Read this article in Hindi language to learn about the soap and detergents used for washing clothes.
साबुन या डिटर्जेंट (कपड़ा धोने का पाउडर):
कपड़ा धोने के लिये इन दोनों का ही प्रयोग किया जाता है । डिटर्जेंट पाउडर को पानी में डालकर, घोल बनाकर फिर, उसमें कपड़ों को कुछ समय के लिये भिगोया जाता है । साबुन बट्टी के रूप में होता है उसका उपयोग कपड़ों में लगी गंदगी को हटाकर रगड़ने में किया जाता है ।
कपड़ों को साबुन के पानी में भिगोने से वह ढीला व लचीला हो जाता है जिस कारण से कपड़े में लगी मैल के कण ढीले होकर पानी में घुल जाते हैं तथा कपड़ा धोते-मलते समय वे बाहर निकल आते हैं । साबुन क्षार व वनस्पति तेल से बनता है ।
इस प्रकार का साबुन गुण में कोमल होता है । कपड़ा साबुन के पानी में भिगोने से कोमल हो जाता है । इसके बाद साबुन कपड़े में उपस्थित चिकनाई को छोटे-छोटे कणों में विभक्त कर देता है । इस प्रकार कपड़े में चिपका मैल व धूल के कण ढीले पड़ जाते हैं तथा कपड़े के छेद से ढीले पड़कर बाहर निकल आते हैं । जब हम कपड़े को रगड़ते हैं (घर्षण) तो साबुन के झाग के साथ मैल बाहर आ जाती है फिर साफ पानी से धोकर कपड़े साफ किये जाते हैं । साबुन, वसा व क्षार दोनों को मिलाने से बनता है ।
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साबुन बनाने में प्राणिज्य व वनस्पति वसा दोनों का प्रयोग किया जाता है । साबुन को अच्छे गुणों वाला बनाने के लिये उसमें पैराफिन का तेल भी मिलाया जाता है । साबुन कई रूप में बाजार में मिलते हैं; जैसे: टिकिया, पाउडर, फ्लंक, तरल (Liquid), जैली (Jelly) आदि ।
मुख्यतय: साबुन निम्न दो प्रकार के होते हैं:
(1) कठोर साबुन,
(2) हल्का साबुन ।
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(1) कठोर साबुन (Hard Soap):
इसमें कॉस्टिक सोडा जोकि क्षार होता है तथा नारियल का तेल या इसी गुण वाला कोई अन्य तेल मिलाकर बनाते हैं । इस साबुन में झाग कम होता है तथा इसको पानी के साथ अधिक घिसना पड़ता है जिस कारण अधिक श्रम लगता है ।
इस साबुन को गर्म विधि द्वारा बनाया जाता है । इस साबुन से चादर, तौलिया, पेन्ट आदि धोये जाते हैं । अत: कठोर साबुन से कठोर तन्तु वाले कपड़े धोना उत्तम होता है ।
(2) कोमल व हल्के साबुन (Soft Soap):
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इस प्रकार के साबुन को बनाने के लिए उपयोग की गई वसा स्वभाव से हल्की होती है; जैसे: तिली का तेल व कोमल क्षार कॉस्टिक पोटाश का उपयोग किया जाता है । कोमल साबुन को ठंडी विधि से बनाया जाता है । इसका प्रयोग कोमल तन्तुओं से बने कपड़ों को धोने में किया जाता है ।
साबुन बनाने की विधि (Making of Soap):
साबुन ‘साबुनीकरण’ (Soapnification) की क्रिया द्वारा बनाया जाता है । वसा व क्षार को मिलाने पर क्षार वसा में उपस्थित फैटी अम्ल से मिलकर ठोस पदार्थ के रूप में बन जाता है, उसे साबुन कहते हैं । वसा का जल अपघटन (Hydrolysis) होने पर वह फैटी अम्ल व ग्लिसरीन में टूट जाता है । साबुन बनाने की इस क्रिया को साबुनीकरण (Soapnification) कहा जाता है ।
साबुन दो विधियों से बनाया जाता है:
(i) ठंडी विधि (Cold Method):
इस विधि को घरेलू विधि भी कहते हैं क्योंकि घर में इसे आसानी से बनाया जा सकता है तथा इसको बनाने में कम समय लगता है ।
सामग्री (Ingredients):
(i) कॉस्टिक सोडा (Caustic soda)-250gms
