निरस्त्रीकरण नीति | “Disarmament Policy” in Hindi Language!
निरस्त्रीकरण:
आज विभिन्न देर्शो शस्त्रों की प्रतिस्पर्धा के वाबजूद निरस्त्रीकरण के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् अनेक प्रयास हुए हैं । निरस्त्रीकरण का शाब्दिक अर्थ है शारीरिक हिंसा के प्रयोग के समस्त भौतिक तथा मानवीय साधनों का उन्मूलन ।
यह एक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य हथियारों के अस्तित्व और उनकी प्रकृति से उत्पन्न कुछ विशिष्ट खतरों को कम करना है । इससे हथियारों की सीमा निश्चित करने या उन पर नियंत्रण करने या उन्हें घटाने का विचार ध्वनित होता है ।
निरस्त्रीकरण के प्रयास युद्ध को पूरी तरह समाप्त करने की कलात्मक आशा की पूर्ति के लिए नहीं अपितु आश्चर्य में डाल देने वाले तथा यकायक होने वाले आक्रमणों को रोकने के लिए किए जाते हैं । निरस्त्रीकरण का लक्ष्य आवश्यक रूप से निरस्त कर देना नहीं है ।
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इसका लक्ष्य तो यह है कि जो भी हथियार इस समय उपस्थित हैं उनके प्रभाव को घटा दिया जाए । मॉर्गेन्थाऊ के अनुसार, निरस्त्रीकरण कुछ या सब शस्त्रों में कटौती या उनको समाप्त करना है ताकि शस्त्रीकरण की दौड़ का अंत हो ।
मॉर्गेन्थाऊ के अनुसार, निरस्त्रीकरण पर विचार करते समय दो मूल भेदों को ध्यान में अवश्य रखना चाहिए वे हैं सामान्य और स्थानीय निरस्त्रीकरण में भेद और मात्रात्मक और गुणात्मक निरस्त्रीकरण में भेद । सामान्य निरस्त्रीकरण से मतलब है जिसमें सब संबंधित राष्ट्र भाग लें ।
इसका उदाहरण हमें 1922 की नौसैनिक शस्त्रीकरण पर परिसीमा की वाशिंगटन संधि से मिलता है, जिस पर सारी प्रमुख नैसर्गिक शक्तियों ने हस्ताक्षर किए और 1932 में विश्व निरस्त्रीकरण सम्मेलन से जिसमें लगभग राष्ट्र समुदाय के सब सदस्यों का प्रतिनिधित्व हुआ ।
स्थानीय निरस्त्रीकरण से हमारा अभिप्राय उससे है जिसमें सीमित संख्या में राष्ट्र सम्मिलित हों । 1871 का अमेरिका और्रं कनाडा के बीच रश-बागोट समझौता इस प्रकार का एक उदाहरण है निरस्त्रीकरण का उद्देश्य अधिक या सब प्रकार के शस्त्रीकरण में संपूर्ण कटौती है ।
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1932 में विश्व निरस्त्रीकरण सम्मेलन में उपस्थित अधिकतर राष्ट्रों का यह ध्येय था । गुणात्मक निरस्त्रीकरण केवल विशेष प्रकार के शस्त्रों में कटौती या इनका उन्मूलन है, जैसे 1932 के विश्व निरस्त्रीकरण सम्मेलन में ब्रिटेन ने आक्रमणकारी शस्त्रों को अवैध कराने का यत्न किया था ।
व्यापक निरस्त्रीकरण को पूर्ण या संपूर्ण निरस्त्रीकरण (Total disarmament) भी कहते हैं । पूर्ण या व्यापक निरस्त्रीकरण का अर्थ है अंततोगत्वा ऐसी विश्व व्यवस्था ले आना जिसमें युद्ध करने के सारे मानवीय और भौतिक साधन समाप्त कर दिए गए हों ।
इस प्रकार की विश्व व्यवस्था में किसी प्रकार का कोई हथियार नहीं होगा और सेनाएँ पूरी तरह भंग कर दी जाएँगी । सैनिक प्रशिक्षण केंद्र युद्ध मंत्रालय, सैनिक साज-सामान बनाने वाले कारखाने आदि भी बंद कर दिए जाएँगे ।
