Read this article in Hindi language to learn about the top five characteristics of old age. The characteristics are: 1. Old Age is a Period of Decline 2. Effect of Individual Differences on the Process Aging 3. There are Many Stereotypes of Old People 4. Some Thoughts for Elders 5. Small Group of Old People.
Characteristic # 1. वृद्धावस्था ‘क्षय’ या ह्रास की अवस्था है (Old Age is a Period of Decline):
(i) वृद्धावस्था में शारीरिक व मानसिक कारणों से ह्रास होता है तथा दोनों आधे-आधे होते हैं ।
(ii) परन्तु शारीरिक ह्रास पहले होता है व मानसिक ह्रास बाद में होता है ।
(iii) जिन व्यक्तियों में आधुनिक व नवीन बातों को सीखने की इच्छा होती है उनमें क्षय या ह्रास धीमी गति से होता है ।
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(iv) जब व्यक्ति शारीरिक रूप से निष्क्रिय हो जाता है तो उसके शरीर के विभिन्न अंगों पर उसका प्रभाव पड़ता है ।
(v) मानव शरीर के विभिन्न अंगों का कार्य काल भिन्न-भिन्न होता है ।
(vi) जैसे अण्डाशय एक निश्चित समय तक ही कार्य करता है तथा महिलाओं में बीमारी के कारण रजोनिवृत्ति (Henopause) जल्दी हो जाता है ।
(vii) इसी प्रकार नेत्रों की बीमारी या दुर्घटना होने से लेसों की कार्य क्षमता जल्दी समाप्त हो जाती है ।
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(viii) शरीर में उपस्थित ऊतकों में पाये जाने वाले तरल पदार्थों में परिवर्तन होने से कोशिकाओं को पौष्टिक तत्व प्राप्त होने में बाधा होती है । इस कारण शरीर धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है ।
(ix) आयु बढ़ने के साथ-साथ कोशिका में होने वाला परिवर्तन किसी विशेष रोग के कारण नहीं होता बल्कि शरीर में होने वाली जरण प्रक्रिया (Age Process) के कारण होता है ।
जरण प्रक्रिया (Aging) के कई कारण होते हैं; जैसे:
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कोशिका व ऊतकों के लिए आंतरिक पर्यावरण (Internal environmental) को एक समान बनाए रखने की प्रक्रिया (Process) धीरे-धीरे क्षीण पड़ने लगती है । वृद्धावस्था में उपरोक्त सभी आंतरिक परिवर्तन होने लगते हैं, कोशिका द्रव्य (cell plasma) जो कि जेली के समान होता है उसमें कैल्शियम व लौह लवण आदि पदार्थों का संचय होने लगता है जिस कारण जरण प्रक्रिया अति तीव्र गति से होने लगती है । इसका परिणाम यह होता है कि कोशिका से पोषक पदार्थों व निष्कृट पदार्थों का परासरण (osmosis) होने की क्षमता घट जाती है ।
मनोवैज्ञानिक जरण (Psychological Aging):
यह अनिवार्य नहीं है कि मनोवैज्ञानिक जरण शारीरिक जरण के साथ ही हो निम्न प्रकार हैं:
(1) वृद्धावस्था में मस्तिष्क के ऊतकों में परिवर्तन होता है परन्तु जो लोग अपने कार्य व सामान्य जीवन शैली के प्रति अनुकूल दृष्टि नहीं अपनाते, उनमें मनोवैज्ञानिक जरण जल्दी होता है ।
(2) जिन व्यक्तियों में सेवा निवृति के पश्चात् जीवन के लिये उत्साह नहीं रहता तथा वे उत्साहवर्धक रुचियों में भाग नहीं लेते, उनकी वृद्धावस्था में अस्त-व्यस्त होने की सम्भावना रहती है । इसका परिणाम यह होता है कि वे शारीरिक व मानसिक दोनों रूपों से दुर्बल हो जाते है तथा उनकी मृत्यु हो जाती है ।
