Read this article in Hindi language to learn about the diet plan for people suffering from jaundice.
पीलिया रोग नहीं है अपितु यकृत रोग (Liver disease) का लक्षण है । यकृत शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है । यकृत पित्त (Bile) नामक रस उत्पन्न करता है, जो पित्त थैली (Gall Bladder) में एकत्रित होता है । पित्त वसा के शोषण में सहायता करता है ।
शारीरिक परिवर्तन (Physical Changes):
पीलिया में बिलिरुबिन (Bilirubin) नामक वर्णक (Pigment) की मात्रा पित्त में बढ़ जाती है । अत: यह वर्णक रक्त के द्वारा त्वचा, आँख व मूत्र में आने लगता है । रोगी का चेहरा व आँखें पीली हो जाती हैं ।
लक्षण (Symptoms):
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भूख मर जाती है, जी मिचलाता है, वमन (उल्टी) जल्दी-जल्दी होती है, रोगी का वजन कम हो जाता है ।
पौष्टिक तत्वों की आवश्यकताएँ (Nutritional Requirements):
रोग की प्रारम्भिक अवस्था में जी मिचलाता है तथा उल्टी अत्यधिक मात्रा में होती है । अत: काफी मात्रा में तरल पदार्थ निकल जाता है जिसकी पूर्ति अति आवश्यक है । शुरू में रोगी को तरल आहार ही देना चाहिए ।
कैलोरीज:
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रोगी को अधिक कैलोरी वाला आहार देना चाहिये । इस स्थिति में 2500-4000 कि. कै. ऊर्जा देनी चाहिए यह इस बात पर निर्भर करता है कि रोगी की स्थिति कैसी है । आहार में कैलोरीज की मात्रा बढ़ाने के लिये चीनी, शहद, ग्लूकोज मिश्री आदि का उपयोग करना अनिवार्य है ।
प्रोटीन:
अधिक प्रोटीन युक्त आहार देना चाहिए परन्तु यह तभी सम्भव है जब रोगी की वमन बंद हो जाये ।
वसा:
अल्प वसा युक्त आहार देना चाहिये ।
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कार्बोहाइड्रेट:
इसकी मात्रा अधिक होनी चाहिये ।
विटामिन्स:
रोगी को शुरू की अवस्था में फलों का रस अधिक मात्रा में दिया जाना चाहिये ताकि विटामिन ‘बी’ कॉम्पलेक्स एवं विटामिन ‘सी’ की पूर्ति हो सके ।
आहारीय आवश्यकता (Dietary Requirement):
रोगी को शुरू में तरल आहार तथा उसकी स्थिति में सुधार होने पर तरल आहार से कोमल रेशे रहित आहार देना आवश्यक है ।