Read this article in Hindi to learn about magnetism, explained with the help of experiments.
तुम बल्ले से गेंद पर आघात करके सीमा के पार पहुँचाते हो, साइकिल के हत्थे को घुमाकर उसकी दिशा बदल देते हो । तात्पर्य यह है कि जिस पिंड पर बल प्रयुक्त करना हो, उस पिंड के साथ वास्तविक संपर्क होना आवश्यक है ।
वृक्ष पर लगे फल पकने के बाद नीचे गिरते हैं । उन पर गुरुत्व बल कार्य करता है । इस क्रिया में पृथ्वी तथा वृक्ष पर लगे फलों में कोई भी संपर्क नहीं है फिर भी बल प्रयुक्त हुआ । सूखे बालों में कंघी घुमाने के बाद उसे कागज की कतरनों के समीप लाने पर संपर्क न होते हुए भी कतरनें ऊपर उठने लगती हैं । इस क्रिया में घर्षण विद्युत बल क्रियाशील होता है ।
तुम इसे जानते भी हो । ठीक इसी प्रकार वास्तविक संपर्क न होने पर भी चुंबकीय बल कार्य करता है । चुंबक की खोज के संबंध में ऐसा कहा जाता है कि ईसवी पूर्व लगभग ८०० से ६०० के काल में एशिया के मैगनीशिया क्षेत्र में रहनेवालों को एक पत्थर मिला ।
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उस पत्थर में लोहे के पदार्थों को अपनी ओर खींचने अर्थात आकर्षित करने का गुणधर्म था । आगे चलकर गाँव के निवासियों ने उस पत्थर का नाम मैग्नेटाइट रखा । बाद में यही नाम मैगनेट के रूप में रूढ़ हो गया । इसके बाद मैगनेट का विस्तारपूर्वक अध्ययन करने पर चुंबकत्व विज्ञान का विकास हुआ । आजकल बाजार में पट्टी, चकती, सूई, घोड़े की नाल, गोलाकर आदि विभिन्न आकरवाले चुंबक उपलब्ध हैं ।
करो और देखो:
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एक तश्तरी में लोहे, जस्ते, एल्युमीनियम, कोबाल्ट, निकेल तथा ताँबे के छोटे-छोटे टुकड़े लो । इसमें एक पट्टी चुंबक रखो । तुम देखोगे कि लोहे, निकेल तथा कोबाल्ट धातुओं के टुकड़े चुंबक की ओर आकर्षित होते हैं परंतु अन्य धातुओं के टुकड़े आकर्षित नहीं होते ।
जो पदार्थ चुंबक की ओर आकर्षित होते हैं, उन्हें ‘चुंबकीय पदार्थ’ कहते हैं । उदाहरण: लोहा, निकेल, कोबाल्ट । जिन पदार्थो पर चुंबक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, उन पदार्थों को ‘अचुंबकीय पदार्थ’ कहते हैं । उदाहरण: प्लास्टिक, रबड़, ताँबा ।
चुंबक के गुणधर्म:
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करो और देखो:
पट्टी के आकारवाले एक चुंबक को एक मजबूत धागे से बीचोंबीच बाँधकर आकृति में दिखाए अनुसार लकड़ी के एक स्टैंड से लटकाओ । तुम देखोगे कि क्षैतिज प्रतल में घुमता हुआ यह चुंबक सदैव एक निश्चित दिशा में स्थिर होता है । यही प्रयोग बार-बार करके देखो । तुम देखोगे कि यह चुंबक प्रत्येक बार उत्तर-दक्षिण दिशा में ही स्थिर होता है ।
अत: स्वतंत्रतापूर्वक लटकाया गया चुंबक उत्तर-दक्षिण दिशा में ही स्थिर होता है । यह चुंबक की एक विशेषता (गुणधर्म) है । प्रत्येक चुंबक में सदैव दो सिरे अर्थात दो ध्रुव होते हैं । जो ध्रुव पृथ्वी के उत्तर की ओर होता है, वह चुंबक के उत्तरी ध्रुव के रूप में जाना जाता है जबकि पृथ्वी के दक्षिण की ओरवाले ध्रुव को दक्षिणी ध्रुव के रूप में जानते है । चुंबक के सिरों पर N (North- उत्तरी) तथा S (South-दक्षिण) के रूप में स्पष्ट उल्लेख किया रहता है ।
करो और देखो:
