निरस्त्रीकरण के मार्ग में बाधाए | “Obstacles in the Way of Disarmament” in Hindi Language!
निरस्त्रीकरण के मार्ग में बाधाएँ और कठिनाइयाँ:
निरस्त्रीकरण का प्रयोजन राष्ट्रों को लड़ाई के साधनों से ही वंचित कर देना है । निरस्त्रीकरण दर्शन के अनुसार युद्ध का एकमात्र प्रत्यक्ष कारण शस्त्रों एवं हथियारों का अस्तित्व है । निरस्त्रीकरण की दिशा में किए गए प्रयासों में कोई चमत्कारिक सफलता नहीं मिली है । निरस्त्रीकरण के मार्ग में अनेक बाधाएँ है, जो इस प्रकार हैं:
(1) राष्ट्रीय हित:
राष्ट्रीय स्वार्थ निरस्त्रीकरण के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है । राष्ट्र सबसे पहले अपने हितों को देखते हैं और उसके बाद अपनी राष्ट्रीय सीमा से बाहर निकलकर आदर्शों में लिपटी हुई भाषा में अंतर्राष्ट्रीय जगत को धोखा देने का प्रयास करते हैं ।
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कोई भी राष्ट्र इसका अपवाद नहीं है । उदाहरणार्थ भारत ने 1968 की परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए । भारत चीन से भयभीत है और परमाणु अप्रसार संधि को शका की दृष्टि से देखता है ।
(2) राष्ट्रवाद एवं संप्रभुता:
राष्ट्रवाद एवं संप्रभुता की भावना के कारण एक देश यह स्वीकार नहीं करता कि उसकी निरस्त्रीकरण की क्रियान्विति की जाँच के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्था बनाई जाए । इस प्रकार के निरीक्षण द्वारा एक देश की स्वतंत्रता पर जो अकुश लगता है उसे मानने को कोई भी तैयार नहीं होता ।
(3) राजनीतिक समस्याएँ:
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निरस्त्रीकरण राजनीतिक समस्याओं के समाधान पर निर्भर करता है, अत: पहले राजनीतिक समस्याओं को हल किया जाए या निरस्त्रीकरण किया जाए । ये दोनों एक-दूसरे के मार्ग में बाधा डालते हैं । यह सोचा जाता है कि शस्त्र झगड़ों का कारण है और इनेको घटाने से अंतर्राष्ट्रीय प्रेम और मैत्री बढ़ेगी किंतु यह प्रयास एकपक्षीय होगा ।
होना यह चाहिए कि मनमुटाव अविश्वास एवं प्रतिद्वन्द्विता को दूर करने के लिए हर दिशा में प्रयास किया जाए । वास्तव में, निरस्त्रीकरण की दिशा में ठोस कार्य तब तक नहीं हो सकता जब तक महाशक्तियों में मौलिक मतभेद बने रहेंगे ।
(4) आर्थिक कारण:
अमेरिका और ब्रिटेन आदि पूँजीवादी देशों में शस्त्रास्त्र निर्माण करने वाली कंपनियों के मालिक व हिस्सेदार राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और निरस्त्रीकरण कार्यक्रमों को सफल नहीं होने देते क्योंकि निरस्त्रीकरण हो जाने से उनका रोजगार ठप्प हो जाएगा और उनके कारखाने बद हो जाएँगे ।
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निरस्त्रीकरण हो जाने से यदि शस्त्र उद्योग बद हो गए तो पूँजीवादी देशों में बेकारी बढ़ेगी और लोगों की क्रयशक्ति नष्ट हो जाएगी । ऐसा कहा जाता है कि निरस्त्रीकरण के कारण होने वाली आर्थिक कटौती से आर्थिक संकट आ जाएगा ।
(5) प्राथमिकता का प्रश्न:
निरस्त्रीकरण पहले किया जाए अथवा राज्यों के आपसी विवादों को पहले सुलझाया जाए । निरस्त्रीकरण हो जाए तो कई राजनीतिक विवाद स्वयं सुलझ जाएँगे और राजनीतिक विवाद सुलझ जाएँ तो निरस्त्रीकरण करना सुगम हो जाएगा ।
हमारी मूल समस्या यह है कि दोनों में से किस तर्क को ज्यादा वजनी मानें । हमारी धारणा यह है कि शास्त्रों की होड़ से तनाव शंका भय और युद्ध का सूत्रपात होता है अत: निरस्त्रीकरण को प्राथमिकता देनी
होगी ।
(6) अनुपात की समस्या:
निरस्त्रीकरण से अभिप्राय है कि शस्त्रीकरण पर सीमा या नियंत्रण लगाना अथवा उनमें कटौती करना । निरस्त्रीकरण की मूल समस्या सभी देशों के शस्त्रों का आनुपातिक रूप से कम करना है । निरस्त्रीकरण के उपरांत यह नहीं होना चाहिए कि शक्तिशाली देश तो कमजोर बन जाए तथा कमजोर देश अधिक शक्तिशाली बन जाए ।
अत: निरस्त्रीकरण में ‘संतुलित’ अथवा ‘आनुपातिक’ शक्ति को स्थिर ही रखना पड़ेगा । राज्य इस बात के लिए विशेष सतर्क रहते हैं कि आनुपातिक शक्ति में निरस्त्रीकरण के बाद कोई भी परिवर्तन न हो । इतना ही नहीं प्रत्येक राज्य निरस्त्रीकरण के द्वारा अपनी शक्ति पर तो कोई आँच नहीं आने देना चाहता यद्यपि दूसरे राज्यों की शक्ति को क्षीण करना चाहता है ।
अत: निरस्त्रीकरण के प्रस्ताव प्राय एकपक्षीय होते हैं । सैल्वेदोर दि मदेरियागा ने इसी तथ्य को लिटिनोव द्वारा प्रस्तुत एक प्रस्ताव के उत्तर में 1932 में जेनेवा निरस्त्रीकरण सम्मेलन में एक लोककथा द्वारा चित्रित किया है । जंगल के सभी जीव-जंतु निरस्त्रीकरण सम्मेलन में भाग लेने के लिए एकत्र हुए ।
शेर ने गिद्ध की ओर देखते हुए गंभीरता से कहा हमें शिकारी पक्षियों के नखों को समाप्त करना होगा । चीते ने हाथी की ओर देखत हुए कहा इन बाह्य दाँतों को भी हटाना होगा हाथी ने चीते की ओर देखते हुए कहा नाखून और पंजे भी नहीं रहने चाहिए । इसी प्रकार बारी-बारी से कोई जानवर उठता और अपने को छोड़कर जिस पर उसकी दृष्टि पड़ती उसके नुकीले दाँत या नाखूनों को समाप्त करने की बात करता ।
अंत में रीछ अपने स्थान से उठा और बहुत मीठे लहजे में बोला साथियो, सबको समाप्त कर दो, सबका उन्मूलन कर दो बस यह महान् सर्वदेशीय आलिंगन रहने दो ।” कहने का मतलब यह है कि निरस्त्रीकरण के लिए विभिन्न राष्ट्रों द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव बड़े एकपक्षीय होते हैं । आनुपातिक निरस्त्रीकरण करना तो और भी कठिन है ।