Read this article in Hindi language to learn about the care and maintenance required of clothes.
वस्त्र को पहनने से वे गन्दे हो जाते हैं । उन पर धूल, पसीने, गर्द आदि लगते हैं । घर में या बाहर काम पर पहने जाने वाले वस्त्रों पर कई प्रकार के दाग-धब्बे लग जाते हैं । धूल कणों के साथ वस्त्रों पर रोग के जीवाणु भी जमा हो जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होते हैं ।
अत: जिस प्रकार शरीर को स्वच्छ व स्वस्थ रखने के लिए प्रतिदिन स्नान करना आवश्यक है, उसी प्रकार कपड़ों को भी साफ-सुथरा रखना आवश्यक है । वस्त्रों को कटने-फटने, कीड़े के काटने या फफूँदी लगने से बनाने के लिए कुछ सुरक्षात्मक कार्यवाहियाँ करनी होती हैं ।
इस बात का ध्यान रखना होता है कि उसे कहाँ और कैसे रखें । अधिक तेज रोशनी, धूप या नमीदार कमरों में रखे वस्त्रों पर वातावरण या तापमान का असर हो जाता है । लापरवाही के कारण वस्त्रों का खराब होना गृहिणी की अज्ञानता का परिचय देता है ।
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अत: वस्त्रों की सुरक्षा, देख-रेख और एहतियात, उचित संरक्षण व समुचित संचय, आदि पर उतना ही ध्यान नैना अनिवार्य है, जितना हम चाहते हैं कि देखने वालों को अच्छे लगें व हमारा व्यक्तित्व प्रभावशाली हो । वस्त्रों को कुछ समय का विश्राम देकर भी कार्यक्षमता में वृद्धि की जा सकती है ।
वस्त्रों की (दैनिक) देखभाल (Daily Care of Clothes):
i. प्रतिदिन पहनने वाले वस्त्रों को गंदी कुर्सी, मेज व पकड़ने वाले डंडों आदि से बचाना चाहिये क्योंकि उन पर धूल व गर्त रहती है । दीवार से भी रगड़ नहीं खाना चाहिये ।
ii. कुर्सी पर बैठने से पहले देख लेना चाहिए कि कोई कील बाहर निकली तो नहीं है जिससे कपड़ा फटने का डर रहता है ।
iii. सफेद कपड़े पहनने में विशेष सावधानी रखनी चाहिये क्योंकि उसमें अखबार या गहरे रंग के बैग का दाग लग जाता है ।
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iv. वस्त्रों को खिंचने से बचाना चाहिये अत: बैठने से पहले कुर्ते या वस्त्र को पीछे से उठा लेना चाहिये ।
v. साड़ी या दुपट्टे में पिन सावधानी से लगाना चाहिए ताकि वह न फटे ।
vi. साइकिल, रिक्शा, स्कूटर व बस से सफर करते समय सावधानी रखना चाहिये ताकि वस्त्र फटे नहीं ।
vii. वस्त्र को पहनने से पहले देख लें कि उसकी सिलाई उधड़ी तो नहीं है, या कोई बटन टूटा तो नहीं है । अत: उसकी मरम्मत कर लेनी चाहिये ।
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viii. स्कर्ट पहनने वाले को उसकी चुन्नटों को सीधा कर लेना चाहिये ताकि बैठने से उसमें सिलवटें न पड़े ।
ix. कार में बैठने से पहले अपने वस्त्र को पीछे से सीधा कर लेना चाहिये ।
x. यदि ड्राइक्लीन किये गये वस्त्र हैंगर पर टाँगकर लाये जा रहे हैं तो उसे कार में बैठने के बाद सावधानी से अपनी गोद में रख लें । कपड़े को सीट पर न फैलायें इससे कपड़ा सिकुड़ जायेगा व गंदा हो जायेगा ।
xi. पेन्ट, कमीज, सलवार या कुर्त्तें की जेब में अधिक सामान नहीं रखना चाहिये । इससे दबाव पड़ेगा व खिंचकर किनारे फट जायेंगे ।