(ii) पानी- 4 बड़े कप
(iii) नारियल का तेल- 1 kg
(iv) बेसन (Bengalgram flour)-250gms
(v) पोरसलीन (Poruslin) का बड़ा कटोरा
(vi) लकड़ी का चम्मच
विधि (Method):
(i) कटोरे में कास्टिक सोडा व पानी को अच्छी तरह लकड़ी की चम्मच से चलाकर घोल लेते हैं ।
(ii) इसको अब चार घंटों के लिए अलग रख देते हैं ।
(iii) बेसन में थोड़ा-थोड़ा नारियल का तेल मिलाकर अच्छी तरह हिलाते हैं ।
(iv) अब दोनों घोलों को आपस में मिलाते हैं । इससे ऊर्जा उत्पन्न होती तथा साबुनीकरण की क्रिया शुरू हो जाती है ।
(v) जब थोड़ा-थोड़ा घोल जमने लगे तो उसे साँची में डालकर जमा लेते हैं ।
(vi) जब साबुन जम जाता है तो उसे तेज चाकू से बट्टियों के रूप में काटकर हवा में सुखाया जाता है ।
(ii) गरम विधि (Hot Method):
अधिक मात्रा में साबुन को इस विधि से तैयार किया जाता है । सामग्री मुख्यतया ठंडी विधि वाली ही होती है ।
विधि (Method):
(i) सबसे पहले वसा, तेल व क्षार को शुद्ध किया जाता है ।
(ii) वसा को गर्म करके पिघलाया जाता है ।
(iii) कॉस्टिक सोडे का हल्का घोल वसा में धीरे-धीरे मिलाया जाता है तथा उसको गर्म करके उबाला जाता है ।
(iv) इसके पश्चात् इसमें भाप दी जाती है ।
(v) अब साबुनीकरण की क्रिया होने से ऊपरी सतह साबुन में बदल जाती है तथा नीचे अशुद्धियाँ व ग्लिसरीन रह जाती है ।
(vi) इसके बाद ऊपरी सतह को निकालकर पानी में डालकर पकाते हैं ।
(vii) कुछ और थोड़ी मात्रा में क्षार मिलाया जाता है ।
(viii) इसके पश्चात् इस मिश्रण में खारा घोल (Brine solution) मिलाकर भाप द्वारा उबाला जाता है । अब इसे इसी प्रकार छोड़ दिया जाता है । इस विधि से चार सतह बन जाती है ।
ऊपरी सतह झाग की, दूसरी सतह साबुन की होती है जिसे पाइप द्वारा अलग कर लिया जाता है । इसके पश्चात् इसमें थोड़ी खुशबू व रंग मिलाया जाता है । अब इस मिश्रण को आकार में; जैसे: टिक्की, चूर्ण आदि में परिवर्तित किया जाता है ।
डिटरजेंट बनाने की विधि (Making of Detergent):
डिटरर्जेंट खनिज तेलों में रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा बनाए जाते हैं ।
ये निम्न विधि से तैयार किये जाते हैं:
(i) इसमें सिंथेटिक रसायनों (Synthetic Chemical) का प्रयोग होता है ।
(ii) इनको एक रिएक्टर केतली (Reacter Kattle) में डाला जाता है और लगातार घोंटते रहना पड़ता है । घोंटने के लिये केतली में यंत्र लगा रहता है । इस क्रिया में केतली शीघ्र गर्म हो जाती है जिसे ठंडा करना पड़ता है ।
(iii) इस घोल में अब सल्फ्यूरिक अम्ल मिलाया जाता है । दोनों को मिलाने से ऊर्जा उत्पन्न होती है । अत: इसको ठंडा करना भी आवश्यक है ।
(iv) अब जो घोल बचता है वह गहरे नीले रंग का होता है । इसके पश्चात् इस घोल में कास्टिक पोटाश या कास्टिक सोडा मिलाया जाता है ।
(v) इन घोलों को अच्छी तरह मिलाकर गर्म मैटल की शीट या टावर पर छिड़का जाता है जिससे घोल सूखकर शीट पर चिपक जाता है । अब चिपके पदार्थ को खुरचकर पाउडर के रूप में कर लिया जाता है ।
(vi) इस प्रकार से प्राप्त पाउडर को कंपनियाँ पैक करके बाजार में बेचती हैं ।
साबुन व डिटरर्जेंट में अंतर: (Differences between Soap and Detergents):
साबुन:
1. साबुन बनाने के लिए वसा व क्षार को साबुनीकरण की क्रिया द्वारा बनाया जाता है ।
2. साबुन को आम जनता उपयोग कर सकती है क्योंकि ये सस्ते होते हैं ।
3. ये साबुन कठोर तन्तु वाले कपड़े धोने के लिये उपयुक्त होते हैं ।
