Read this article in Hindi language to learn about the top three sources of family income. The sources are: 1. Monetary Income 2. Real Income 3. Psychic Income.
परिबारिक आय को तीन मुख्य भागों मे बांटा गया हे:
(1) मौद्रिक आय (Monetary Income):
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परिवार के सभी सदस्यों को एक निश्चित समय में कार्य करने के बाद मुद्रा के रूप में जो आय प्राप्तहोती है, उसे मौद्रिक आय कहते हैं । प्रो.ग्रास एवं क्रेण्डल के अनुसार, “मौद्रिक आय से तात्पर्य उस से क्रय शक्ति से है जो मुद्रा के रूप में किसी निश्चित समय में एक परिवार को प्राप्त होती है ।
पारिवारिक आय के मुख्य स्त्रोत निम्न प्रकार हैं:
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(i) परिवार के सदस्यों का वेतन या पेंशन (Income of Family Members):
वेतन\पेंशन परिवार के सदस्यों की आय का मुख्य साधन होता है । सरकारी व गैर-सरकारी संस्था में स्थायी रूप से कार्य करने वाले व्यक्तियों को वेतन प्राप्त होता है । परिवार मुखिया को प्रतिमास एक निश्चित धनराशि वेतन के रूप में प्राप्त होती है ।
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आजकल महँगाई के निरन्तर बढ़ने के कारण परिवार की महिलाएँ भी कार्यरत हैं । अत: उनके वेतन को भी इसी आय में जोड़ा जाता है । इसके अतिरिक्त यदि परिवार के बच्चे भी नौकरी करते हैं तो उनकी आय को भी इसी में सम्मिलित किया जाता है । इस आय में वेतन की एक निश्चित धनराशि माह की प्रत्येक पहली तारीख को प्राप्त होती है ।
पारिवारिक आय का साधन पेंशन भी है । यदि परिवार का कोई सदस्य किसी कार्यालय से रिटायरमेंट के पश्चात् धनराशि प्राप्त करता है तो इसे पेंशन कहते हैं । पेंशन भी वेतन के ही समान प्रतिमाह प्राप्त होती है । वृद्ध व्यक्तियों के लिए पेंशन आत्मनिर्भरता का बोध कराती है तथा यह आय परिवार की अनय में वृद्धि करती है ।
(ii) मजदूरी (Wages):
परिवार की आय का अन्य साधन मजदूरी भी है । शारीरिक श्रम या कार्यों के बदले में जो भी मुद्रा प्राप्त होती है उसे मजदूरी कहते हैं । यह प्राय: दैनिक होती है । दैनिक श्रम के पश्चात् प्राप्त होने वाली आय को भी पारिवारिक आय माना जाता है । यदि कोई व्यक्ति किसी दिन कार्य नहीं करता तो उसे उस दिन की मजदूरी प्राप्त नहीं होती ।
परिवार के पुरूष, स्त्रियाँ व बच्चे अपनी-अपनी कार्यक्षमता के अनुसार कार्य करके ही आय प्राप्त करते हैं । मजदूरी की दरें कार्यों के अनुसार ही निश्चित की जाती हैं । इस साधन से प्राप्त होने वाली आय अनिश्चित तथा अस्थायी होती है । मजदूरी पर निर्भर परिवारों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है ।
(iii) व्यवसाय (Business):
परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाने वाला किसी भी प्रकार का व्यवसाय भी पारिवारिक आय का साधन हो सकता है । आहरनिक युग में हमारे देश में अनेक प्रकार के व्यवसाय हैं जो कि पारिवारिक आय के साधन हो सकते है ।
