Read this article in Hindi language to learn about the standardization of food products.
यह वह विधि है जिसके द्वारा उपभोक्ताओं को विभिन्न पदार्थों की गुणवत्ता मुख्यत: वे पदार्थ जो मानव स्वास्थ्य एवं सुरक्षा को प्रभावित करते हैं उसके बारे में जनता को आश्वासन दिया जाता है । यह कार्य सरकारी व अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं के द्वारा किया जाता है ।
अत: व्यापारियों व निर्माताओं का कर्तव्य है कि वे आहार में मिलावट करके अधिक से अधिक पैसा कमाने का गलत कार्य न करें ?
जनता को भी मिलावट से बचने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए:
ADVERTISEMENTS:
i. खरीददारी केवल विश्वसनीय दुकानों से ही करें ।
ii. उच्चस्तर के तथा विश्वसनीय खाद्य पदार्थों को ही खरीदें ।
iii. खाद्य पदार्थों पर लिखे सही मार्क देखकर खरीदे ।
iv. सही मानक चिन्ह से आहारीय मिलावट रोकी जा सकती है ।
1. Fruit Product Order (FPO) Standard:
ADVERTISEMENTS:
भारत सरकार ने यह आदेश 1946 में बनाया था जोकि रक्षा कानून के अंतर्गत आता था । यह आदेश फल व सब्जियों से बने पदार्थों से संबन्धित है । सन 1955 में इस आदेश को पुन: संसोधित (Revised) किया गया जिसे Essential Commodities Act के सेक्टर III के अंतर्गत रखा गया ।
FPO में फल व सब्जियों के न्यूनतम मानक स्तर दिये गये हैं जिसके द्वारा इन पदार्थों के गुणों के बनाये रखने का प्रावधान है । इस कानून के अन्तर्गत वे सभी औद्योगिक कारखाने आते हैं जो फल व सब्जियों से संरक्षित पदार्थों का उत्पादन करते हैं ।
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इन औद्योगिक कारखानों को इस नियम के अनुसार निम्न बातों का पालन करना आवश्यक होता है तभी वे FPO मार्क का उपयोग कर सकते हैं:
i. कारखानों में स्वच्छता होनी चाहिए ।
ii. उत्पादित पदार्थों की उचित पैकिंग हो ।
iii. पदार्थों पर उचित मार्क व लेबिल लगा होना चाहिए ।
iv. जो भी उत्पादनकर्ता इन नियमों का पालन नहीं करता उसे इस कानून के अन्तर्गत सजा मिलती है तथा उनका लाइसेन्स रह कर दिया जाता है । जिन पदार्थों पर कारण FPO मार्क नहीं होता है ।
FPO चिन्हित खाद्य पदार्थ (FPO Mark Food Product):
उपरोक्त पदार्थ खरीदते समय उपभोक्ताओं को निम्न जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए:
i. डिब्बे व बोतलों की सील की जाँच कर लें ।
ii. डिब्बे व पैक के साथ किसी भी प्रकार की छेड़-छाड़ न की गई हो ।
iii. डिब्बा कहीं से दबा नहीं होना चाहिए ।
iv. डिब्बे बंद पदार्थों में मिलावट करना आसान नहीं है ।
FPO मार्क लगे भोज्य पदार्थ: खरीदते समय निम्न बातों को अच्छी तरह जाँच करके पढ़ लें व सुनिश्चित होकर ही पदार्थ खरीदें:
i. खाद्य पदार्थ का नाम व उत्पादक कम्पनी का नाम, पता व स्थान ।
ii. खाद्य पदार्थ को बनाने में उपयोग किये गये विभिन्न तत्व व उनकी मात्रा ।
iii. खाद्य पदार्थ का कुल भार ।
iv. खाद्य पदार्थ का कर सहित व कर के बिना मूल्य ।
v. स्थानीय वितरणकर्ता का नाम यदि लेबिल पर दिया गया हो ।
vi. उत्पादन की तारीख व पदार्थ को कब तक प्रयोग कर सकते है ? (Expiry date) ।
vii. FPO मार्क व पदार्थ की गुणवता ।
2. एगमार्क (Agmark):
भारत सरकार के विक्रय एवं जाँच डायरेक्टरेट विभाग (Marketing and Inspection Directorate Department Government of India) ने कृषि उत्पादक की गुणवत्ता व शुद्धता आँकने के लिए ‘एगमार्क’ के उपयोग का लाइसेन्स दिया है ।
