Read this article in Hindi to learn about the analysis of air, explained with the help of experiments.
परिसर में हमारे चारों ओर हवा का एक मोटा आवरण है । इसे ही हम वायुमंडल (वातावरण) कहते है । वायु या वात का अर्थ है, हवा । हवा में आक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइआक्साइड, आरगन, पानी की भाप तथा अन्य निष्क्रिय गैस और धूल के सूक्ष्म कण होते है ।
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आक्सीजन:
हवा में आक्सीजन स्वतंत्र (मुक्त) अवस्था में पाई जाती है । पानी में भी यह घुलित अवस्था में होती है । सजीवों का अस्तित्व इसी आक्सीजन पर निर्भर है ।
प्रयोगशाला में आक्सीजन गैस तैयार करने की विधि:
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प्रयोगशाला में आक्सीजन गैस तैयार करने के लिए एक परखनली में पोटैशियम क्लोरेट तथा मैंगनीज डाइआक्साइड के चूर्ण का मिश्रण लेते हैं जिनका अनुपात क्रमश: ५:१ हो । आकृति में दिखाए अनुसार सभी उपकरणों का सही विन्यास करते हैं । परखनली के मिश्रण को ३००० से॰ तक गरम करते हैं । पानी से भरे हुए औंधे रखे गैसजार में यह गैस बुलबुलों के रूप में एकत्र होती है ।
ऐसे ही तीन-चार गैसजार गैस से भर लेते हैं । गैसजार गैस से पूर्णत: भर गया है, गैसजार के पानी का स्थान धीरे-धीरे आक्सीजन ले लेती है । जैसे-जैसे गैसजार में आक्सीजन गैस भरती जाती है, वैसे-वैसे उसमें भरा पानी नीचे आता है । आक्सीजन गैस हवा से थोड़ी सी भारी होती है । यह गैस पानी के अधोविस्थापन विधि से एकत्र करते हैं ।
रासायनिक अभिक्रिया का समीकरण:
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ध्यान दो:
उपर दी गई अभिक्रिया में मैंगनीज डाइआक्साइड वास्तव में भाग नहीं लेता । इस अभिक्रिया में वह उत्प्रेरक का कार्य करता है ।
आक्सीजन के भौतिक गुणधर्म:
(i) आक्सीजन रंगहीन, गंधहीन तथा स्वादहीन गैस है ।
(ii) यह वहाँ से हल्की और पानी में अल्प विलेय गैस है ।
आक्सीजन के रासायनिक गुणधर्म:
करो और देखो:
आक्सीजन गैस से भरा हुआ एक गैसजार लो । आकृति में दिखाए अनुसार इसमें एक जलती हुई मोमबत्ती रखो । आक्सीजन अन्य तत्वों के साथ आसानी से रासायनिक संयोग करके उनके आक्साइड निर्मित करती है ।
करो और देखो:
चूल्हे की लकड़ी जब बुझ रही हो, उस समय उसपर धमन नली (ब्लो पाइप) द्वारा फूँको । लकड़ी पुन: तेजी से जलने लगती है । इसका कारण जानने की कोशिश करो । कुछ समय बाद इसका ज्वलन पुन: मंद ही जाता है । आक्सीजन स्वयं जलती नहीं परंतु यह ज्वलन में सहायता करती है ।
आक्सीजन के उपयोग:
(i) सजीवों के श्वसन के लिए आक्सीजन का उपयोग होता है ।
(ii) श्वसन में अवरोध उत्पन्न होने पर आक्सीजन द्वारा कृत्रिम श्वसन कराया जाता है ।
(iii) पर्वतारोही तथा गोताखोर आदि अपने साथ आक्सीजन के सिलिंडर ले जाते हैं, जिससे उन्हें श्वसनसंबंधी परेशानी न हो ।
(iv) धातुओं की जोड़ाई (वेल्डिंग) या कटाई करने के लिए आक्सीहाइड्रोजन (तापमान २८००० से॰) अथवा आक्सीएसीटलीन (तापमान ३२००० से॰) के मिश्रणवाली ज्योति का उपयोग किया जाता है ।
नाइट्रोजन:
हवा में सर्वाधिक मात्रा नाइट्रोजन की ही है । सभी प्रथिनों का महत्वपूर्ण घटक नाइट्रोजन है । इसलिए सजीवों की वृद्धि के लिए यह जरूरी होती है । हवा की नाइट्रोजन का उसी रूप में उपयोग कर पाना संभव नहीं है । इसके लिए उसका स्थिरीकरण होना आवश्यक होता है ।
नाइट्रोजन का स्थिरीकरण:
हवा की नाइट्रोजन का उसके उसी रूप में उपयोग कर पाना संभव नहीं है । इसलिए नाइट्रोजन का रूपांतरण अमोनिया तथा नाइट्रेटों में होना ही चाहिए । इस रूपांतरण द्वारा यह सजीवों के लिए उपयोगी हो जाती है । नाइट्रोजन के इसी रूपांतरण को उसका स्थिरीकरण कहते है । स्थिरीकरण की यह प्रक्रिया जैविक तथा वायुमंडलीय दोनों घटकों द्वारा होती है ।