(3) अधिकांशतया देखा गया है कि मानसिक रोगों से पीड़ित वृद्धों में 50% मानसिक कारणों से क्रिया विकृती हो जाती हैं ।
(4) वृद्धावस्था में वृद्धों को जिन भूमिका को निभाना चाहिये यदि वे उनको निभा नहीं पाते या अच्छी तरह समायोजित नहीं कर पाते तो वे उनकी तुलना में जल्दी जरित होते देखे गये हैं जो कि जीवन में संतोषजनक रूप से समायोजित होते हैं ।
(5) एक बात और महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति जीवन के तनावों एवं दबावों को जिस रूप में लेता है उसका प्रभाव उसकी ह्रास गति पर पड़ता है ।
(6) मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जरण के मनोवैज्ञानिक कारण प्राय: शारीरिक कारणों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होते हैं । अत: मेनोवैज्ञानिक कारण के साथ-साथ शारीरिक कारण के उपस्थित होने से ह्रास की गति बढ़ कर जरण प्रक्रिया को बढ़ा देती है ।
Characteristic # 2. जरण के असर पर व्यक्तिगत भिन्नता का प्रभाव होता है (Effect of Individual Differences on the Process Aging):
आयु में वृद्धि का प्रभाव भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न होता है ।
इसके निम्न कारण हो सकते है:
(i) भिन्न आनुवंशिकता,
(ii) विभिन्न सामाजिक आर्थिक स्तर,
(iii) शैक्षिक स्तर,
(iv) रहन-सहन का भिन्न-भिन्न स्तर ।
ये अंतर एक ही लिंग में स्पष्ट दिखाई देते हैं परन्तु औरतों में पुरूषों की अपेक्षा अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं जिसका कारण है दो अलग-अलग लिंगी प्राणियों में जरण की दर भिन्न-भिन्न होती हैं । आयु बढ़ने के साथ-साथ यह अंतर भी बढ़ता जाता है ।
अत: जरण का प्रभाव एक ही परिस्थिति में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रतिक्रिया करने के लिये प्रेरित करता है जैसे कुछ व्यक्ति सेवानिवृत्ति को सकारात्मक रूप से ग्रहण करते हैं व उसे जीवन का आशीर्वाद समझते हैं परन्तु कुछ लोग इसे अभिशाप के रूप में लेते हैं ।
अधिक आयु के लोगों को तीन सामान्य वर्गों में उनके विशेष लक्षणों के अनुसार विभाजित किया जाता है:
(i) स्वायत्त (Autonomic):
इस वर्ग के लोगों में निम्न गुण हैं:
(a) आत्मीय स्फूर्ति,
(b) सृजनात्मकता,
(c) सक्रियता आदि । जो उनके शरीर को सजीव बनाये रखते हैं,
(d) इन लोगों में आयु बढ़ने के साथ-साथ समझदारी भी बढ़ती जाती है क्योंकि ये सामाजिक तथा सांस्कृतिक पविर्तनों से कम प्रभावित होते हैं ।
(ii) समायोजित (Adujusted):
वे व्यक्ति जो अपने आस-पास के पर्यावरण के अनुसार अपने कार्य करते हैं समायोजित व्यक्ति कहलाते हैं । इन व्यक्तियों के इस गुण के कारण उनमें स्फूर्ति बनी रहती है । पर्यावरण से इन्हे रक्षात्मक वातावरण प्राप्त होता है । ये व्यक्ति अपने आप को तब तक बनाये रहते हैं जब तक सामाजिक व सांस्कृतिक परिस्थिति उनके अनुकूल होती है ।
(iii) परायन (Anomic):
ये लोग शारीरिक कार्यशैली के नष्ट होते ही कमजोर हो जाते हैं । ये स्वतंत्र रूप से अपना कार्य नहीं कर पाते हैं तथा इन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है । शारीरिक कार्यशैली का अर्थ उन शक्तियों से है जो सामाजिक- सांस्कृतिक पर्यावरण से आती हैं ।
