मानव अधिकारों के प्रोत्साहन और संरक्षण में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका । “Non-Governmental Organizations and Human Rights” in Hindi Language!
मानव अधिकारों के प्रोत्साहन और संरक्षण में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका:
आर्थिक और सामाजिक काउंसिल (Economic and Social Council-ECOSOC) ने गैर-सरकारी संगठन की परिभाषा कुछ इस प्रकार दी है: “कोई अंतर्राष्ट्रीय संगठन जिसकी स्थापना अंतर्सरकारी समझौते के द्वारा न हुई
हो ।” इस व्यापक परिभाषा के अंतर्गत निजी स्वैच्छिक संगठन, सामुदायिक वर्ग, व्यावसायिक और व्यापारिक संगठन, श्रमिक संघ, शैक्षिक और वैज्ञानिक संगठन आते हैं ।
गैर-सरकारी संगठनों और अनगिनत व्यक्तिगत वकीलों पत्रकारों और कार्यकर्त्ताओं के योगदान ने विश्व-भर में मानव अधिकारों के प्रति सम्मान की भावना को बढ़ाने में बहुत मदद की है । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एम्नेस्टी इंटरनेशनल (1977) में शांति के लिए नोबल पुरस्कार विजेता) रेडक्रॉस और मानव अधिकार निगरानी) आदि गैर-सरकारी संगठन मौके पर जाँच करते हैं, अंतर्राष्ट्रीय तथा घरेलू फोरम (मंच) पर विस्तृत रिपोर्टें प्रेषित करते हैं तथा मजदूरी समर्थक अभियान चलाते हैं ।
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हमारे मानव अधिकार संगठन कहीं कम जन-जागरूकता के बीच और अपने पार-राष्ट्रीय प्रतिरूप की अपेक्षा कहीं कन शारीरिक सुरक्षा के साथ काम करते हैं और जहाँ संभव होता है, वे अपनी-अपनी सरकारों के कार्यों की मॉनीटरिंग भी करते हैं ।
इन वर्गों में सैन-सेत्वाडीर ऐल सल्वाडोर का टुटेला आर्चडायोसिसन कानून सुरक्षा कार्यालय चिली का विकेरिया डि. सोलिडेरिडैड और फिलिपीन्स का निशुल्क कानूनी सहायता वर्ग सम्मिलित है । गैर-सरकारी संगठन और संयुक्ता राष्ट्र-गैरसरकारी संगठनों और अनगिनत व्यक्तिगत वकीलों, पत्रकारों और कार्यकर्त्ताओं के योगदान ने विश्व भर में मानव अधिकारों के प्रति सम्मान की भावना को बढ़ाने में बहुत ही मदद की है ।
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के 71 वें अनुच्छेद में व्यवस्था है कि गैर सरकारी संगठन आर्थिक और सामाजिक काउंसिल के कार्य में परामर्शदाता के रूप में भाग ले सकते हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ परामर्शदाताओं के रूप में काम करने वाले 930 गैर-सरकारी संगठन हैं ।
इनमें से प्रमुख गैर-सरकारी संगठन हैं-एम्नेस्टी इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड कमेंट सोसाइटीज दी डियन कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्रस और दी रीजनल काउंसिल फॉर हमन राइट्स इन एशिया । संयुक्त राष्ट्र जन सूचना विभाग और गैर-सरकारी संपर्क सेवा (एन.जी.एल.एस.) के माध्यम से बड़ी संख्या में गैर-सरकारी संगठनों से संपर्क बनाए रखता है ।
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इन विभागों को संयुक्त राष्ट्र पद्धति के अंतर्गत चलने वाले कार्यक्रमों के लिए कई एजेंसियों द्वारा संयुक्त रूप में प्रायोजित किया जाता है । गैर-सरकारी संगठन संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों को सूचनाएँ मुहैया कराते हैं । ये विशेषज्ञ मानव अधिकारों की मॉनीटरिंग करते हैं और सामान्यत: बहुत-से निर्णयों को प्रभावित भी करते हैं । इन निकायों का कार्य मानव अधिकार के पक्षों से जुड़ा है ।
