Read this article in Hindi language to learn about the five major harmful effects of food adulteration.
भोज्य पदार्थों का स्वाद तथा पौष्टिकता व मूल्यांकन उसमें उपस्थित गुणों से प्रभावित होता है । भोज्य पदार्थों को संग्रहित करते समय स्वच्छता के अभाव में उसमें जीवाणुओं द्वारा संक्रामक पदार्थ प्रवेश कर जाते हैं या यह परिवर्तन भोज्य पदार्थो के उत्पादन से उपभोक्ता तक पहुँचने के बीच की यात्रा में होता है ।
इस प्रकार भोज्य पदार्थों को संग्रहित करने व पकाने के पश्चात् कभी-कभी वह खाने योग्य नहीं रह पाता है, इसका मुख्य कारण है: “भोज्य पदार्थों का कीटों द्वारा खाया जाना, वसा का खराब होना तथा बाहरी तौर से भोज्य पदार्थों में मिलावट होना आदि ।
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इस प्रकार उत्तम पौष्टिकता वाले भोज्य पदार्थ भी जीवाणुओं व मिलावट के द्वारा विषाक्त हो जाते हैं; यदि हम उनको ग्रहण करते हैं तो शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है । कभी-कभी ये विषाक्त पदार्थ मृत्यु का कारण भी बनते हैं ।
भोज्य पदार्थों में मिलावट से मनुष्य के स्वास्थ्य पर निम्न प्रभाव देखा गया है:
Effect # 1. आर्जीमोन बीज का प्रभाव:
(i) ईपीडेमिक ड्राप्सी (Epidemic Dropsy):
यह रोग भारतवर्ष में सर्वप्रथम 1926 में ज्ञात हुआ था । सरसों के तेल में आर्जीमोन तेल की मिलावट से ड्रॉप्सी होता है ।
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इस रोग में निम्न लक्षण दृष्टिगोचर होते है:
(i) पैरों में सूजन,
(ii) दस्त,
(iii) डिस्पोनिया (Dyspnonea),
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(iv) हृदय घात,
(v) ग्लूकोमा (Glaucoma) ।
आर्जीमोन बीज की मिलावट निम्न प्रकार से होती है:
संयोग से: सरसों के बीज की खेती के साथ-साथ आर्जीमोन बीज एक जंगली फसल के रूप में पैदा होता है जिसे नियंत्रित किया जा सकता है ।
जानबूझकर: सरसों के तेल में जानबूझकर आर्जीमोन बीज को मिलाया जाता है जोकि सरसों के तेल के उत्पादन के समय किया जाता है ।
इरगोट (Ergot): यह एक प्रकार का फफूंदी (Fungus) है । कुछ अनाज; जैसे: गेहूँ, सोरगम, बाजरा, राई आदि में फूल आने के समय फफूँदी लग जाती है जिसे इरगोट फफँदी कहते हैं फफूँदी से संक्रमित अनाज को खाने से निम्न लक्षण उत्पन्न होते हैं: वमन, जी मचलाना, नींद आना आदि ।
इनडेमिक एसाइटिस (Endemic Ascites):
वर्ष 1973 व 1976 में मध्य प्रदेश के हागेसिआ आदिवासियों में इनडेमिक एसाइटिस व पीलिया के लक्षण देखे गये थे । इसने सभी आयु व लिंग को समान रूप से प्रभावित किया था । केवल शिशुओं पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा ।
राष्ट्रीय पोषण संस्थान हैदराबाद के अनुसार, स्थानीय जनसंख्या जो मोटा अनाज खाते थे जिसे गोनधली कहा जाता है, उसमें एक जंगली झाडू के बीज जिसे झुनझुनिया कहा जाता है, मिल जाती है । इसको खाने से एसाइटिस हो जाती है ।
Effect # 2. मेटैनिल पीला (Metanil Yellow):
भोजन को आकर्षक व खाने योग्य (देखने में) बनाने के लिए कई रंगों का उपयोग किया जाता है । मुख्यत: खाने में उन रंगों का प्रयोग होता है जो निषेध हैं; जैसे-लेड क्रोमेट (Lead Chromate), लाल व पीली मिट्टी का रंग, रंग डाईस जैसे-मेटैनिल पीला रंग ।
मेटैनिल पीले रंग का सबसे अधिक उपयोग भोज्य पदार्थों को रंग देने में किया जाता है । इसे सामान्य भाषा में गऊ छाप पीला रंग भी कहते हैं । इसका उपयोग अधिक मात्रा में दालों व मसालों को रंग प्रदान करने के लिये किया जाता है ।
मानव शरीर पर पीले रंग का प्रभाव (Effect of Metanil Yellow Colour on Human Body):
इसके अधिक मात्रा में प्रयोग करने से अस्थियों, आँखों, त्वचा, फुफ्फुस अण्डाशय, वृषण पर दुष्प्रभाव पड़ता है । इसके प्रयोग से मानसिक विकार, रक्ताल्पता (Anaemia) तथा शरीर व रक्त में रंग जमा हो जाता हैं ।
Effect # 3. केसरी दाल (Lathyrus):
केसरी दाल का सबसे अधिक उपयोग मध्य प्रदेश में किया जाता है । उत्तर प्रदेश, बिहार व पश्चिमी बंगाल में भी इस दाल का प्रयोग होता है । यह एक जंगली फसल है तथा इसकी खेती में कम मेहनत लगती है तथा उत्पादन अधिक मात्रा में होता है ।
केसरी दाल की मिलावट निम्न दालों में की जाती है:
केसरी दाल में उपस्थित विषाक्त पदार्थ:
केसरी दाल में B-oxalyl α diamino acid नामक विषाक्त पदार्थ पाया जाता है जो कि ट्रिपसिन एन्जाइम (Trypsin enzyme) की क्रिया को नष्ट करता है । अत: दालों की प्रोटीन का शोषण पूर्णरूप से नहीं हो पाता ।
केसरी दाल का अधिक मात्रा में भोजन में उपयोग करने से Lathyrism नामक रोग हो जाता है । इस रोग में पैरों में लकवा मार जाता है ।
Effect # 4. खनिज तेल:
अन्य तेल मिलाकर खनिज तेल में मिलावट की जाती है । यदि ऐसा खनिज तेल अधिक मात्रा में खाया जाये तो यह पाचन नम्बन्धी विकार उतपन्न करता है तथा रोगी को उल्टी हो जाती है । ऐसा तेल खाने से वसा में घुलनशील विटामिन ए तथा कैरोटीन टीक से अवशोषित नहीं हो पाते हैं ।
कई बार साबुत काली मिर्च को फफूँदी से बचाने तथा आकर्षक बनाने के लिए खनिज तेल से पॉलिश कर देते हैं । जो हमारे ज्वार के लिए हानिकारक होते हैं । खनिज तेलों में उपस्थित कई तत्व यदि हमारे शरीर में अधिक जोयें तो कैंसर भी सकता हो है ।
Effect # 5. चीनी:
चीनी में विषैले पदार्थ; जैसे सैक्रीन या केलमेट मिलाकर खाद्य को अधिक मीठा कर दिया जाता है । स्वीकृत मात्रा से अधिक डालने से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है । फलों में भी सैक्रीन के टीके लगा दिए जाते हैं ताकि वे मीठे लगें ।