xii. एक बार पहने हुए कपड़ों में धूल व पसीना भर जाता है । अत: दुबारा उन्हें धोकर ही पहनना चाहिये, उनको साफ व घुले कपड़ों के साथ नहीं रखना चाहिये ।
xiii. जो लोग जैकेट पहनते हैं उन्हें बैठने से पहले बटन खोल लेना चाहिये ताकि कपड़े पर दबाब न पड़े ।
xiv. सफर में कपड़ों को सावधानी से पहनें ताकि कपड़े फटे नहीं और गंदे भी न हों ।
xv. कपड़ों को इस प्रकार पहनें कि उसमें दाग-धब्बे न लगें ।
xvi. ऑफिस, कालेज व स्कूल से वापस आकर हमेशा घर के ही कपड़े पहनने चाहिए ताकि बाहर जाने के कपड़े व स्कूल की ड्रेस खराब न हो ।
xvii. शादी, पार्टी या विशेष अवसर पर महिलायें भारी साड़ी व गहने पहनती हैं । पिन, क्लिप, ब्रौच का उपयोग करती हैं जिनको ठीक प्रकार से लगाना या निकालना चाहिये ताकि कपड़ों में किसी भी प्रकार का छेद न हो ।
xviii. कपड़े जब कम गंदे हों तभी उन्हें धो लेना चाहिये अन्यथा अधिक गंदे होने पर अधिक डिटरजेंट की जरूरत पडेगी ।
xix. हमेशा सूखे कपड़े ही प्रेस करके आलमारी में रखना चाहिये, गीले कपड़े आलमारी में रखने से उसमें बदबू आ जाती है तथा फफूँदी लगने का डर रहता है ।
xx. कभी-कभी महँगे व अधिक कामदार कपड़े कुछ ही समय के लिये बाहर जाने में पहने जाते हैं । अत: उनको हवा में सुखाकर उसके बाद ही आलमारी में रखना चाहिये ।
xxi. धुलाई करते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि सफेद कपड़ों को रंगीन कपड़ों से अलग धोया जाये ।
वस्त्रों की साप्ताहिक देखभाल (Weekly Care of Clothes):
i. यह अति उत्तम होता है कि पूरे सप्ताह के पहनने के कपड़े धोकर व प्रेस करके आलमारी में टाँग लिये जाएं ।
ii. कपड़े में हुई प्रतिदिन की टूट-फूट, खरोंच, उधड़े वस्त्रों या बटन टूटने आदि की मरम्मत सप्ताह में एक बार कर लेनी चाहिये ।
iii. कपड़े में पाये छेद या खरोंच की रफू कर लेना चाहिये ।
iv. ऊनी कपड़े; जैसे स्वेटर-कोट-पेंट आदि को ब्रुश से झाड़कर ही आलमारी में रखना चाहिये ।
v. सिल्क की साड़ियाँ या अन्य कपड़ों को सूती मुलायम कपड़े या कवर में डालकर रखना चाहिये ।
vi. वस्त्रों की साप्ताहिक व नियमित देखभाल से वे अच्छे बने रहते हैं तथा नये से दिखाई देते हैं ।
वस्त्रों की अर्द्ध-वार्षिक देखभाल (Half Yearly Care of Clothes):
i. कुछ कपड़े ऐसे होते हैं जिन्हें वर्ष के छ: महीने बाद ही प्रयोग किया जाता है; जैसे: सिल्क के वस्त्र, ऊनी वस्त्र, रजाई, कम्बल आदि ।
ii. ये वस्त्र पूर्ण रूप से सूखे होने चाहिये ताकि इनमें कीड़े व फफूँदी न लगें ।
iii. इन वस्त्रों को बरसात के बाद धूप व हवा में सुखाना चाहिये ताकि उसके अंदर कीड़े या उसके अंडे न पैदा हों ।
iv. हवा व धूप दिखाने के बाद इन कपड़ों को ब्रुश से अच्छी तरह झाड़ लेना चाहिये ताकि उन पर धूल के कण न लगें । अत: इससे कपड़े मजबूत बने रहते हैं ।
v. कुछ कपड़ों को जैसे भारी सिल्क साड़ी-कोट को सदैव ही कवर में रखना चाहिए ।
vi. कपड़े संग्रहित करने से पहले पेंट-कोट की जेब खाली कर लेनी चाहिये ।
vii. यदि कपड़ों की मरम्मत की आवश्यकता हो तो वह भी करवाकर ही रखना चाहिये ।
viii. यदि कपड़ों पर ड्राइक्लीन की आवश्यकता हो तो वह भी करवाकर ही रखना चाहिये ।