Characteristic # 3. वृद्धजनों के प्रति अनेक रूढ़ धारणाएं होती हैं (There are Many Stereotypes of Old People):
आज के युग में भी वृद्ध लोगों की शारीरिक व मानसिक क्षमता के प्रति अनेक अच्छी व बुरी धारणा तथा परम्परागत विश्वासों का प्रचलन है ।
ये निम्न प्रकार हैं:
(i) कई कथा व कहानियों में वृद्धों को दो रूपों में दिखाया जाता है; जैसे: वृद्ध को दयालु तथा समझदार चित्रित किया गया है । कई बार वृद्धों को दुष्ट व कठोर दिखाया या बताया जाता है । विशेषतया महिला के प्रति ऐसी धारणा होती है; जैसे: वे दुष्ट सौतेली माँ हो ।
(ii) जन संचार साधनों के द्वारा वृद्धजनों के चरित्र को उचित व प्रतिकूल ढंग से चित्रित नहीं किया जाता है । टेलीविजन के कार्यक्रमों के द्वारा भी वृद्धजनों के प्रति रूढ़ धारणाएँ विकसित होती हैं, इन कार्यक्रमों में बूढ़ों को नकारात्मक तस्वीर के रूप में दिखाया जाता हैं ।
(iii) कई बार वृद्धों को हँसी-मजाक का साधन समझ कर उन पर चुटकुले बनाये जाते हैं तथा उनका मजाक उड़ाया जाता है । इस प्रकार लोगों की इनके प्रति नकारात्मक धारणा बन जाती है तथा यही रूढ़वादी धारणा बनाने का कार्य करती है ।
Characteristic # 4. वृद्धावस्था के प्रति सामाजिक अभिवृत्तियाँ (Some Thoughts for Elders):
वृद्धों के प्रति असहयोग का व्यवहार प्राय: प्रत्येक काल व देशों में एक समान देखा गया है परन्तु हमारे देश में आज भी वृद्धजनों को पूज्यनीय एवं सम्माननीय समझा जाता है । परिवार में होने वाले सभी शुभ कार्यों का प्रारम्भ इन्हीं के आशीर्वाद से होता है ।
उच्च वर्ग के परिवारों में जहाँ धन की व्यवस्था वृद्धों के द्वारा पहले से कर ली जाती है वहाँ इनकी देखभाल व खर्च की पूर्ति की चिंता नहीं होती है परन्तु मध्यम वर्ग व निम्न वर्गीय परिवारों में वृद्धजनों की देखभाल एवं अन्य खर्चे परिवार के अन्य लोगों को उठाने पड़ते हैं जिसके परिणामस्वरूप वे इन्हें बोझ समझते हैं तथा उनकी अभिवृत्तियों वृद्धों के प्रति नकारात्मक होती हैं ।
Characteristic # 5. वृद्धों का अल्पसंख्यक समूह (Small Group of Old People):
वृद्धजनों का Senior citizenship or second class citizenship होना इनके व्यक्तिगत तथा समायोजन पर स्पष्ट प्रभाव डालता है तथा इन्हें अपनी सुरक्षा करने के लिये प्रेरित करता है । इस प्रकार की स्थिति होने पर अधिकांश वृद्धों को बाद के जीवन में अनेक सुखों से दूर कर देती है तथा ये अन्य बड़े समूह के सदस्यों द्वारा उत्पीड़ित किये जाते हैं ।
आजकल वृद्धों के प्रति अपराध की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है; जैसे: वृद्धों का घर, जमीन, धन दौलत छीनना तथा इनकी हत्या करना या स्वयं पुत्र-पुत्री द्वारा प्रताड़ित कर मारना-पीटना या घर से बाहर निकाल दिया जाना आदि । इस सभी कारणों से वृद्ध जन बाहर निकलने से डरते हैं । अत: इनके मित्रों का समूह बहुत ही सीमित रह जाता है । उपरोक्त वृद्धावस्था की विशेषताओं को देखते हुए वृद्धों की घर या वृद्धा आश्रमों में निम्नलिखित रूपों में देखभाल की जानी चाहिये ।