इन व्यवसायों को शिक्षित व अशिक्षित -दोनों वर्ग समान रूप से कर सकते हैं जैसे-फैक्ट्री, कारखाना, दुकानदारी, थोक व्यापार, कमीशन का व्यापार आदि । इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे पेशे हैं जिनके लिए विशिष्ट योग्यता एवं कुशलता की आवश्यकता होती है: डॉक्टर, वकील, लेखक, कलाकार, वास्तुकार, नच्चतनवीस, मनोवैज्ञानिक, कोचिंग सलाहकार आदि पेशा करने वाले इस वर्ग में आते हैं ।
इन पेशों से प्राप्त आय निश्चित नहीं होती और न ही इनके मिलने की तारीख । व्यावसायिक आय व्यक्ति की क्षमता, कार्यकुशलता, योग्यता व साख पर निर्भर करती है । व्यवसाय में मनुष्य काफी धन अर्जित कर लेते हैं ।
(iv) ब्याज से प्राप्त आय (Income from Interest):
पारिवारिक आय का एक साधन ब्याज भी है । पहले से एकत्रित किये गये धन पर ब्याज अर्जित की जा सकती है । यह ब्याज बैंक, डाकघर, यू.टी.आई. तथा विभिन्न अन्य कम्पनियों तथा अन्य साधनों से प्राप्त होती है । इस प्रकार की आय उन लोगों की हो सकती है जिनके पास काफी धन संचित होता है ।
(v) परिवार द्वारा किये जाने वाले घरेलू उद्योग-धन्धे (Family Business):
घरेलू-उद्योग धन्धों से भी परिवार की आय होती है । ये परिवार के सदस्यों द्वारा चलाये जाते हैं । ग्रामीण तथा नगरीय दोनों प्रकार के परिवारों से पारिवारिक परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के घरेलू उद्योग-धन्धे चलाये जाते है ।
ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन, टोकरियाँ बनाना, रस्सी बनाना आदि अनेक घरेलू उद्योग- धन्धे किये जाते हैं तथा शहरी क्षेत्रों में सिलाई, कढ़ाई, मुर्गी पालन, स्वेटर बुनना, अचार, चटनी, पापड़, बीड़ियाँ आदि बनाना कुछ मुख्य घरेलू उद्योग-धन्धे हैं ।
शहरों में आजकल ब्युटि पार्लर व बुटीक भी अत्यन्त प्रचलित उद्योग- धन्धे हैं जिसमें महिलाओं का योगदान अधिक होता है । इन घरेलू उद्योग-धन्धों से परिवार के सदस्यों द्वारा अर्जित आय से परिवार को अपना योगदान देते हैं ।
परिवार की आय अधिक करने के लिए घरेलू उद्योग-धन्धों को अपनाना विशेष रूप से उपयोगी होता है । योग्य एवं कुशल गृहणियाँ घरेलू उद्योग-धन्धों से आर्थिक स्थिति एवं रहन-सहन के स्तर को उन्नत बनाने में अपना योगदान प्रदान करती हैं ।
(vi) कृषि व्यवसाय (Agriculture Business):
भारत एक कृषि-प्रधान देश है । अत: गाँवों के परिवारों की आय का यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण साधन है । हमारे देश की अधिकांश जनता खेती-बाड़ी के कार्य में संलग्न है ।
इस व्यवसाय में खेती-बाड़ी करके किसान फसल तैयार करते हैं तथा उसे बेचकर लाभ कमाते हैं, इस प्रकार की आय को कृषि सम्बन्धी आय माना जाता है । कृषि व्यवसाय में लगे लोग कृषि के साथ-साथ अन्य कार्य करके पारिवारिक आय में वृद्धि करते हैं ।
गाँवों के लोग पुलिस, सेना तथा अध्यापन के कार्यों के द्वारा भी पारिवारिक आय में वृद्धि करते हैं ।
