Here is a list of various experiments conducted to determine the reflection of light.
जब प्रकाश की किरणें किसी पृष्ठभाग से टकराती हैं, तब वे वापस घूम जाती हैं । इसे प्रकाश का परावर्तन कहते हैं । दीवार से टकराया हुआ रबड़ का गेंद भी वापस आता है । यह भी गेंद का परावर्तन ही है ।
करो और देखो:
बिजली की एक सामान्य टार्च (चोरबत्ती) लो । उसके काँच पर तीन चीरेवाला एक काला कागज़ चिपकाओ । किसी ड्राइंगबोर्ड पर सफ़ेद कागज फैला दो । बोर्ड की एक ओर एक समतल दर्पण खड़ा करो । अब दर्पण के सामने टार्च को डेढ़-दो फीट की दूरी पर रखी । टार्च चालू करो । तुम्हें प्रकाश की तीन शलाकाएँ दिखेंगी ।
दर्पण पर आकर परावर्तित प्रकाश किरणों का मार्ग देखो । इससे तुम समझ सकोगे कि प्रकाश कैसे परावर्तित होता है । अब परावर्तित किरणों की दिशा में दर्पण की ओर अपनी दृष्टि लाओ । तुम्हें टार्च का प्रकाशयुक्त चीरा दिखेगा । इससे तुम यह समझ सकते हो कि वह प्रकाश टार्च से ही आ रहा है ।
जब तुम दर्पण में देखते हो, तो क्या होता है ? तुम्हारे चेहरे से निकलनेवाली प्रकाश किरणें दर्पण से परावर्तित होकर आँखों तक पहुँचती हैं । इसीलिए दर्पण में तुम्हें अपना चेहरा दिखता है । यह दर्पण से बननेवाला तुम्हारा प्रतिबिंब है ।
करो और देखो:
किसी दर्पण के सामने जलती हुई एक मोमबत्ती रखो । दर्पण में तुम्हें एक दूसरी मोमबत्ती दिखाई देगी । बाहरवाली मोमबत्ती को वस्तु कहते हैं, जबकि दर्पण में दिखाई देनेवाली मोमबत्ती उसका प्रतिबिंब है ।
करो और देखो:
ADVERTISEMENTS:
किसी बड़े दर्पण के सामने जाकर खड़े रहो । दर्पण से अपन सिर लगाओ । जमीन से उस स्थान तक की दूरी नापो । तुम क्या देखते हो ? समतल दर्पण द्वारा बननेवाला प्रतिबिंब सीधा और ऊँचाई में मूल वस्तु के बराबर ही होता है ।
करो और देखो:
ADVERTISEMENTS:
शतरंज की एक विसात लो । उसपर केवल एक मोहरा वजीर रखो । विसात के एक सिरे पर समतल दर्पण खड़ा करके रखो । अब दर्पण से ठीक तीसरे खाने के बीचोंबीच वजीर रखो ।
दर्पण के पीछे वजीर के प्रतिबिंब की ओर ध्यान दो । वह दर्पण के पीछे ठीक तीसरे खाने में ही दिखेगा । अब वजीर को पाँच खाने पीछे ले जाओ जिससे वह विसात के सिरे पर आ जाए । अब प्रतिबिंब आठवें खाने में ही होता है । इससे यह स्पष्ट होता है कि समतल दर्पण द्वारा निर्मित प्रतिबिंब, दर्पण के पीछे ठीक उतनी ही दूरी पर बनता है ।
करो और देखो:
किसी ऊँचे दर्पण के सामने इस प्रकार खड़े हो जाओ जिससे कि तुम्हारा पूरा प्रतिबिंब दर्पण में दिखाई दे । चित्र में दिखाए अनुसार दर्पण के पास अपने मित्र को खड़ा करो । चित्र देखो । तुम अपना बायाँ हाथ ऊपर उठाओ । अपने मित्र को दर्पण में से देखते हुए उसी प्रकार हाथ ऊपर उठाने को कहो ।
वह उसका दाहिना हाथ होगा । अब तुम दाहिना हाथ ऊपर उठाओ । मित्र बायाँ हाथ ऊपर उठाएगा । इससे तुम शीघ्र समझ सकोगे कि वस्तु तथा प्रतिबिंब में बाएँ तथा दाहिने पक्षों में अदला-बदली हो जाती है ।
प्रकाश के परावर्तन के नियम:
ड्राइंगबोर्ड पर सफेद कागज फैलाओ । कागज के एक सिरे के पास एक समतल दर्पण खड़ा करो । किसी काले कागज में ब्लेड की सहायता से एक पतला चीरा बनाओ और उसे टार्च के काँच पर चिपका दो । टार्च को दर्पण से ८-१० इंच की दूरी पर रखो । कमरे में पूर्णत: अँधेरा करो । अब टार्च पर पीछे की ओर से प्रकाश डालो । तुम्हें क्या दिखाई देता है ? काँच के चीरे से प्रकाश की एक किरण तिरछे दर्पण से जाकर मिलती है ।
यही प्रकाश की आपाती किरण है । कागज पर इसे खींचो । यह किरण दर्पण के जिस बिंदु पर आती है, उस बिंदु पर एक खड़ा लंब खींचो । इस लंब रेखा को अभिलंब कहते हैं । अब दर्पण में से परावर्तित किरण देखकर उसे कागज पर खींची । ऐसा चार-पाँच बार करो ।