एगमार्क कृषि उत्पादन के संसाधन के समय उसमें उपस्थित भौतिक व रासायनिक गुणों के आधार दिया जाता है । इस मानक चिन्ह का उपयोग करने की अनुमति उत्पादक को देने से पहले यह ध्यान में रखा जाना आवश्यक है ।
(ii) एगमार्क वाले भोज्य पदार्थों को फुटकर व्यापारी (Retailer) या बड़े-बड़े स्टोर्स में ही उपलब्ध कराया जाये क्योंकि ये व्यापारी अपनी साख बनाने के लिए एगमार्क वाले पदार्थों से किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं करेंगे । ‘एगमार्क’ मानक द्वारा सामान्य जनता को लाभ पहुंचता है जिससे उन्हें उत्तम गुणात्मक भोज्य पदार्थ होते हैं । ये भोज्य पदार्थ निम्न प्रकार हैं जिन पर ‘एगमार्क’ मानक चिन्ह होता है:
सभी प्रकार के खाने योग्य (Edible) तेल, मक्खन, घी, अंडा, नारियल का तेल, मूँगफली का तेल, गेहूँ, आटा, चावल, दालें, बेसन, मसाले, करी पाउडर, मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर, धनिया पाउडर, नमक, काली मिर्च पाउडर, जीरा पाउडर, फ्रूट जूस (Citrus), चाय, कॉफी आदि । उपभोक्ताओं को सदैव एगमार्क का चिन्ह देखकर ही उपरोक्त भोज्य पदार्थ खरीदने चाहिए ।
3. भारतीय मानक संस्थान (Indian Standard Institution):
यह हमारे देश का अत्यंत महत्वपूर्ण संस्थान है । जहाँ उत्तम गुणों वाले भोज्य पदार्थों का उत्पादन किया जाता है जिनके गुण भारतीय मानकों के अनुसार हो । इस संस्थान की स्थापना सन् 1947 में हुई थी । दिल्ली में इसका मुख्यालय है । इस संस्थान ने 1952 से प्रमाण पत्र जारी करने की स्कीम शुरू की थी । इसके अन्तर्गत सभी कृषि व इलेक्ट्रोनिक (Electronic) वस्तुएँ आती हैं ।
भारतीय मानक संस्थान निम्न प्रकार से कार्य करता है:
i. उत्पादनकर्ता को ISI मार्क लगाने की अनुमति तभी प्रदान करता है जब उनकी पदार्थ-गुणवत्ता ISI द्वारा दिये गये निर्देशों के अनुसार हो ।
ii. भारतीय मानक संस्थान इस बात का भी आश्वासन उपभोक्ता को देता है कि जिस बिन्दु पर ISI मार्क है वह शुद्ध है तथा उसकी गारंटी भी देता है ।
iii. भारतीय मानक संस्थान उत्पादककर्ता को ISI मार्क का अपने पदार्थों पर लगाने का लाइसेन्स देता है परन्तु इससे पूर्व वह गुणवत्ता, सुरक्षा व स्थिरता की जानकारी प्राप्त कर लेता है ।
iv. उत्पादककर्ता को लाइसेन्स देने से पूर्व उनका तैयार पदार्थ व उनकी विधि की पूरी जाँच-पड़ताल अपनी प्रयोगशालाओं में समय-समय पर करवाता रहता है ।
v. मानक संस्थान बाजार से भी अचानक सैंपल लेकर उसकी भी प्रयोगशाला में जाँच करवा सकता है यदि वस्तु उनके मानकों के अनुसार नहीं होती है तो उत्पादककर्ता का लाइसेन्स रद्द कर दिया जाता है ।
vi. शुरू में लाइसेन्स केवल एक वर्ष के उपयोग के लिए दिया जाता है इसके पश्चात् उसे फिर से रिन्यू किया जाता है ।
उपरोक्त मार्क के अतिरिक्त कुछ अन्य मार्क भी हैं:
(i) ईको मार्क (Eco Mark):
कुछ वस्तुएँ; जैसे: घड़ा व अन्य मिट्टी के बर्तनों या त्योहारों पर पूजा के लिये देवी- देवताओं की प्रतिमा वातावरण के अनुसार बनाई जाती हैं, ताकि वे वातावरण को गंदा न करें । ऐसी वस्तुओं को ईको मार्क दिया जाता है ।
(ii)बूलमार्क (Bull Mark):
इनका निर्माण ऐसे किया जाता है कि इन्हें पानी में डालने पर ये उसमें घुल जाएँ व पानी को दूषित न करें । ऊनी कपड़ों की गुणवत्ता नियंत्रित करने के लिये उस पर बूलमार्क छपा रहता है जिससे ऊनी कपड़ों की शुद्धता व गुणवत्ता का ज्ञान होता है ।