Read this article in Hindi language to learn about the top five principles of cloth design. The principles are: 1. Proportion 2. Balance 3. Rhythm 4. Emphasis 5. Hormony.
डिजाइन के मूल सिद्धान्तों को ध्यान में रखकर रेखा, आकृति, आकार, रंग व बनावट से जोड़कर किसी भी व्यक्ति के लिए सुन्दर व आकर्षक वस्त्र बनाये जा सकते हैं ।
डिजाइन के सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं:
Principle # 1. अनुपात (Proportion):
इस सिद्धान्त के अन्तर्गत एक ही परिधान के विभिन्न भागों का आपस में सम्बन्ध अर्थात् अनुपात और अनुरूपता देखी जाती । सिद्धान्त के अनुसार, परिधान के विभिन्न भागों में सही व उचित अनुपात होना चाहिए । सौन्दरराज के अनुसार, ”Proportion means the relationship of sizes or areas to one-another or to a whole, it should have pleasing relationship to the whole and to one another”.
परिधान में उपयोग होने वाले योक, कप, कॉलर बेल्ट, जेब व बटन आदि पूरे परिधान के आकार के अनुपात में होने चाहिए । उदाहरण: छोटी बच्ची की फ्रॉक में छोटे-छोटे बटन लगाने चाहिये न कि बड़े-बड़े बटन, यदि बड़े बटन या बड़ी कॉलर छोटी बच्ची के फ्रॉक में लगायें जाये तो वह अत्यंत भद्दी लगेगी ।
अत: फ्रॉक के नाप के अनुपात में ही छोटे बटन व कॉलर लगाने चाहिए । प्रचलित या चालू फैशन की हूबहू नकल करना कभी-कभी अनुचित होता है । अत: फैशन के साथ-साथ परिधान, पहनने वाले व्यक्ति की नाप के अनुपात में ही होने चाहिये क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की रचना भिन्न-भिन्न होती है ।
अत: परिधान की रचना में शरीर के आकार से अनुरूपता लाने का प्रयत्न करना चाहिये । एक छोटे कद वाली मोटी महिला को छोटे प्रिंट की साड़ी तथा दुबली-पतली व लम्बी महिला को बड़े प्रिंट की साड़ी अच्छी लगती है ।
ADVERTISEMENTS:
इसी प्रकार एक लम्बी, मोटी तथा भारी शरीर वाली महिला को बड़े-बड़े कॉलर, कफ या जेब अच्छे नहीं लगेंगे परन्तु यही वस्तुयें एक दुबली-पतली महिला का सौन्दर्य अधिक बढ़ा देंगे । इन बातों से स्पष्ट होता है कि वस्त्र के प्रिंट का चुनाव करते समय भी अनुपात के सिद्धान्त को ध्यान में रखना चाहिये ।
अनुपात के सिद्धान्त के अनुसार किसी भी कलाकृति में विभाजन करते समय भी अनुपात के नियम का पालन करना पड़ता है । अनुपात का उत्तम नियम है कि बराबर हिस्सों में विभाजन न करके छोटे या बड़े हिस्सों में विभाजन किया जाये इससे परिधान देखने में अधिक सुन्दर व आकर्षक लगेगा ।
उदाहरण:
स्कर्ट व टॉप की लम्बाई एक बराबर नहीं होनी चाहिये, हमेशा स्कर्ट लम्बा व टॉप छोटा होना चाहिए । इसी प्रकार फ्रॉक के योक व घेरे की लम्बाई भी सही अनुपात में होनी चाहिये ।
ADVERTISEMENTS:
परिधान में उपयोग किये गये रंगों के प्रयोग में भी सही व उचित अनुपात होना चाहिये । हमेशा चटक रंग के परिधान में हल्के रंग का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाना चाहिये । अधिकांशतया ऐसा भी देखा गया है कि चटक रंग की साड़ी के साथ हल्के रंग की ब्लाउज सुन्दर नहीं लगती परन्तु हल्के रंग की साड़ी के साथ उसी रंग के चटक रंग की ब्लाउज सुन्दर दिखती हें ।
Principle # 2. सन्तुलन (Balance):
इस सिद्धान्त के अनुसार परिधान में विश्रामदायक भाव आता है । सन्तुलन वस्त्र की मध्य रेखा (Centre line) या बिन्दु से देखा जाता है । वस्त्र के दोनों हिस्सों में समान सन्तुलन बनाने से, दोनों तरफ समान आकर्षण दिखाई देता है ।
गोल्डस्टीन के अनुसार, “Balance is composer of forces. Its is rest or response, which is necessary for sence of equilibrium, stability and performance, obtained by grouping shapes and colours a round a center in such a way that is equal attraction on each side of the center”.