निरस्त्रीकरण अनिवार्य और ऐच्छिक प्रकार का भी होता है । अनिवार्य निरस्त्रीकरण युद्ध के ज्वरांत विजयी राष्ट्रों पर लागू किया जाता है । प्रथम और द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद जर्मनी पर ऐसा ही निरस्त्रीकरण लागू किया गया था । यदि राष्ट्र स्वेच्छा से अंतर्राष्ट्रीय संधियों द्वारा निरस्त्रीकरण स्वीकार करते हैं तो उसे ऐच्छिक निरस्त्रीकरण कहते हैं जैसे 1968 की अणु प्रसार निरोध संधि ।
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संक्षेप में, निरस्त्रीकरण सामान्य भी हो सकता है और स्थानीय भी ? मत्रात्मक भी हो सकता है और गुणात्मक भी एकपक्षीय भी हो सकता है और द्विपक्षीय भी पूर्ण भी हो सकता है और आशिक भी नियंत्रित भी हो सकता है और अनियंत्रित भी । मोटे रूप से निरस्त्रीकरण में मौजूदा अस्त्र कम या समाप्त करने की बात तथ्यगत रूप से होनी चाहिए ।
निरस्त्रीकरण नीति के चार स्तंभ:
(1) शस्त्रीकरण कम करना,
(2) संकट की रोकथाम नियंत्रण तथा प्रबंध
(3) विश्वास एवं सुरक्षा का निर्माण और
(4) शस्त्र नियंत्रण ।
शस्त्र नियंत्रण के कार्य:
(1) किसी आकस्मिक घटना के कारण शुरू होने वाले युद्ध के खतरे को कम करना,
(2) हथियारों की अंतर्राष्ट्रीय और क्षेन्त्रीय होड़ को धीमा करना,
(3) परस्पर विरोधी देशों में विश्वास बढ़ाना,
(4) अधिक शस्त्रों वाले देशों और कम शस्त्रों वाले देशों के बीच असमानता कम करना और इस प्रकार अस्थिरता के स्रोत को दूर करना
(5) देशों को विवाद हल करने के शांतिपूर्ण उपाय अपनाने को प्रोत्साहित करना
(6) संसाधनों को आर्थिक और सामाजिक विकास के कार्यो के लिए बचाना, और
(7) विश्वास तथा बेहतर समझ-बूझ पैदा करना ।
शस्त्र नियंत्रण की नीति हथियारों की होड् के कारणों पर काबू पाकर राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा देती है । संकट की रोकथाम नियंत्रण और प्रबंध के अंतर्गत उन क्षेत्रों में राजनीतिक स्थिरता तथा आर्थिक विकास पर छगन दिया जाता है, जहाँ ज्यादा तनाव होता है ।
क्यूबा के प्रक्षेपास्त्र संकट और बाद में मध्य-पूर्व एशिया तथा अफगानिस्तान में यह नीति आजमाई गई जिसमें संकट की रोकथाम एवं प्रबंधन के विकास के साधन के रूप में अमेरिका तथा सोवियत संघ के बीच संपर्क सुधारने के लिए राजनीतिक प्रयास किए गए ।
कुछ विद्वान संकट प्रबंधन को तनाव के शांतिपूर्ण समाधान का साधन मात्र-मानते हैं । इस प्रकार इसकी सफलता युद्ध को टाल पाने पर निर्भर करती है । अन्य विशेषज्ञों के अनुसार यह विजय पाने का एक तरीका है । इसका उद्देश्य शत्रु को निस्सहाय बनाकर अपनी बातें मनवाना है ।
‘विश्वास निर्माण उपाय’ (Confidence Building Measures-CBM) शब्दों का अंतर्राष्ट्रीय भाषा में प्रवेश 1970 के दशक में हुआ । चूँकि ये उपाय मुख्यतया सुरक्षा के संदर्भ में किए जाते हैं इसलिए इन्हें अब ‘विश्वास और सुरक्षा निर्माण उपाय’ कहा जाने लगा है ।
इन उपायों के उद्देश्य हैं: (1) देशों को विश्वास दिलाना कि उनके संभावित शत्रु देश उन पर हमला नहीं करना चाहते और इस तरह गलतफहमी होने की आशंका दूर करना ।
(2) अधिक मजबूत ताकतों द्वारा राजनीतिक दबाव की संभावनाएँ कम करना । और
(3) संकट की स्थिति में शत्रुता फैलने की संभावना कम करना ।
इस प्रकार विश्वास तथा सुरक्षा निर्माण उपायों का उद्देश्य प्रथम परमाणु हमले तथा परंपरागत अचानक हमले की रोकथाम करना और क्षेत्रीय तनाव को अन्य क्षेत्रों में फैलने से रोकना है ।