‘संलग्न आकृति देखो । किरण PO आपाती किरण, किरण OQ परावर्तित किरण है । OM अभिलंब है । आपाती किरण द्वारा अभिलंब के साथ निर्मित कोण को ‘आपतन कोण’ कहते हैं । ∠POM = ∠i यह आपतन कोण है । परावर्तित किरण द्वारा अभिलंब के साथ निर्मित कोण को ‘परावर्तन कोण’ कहते हैं । ∠QOM = ∠r यह परावर्तन कोण है ।
परावर्तन के नियम:
i. आपाती किरण, परावर्तित किरण तथा अभिलंब एक ही प्रतल में होते हैं ।
ii. आपाती किरण तथा परावर्तित किरण, अभिलंब के विपरीत ओर होते हें ।
iii. समतल पृष्ठभागों पर आपतन कोण तथा परावर्तन कोण के माप समान होते हैं ।
परावर्तन के प्रकार:
प्रकाश का परावर्तन चिकने तथा खुरदरे दोनों प्रकार के पृष्ठों से होता है । किसी चिकने पृष्ठ से होनेवाले परावर्तन को ‘नियमित परावर्तन’ कहते हैं । आकृति में एक समतल दर्पण जैसे चिकने पृष्ठभाग पर से होनेवाले परावर्तन का रेखांकन किया गया है ।
यदि आपाती किरणें किसी चिकने पृष्ठभाग पर समांतर आती हों, तो सभी किरणों के आपतन कोण समान होते हैं । इसके साथ-साथ परावर्तन कोण भी समान होते हैं और ये आपतन कोण के बराबर ही होते हैं । ऐसे परावर्तन को ‘नियमित परावर्तन’ कहते हैं ।
इसके विपरीत किसी खुरदरे पृष्ठभाग पर आपाती किरणें समांतर होने पर भी, परावर्तित किरणें समांतर नहीं होतीं और ये एक विस्तृत पृष्ठभाग पर फैल जाती हैं । ऐसे परावर्तन को ‘अनियमित परावर्तन’ कहते हैं ।
परावर्तित प्रकाश का परावर्तन:
रात में तुम जब किसी दर्पण में चंद्रमा का प्रतिबिंब देखते हो, तो तुम्हारी आँखों तक कौन-सा प्रकाश पहुँचता है ? सूर्य का प्रकाश चंद्रमा पर पड़कर वहाँ से परावर्तित होता है । इसके बाद दर्पण पर से इसका फिर से परावर्तन होता है । इस प्रकार प्रकाश का अनेक बार परावर्तन हो सकता है ।
केश कर्तनालय में तुम्हारे सामने तथा पीछे की ओर भी समतलदर्पण होते हैं । उसमें भी इसी प्रकार एक से अधिक बार होनेवाले परावर्तन तुम्हें दिखाई देता है । ऐसे समांतर दर्पणों द्वारा असंख्य प्रतिबिंब बनते हैं ।
परिदर्शी:
करो और देखो:
प्लास्टिक की एक बोतल लो । आकृति में दिखाए अनुसार उसमें नीचे तथा ऊपर दो तिरछे छेद बनाओ, जिससे उसमें दो समतल दर्पण बोतल की लंबाई के साथ ४५० मापवाले कोण बनाते हुए परस्पर समांतर लगाए जा सकें । ऊपरवाले दर्पण की दाहिनी और नीचेवाले दर्पण की बाई ओर एक-एक इंच की दो खिड़कियाँ बनाओ । अब नीचेवाली खिड़की में से देखो । तुम्हें ऊपरवाली खिड़की के सामने की वस्तुओं के प्रतिबिंब दिखाई देंगे ।
वस्तु का प्रतिबिंब पहले ऊपरवाले समतल दर्पण से बना । वहाँ से परावर्तन होने के बाद वह दूसरे दर्पण पर पड़ता है । अब इसका पुन: परावर्तन होता है और यह हमें दिखाई देता है । ऐसे यंत्र को परिदर्शी कहते हैं । पनडुब्बी के ऊपर पृष्ठभाग से नीचे रहकर भी बाहर की वस्तुओं की टोह लेने के लिए परिदर्शी उपयोगी सिद्ध होता है ।
करो और देखो:
अगरबत्ती अथवा शटलकाक रखनेवाला कोई एक बेलनाकार डिब्बों । इसमें समान आकारवाले तीन समतल दर्पण इस प्रकार लगाओ कि इनके मध्य ६०॰ मापवाले कोण बने । इस डिब्बे के दूसरी ओर के भाग काटकर वहाँ पतंग का मोटा कागज चिपकाओ । अब डिब्बे में काँच के चार-पाँच भिन्न रंगवाले टुकड़े रखो । इसके ढक्कन में एक छिद्र करो ।
ढक्कन से आँख सटाकर रखो और डिब्बे को प्रकाश की दिशा में घुमाओ । तुम्हें अनेक रंगबिरंगे प्रतिबिंब दिखाई देंगे । डिब्बे को धरि-धीरे घुमाओ । तुम्हें अलग-अलग प्रकार की रंगीन आकृतियों से बनी डिजाइनें दिखेंगी । तीन दर्पणों द्वारा कई बार परावर्तन होने के कारण किसी वस्तु के कई (पाँच) प्रतिबिंब बनते हैं ।
उन्हीं के द्वारा ही अनेक डिजाइनें निर्मित होती है । इसे ‘बहुमूर्तिदर्शी’ कहते हैं । आजकल सड़कों के किनारों पर एक विशेष प्रकार का रंग लगाया जाता है । इन्हें स्फुरदीप्त पेंट कहते हैं । इन पर प्रकाश पड़ते ही ये चमकने लगते है । इसलिए परावर्तित प्रकाश में से तुरंत दिखाई देते हैं और वाहनचालक सावधान हो जाता है ।