अत: स्पष्ट है कि सन्तुलन से समानता, स्थिरता, सुरक्षा व विशिष्टता का अनुभव होता है । सन्तुलन बनाने के लिये एक केन्द्र के चारों ओर की सभी दिशाओं में लाइनों, आकृतियों और रंगों का आपस में ऐसा समन्वय किया जाता है कि जिस तरफ देखा जाये वह समानता, विशिष्टता और शांति का अनुभव कराये ।
सन्तुलन दो प्रकार से किया जाता है:
(i) औपचारिक संतुलन (Formal Balance):
जब परिधान के दोनों भागों में आकर्षण, रचना तथा अलंकरण लगभग समान रहते हैं, तो इस प्रकार के सन्तुलन को औपचारिक सन्तुलन कहते हैं । परिधान डिजाइन में औपचारिक सन्तुलन बनाना अत्यंत आसान होता है क्योंकि दोनों ओर सब कुछ एक-सा बना दिया जाता है । इस प्रकार का सन्तुलन सशक्त व प्रतिष्ठित होता है । कभी-कभी ऐसी समानता परिधान को नीरस बना देती है तथा परिधान अधिक दिनों तक लोकप्रिय नहीं रह पाते हैं ।
(ii) अनौपचारिक संन्तुलन (Informal Balance):
कभी-कभी परिधान के दोनों भागों की रचना, अलंकरण और आकर्षण में भिन्नता रहती है । ऐसी विभिन्नता से जो सन्तुलन उत्पन्न किया जाता है उसे अनौपचारिक संतुलन कहते हैं । इस संतुलन में पोशाक के दोनों ओर आकर्षण उत्पन्न करने के लिये असमान वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है ।
अनौपचारिक संतुलन में डिजाइनों में असमनाता व भिन्नता होने पर उनका तालमेल ऐसा बैठाया जाता है कि वे संतुलित दिखे, परन्तु यदि असमानता, विभिन्नता या डिजाइनों को केन्द्र से बराबर दूरी पर रखा जाए तो संतुलन बिगड़ जाता है ।
अनौपचारिक संतुलन बनाने के लिये गहरे रंगों, बटन, कढ़ाई, लेस, ब्रौकेट, स्वर्फ, तरह तरह के धागों से बने फूलों आदि का प्रयोग किया जाता है । अनौपचारिक संतुलन में समानता लाना अत्यंत कठिन है । अत: संतुलन के सिद्धान्त का ध्यानपूर्वक उपयोग करना आवश्यक होता है ।
Principle # 3. लय (Rhythm):
लय, कला का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है । लय के अन्तर्गत देखा जाता है कि परिधान में रंग, रचना, रेखा तथा अलंकरण इस प्रकार से हो कि देखने से दृष्टि फिसलकर एक छोर से दूसरे छोर की ओर चली जाये । इस प्रकार दृष्टि (आँखों का देखना) का फिसलना, संगीत की लय के नियमानुसार होता है ।
सौन्दर्यराज की परिभाषा के अनुसार, “Rhythm means an easy connected path along which the eye may travel in any arrangement of line from or colour. It relates movement which is obtained through repetition of shapes, progression of sizes or through an easily connected continuous line movement”
परिधान में लय चार प्रकार से उत्पन्न की जा सकती है:
(i) परिधान में रंग-रचना, रेखाएं तथा अलंकरणका बार-बार उपयोग करके (Repetition):
परिधान में लय उत्पन्न करने के लिये सिलाई-कढ़ाई, बटन, रंगों, लैस, पॉकेट तथा आकार-चुन्नट द्वारा समान्तर रेखाएँ बनायी जाती हैं, जिस पर दृष्टि फिसलती चली जाती है ।
(ii) आकार में धीरे-धीरे उतार-चढ़ाव लाना (Gradation):
रंग, लम्बाई-चौड़ाई की रेखाओं के आकार व नमूने के उतार-चढ़ाव में भी लय उत्पन्न किया जाता है । उदाहरण: हल्का हरा रंग, चटक हरा रंग तथा काही रंग द्वारा लय उत्पन्न करना ।
(iii) विकिरण (Radiation):
विकर्णित रेखाओं द्वारा भी लय उत्पन्न किया जाता है । परिधान में छोटी-छोटी चुन्नटों को डालकर ऐसी रेखाएँ उत्पन्न की जा सकती हैं । इन चुन्नटों द्वारा बनाई गई छोटी-छोटी रेखाओं से दृष्टि एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से पहुँच जाती है । उदाहरण: ऐसी चुन्नटें-आस्तीन के फप की चुन्नट, स्कर्ट व फ्रॉक के घेर में चुन्नट, गले की चुन्नटों में देखी जाती है ।
(iv) अदल-बदल चुन्नटों के बीच की जगह, मोड़ व अव्यवस्थित मोडों में भी लय उत्पन्न की जा सकती है ।
Principle # 4. आकर्षण केन्द्र या दवाब (Emphasis):