सरकार और अंत सरकारी संगठन जिन क्षेत्रों को राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील समझते हैं उनमें गैर-सरकारी संगठन कोई खतरा उठाने में स्वतंत्र और तैयार होते हैं । उन्हें अपने कार्य की प्रकृति के कारण अभिव्यक्ति और कार्य में लचीलापन तथा अपने कार्यकलापों में स्वच्छंदता है ।
यह गैर-सरकारी संगठनों को संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकारों को बढ़ावा देने और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने में पूरक की भूमिका अदा करने में सहायता करते हैं । शीत युद्ध की समाप्ति ने नई विश्व व्यवस्था को कई प्रकार से परिभाषित करने के प्रयास किए हैं ।
परिणामस्वरूप लोगों और संस्कृतियों के संगम ने वैश्विक बहु-सास्मृतिक विश्व को बढ़ावा दिया है जिसमें बहुवाद के साथ इसके समायोजन की प्रक्रिया में तनाव संशय और संघर्ष भरा हुआ है । ऐसे में पुरानी प्रथाओं परंपरागत संस्कृति मूलभूत मूल्यों और बोध व्यक्ति की पहचान को प्राप्त करने के औचित्य की ओर मुड़ने का जोरदार समर्थन किया जा रहा है ।
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परिवर्तन के इस परिवेश में और इस अत्यधिक संवेदनशीलता ने वर्तमान सार्वभौम मानव अधिकारों के समक्ष नई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं । संयुक्त राष्ट्र के अधिकांश वर्तमान कार्यों के माध्यम से मानव अधिकारों की सार्वभौमिकता अंतर्राष्ट्रीय कानूनों में स्पष्ट रूप में स्थापित और स्वीकृत हो गई है ।
मानव अधिकारों के मानकों में ये उपलब्धियाँ संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था द्वारा पाँच दशकों में किए गए कार्यों का परिणाम हैं । अंतर्राष्ट्रीय कानून के ज्यादातर क्षेत्रों की तरह सार्वभौम मानव अधिकार न तो अन्य संस्कृतियों की उपेक्षा करके किसी विशिष्ट संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं और न ही उनकी ओर उग्ख हैं ।
प्रत्येक मनुष्य को अपनी संस्कृति पर अधिकार है यानी उसे अपनी संस्कृति का आनंद लेने उसका विकास करने एवं उससे घनिष्ठता बढ़ाने का अधिकार है । इसका यह अभिप्राय बिल्कुल नहीं है कि परंपरागत संस्कृति मानव अधिकारों का स्थान ले सकती है ।
मानव अधिकारों को संस्कृति के संदर्भ से जोड़ने बढ़ावा देने सुरक्षित करने और स्थापित करने की आवश्यकता है । ऐसा दृष्टिकोण सांस्कृतिक संपूर्णता और विविधता को मानव अधिकारों के सार्वभौम मानकों के साथ किसी प्रकार का समझौता किए बिना या उसके स्वरूप को कम किए बिना स्वीकार करता है ।
बाल्कन्स से लेकर हार्वे ऑफ एफ्रीका तक मानव अधिकार उन स्थितियों का अविभाज्य घटक हैं जिन्हें मानवीय सहायता की आवश्यकता है । इससे वे लोग प्रभावित होते हैं जो शरणार्थी हैं, जो अपने ही देश में विस्थापित हो गए हैं या दूसरे नागरिक जो आपसी दंगों के शिकार हो जाते हैं ।
उनकी स्थिति भी वैसी है, उनके मानव अधिकारों के उल्लंघन की सभावना है, उन्हें किसी उपद्रव में सुरक्षा की आवश्यकता है, जब आपात स्थिति समाप्त हो जाए और वे फिर से जीवन शुरू करना चाहें तो उनके अधिकारों को सम्मान दिया जाना चाहिए ।
संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था में निरंतर बढ़ती हुई मानवीय चुनौतियों में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को नेतृत्व दिया है । शरणार्थियों के संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त और मानवीय मामलों के नए विभाग इस प्रयास में सबसे आगे हैं । ये संयुक्त रूप से सरकारी, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों, रेडक्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति तथा गैर-सरकारी समुदाय की कई अन्य संस्थाओं के साथ कार्य कर रहे है ।