एक तश्तरी में लोहे का बुरादा लो । उसमे एक पट्टी चुंबक रखो । उसे ऊपर उठाओ । तुम देखोगे कि चुंबक के ध्रुवों से चिपके हुए लोहे के कण अधिक मात्रा में हैं । उसकी अपेक्षा बीचवाले भाग में ये कण बहुत कम हैं । इस आधार पर यह आसानी से समझ सकते है कि किसी चुंबक की चुंबकीय शक्ति उसके सिरों की ओर अर्थात ध्रुवों की ओर एकत्र होती है ।
आकृति में दिखाए अनुसार लकड़ी के एक स्टैंड से एक पट्टी चुंबक धागे के सहारे लटका दो । उसे उत्तर-दक्षिण दिशा में स्थिर होने दो । अब किसी दूसरे चुंबक का उत्तरी ध्रुव लटकाए गए इस चुंबक के उत्तरी ध्रुव के समीप लाओ । लटके हुए पट्टी चुंबक का उत्तरी ध्रुव समीप लाए गए पट्टी चुंबक के उत्तरी ध्रुव से दूर जाता है । उसे चुंबकीय प्रतिकर्षण कहते हैं ।
अब अपने पट्टी चुंबक को दूर ले जाओ । लटके हुए चुंबक को स्थिर होने दो । अब पट्टी चुंबक के दक्षिणी ध्रुव को लटके हुए चुंबक के उत्तरी ध्रुव के समीप लाओ । दोनों ध्रुव एक-दूसरे को अपनी ओर खींचते है । इसे चुंबकीय आकर्षण कहते है ।
इस आधार पर हमें चुंबक के दो गुणधर्मों की जानकारी होती है:
(i) किन्हीं दो चुंबकों के सजातीय ध्रुवों में प्रतिकर्षण होता है ।
(ii) किन्हीं दो चुंबकों के विजातीय ध्रुवों में आकर्षण होता है ।
करो और देखो:
एक ऐसा पतला पट्टी चुंबक लो जिसे कैंची से काटा जा सके । उसका उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव निर्धारित करो । अब इसे कैंची से बीचोंबीच काट दो । दोनों टुकड़ों को लोहे के बुरादे में रखो । तुम देखोगे कि इन दोनों टुकड़ों के सिरों पर लोहे का बुरादा अधिक मात्रा में चिपका है ।
इसके बाद स्वतंत्र रूप में लटकाकर इन टुकड़ों के ध्रुवों का परीक्षण करो । दोनों चुंबक उत्तरी और दक्षिणी दिशा में स्थिर रहते हैं । इस चुंबक के छोटे-छोटे टुकड़े करके यही प्रयोग तुम स्वयं करो । प्रत्येक बार तुम्हें प्रत्येक टुकड़े में यही विशेषता दिखाई देगी । चुंबक के छोटे-छोटे चाहे जितने टुकड़े बनाए जाएँ, तो भी उनमें दो ध्रुव होते ही हैं । इसका अर्थ यह है कि, ‘किसी चुंबक के दोनों ध्रुव एक-दूसरे से अलग नहीं किए जा सकते ।’
चुंबक के विभिन्न उपयोग:
नौकानयन करते समय बहुत समय पहले दिशा का निर्धारण करने के लिए आकाश में स्थित ग्रहों तथा तारों की स्थिति देखी जाती थी । आकाश में जिस ओर ध्रुव तारा दिखाई देता है, उसे वे उत्तर दिशा मानते थे । बाद में चुंबक के उत्तर-दक्षिण दिशा में स्थिर होने के गुणधर्म की जानकारी होने पर उसका उपयोग ‘चुंबकीय दिकदर्शी’ में होने लगा ।
चीनी तथा यूनानी नाविकों ने सर्वप्रथम चुंबक का उपयोग करके दिकदर्शी का निर्माण किया । उस समय लकड़ी के एक टुकड़े पर चुंबकीय सुई रखकर पानी में छोड़ देते थे । यह स्वतंत्र अवस्था में उत्तर-दक्षिण दिशा में स्थिर होती है । इस प्रकार की चुंबकीय सुई ‘सूची चुंबक’ के नाम से जानी जाती है ।
ये प्राय: प्लास्टिक के होते हैं । पिन होल्डर को औंधे करने पर उसकी पेंदी में राखी पिनें ऊपरी ढक्कन के निचले भाग में चिपक जाती हैं, जिन्हें आसानी से निकाला जा सकता है । ढक्कन के निचले भाग में चकती के आकारवाला एक पतला चुंबक होता है । लोहे की पिनें उससे अपनेआप चिपक जाती है ।
किसी अलमारी का दरवाजा बंद करते समय, दरवाजे को चौखट के थोड़ा समीप लाने पर बिना बल लगाए वह बंद हो जाता है । इसके लिए दरवाजे की पट्टी के निचले भाग में एक चुंबक और ठीक उसके सामने चौखट में भी लोहे की पट्टी लगी होती है ।
प्रेक्षण करो:
प्रशीतक के दरवाजे में लगे चुंबक के उपयोग को समझो ।