जैविक घटकों द्वारा नाइट्रोजन का स्थिरीकरण:
नाइट्रोजन का स्थिरीकरण संपन्न करवानेवाले सूक्ष्मजीव दो प्रकार के होते है । उनमें से एक प्रकार के सूक्ष्मजीव वनस्पतियों की जड़ों के ऊपर होनेवाली गाठों में और दूसरे प्रकार के सूक्ष्मजीव जमीन में होते है । जड़ों के ऊपर होनेवाली गाठों में पाए जानेवाले सूक्ष्मजीव वायुमंडलीय नाइट्रोजन का अभिशोषण करके उनका नाइट्रोजन के यौगिकों में रूपांतरण करते है । जमीन अर्थात मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्मजीव नाइट्रोजन का अमोनिया, नाइट्रस अम्ल और नाइट्रिक अम्ल में रूपांतरण करके अंत में उनका नाइट्रेटों में रूपांतरण कर देते हैं ।
नाइट्रोजन का वायुमंडलीय स्थिरीकरण:
जब आकाश में बिजली चमकती है, तब हवा की नाइट्रोजन तथा आक्सीजन का परस्पर रासायनिक संयोग होता है । इससे नाइट्रिक आक्साइड तैयार होता है । इस नाइट्रिक आक्साइड का पुन: आक्सीकरण होने के कारण नाइट्रोजन डाइआक्साइड बनता है ।
वर्षा के जल में यह नाइट्रोजन डाइआक्साइड घुल जाती है और सबसे अंत में उसका नाइट्रिक अम्ल में रूपांतरण हो जाता है । यह नाइट्रिक अम्ल वर्षा के जल के साथ जमीन पर आता है । जमीन के लवणों से इसकी अभिक्रिया होती है, जिससे उसमें नाइट्रेटों का निर्माण होता है । वनस्पतियाँ अपनी वृद्धि के लिए इन नाइट्रेटों का उपयोग करती हैं । इसी प्रकार जैविक तथा वायुमंडलीय प्रक्रियाओं द्वारा हवा की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण होते रहने से सजीवों को नाइट्रोजन उपलब्ध होती है ।
सजीवों के उत्सर्जन, सड़न तथा ज्वलन जैसी क्रियाओं के द्वारा इस नाइट्रोजन का पुन: अपघटन होता है और नाइट्रोजन पुन: हवा में छोड़ दी जाती है । फलत: वायुमंडल में हवा की नाइट्रोजन का अनुपात स्थिर बना रहता है ।
नाइट्रोजन के कुछ उपयोग:
(i) सजीवों की वृद्धि के लिए नाइट्रोजन का उपयोग होता है । वनस्पतियों को जमीन से नाइट्रेटों तथा खादों के रूप में नाइट्रोजन मिलती है और उनकी वृद्धि होती है । वनस्पतियाँ इस नाइट्रोजन से प्रथिनयुक्त पदार्थों का निर्माण करती हैं । अन्य सजीव इन पदार्थों को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं, जिससे उनकी वृद्धि होती है ।
(ii) उर्वरकों के निर्माण में नाइट्रोजन का उपयोग होता है ।
(iii) अमोनिया तथा नाइट्रिक अम्ल के औद्योगिक उत्पादन में नाइट्रोजन का उपयोग किया जाता है ।
(iv) उच्च तापमान का मापन करनेवाले तापमापी के निर्माण में नाइट्रोजन का उपयोग करते हैं ।
हवा में कार्बन डाइआक्साइड की उपस्थिति:
प्रकाश- संश्लेषण की प्रक्रिया में वनस्पतियाँ हवा में उपस्थित कार्बन डाइआक्साइड का उपयोग करती हैं और वायुमंडल में आक्सीजन गैस मुक्त करती हैं । यह प्रक्रिया सूर्य के प्रकाश में होती है ।
करो और देखो:
तुमने देखा होगा कि शीतपेय की कोई बोतल खोलते ही उसमें से तुरंत फुसफुसाहट के साथ कोई गैस बाहर निकलती है । यह गैस वास्तव में कार्बन डाइआक्साइड है । यही गैस फुसफुसाहट के साथ बाहर निकलती है । कार्बन डाइआक्साइड जल में अल्प मात्रा में घुलती है । इसलिए दाब डालकर उसे पानी में घोला जाता है । अत: बोतल का ढक्कन हटाते ही दाब कम होने के कारण अतिरिक्त पुलित गैस फुसफुसाहट के साथ बाहर निकलती है ।
हवा में पानी की भाप की उपस्थिति:
करो और देखो:
एक स्वच्छ गिलास लो । उसके बाहरी पृष्ठभाग को शुष्क करो । अब इस गिलास में बर्फ के कुछ टुकड़े डालो । कुछ समय बाद गिलास के बाहरी पृष्ठभाग पर पानी की छोटी-छोटी बूँदें दिखाई देती हैं । इन बूँदों पर अँगुली फिराओ और देखो ।