4. साबुन से कपड़े धोते समय गर्म पानी के उपयोग से ही कपड़ा अच्छी तरह साफ हो जाता है ।
5. साबुन से कपड़े धोने के लिये मृदु जल का उपयोग करना अच्छा होता है क्योंकि कठोर जल में साबुन का झाग अच्छी तरह नहीं बनता । अत: कपड़े अच्छी तरह साफ नहीं होते हैं ।
6. कपड़ा पानी से धोने के पश्चात् भी साबुन जल्दी कपड़े से नहीं निकलता ।
डिटरर्जेंट:
1. ये क्षारीय नहीं होते बल्कि कार्बनिक यौगिक होते हैं ।
2. डिटरर्जेंट महँगे होते हैं इन्हें गरीब लोग इस्तेमाल नहीं कर सकते ।
3. ये कोमल तन्तुओं वाले कपड़ों को अच्छी तरह साफ करते हैं ।
4. यह गर्म व ठंडे पानी दोनों में कपड़ों को अच्छी तरह साफ करता है ।
5. डिटरर्जेंट में यह विशेषता होती है कि यह मृदु व कठोर जल दोनों में ही कपडा अच्छी तरह साफ करता है ।
6. डिटरर्जेंट से कपड़ा धोने से उसमें से डिटरर्जेंट आसानी से निकल जाता है ।
कपड़ा धोने के पाउडर व फ्लैक्स (Cloth Washing Powder):
आजकल बाजार में अनेक प्राकर के कपड़े धोने के पाउडर मिलते हैं । ये पाउडर अधिक क्षारीय व सस्ते होते हैं । फ्लैक्स में क्षार व अन्य कठोर पदार्थों की मात्रा कम होती है । फ्लैक्स का उपयोग हल्के व मुलायम कपड़ों के लिये ही किया जाता है ।
अच्छे साबुन के गुण (Qualities of Goods Soap):
कपड़ों को अधिक टिकाऊ रखने के लिये व अधिक समय तक उपयोग के लिये हमेशा ही अच्छे साबुन का उपयोग करना चाहिये । यदि साबुन सफेद है तो उसमें क्षार की मात्रा अधिक होती है । अत: अच्छा साबुन गंदगी रहित व पीला होता है ।
यदि साबुन की टिकिया अधिक नर्म है तो वह जल्दी घुलती है साथ ही साबुन को काफी मात्रा बेकार हो जाती है । इसके विपरीत यदि साबुन कठोर है तो झाग कम बनेगा व साबुन कम घुलेगा तथा कपड़े साफ नहीं होंगे । अच्छे साबुन का महत्वपूर्ण गुण है कि वह दानेदार होता है । अधिक क्षार युक्त साबुन से कपड़े खराब हो जाते हैं ।
कपड़े धोने के जल का प्रयोग (Use of Water to Wash clothes):
हमेशा कपड़े कोमल जल में धोना चाहिये । कठोर जल कपड़े का रंग व चमक खराब कर देते हैं । जल को मृदु करने के लिये उसमें सुहागा या अमोनिया बोरेक्स मिलाया जा सकता है । परन्तु ये पदार्थ कपड़े के तन्तुओं को कमजोर कर देते हैं । अत: जिस स्थान का पानी कठोर हो वहाँ डिटरर्जेंट का प्रयोग कपड़ा धोने के लिये करना चाहिये ।
रीठा (Reetha):
यह सूखा फल होता है तथा कपड़े धोने का प्राकृतिक पदार्थ है । रीठे को तोड़कर रात में पानी में भिगो देते हैं । सुबह रीठे सहित पानी को थोड़ा गर्म कर लेते हैं । इसके बाद रीठे के बाहरी छिलके को तोड़कर उसके बीज को निकाल देते हैं ।
अब हाथ से अच्छी तरह मसलकर पानी को छान लेते हैं तथा शीशियों में भर लेते हैं । 250 ग्राम रीठे को 1 लीटर पानी में तैयार करना चाहिये । रीठे का उपयोग रेशमी व ऊनी कपड़ों के लिये उत्तम होता है क्योंकि इन कपड़ों के तन्तु कोमल होते हैं ।
शिकाकाई (Shikakayi):
यह एक प्रकार की प्राकृतिक फलियाँ है जोकि कपड़ों की मैल निकालती हैं । शिकाकाई की फलियों को सुखाकर पाउडर बनाया जाता है । एक चम्मच शिकाकाई पाउडर को एक लीटर पानी में उवाला जाता है ।
इसके पश्चात् इसमें आवश्यकतानुसार पानी मिलाकर कपड़े धोये जाते हैं । शिकाकाई के घोल से रंगीन सूती सिल्क व ऊनी कपड़े धोये जा सकते हैं । कपड़े धोने में इसके उपयोग से कपड़ों की चमक व रंग खराब नहीं होते हैं ।