें सिलाई करते समय अधिक कपडे की आवश्यकता होती है । अत: ऐसे कपडे थोडे अतिरिक्त मात्रा में खरीदने चाहिये ।
vii. कुछ परिधानों में डिजाइन बनाने की आवश्यकता होती है; जैसे-स्कर्ट प्लेटों के लिये, जेब, कॉलरों, फ्रिल, किनारियों बनाने के लिये, अत: इनमें अधिक कपड़े की आवश्यकता होती है । यदि ब्लाउज पूरी आस्तीन का बनाना है तो अधिक कपड़ा लेना चाहिए परन्तु छोटी आस्तीन में कम कपड़े की आवश्यकता होती है ।
viii. कपड़ों की डिजाइन के अनुसार ही कपड़ा खरीदना चाहिये ताकि कपड़ा व्यर्थ न हो ।