हवा में उपस्थित पानी की भाप का द्रवीभवन होता है और यही भाप पानी की सूक्ष्म बूँदों के रूप में बाहरी पृष्ठभाग पर एकत्र होती है । कुछ आर्द्रताग्राही पदार्थ हवा में उपस्थित जलवाष्प का अभिशोषण कर लेते हैं । इससे भी हवा में जलवाष्प के अस्तित्व की जानकारी होती है । बादल तथा कोहरे में भी पानी की भाप सांद्रीन्द्व अवस्था में होती है ।
हवा में निष्क्रिय गैसों की उपस्थिति:
वायुमंडल के अन्य घटकों में निष्क्रिय गैसों, आरगन, तथा के अनेक उपयोग हैं । इनमें से आरगन का उपयोग बिजली के बल्बों में, हिलियम का उपयोग निम्न तापमान प्राप्त करने में और नियान का उपयोग विज्ञापनों के लिए उपयोगी बल्बों तथा ट्यूबलाइटों में किया जाता है ।
हवा का प्रदूषण (वायु प्रदूषण):
औद्योगीकरण तीव्र गति से हो रहा है । कारखानों की संख्या में वृद्धि हो रही है । कारखानों में से निकलनेवाले अपद्रव्यी रासायनिक पदार्थ; ठोस, द्रव तथा गैसीय अवस्था में होते है । ये पदार्थ जमीन, मिट्टी तथा पानी और वायुमंडल में छोड़ दिए जाते हैं । जब ऐसे रासायनिक पदार्थ किसी स्थान पर आवश्यकता से अधिक मात्रा में संचित होने लगते हैं, तब इनके हानिकारक प्रभाव दिखाई देने लगते हैं । इसे ही ‘प्रदूषण’ कहते है ।
कारखानों का दूषित पानी, घुआं, कोयले के कण तथा रासायनिक पदार्थ विशेषत: कार्बन, गंधक आदि के जलने से वायुमंडल में मिश्रित होनेवाली विभिन्न गैसों के अतिरिक्त सीसे, एल्युमीनियम, जस्ते, अम्लों तथा भस्मों इत्यादि द्वारा प्रदूषण होता है ।
वायुमंडलीय प्रदूषण द्वारा श्वसन से संबंधित विकार, आँतों का कैंसर, मूत्राशय में खराबी, उच्च रक्तचाप तथा आँखों के विकार इत्यादि रोग उत्पन्न होते है । इनके साथ हृदय की धड़कन बढ़ने तथा मानसिक विकार भी होने की संभावना बढ़ जाती है । अब तो यह भी देखा जा रहा है कि वनस्पतियों तथा प्राणियों पर भी प्रदूषण के कुप्रभाव पड़ते हैं ।
इसके कारण जानवरों की दूध देने की क्षमता कम हो रही है तथा उनकी आयु भी घट रही है । प्रदूषण के कारण वनस्पतियों द्वारा किए जानेवाली प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया की गति मंद हो रही है । वनस्पतियों की पत्तियाँ असमय ही गिर जाती हैं और उनमें फल न लगने का भी कुप्रभाव दिख रहा है । सरकार तथा समाज दोनों द्वारा वायुमंडलीय प्रदूषण को रोकने का काम हाथों में लिया गया है ।
इसके लिए कुछ उपाय निम्नलिखित हैं:
(i) रासायनिक संदूषित पानी का प्रसंस्करण करने के बाद ही उसे बाहर छोड़ने से संबंधित कठोर कानून बनाया गया है ।
(ii) मूल रासायनिक अभिक्रियाओं में भी परिवर्तन करके प्रदूषण अनेवाले रासायनिक पदार्थों का निर्माण रोकना चाहिए ।
(iii) इस बात की सावधानी रखी जानी चाहिए कि सभी रासायनिक पदार्थ एक ही स्थान पर एकत्र न हो सकें ।
(iv) वायु के प्रदूषण से बचाव के लिए औद्योगिक इकाइयाँ शहरों से पर्याप्त दूर हों तथा उनकी चिमनियाँ पर्याप्त ऊँचाईवाली हों ।
(v) वाहनों के इंजनों की समय-समय पर सही देखभाल की जाए और उनके द्वारा होनेवाले प्रदूषण को रोका जाना चाहिए ।
(vi) जंगलों की वृद्धि करके हवा के प्रदूषण को कम करना चाहिए ।
अम्लीय वर्षा:
बड़े-बड़े औद्योगिक शहरों में स्थित करखानों से नाइट्रोजन डाइआक्साइड तथा सल्फर डाइआक्साइड गैस सतत निकलती रहती हैं । वे वर्षा के जल में घुलकर नाइट्रस अम्ल तथा सल्फ़ूरीक अम्ल बनाती हैं । वर्षा के जल के साथ ये अम्ल जमीन तक पहुँच जाते हैं । इसे ही ‘अम्लीय वर्षा’ कहते हैं । इसी वर्षा का प्रभाव है कि कभी-कभी मोटे-मोटे वृक्ष पीले पड़कर नष्ट हो जाते हैं और संगमरमर से बनी इमारतों पर पीले दाग पड़ते हैं ।