प्रत्येक परिधान में सजावट के समय ही एक महत्वपूर्ण केन्द्र होना चाहिए जिस पर दृष्टि सबसे पहले व बार-बार जाती है । इसे दबाव का बिन्दु (Point of emphasis) कहते हैं । इस दवाब का सम्बन्ध मुख्यतया शरीर के उस भाग से होता है जो सबसे आकर्षक होता है अत: उसी को और अधिक दिखाने के लिये दवाव का उपयोग होता है ।
इस दवाब बिन्दु को ध्यान में रखकर अन्य भागों अथवा अन्य अलंकरण तथा सह-अलंकरण का चुनाव करना चाहिये । ये सभी अनेकानेक वस्तुएँ एक-दूसरे के इतनी अनुरूपता वाली होनी चाहिए कि उनसे एक ओर अनुरूपता का आभास मिल सके ।
शरीर के किसी हिस्से को अधिक महत्व देने के लिए गहरे या विपरीत रंग, बटन, ककर, रंगीन पाइपिंग, गोटा, कालर आदि में से किसी को भी आकर्षण का केन्द्र बिन्दु बनाया जा सकता है । शरीर के सबसे आकर्षक भाग को और अधिक आकर्षक बनाने के लिये उसी हिस्से पर दवाब देना चाहिये ।
किसी तत्व को बार-बार प्रयोग करके भी किसी भाग को महत्व दिया जा सकता है । व्यक्ति के शरीर के गुण व अवगुण को उभारा या दबाया जा सकता है । यदि किसी महिला का चेहरा सुन्दर है तो उसका केन्द्र बिन्दु गर्दन के पास होना चाहिये । अत: इस भाग से और अधिक उभारने के लिये दबाव बनाने में परिधान पहनने वसूली अति आकर्षक लगेगी ।
अत: यह स्पष्ट होता है कि केन्द्र बिन्दु ऐसा हो जो व्यक्ति की शोभा बढ़ाए और साथ ही वस्त्र के विभिन्न भागों के अनुरूप तथा समय के अनुसार हो । परिधान सूवना में सादगी, सौन्दर्य, परिष्कृत रुचि तथा अति से दबाव का सदैव ध्यान रखना चहिए ।
Principle # 5. अनुरूपता (Hormony):
परिधान की रचना में एकरूपता एवं अनुरूपता उतनी ही जरूरी है, जितनी इसकी आवश्यकता संगीत अथवा सजावट में होती है अत: परिधान के सभी भागों में एकता होनी चाहिये तथा वे आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित होने चाहिये ।
इसके अभाव में अन्य सभी वस्तुओं का सौन्दर्य व्यर्थ-सा लगता है । परिधान की रचना में रेखा, रंग, आकृति, व्यवस्था, आकार, ध्येय, व्यक्तित्व तथा व्यक्ति की निजी शारीरिक विशेषताओं द्वारा विवेकपूर्ण अनुरूपता लानी चाहिए जिससे अपनेपन की भावना दिखाई पड़े ।
अनुरूपता के निम्न उदाहरण होते हैं:
i. परिधान के रंग में ताल-मेल होना चाहिये । यदि साड़ी गुलाबी रंग की है तो पेटीकोट व ब्लाउज भी उसी रंग का होना चाहिए ।
ii. परिधान में उपयोग की गई रेखाओं, आकारों को दोहराकर एकता लाई जा सकती है । यदि परिधान में गोल कॉलर का उपयोग किया गया है तो आस्तीन का कप व पॉकेट भी गोल होना चाहिये ।
iii. अनुरूपता लाने के लिए एक ही प्रकार के कपड़े का प्रयोग करना चाहिये; जैसे-यदि साड़ी सिंथेटिक है तो ब्लाउज भी सिंथेटिक कपड़े का बनाना चाहिये तभी अनुरूपता आ सकती है ।
iv. परिधान की संरचना एवं अलंकरण एक-दूसरे के अनुरूप होना चाहिये । संरचना व अलंकरण ऐसे हों कि एक-दूसरे के अभिन्न अंग महसूस न हों ।
v. परिधान पहनने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व तथा अवसर जिस समय के लिये परिधान बना आपस में एक-दूसरे के अनुरूप होना चाहिये ।
परिधान में इतनी समानता हो की वह एकरूपता का भाव दर्शाये । परिधान में कोई चीज़ एक-दूसरे से अलग नहीं होनी चाहिए; जैसे: पोशाक, उसको पहनने वाला व्यक्ति तथा पोशाक पहनने का अवसर । परन्तु कभी-कभी परिधान में इतनी अनुरूपता हो जाती है कि उसमें नीरसता और व्याकुलता-सी मालूम पड़ती है । अत: आकर्षण लाने के लिये कभी-कभी भिन्नता की भी जरूरत होती है ।
अत: स्पष्ट है कि रंग-रचनाएँ, आकार, आकृति आदि सभी शरीर रचना से आकर्षक ढंग से एकरूपाकार होना चाहिए । इसकी व्यवस्था में शरीर की प्राकृतिक रेखाओं के सौन्दर्य को उभारने में सहयोग स्पष्ट रूप से परिलक्षित होना चाहिए ।
इस प्रकार हम कह सकते है कि अनुपात, सन्तुलन, लय, अनुरूपता दवाब या आर्कषण केन्द्र आदि ऐसे मापदण्ड हैं, जिनमें कोई भी व्यक्ति अपनी पोशाक या पहनावे के औचित्य का मूल्यांकन कर सकता हैं क्योंकि इसमें से किसी एक की उपेक्षा परिधान के सौन्दर्य को नष्ट कर देने के लिये पर्याप्त है ।