(vii) पशुपालन (Animal Husbandry):
पशुपालन भी पारिवारिक आय का एक साधन है । पशुपालन व्यवसाय में गाय, भेड़, बकरी आदि पाले जाते हैं । इन पशुओं का दूध बेचकर आय प्राप्त की जाती है । पशुओं के बच्चे बेचने से भी आय प्राप्त होती है । कुछ पशु केवल इसलिये पाले जाते है ताकि उनका माँस बेचा जा सके । मछली पालन व मुर्गी पालन भी इसी व्यवसाय में आते हैं ।
(viii) उपहार द्वारा आय (Income from Gifts):
परिवार को समय-समय पर मिलने वाले उपहारों तथा भेंटों को भी इस आय में सम्मिलित किया जाता है । हमारे देश में विभिन्न अवसरों; जैसे: जन्म-दिवस, मुंडन संस्कार, जनेऊ संस्कार, नामकरण, कान छेदन व विवाह आदि पर उपहार देने की प्रथा है । अत: इन उपहारों को पारिवारिक आय का साधन माना जाता है ।
(ix) त्योहारों पर बोनस (Festival Bonus):
भारतवर्ष प्रमुख त्योहारों का देश है । त्योहारों पर संस्थाओं में कार्यरत लोगों को बोनस दिया जाता है जो कि पारिवारिक आय में सम्मिलित होता है ।
(x) शेयर्स, म्यूचुअल फण्ड्स (Share, Mutual Funds):
काफी लोग अपना पैसा शेयर्स, म्यूचुअल फण्ड्स में लगाते हैं, जिससे आय प्राप्त होती है तथा यह आय पारिवारिक आय में शामिल मानी जाती है ।
(2) वास्तविक आय (Real Income):
परिवार के सदस्यों को निश्चित समय के लिये जो सेवाएँ व सुविधाएँ प्राप्त होती हैं उनसे होने वाली आय को वास्तविक आय कहते हैं । यह आय परिवार के सदस्यों के प्रयत्नों के द्वारा मुद्रा देने से प्राप्त होती है ।
अत: यहाँ तात्पर्य है कि वास्तविक आय में परिवार के सदस्यों की योग्यता व क्षमता के अनुसार उनका योगदान, मौद्रिक आय व विभिन्न प्रकार के सामुदायिक साधन आते हैं ।
वास्तविक आय को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष आय में विभाजित किया जाता है:
(a) वास्तविक प्रत्यक्ष आय (Real Direct Income):
परिवार के सदस्य को विभिन्न साधनों से प्राप्त होने वाली आय को वास्तविक प्रत्यक्ष आय कहते हैं । इसमें किसी भी प्रकार का धन खर्च नहीं होता ।
वास्तविक प्रत्यक्ष आय निम्न साधनों से प्राप्त की जा सकती है:
(i) परिवार के कुल सदस्यों द्वारा प्राप्त सेवाएँ व वस्तुएँ:
परिवार में महिलाओं द्वारा घर पर बैठकर बुटीक, ब्यूटी पार्लर, सिलाई-बुनाई द्वारा आय करना आदि । परिवार के बड़े बच्चे या महिलाएँ ट्यूशन करके भी धन अर्जित करते हैं, वह आय भी वास्तविक प्रत्यक्ष आय में आयेगी । परिवार में रसोईघर, बागवानी, घर के बिजली के उपकरणों की मरम्मत स्वयं करना, घर के सभी कार्य; जैसे: बर्तन साफ करना व घर की साफ-सफाई करना आदि ।
(ii) परिवार द्वारा अर्जित स्थायी वस्तुएँ जिनका उपयोग पूर्णरूप से किया जाता है:
यदि किसी परिवार में कार है तो उसका उपयोग कई प्रकार से किया जा सकता है; जैसे: बच्चों को स्कूल व पिता को दफ्तर, यदि महिला कार्यरत है तो उसे भी छोड़ने जा सकती है । इस प्रकार आने-जाने में सुविधा होगी तथा यातायात के साधनों पर कम धन खर्च होगा ।
