साहित्य और समाज का सम्बन्ध बहुत महत्त्वपूर्ण है । जब मूह बनाकर समाज के रूप में इस पृथ्वी पर जीवन रहा है, तभी से साहित्य भी रचा जा रहा है । साहित्य लेखकों द्वारा रचा जाता है, जो मानव-समाज का न करते हैं । प्रत्येक काल के साहित्य में उस काल के मानव की विचारधारा, जीवनचर्या, सुख-दु:ख आदि का ग है ।
किसी भी काल के साहित्य से उस काल के ताना जा सकता है । वस्तुत: साहित्य समाज से पूर्णत: प्रभावित होता है । किसी भी चना की प्रेरणा समाज से ही प्राप्त होती है । इसी भी साहित्य से प्रभावित होता है । किसी भी साहित्य का मनुष्य के मन-मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव पड़ता ।
साहित्य में मनुष्य की विचारधारा बदलने की क्षमता होती है । अत: समय-समय पर मानव-समाज को उचित मार्गदर्शन देनेवाला साहित्य रचा जाता रहा है । वस्तुत: प्रत्येक मनुष्य का बौद्धिक समान नहीं होता । कुछ लोग ज्ञान के अभाव में प्राय: तियाँ करते हैं और जीवन में दुःख भोगते हैं ।
जीवन के भव से शिक्षा प्राप्त करने वाले लोग अपने जीवन को अनेक टों से बचाए रखने में सफल रहते हैं । साहित्य में दुःख भोगने ने असफल लोगों के जीवन की भी झलक होती है और सफल वन व्यतीत करने वाले अनुभवी लोगों की भी । अत: साहित्य द्वारा समाज का समुचित पथ-प्रदर्शन आरम्भ से ही किया जाता रहा है ।
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निस्संदेह साहित्य और समाज को एक-दूसरे का कहा जा सकता है । आदिकाल से समाज का प्रारूप भिन्न-भिन्न रहा है । समय के साथ समाज की विचारधारा, उसके रहन-सहन, सभ्यता एवं स्मृत संस्कृति में परिवर्तन होता रहा है । समाज के इस परिवर्तन के साथ साहित्य में भी निरन्तर परिवर्तन होता रहा है ।
साहित्य में बदलते युग की तस्वीर तो देखने को मिलती ही है, साथ ही आने । समय के प्रति समाज को आगाह करने का प्रयत्न भी किया पता है । किसी भी काल का सत्साहित्य उस काल के समाज को जागरूक बनाने में बहुत महत्त्वपूर्ण होता है ।
अनेक युगों में साहित्य ने समाज को संतुलित मर्यादित जीवन का पाठ पढ़ाया और समाज के उत्थान में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है । लोगों के पथ-प्रदर्शन के अतिरिक्त साहित्य ने समाज को शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है । विद्वान शिक्षकों वैज्ञानिकों के साहित्य की ही देन है जो आज विश्व वैज्ञानिक युग में सुविधा-सम्पन्न जीवन व्यतीत कर रहा है ।
ज्ञान-विज्ञान के सामूहिक उपभोग के लिए उसका प्रचार-प्रसार आवश्यक है । ज्ञान-विज्ञान की धरोंहर का संचय भी आवश्यक होता है । ये कार्य साहित्य के द्वारा सम्पन्न होते रहे हैं । साहित्य ने समाज के स्वस्थ मना-लचन में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है । आज मानव को मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हैं ।
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परन्तु उत्कृष्ट कथा-साहित्य एवं कविताओं का मानव-जीवन में सदैव विशेष स्थान रहा है । कथा-कविताओं के माध्यम से मानव सदा अपने समकालीन समाज से जुड़ा रहा है । कथा-कविताओं का रसास्वादन अन्यत्र सम्भव नहीं है ।
अच्छे साहित्य का महत्त्व समाज के लिए सदा बना रहेगा । जिस प्रकार अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वास्थ्यवर्धक, सन्तुलित खान-पान आवश्यक है, उसी प्रकार समाज को स्वस्थ, मर्यादित बनाए रखने के लिए सत्साहित्य आवश्यक है ।
वास्तव में लेखकों, साहित्यकारों का यह परम कर्तव्य है कि वे समाज के अत्थान में सहयोग देने के लिए लोगों का स्वस्थ मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन करने के साथ-साथ उनका पथ-प्रदर्शन करने वाले साहित्य की रचना करें । सस्ता अथवा अश्लील साहित्य स्पष्टत: समाज के पतन का कारण बनता है ।