यदि महिला गृहिणी है तो वह रोजमर्रा की खरीददारी करके भी यातायात पर होने वाले खर्च की बचत कर सकती है । वास्तविक प्रत्यक्ष आय का एक और महत्वपूर्ण साधन है-सामुदायिक सेवाएँ । इसमें आने वाले प्रमुख सेवाएं हैं-लाइब्रेरी की सुविधा, पुलिस सुरक्षा आदि । सामुदायिक सेवाओं में परिवार की वास्तविक प्रत्यक्ष आय भी मिली रहती है ।
(b) वास्तविक अप्रत्यक्ष आय (Real Indirect Income):
वे सुविधाएं या चीजें जो धन व्यय करने के पश्चात् या बदले में परिवार को प्राप्त होती हैं । इस प्रकार की आय को वास्तविक अप्रत्यक्ष आय कहते हैं ।
इनके साधन निम्न प्रकार हैं:
(i) नौकरों के द्वारा प्राप्त सेवाएँ:
कई कम्पनियाँ अपनी कम्पनी में कार्यरत लोगों को आवास व वाहन सुविधा प्रदान करती हैं इससे परिवार की वास्तविक अप्रत्यक्ष आय बढ़ती है ।
(ii) परिवारों में एक-दूसरे से चीजें बदलना (Barter System):
परिवार कई बार जरूरत पड़ने पर दूसरे परिवार को चीजें देकर उसके बदले में जरूरत की चीजें व सेवाएँ प्राप्त करते हैं इसे वास्तविक अप्रत्यक्ष आय कहते हैं जैसे-मीना स्कूल में अध्यापक है और वह अपनी पड़ोसन बीना के बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाती है । उसके बदले में बीना मीना के बच्चों के लिए कपड़े सिलती है । अत: इस प्रकार दोनों पड़ोसन वास्तविक अप्रत्यक्ष आय का भरपूर उपयोग करती हैं ।
सहायक लाभ (Fringe Benefit):
यह लाभ कम्पनी अपनी कम्पनी में कार्यरत व्यक्तियों को देती है; जैसे: यातायात साधन या शुल्क, बिना किराये का घर, ड्रेस, सामूहिक बीमा व चिकित्सा सुविधाएँ आदि । उपरोक्त सभी सुविधाएँ अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होती हैं परन्तु परिवार की आय में जोड़ी जाती हैं ।
(3) आत्मिक आय (Psychic Income):
मानव का स्वभाव है जो भी कार्य वह करता है उसमें अधिकतम संतोष प्राप्त करने की कोशिश करता हें । ग्रास एवं केण्डल के अनुसार, ”आत्मिक आय से अर्थ है कि एक निश्चित अवधि में परिवार को मौद्रिक और वास्तविक आय से प्राप्त होने वाली सन्तुष्टि Phychic Income Consists of Satisfaction which persons derive from their Real Income.” यह आय आन्तरिक व अस्पृश्य होती है तथा महसूस की जा सकती है ।
हर व्यक्ति की आत्मिक आय का अनुभव भिन्न-भिन्न होता है; जैसे: कुछ व्यक्तियों को प्रोपर्टी की खरीद-फरोख्त से सन्तुष्टि प्राप्त होती है तो कुछ लोग शेयर्स खरीदकर खुश होते हैं । इन वस्तुओं की कीमत बढ़ने से उन्हें और अधिक सन्तुष्टि प्राप्त होती है यही वास्तव में आत्मिक आय है ।
उपर्युक्त आय से ज्ञात होता है कि परिवार की आय अलग-अलग होती है, जिसके द्वारा परिवार की सभी प्रकार की भावश्यकताओं की पूर्ति होती है । पारिवारिक आय का उचित रूप से उपयोग करने पर ही परिवार के सदस्यों को पूर्ण संतोष प्राप्त हो सकता है चाहे परिवार की आय कितनी ही अधिक क्यों न हो । अत: कुछ कारक ऐसे भी होते हैं जो परिवार की आय को भावित करते हैं ।